सोमवार, 29 जुलाई 2019

सपनों की उड़ान....... मेरी पहली हवाई यात्रा !

       मानव के विकास की कहानी से तो  शायद सब परिचित होंगे ही,फिर भी अपनी इस यात्रा के अनुभव
से आपको परिचित कराने से पहले में पुनः एक बार फिर इस विकास यात्रा को दोहराता हूं।जब मानव ने
खेती कर के वर्ष भर भोजन की चिंता से अपने को मुक्त कर लिया तो मेरा मानना है कि अगला विचार
उसका भ्रमण की ही आया होगा।ओर जब पहली बार इस विचार ने उसके मन में घर बनाया होगा तो सर्व
प्रथमउसकी नजरेंआसमान में मुक्त रूप से उड़ते पक्षियों पर जरूर गई होगी ओर जरूर विचार किया होगा
कि काश मैभी इन पक्षियों की भांति उड़कर दूर दूर तक घूम सकू ओर प्रकृति की सुंदरता का अनुभव लेे
सकूं।आज भी मेरा मानना है कि ये विचार प्रत्येक मनुष्य में स्थाई रूप से होता है अन्यथा लोग घूमने के लिए
देश विदेश में हर साल इतना पैसे खर्च करके ना जाते।अब चूंकि मै भी एक मनुष्य ही हूं तो मेरा भी मन भी
घूमने के लिए करता ही रहता है और  मै अपने व्यस्त समय ओर बचत का बड़ा हिस्सा इस पर खर्च करता हूं।
लेकिन आज भी बचपन की एक इच्छा अधूरी रही है कि काश मैं भी आसमान में उड़ सकता और इधर
उड़कर दूर दूर तक जा सकता। भला हो उन राइट बंधुओं का, जिनकी वजह से हवाई जहाज का निर्माण
हुआ और मनुष्य की पुरानी पक्षियों कि भांति उड़ान संभव हुई।लेकिन आम भारतीयों की तरह अपनी
इतनी बचत कभी नहीं रही कि मंहगी हवाई यात्रा का अपना बचपन का सपना पूरा कर सकूं। वो तो भला
हो सरकार का कि उसने पिछले वर्ष भारत की मुख्य भूमि से दूर द्वीपों की यात्राओं के लिए हवाई जहाज के
सफर की एल टी सी हेतु मंजूरी दे दी।अब क्या था सारे इफ ओर बट छोड़ कर तुरंत अधिकारियों को
मनाकर आपने इस पुराने सपने को पूरा करने हेतु निकल लिए।अब भला इस के लिए अंडमान द्वीप समूह
से बढ़कर और कोई जगह हो ही नहीं सकती थी।मैने इस यात्रा का दोनों तरफ से फायदा लेने का प्रोग्राम
बना लिया किअंडमान जाएंगे तो पानी के जहाज से मगर वापस मुख्य भूमि भारत आने के लिए हवाई जहाज
से ही आएंगे।
       अंडमान जाने के लिए पानी के जहाज की यात्रा का अनुभव तो मै अपने पिछले ब्लॉग में लिख चुका हूं।इस
बार तो मै अंडमान से पहली बार हवाई जहाज से वापस आने ओर पक्षियों की तरह उड़ने के अपने बचपन के
सपनों को पूरा करने हेतु निकल पड़ा।सबसे पहले मैने अपने पूर्व अधिकारी महोदय से ही राय ली जो कई साल
पहले अपने अधिकारी होने के पद का फायदा उठा कर एक बार नहीं कई बार हवाई यात्रा कर चुके थे।अब ये
कोई लिखने कि बात नहीं है कि मेरी अज्ञानता का जमकर फायदा लेते हुए, आफिस का तमाम पुराना पेंडिंग
कार्य पूरा करा लेने के बाद ही मदद को राज़ी हुए।मुझे ये कहते हुए कोई संकोच नहीं की इस मदद के बदले
उन्होंने मेरी जानकारी के साथ साथ हवाई जहाज की टिकट खरीदने तक सारे कार्य कर दिए। जिस दिन जाना
था उन्होंने उस से एक दिन पहले  अपने केबिन में बुलाया और कहा कि देखो भाई टिकट आदी के सारे कार्य
तो मैने कर दिए है अब हवाई अड्डे के अंदर की जिम्मेदारी तुम्हारी ही है।उनसे सारी अंदर की तमाम फॉर्मेलिटी
को जान कर ,खूब कंठस्थ करके यात्रा आरंभ करदी।
   अंडमान घूमने  के अंतिम दिन हमने फिर से आंख बंद करके पुराने ऋषियों की तरह अधिकारी महोदय की
हर बात को दो दो बार याद किया ओर होटल के कमरे की लाइट बंद दी।
    पहली हवाई यात्रा के इस रोमांच में हर दो घंटे  में उठ कर घड़ी देखते रहे कि कही सुबह के ६ तो नहीं बज
गए।खेर सुबह ६ बजे का अलार्म लगाया था मगर अलार्म से घंटे भर पहले ही उठकर खाली समय का फायदा
उठाते हुए जहाज के टिकट को शायद दसवीं बार देखा और उसके नियम की जानकारी ली।हमारी पहली हवाई
यात्रा का समय दोपहर २ बजे का था ओर जेट एयरवेज के नियमानुसार २ घंटे पहले ही पंहुचना था । अतः खाने
पीने से लेकर होटल छोड़ने तक की सारी कार्यवाही पूरी करते सुबह के 10 ही बज पाए।अभी तो  2 घंटे बाकी
थे और होटल से हवाई अड्डा कार से कुल 20 मिनट की दूरी पर ही था।जिंदगी में शायद शादी की रात के बाद
यह दूसरा अवसर था जब इंतजार हमसे काटे नहीं कट रहा था। परिंदे की तरह उड़कर आसमान से मिलने की
चाहत मुझे ही नहीं ,पूरे परिवार को थी।खेर जैसे तैसे घड़ी ने 11 बजाए तो तुरंत टैक्सी को बुलवा लिया और हम
चल पड़े आसमान से मिलने।
     रास्ते की अंडमान की सुंदरता को निहारते निहारते लगभग आधे घंटे में हवाई अड्डे पन्हुच गए।तब हमारी
अनाड़ी आंखो को भी  लगा कि अरे क्या हवाई अड्डा इतना भी खाली होता है ,क्योंकि हमारे रेलवे स्टेशनों के
भीड़ से लदे प्लेटफार्मो के अनुभवों के उलट  यहां कोई भी नहीं था।सामने एक बड़ी सी शानदार इमारत थी।
लेकिन हमारे अलावा वहां कुछ पुलिसवालों के अलावा दूर दूर तक कोई भी नहीं था। शायद इस बात को हमारी
श्रीमती जी ने भी भांप लिया था इसी से उन्होंने पूछा कि यह कुछ अधिक खाली खाली नहीं लग रहा है? उत्तर
तो हमारे पास भी नहीं था क्यों, वो हम पहले ही आप को बता चुके है,यह हमारी भी पहली हवाई यात्रा थी,मगर
हम पति थे और वो भी भारतीय , तो इज्जत कि खातिर उत्तर तो देना ही था। शान बघारते हुए गर्वीले अंदाज में
कहा ये कोई ट्रेन यात्रा नहीं है कि एरे गेरे आ सके,अजी हवाई यात्रा है यह। यहां हम जैसे ही आ पाते है समझी।
उस वक्त श्रीमती जी को एकदम खामोश देख कर अब आपको कैसे बताए कि उस वक्त हम कैसा महसूस कर
रहे थे।वाह,जिंदगी के ये एकाध ही मौके थे जब पत्नी जी से अपने को बहुत बड़ा समझ रहे थे जैसे कि…. हमारे
आफिस के बड़े येअधिकारी महोदय हमारे सामने अपने को समझते हैं वाह!
 खैर टैक्सी से  उतर कर हम खड़े खड़े सोचने लगे कि किधर जाएं ,क्या करे ,किस से जानकारी लें क्यों की
हमारे अलावा कोई यात्री दीख ही नहीं रहा था। हमें इस तरह खड़े देख कर आखिरकार एक पुलिस अधिकारी
से शायद रहा नहीं गया ,वो सीधे हमारे पास आया,हमसे इस तरह खड़े होने का कारण पूछने लगा।हमने बड़े
गर्वीले अंदाज में टिकट निकली, उसे दिखाया ,कहा कि भाईजी हमारी 2 बजे की जेट हवाई जहाज की
फ्लाइट की है।उसने टिकट देखी थोड़ा कुछ सोचा फिर उसने जो बताया उसे सुनकर उस वक्त हमें कैसा लगा
वो हम आज तक नहीं भूले है और ना ही कभी भूलेंगे । ये फ्लाइट तो सुबह 10.30 पर जा चुकी है! इन शब्दों का
कुछ वैसा ही असर हुआ जैसा  की सेकंड वर्ल्ड वर के समय अमेरिका के द्वारा अचानक ही नागासाकी और
हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने के समय वहां की जनता और नेताओं के ऊपर हुआ होगा।भले ही उस समय
किस्मत से हम वांहा नहीं थे पर जितना किताबो में पढ़ा था शायद उससे कहीं अधिक नहीं तो उसके बराबर ही
हम पर उस पुलिस अधिकारी के शब्दों का असर हुए था कि...फ्लाइट तो जा चुकी है।हमारे ऊपर तो जैसे
बिजली ही गिर पड़ी, क्षण भर में सारा हिसाब किताब याद आगया।5500 रूपए पर टिकट के हिसाब से पांच
सदस्यों के कुल रूपए 25000 गए पानी में! अब तो हमारे पास इतने रुपए भी नहीं कि दोबारा हवाई टिकट लेे
सकें।ये तो सरकारी पैसे थे ,हमारी क्या ओकात की 25000 अपनी अपनी जेब से खर्च कर सकें ।सही कहता हूं
कि शायद उस समय सिर जरूर चकराया होगा कि मुख्य भूमि से 2000 किलोमीटर की दूरी और बीच में
विशाल समुद्र,ये भी नहीं कि चलो ट्रेन की जर्नल डिब्बे में बैठ कर सफर पूरा कर लिया जाए ।अब क्या करेंगे
,कोई ऐसा भी परिचित दोस्त या रिश्तेदार भी नहीं था जिसकी हैसियत उस 2005  में इतने रुपए देने की थी।
पहली बार इस मुहावरे का अर्थ सही तौर पर समझ आया कि ...दिन में तारे देखना कैसा होता है।तुरंत जितने
भी देवी देवता थे सभी को स्मरण किया । जो मानसिक इस्टिथी उस हमारी थी उसका पूरा वर्णन मै आज भी
करने में अपने को असमर्थ पाता हूं ।तभी अचानक उस पुलिस अधिकारी की आवाज जैसे हमें होश में वापस
ले आई.. किधर के रहने वाले हो ? मथुरा के।अरे मै भी अलीगढ़ का हूं।तुरंत पहली बार हमें अहसास हुआ
कि परदेश में अपनी भाषा बोलने का क्या असर होता है,शायद हमें हिंदी में बात करते हुए उसे अचरज हुआ
होगा कि कोई हवाई यात्री भी हिंदी में बात करता हैं क्या?बैंक की नौकरी करते हुए अलग अलग जगहों में
ट्रांसफर होते रहने से मुझे अहसास था कि परदेश में अपनी भाषा बोलने वाले के मिलने का असर कैसा होता
है ।सुनो मेरी बात ध्यान से .. उसकी इस बात से हमें फिर एक मुहावरा याद आया … डूबते को तिनके का
सहारा...अंधा क्या चाहे दो ना सही एक हीआंख...सुनो ...उसकी आवाज में अपनेपन की आवाज को मैने
तुरंत भांप लिया।… जैसा मै कहता हूं वैसा ही करना, मै अभी जेट कंपनी के कर्मचारियों को बुलाता हूं,थोड़ा
प्रेशर डाल कर बात करना ।कहना कि हमारी टिकेट के अनुसार फ्लाइट तो 2 बजे की है ,अतः हम तो उसके
अनुसार सही समय पर आए है,हमारा क्या कसूर अगर फ्लाइट पहले उड गई। और जोर लगा कर कहिए कि
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं,सारे कानून जानता हूं।मुझे कुछ नहीं सुनना,इसमें आपकी कंपनी की गलती है
,सीधे भारतीय कंस्यूमर कोर्ट में मामला ले जाऊंगा। थोड़ी ही देर बाद जेट कंपनी के 2 अधिकारी आते दिखाई
दिए ओर इस से पहले कि वो कुछ कहते हम पूरी ताकत से उन पर पिल पड़े,आखिर उस समय तो ये हमारे
लिए जीने मरने की तरह था । हमने वैसा ही किया जैसा कि उन अधिकारी महोदय ने समझाया था फिर तो
जैसे कमाल हो गया …  जेट कंपनी के कर्मचारियों से कुछ कहते ना बन पड़ा।। शुरू में उन्होंने थोड़ी बहाने
बाजी की कोशिश की कि हमने तो मोबाइल पर एसएमएस कर दिया था,जवाब में मैने पूरी जोर से लगभग
चीखते हुए कहा कि हमें कोई एसएमएस नहीं मिला।अब ये और बात थी कि पता नहीं जाने कैसे मैने टिकट
के आवेदन का फार्म भरते हुए अपना मोबाइल नंबर नहीं लिखा था,क्योंकि एक तो नम्बर देना जरूरी नहीं
था दूसरे उन दिनों इंकामिंग के पैसे लगते थे जो कि रोमिंग में ओर ज्यादा लगते थे।तुरंत मेरी बात का असर
हुआ,उनसे अब कुछ कहते नहीं बना।बोले पहले आप धीरे बोलिए ,हम कुछ इंतजाम करते हैं,कुछ समय
रुकिए हम अपने सीनियर अधिकारी से बात कर के आपको बताते हैं ।पता नहीं ,मेरे सरकारी कर्मचारी होने
कि वजह या फिर चीखने कि वजह .. थोड़ी देर में आकर बोले  ,देखिए अब कल ही फ्लाइट आएगी तो उसमे
आपकी यात्रा का इंतजाम कर देंगे।अंधा क्या चाहे… फिर मुझे पुनः उस पुलिस अधिकारी की एक ओर बात
याद आयी कि कहना कि हमारे रहने का इस परदेश में कोई इंतजाम नहीं है,हम होटल भी छोड़ आए है।
आशा के विपरित जेट के कर्मचारी बोले कि क्योंकि गलती उनकी है अतः रहने के लिए आपको होटल का
भी इंतजाम कर देंगे। हम प्रतक्ष्य गवाह उस समय के है की किस्मत कैसे अपना रंग बदलती है। कहा क्षण
भर पहले हम जीने मरने के किनारे पर थे और कहां सब कुछ ठीक हो गया।बिल्कुल वहीं अनुभव हमें उस
क्षण हुआ कि मरते मरते मरीज किसी चमत्कार की वजह से पूरी तरह ठीक हो जाता है ।वे फिर बोले कि
जिस टैक्सी में आप आए है वहीं आपको होटल तक छोड़ आएगी,उसका किराया भी हम ही देंगे । वाह.. तब
हमने देखा कि वो टैक्सी वाला अभी तक वहीं खड़ा है।शायद वो जानता था कि हमारे साथ ऐसा ही होगा या
फिर हमारे अलावा कोई अन्य यात्री ना होने के कारण वह वहीं खड़ा था। अब इतