बुधवार, 28 अगस्त 2019

यात्रा ….. कैलाश मानसरोवर :PART 4

यात्रा ….. कैलाश मानसरोवर :PART 4
(Reading Time : 10 Mnt)
       


                 जैसे कि मैने पिछली यात्रा में बताया था,  कैलाश पर्वत की चरण पूजा का सुअवसर प्राप्त करने के
पश्चात स्वास्थ्य खराब होने के कारण  , परिक्रमा बीच में ही छोड़ कर मै पत्नी सहित पहले पड़ाव से ही
" डार चिन" कस्बे में स्थित अपने होटल में वापस चला आया।अगले दो दिन होटल में ही रुक कर , स्वास्थ्य लाभ
करता रहा।तीसरे दिन हमारे ग्रुप के सारे यात्री,अपनी  कैलाश पर्वत की पैदल परिक्रमा सम्पूर्ण करके वापस
हमसे आ मिले।निस्संदेह सबको मुझे पूरी तरह स्वस्थ देखकर खुशी हुई।अब अगले ही दिन यहां से 40 किलो
मीटर दूर पवित्र मानसरोवर झील की पुण्य परिक्रमा बसों के द्वारा करने के लिए सारे यात्री तैयार थे। अगले दिन
प्रातः 5 बजे से पुनः हम इस जीवन में ,प्राय एक बार ही इस यात्रा के सुअवसर मिलने वाली यात्रा के लिए चल दिए।
       


  लगभग 1 घण्टे की बस यात्रा के पश्चात् हम चिर प्रतीक्षित पवित्र मानसरोवर झील के तट पर हाथ जोड़े,अपने
भाग्य को सराहते हुए खड़े थे। लगभग 100 किलो मीटर की परिधि वाली इस विशाल , शीशे की तरह अत्यंत
पारदर्शी ,मीठे पानी की झील के तट पर यात्रियों के के लिए बने 8 अस्थाई कमरों के अलावा दूर एक वर्षों पुराना बौद्ध
मठ ही था।झील के तट में जहां तक नजर जा सकती थी किसी भी प्रकार की वानस्पतिक चिन्ह तक नहीं था।चूंकि
मानसरोवर झील भी 19000 फुट की अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है , अतः पेड़ पोधों को तो छोड़िए , घास भी नहीं
उगती है । 

झील के तट से कुछ ही फुट कि दूरी पर चारों तरफ भूरे रंग के उजाड़  पर्वत खड़े थे जो कि इस जुलाई के महीने
में भी बर्फ से ढके हुए थे।लेकिन अत्यंत अद्भुत और नजरों को सम्मोहित करने वाला एक अलौकिक दृश्य पर हम सब
की नजरें रुकी हुई थी ,वो थी,झील के दूर दूसरे किनारे पर ,चारों तरफ फैली ,भूरे रंग के पर्वतों की चोटियों से भी
बहुत ऊंची ,शुभ्र बर्फ से ढकी , एक पवित्र चोटी " कैलाश पर्वत"।अब आप उस अत्यंत मनोरम ,अन्यत्र दुर्लभ दृश्य
की कितनी भी कल्पना करें ,यह साक्षात दृश्य उन सब से कहीं अधिक अलग था।ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे वे हमारे
इस पवित्र मानसरोवर झील में स्नान करने के प्रत्यक्ष गवाह बनने वाले थे,साथ ही एक मोंन दिलासा भी दे रहे थे कि
इस पवित्र यात्रा के साक्षी रूप में ,जन्मों के पाप धुलने ,प्रत्येक यात्री की आत्मा तक के आंतरिक शुद्धिकरण के गवाह
भी वे होने वाले थे।  दूर दूर तक ,विशाल नीले रंग की, हलकी लहरों से लहराती मानसरोवर झील के जल में शुभ्र
सफेद रंग की पवित्र कैलाश पर्वत की चोटी का प्रतिबिंब एक अतुलनीय दृश्य उपस्थित कर रहा था।हम सब पूर्ण
सम्मोहित हो कर अपने में मस्तिष्क में इस पल की हर घड़ी को अमिट छाप के रूप सहेज रहे थे।
        


यात्रा के विवरण को आगे बढ़ाने से पहले मै इस पवित्रतम,आश्चर्य जनक,मानसरोवर झील के बारे में कुछ अद्भुत
बातें  की जानकारीआप लोगो को बताना चाहूंगा।भौतिक रूप में यह झील,दुनिया में सबसे ऊंचे पर्वत श्रेणी हिमालय के
मध्य में ,दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित मीठे पानी की झील है।इस झील में पवित्र कैलाश पर्वत के चारों और जमे ग्लेशियर
से आने वाली जलधारा ,इस झील में पानी  का मुख्य स्रोत है।इसी पवित्र मानसरोवर झील से 5 प्रमुख नदियां निकल कर
अपना आकार ग्रहण करती हैं और चीनी,भारतीय उप महाद्वीप के अरबों नागरिकों की ,ना केवल प्यास बुझती है अपितु
कृषि में सिंचाई के काम आकर उनकी भूख भी मिटाती है।प्राचीन काल से ही हमारे वेदपुरानो में इस झील का विवरण
मिलता है।सदियों से सनातन धर्म की मान्यता है कि इस झील में भगवान श्री विष्णु जी शेषनाग पर निवास करते हैं,जिसे
पुराणों में शीर सागर भी कहते हैं। मै आपको एक रोचक जानकारी भी और देना चाहूंगा कि हमारे भारत वर्ष को संस्कृत
भाषा में जंबू द्वीप भी कहा जाता है।इस जंबू द्वीप के नाम के पीछे भी एक धारणा पुराणों में यह भी है कि इस पवित्र
कैलाश झील के मध्य में कभी कभी एक स्वर्ण वृक्ष निकलता है ,उस स्वर्ण वृक्ष से एक नारियल के समान स्वर्ण का ही फल
बनता है।जब यह स्वर्ण फल इस पवित्र मानसरोवर झील में स्वर्ण वृक्ष से अलग होकर गिरता है तो…. जम्ब ….जंब की
जोर की ध्वनि पैदा होती है।इसी ध्वनि के कारण हमारे पूरे भारत उप महाद्वीप को संस्कृत में जम्बू द्वीप कहा जाता है।
हमारे अनेकों प्राचीन धर्मग्रंथों में इस पूरी घटना का विवरण मिलता है।
             अब जो भी हो ,प्रत्येक भारतीय के मानस पटल पर पवित्र कैलाश एवम् पवित्र मानसरोवर झील का प्रभाव युगों
से अमिट रहा है और हमेशा अमिट ही रहेगा।सदियों पूर्व  जब यात्राका कोई भी,आधुनिक समय के समान, सरल साधन
उपलब्ध नहीं होता था,तब भी पूरे भारत वर्ष के प्रत्येक क्षेत्रों से यात्री अनेकों कष्टों को सहते हुए पवित्र कैलाश ओर
मानसरोवर की यात्रा पर आते रहे हैं।धन्य है उनकी भक्ति और धन्य है उनकी सहनशीलता! 
       सारे यात्री अब इस पवित्र मानसरोवर झील में स्नान करने के लिए तत्पर ही थे कि अचानक हमारे ग्रुप इंचार्ज जो कि
भारत सरकार के ज्वाइंट डायरेक्टर थे,जिनका उद्देश्य हम सब यात्रियों को इस पवित्र यात्रा का सफलतापुर्वक सम्मपन्न
कराना होता है, ने आदेश दिया कि दोपहर 1 बजे से पूर्व कोई भी यात्री इस झील में स्नान नहीं करेंगे।हम सब तो स्नान के
लिए अधीर हो रहे थे मगर उनका आदेश मानने के लिए हम मजबूर थे ।कारण पूछने पर बताया कि जिस  झील को आप
इस समय देख रहें है इसका प्रातः के समय तापमान लगभग 2 डिग्री होगा और जैसे ही आप सब इस समय अगर स्नान
करेंगे तो हाइपोथर्मिया के कारण जम जाएंगे।स्नान करने के लिए दोपहर 1 के बाद का समय ही उपर्युक्त रहेगा।लगभग
किसी भी यात्री को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ,फिर भी सब यात्रीगण उस पवित्र झील के जल को हथेलियों में
आचमन हेतु उठाने के लिए अपने कि रोक नहीं पाए और किनारे पर पहुंच कर जैसे ही उस झील के जल को उठाने
के लिए अपने हाथ जल में डाले,उन्हें विश्वास करना पड़ा।झील का जल एक दम पिघली हुई बर्फ की तरह अत्यंत शीतल
था।हाथ जल में डालते ही सेकंडों में जम सा गयाऔर विद्युत झटके सा प्रतीत हुआ।अब दोपहर तक इंतजार के अलावा
अन्य कोई उपाय नहीं था।सब जहां स्नान के लिए आतुर थे वहीं अब उस जल के अत्यंत ठंडे होने से चिंतित होने लगे थे।
हम सब को अब विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि दोपहर को भी यह अत्यंत शीतल जल  कैसे स्नान लायक गर्म हो जाएगा।
सारे यात्रीगण उस पवित्र झील के किनारे बैठ गए और हाथ जोड़े ,सम्मोहन की से अवस्था में,अपनी आंखों से ही उस पवित्र
झील में मानसिक स्नान करने लगे।कुछ भगवान की आराधना हेतु प्रार्थना करने लगे तो कुछ मेरे जैसे यात्री मन ही मन
प्रार्थना करने के साथ इस कभी भी ना भूलने वाले क्षणों को अपनी स्मृति में चिर स्थाई करने के साथ साथ,अपने कैमरे में
कैद करने लगे।दूर जहां तक दृष्टि जा सकती थी,केवल और ओर केवल गहरा आसमानी रंग वाली,मंद मंद हवाओं के
साथ ,झील में उठती लहरों के मध्य में प्रतिबिंब होते पवित्र कैलाश पर्वत ही दिखाई दे रहे थे।यह मानसरोवर था,मानस
का सरोवर! हमारे मस्तिष्क में बचपन में सुनी तमाम सारी कथाओं के साक्षात दर्शनों का क्षण था।हम सब मंत्र मुग्ध से
सब कुछ विस्मृत करके, केवल और केवल इस क्षण को हमेशा हमेशा के लिए अपनी स्मृतियों में स्थाई कर रहे थे।मुझे
क्या किसी भी अन्य यात्री को इन दृश्यों में डूबे कितना समय व्यतीत हो गया इसका अनुमान ही नहीं था।अचानक किसी
यात्री की तेज आवाज ने हम सब का ध्यान आकर्षित  किया "वो देखो मानसरोवर के आसमानी जल में तैरते हंस"!यह
अद्भुत क्षण था।उस विशाल झील में अचानक जाने किधर से एक हंसों का जोड़ा आ गया।मुझे पूरा विश्वास है कि उस
अपूर्व दृश्य को निहारते सब के मन में ,श्री तुलसी दास जी के ये शब्द ही याद आरहे थे कि "मानसरोवर के जल में हंस
केवल मोती ही चुगते है",ओर साक्षात हमारे सामने जैसे उनकी ये पंक्तियां दृश्यों में नजर आ रही थी।बिल्कुल सामने
एक हंसो का जोड़ा ,हम सब से बे खबर झील के जल में अठ खेलियां कर रहा था ।मेरा शब्द कोष ,उस दृश्य के वर्णन
में आज भी अपने को असमर्थ पता है। 
      


 ऐसे ही जाने कितना समय बीत गया था कि तभी हमारे डायरेक्टर जी ने कहा कि आप सब अब इस झील में स्नान
कर सकते हैं! सारे यात्री तो जैसे इसी समय का इंतजार कर रहे थे, शीघ्रता  से झील के किनारे आ गए,लेकिन सुबह के
अनुभव से झिझक भी रहे थे कि इस समय क्या झील का जल स्नान करने हेतु, अब ठंडा नहीं है, और जैसे तुरंत उत्तर
भी मिल गया" झील का जल इस समय दोपहर को इतना गर्म था कि विश्वास ही नहीं हुआ।बिना देरी किए सब उस झील
में प्रवेश कर गए , और… और जैसे हम सब के जन्मों कि साधना पूर्ण हो रही थी।पवित्र मानसरोवर के पवित्र जल में
शायद जन्मों में दुर्लभ स्नान! ये अदभुद क्षण था।अत्यंत मीठा,हल्का शीतल ,एक दम स्वच्छ।झील का जल इतना निर्मल था
कि उस पारदर्शी जल में,झील के नीचे का तल एक दम साफ़ दिखाई दे रहा था ।कभी कभी कुछ छोटी छोटी मछलियां
हमारी तरह इस जल में शायद आनंदित हो विचरण कर रही थी।इस झील में स्नान करते हुए मैने तो अपनी अंजुली में जल
भर कर ,पहले अपने माता,पिता,फिर समस्त पूर्वजों का स्मरण किया , और फिर अपने समस्त देवी देवताओं का आह्वान
करते हुए ,तेज चमकते सूर्य  को अर्पित कर दिया।जी भर कर झील के जल का रसपान किया और … और हमेशा हमेशा
के लिए अपनी आत्मा की प्यास को तृप्त कर लिया!
       


   जी भर कर स्नान के पश्चात सारे तीर्थ यात्री अपने अपने समूहों में ,किनारे पर बैठ ,इसी क्षण के लिए ,अपने साथ लाए
पूजा की सामग्री के साथ इस अनमोल समय में, अपने अपने देवी देवताओं को प्रदान करने के लिए ,  पूजा,अर्चना के द्वारा
श्रद्धासुमन अर्पित करने हेतु देर तक बैठे रहे।सबकी पूजा की विधि अलग अलग थी मगर ,उद्देश्य शायद सबका यही रहा
होगा कि कैलाश पति भगवान शिव, हमें अब इस संसार के, वेद पुराणों में वर्णित जीवन चक्र से मुक्ति प्रदान करें!
     


      स्नान ,पूजा आदि के पश्चात्,भोजन करते करते सांय काल का समय हो गया ।सूर्य के अस्त होते ही दोपहर की गर्मी
एक तीव्र ठंड में बदल गई ।सब अपने अपने गर्म बिस्तरों में घुस गए और अपने अपने कमरे में बनी बड़ी सी खिड़की से
बाहर गहरे अंधकार में ,तारों से दमकती,चमकती झील में उन के प्रतिबिंबित होते ,लहरों में कम्पन करते , लाखों तारों को
देखने के दृश्यों में खो गए।
         धीरे धीरे रात्रि के 11 बजे का समय भी  हो गया मगर क्या मजाल कि कोई एक यात्री भी नींद के आगोश में सोने के
लिए चला जाए, मगर क्यों …? तो आइए अब आपको इस पवित्र मानसरोवर झील का एक रहस्य और बताते हैं जिसको
जानकर आप विश्वास नहीं करेंगे ,मगर सत्य यही है और   सदियों से इस पवित्र झील में प्रतिदिन मध्य रात्रि को यह सब
घटित होता रहा है, और शायद सदियों तक होता रहेगा,जिसके आज इस रात्रि में हम सब भी साक्षी बनने वाले हैं ।रोमांच
इतना अधिक था कि प्रत्येक यात्री ,अपने कमरे की खिड़की से बाहर ,घोर अन्धकार में ,झील की तरफ दृष्टि गड़ाए बैठा
था ।एक अजीब सी शांति सारे कमरों में फैली थी।यहां मै आपको पुनः स्मरण कर दूं कि इस पवित्र मानसरोवर के लगभग
100 किलो मीटर की परिधि में ना तो कोई गांव या शहर है ना ही कोई अन्य आश्रम या मठ,ना कोई पेड़ पोधा ।दूर दूर तक
केवल झील का निर्जन क्षेत्र।था तो केवल हमारे यात्रियों के रात्रि विश्राम हेतु यही 8कमरों का एक अस्थाई आश्रम।इस में
भी रोशनी हेतु केवल ओर केवल सोलर एनर्जी से बिजली का प्रकाश किया जाता  था वो भी केवल 2 घंटो के लिएशाम
7 बजे से 9 बजे तक ताकि यात्री अपना भोजन और अन्य कार्य निपटा सकें।उसके बाद तो केवल टार्च से ही प्रकाश संभव
था।इस अवस्था में जबकि रात्रि के 11 बजे से अधिक का समय हो चुका था तो,घुप अंधेरा छाया हुआ था।थोड़ी ही देर बाद
अचानक सारे यात्री " हर हर महादेव,जय भोले नाथ,जय श्री विष्णु जी" के जय घोष से ,भाव विभोर हो ,चिल्लाने लगे और
क्यों ना चिल्लाते,बाहर अंधेरे में कुछ दृश्य ही ऐसा था।गहन अंधकार में जब हाथ को हाथ नहीं सुझाई से रहा था उस समय
पूरी तरह अंधकार में डुभी झील की सतह पर अचानक ही झिलमिलाते,एक कोने से दूसरे कोने तक आते जाते ,ऊपर से
नीचे, नीचे से ऊपर की तरफ जाते प्रकाश पुंज मानो अठ केलिया कर रहे थे! क्या था ये सब, छोटे छोटे गोले से ,लहराते ,
लाल,पीले,नीले आदी रंग बिरंगे प्रकाश पुंजों से दूर दूर तक फैली झील एक अलग ही देवीय प्रकाश से दमक रही थी।विश्वास
कीजिए,पूरी झील की सतह दूर दूर तक इन अद्भुत ,रहस्यमई प्रकाश से आलोकित थी।वातावरण एक दम निशब्द था
कोई ,किसी भी प्रकार की ध्वनि नहीं थी ।उस समय तो मानसरोवर झील  इन अद्भुत, रहस्यमई ,रंगीन चलते फिरते
प्रकाश में झिल मिला रही थी।घंटों प्रकाश का ये अद्भुत खेल चलता रहा रहा।हम सब अब निशब्द,सब कुछ भूल,इस
अलौकिक समय के साक्षी बन रहे थे।ये एक ऐसा दृश्य था जिसका वर्णन ना तो हम सब शब्दों के द्वारा ओर ना कैमरों की
फोटो के द्वारा कर सकते थे।मेरे विचार से लगभग प्रत्येक यात्री ने इस अलौकिक क्षणों की जरूर फोटो ली होगी।लेकिन
आश्चर्य की बात थी कि सुबह होने पर ,किसी भी मोबाइल और कैमरों में ,रात्रि की उस अद्भुत घटना की कोई भी फोटो
नहीं थी ,इसका भी किसी के पास कोई उत्तर नहीं था, इन अद्भुत रोशनियों को निहारते ना जाने कब 3 बजे का समय
हुआ होगा कि अचानक ,जैसे ये प्रकाश उत्सव आरम्भ हुआ था वैसे ही अचानक समाप्त भी हो गया।पवित्र झील की संपूर्ण
सतह एक बार पुनः अन्धकार में डूब गई।
       


  सुबह ,जागने के पश्चात् यात्रियों में एक ही चर्चा  का विषय था," मानसरोवर झील का रात्रि का प्रकाश उत्सव,"हर कोई
अपने अपने हिसाब से विचार विमर्श कर रहा था। जहां तक मेरा स्वयं का विचार था,तो  मै भी वही विचार कर रहा था जो
आप सब इस समय इस लेख को पढ़ने के बाद कर रहे हैं !तर्क,विश्वास,अविश्वास मेरे मन मस्तिष्क को मथ रहे थे,।कभी
सोचता ,नहीं, आज के समय में यह संभव नहीं है,तो कभी मेरा विश्वास मन तर्क देता ," सब के सामने ,पूर्ण जाग्रत अवस्था
में , रात्रि को जो दृश्य" हम सब ने देखें है , वे गलत तो है ही नहीं।इसी विचार मिवर्श में ,दिन के पूर्ण उजाले में, हैं सब झील
के चारों ओर ,रात्रि के प्रकाश के स्रोत को ढूंढने का असफल प्रयास कर रहे थे।झील के चारों तरफ सब कुछ कल जैसा ही
था,वीरानी और निर्जनता! हां,लेकिन कल रात्रि और आज रात्रि में एक अंतर था ,वो यह कि कल आकाश पूरी तरह तारों से
भरा था,जबकि आज आकाश पर मेघों ने कब्जा कर रखा था,तेज वर्षा हो रही थी।ऐसा लग रहा था कि इन्द्र देवता भी रात्रि
के इन प्रकाश पूंजों का आनंद लेने हेतु पधार रहे हैं।
          दिनभर इसी बहस में , कि रात्रि को होने वाले प्रकाश का उत्सव चमत्कार है या कुछ और,  पुनः शाम, हमें रात्रि की
गोद में ले जाने के लिए उपस्थित हो गई। अधिकतर इस मानसरोवर की यात्रा में यात्रियों को एक ही रात्रि बिताने का अवसर
प्राप्त होता है,मगर हम सौभाग्य शाली थे कि हमें इस पवित्र झी के किनारे दूसरी रात्रि व्यतीत करने का अवसर प्राप्त हो रहा
था ।समस्त यात्री पुनः इस रात्रि में भी कल की तरह ही प्रकाशोत्सव के साक्षी बनने,उसका स्वर्गीय अनुभव लेने के लिए
आतुर थे।
       घुप अन्धकार और,तेज वर्षा के प्रभाव से हम सब ,कुछ ही फुट दूर झील के जल को देखने में आज असमर्थ थे,जबकि
कल हम पूरी झील को देख पा रहे थे, अतः मेरे जैसे कुछ यात्रियों के ह्रदय में कल रात्रि के अनुभव को लेकर थोड़ी सी एक
शंका ने जन्म लिया हुआ था कि कल रात्रि में ,झील के जल में जो प्रकाश का अनोखा उत्सव था कहीं वह झील की लहरों में,
ऊपर आकाश में चमकते लाखों तारों का प्रतिबिंब तो नहीं था।अब आज तारों के स्थान पर बादलों का साम्राज्य था,तेज वर्षा
हो रही थी तो शंका थी शायद आज झील के जल पर कल रात्रि जैसा प्रकाश उत्सव नहीं होगा।
           ख़ैर,रात्रि के जैसे ही 11  बजे से कुछ और समय बिता कि वह..आश्चर्य जनक,अद्भुत ,कल रात्रि के समान ही पुनः
वहीं प्रकाश पंजों की अठ खेलिया,वहीं झील  का आलोकित जल,सब खुच कल जैसा ही घट रहा था! अब कोई शंका किसी
के ह्रदय,मस्तिष्क में नहीं थी,थी तो केवल ओर केवल श्रद्धा! इस लेख के पाठक चाहें इस घटना को स्वीकारें या अस्वीकार
करें ये उनका अपना दृष्टिकोण हो सकता है मगर जो प्रत्येक रात्रि को इस पवित्र मानसरोवर के ऊपर घटित होता है वह मेरे
जैसे समस्त यात्रियों का साक्षात अनुभव है।हम सब के लिए अब तर्क का कोई स्थान नहीं है। मै अब पूर्ण विश्वास से का
सकता हूं कि जिसे अब भी विश्वास नहीं हो,वह इस पवित्र " कैलाश मानसरोवर" की यात्रा में शामिल हो कर इस चकित
करने वाले अनुभव को देख सकता है।
        अगले दिन प्रातः हम सब यात्री अपनी इस जीवन में एक बार ही मिलने वाले " पवित्र कैलाश मानसरोवर "  यात्रा के
सुअवसर को प्राप्त करने के पश्चात वापस अपने स्थानों को लौटने की तयारी में लगे थे । तभी हमारा ध्यान इस कैंप के केयर
टेकर की तरफ गया।अरे ये तो इस स्थान पर ही रहता है ,चलो ,उस से ही इस झील में घटित होने वाले प्रत्येक रात्रि के इस
चमत्कार के बारे में पूछते है कि  इस अद्भुत प्रकाश उत्सव का क्या रहस्य है।ये केयर टेकर एक प्रोढ तिब्बती ही था
वर्षों से यात्रियों के आगमन ने उसे हिंदी भाषा और हिन्दू धर्म की जानकारी अच्छी तरह हो गई थी,क्योंकि जैसे ही हमने
प्रत्येक रात्रि घटित होने वाली इस घटना के बारे में पूछा,उसने बड़ी ही सहजता से उत्तर दिया " ये तो रोज रात्रि को घटित
होता है।अरे, रोज रात्रि को देवता लोग ,कैलाश पर्वत निवासी भगवान शंकर से या मानसरोवर झील जिसे शीर सागर भी
कहते हैं,उसमे निवास करने वाले भगवान विष्णु से मिलने आए हैं तो वे प्रकाश पुंज के रूप में आते हैं।"। हम उसकी
सहजता से ,उसके विश्वास से इतने अभिभूत हो गए कि अब पूछने को कुछ शेष ही नहीं था।
              वापसी यात्रा भी वैसी ही थी जैसी हमारे आगमन की थी।लेकिन इस यात्रा के सम्पन होने के पश्चात् जैसे ही हम
,अपने महान देश भारत के सीमा द्वार नाथुला पट पहुंचे,अपने देश की सीमा रेखा पार कर प्रवेश किया,उसका रोमांच भी
किसी भी अनुपात में इस यात्रा से कमतर नहीं था। अपनों के मध्य होने का अहसास का अनुभव जो उस समय हुआ ,शायद
उसका भी पूरा  वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता है! भारत में प्रवेश करते ही ,सैनिक दस्तों ने हमारा स्वागत ,हम सब के चरण
छूने से किया! हम सब फिर एक बार चमत्कृत थे,इतना सम्मान,फिर एक बार हम सब की आंखे आसुओं से भर गई थी
।लग ही नहीं रहा था कि वे कठोर सैनिक हैं,वे तो हमें यात्रा सम्पूर्ण कर के वापस आए हमारे प्रियजन ही लग रहे थे।हम
सब को बसों मै बिठाकर वे सबसे पहले अपने भोजन के स्थान " मेस" में ले गए।यात्रा के अनभुवो को ग्रहण करने के पश्चात
एक शुद्ध भारतीय भोजन " पूरी,खीर,रायता,विभिन्न प्रकार की सब्जियां,तरह तरह की मिठाइयां"  आदि से हमें तृप्त किया।
भोजन के बाद उन सबने एक ही बात कही कि हम भारतीयों की यह प्रथा है कि जब माता पिता ,धार्मिक तीर्थ
यात्रा करने के पश्चात वापस अपने घर आते हैं तो अपने कुल परिवार के लिए भोज का आयोजन करते हैं,चूंकि वे सैनिक हैं
और उनके माता पिता दूर घर पर हैं तो आप ही हमारे माता पिता के समान हैं और आपके स्वागत हेतु ही इस भोज का
आयोजन ,हम सब अपने स्वयं के हाथों से बनाकर कर रहे हैं।हम निशब्द थे ….।
          अब अंत में मै इस लेख के अनुभव को पढ़ने वाले प्रत्येक पाठक से अनुरोध करूंगा कि एक बार अवश्य इस यात्रा
को करें।इस यात्रा का अनुभव की तुलना किसी अन्य यात्रा से नहीं की सकती है,ऐसा हम सब का पूर्ण पूर्ण विश्वास है।



जय भोले नाथ।

1 टिप्पणी: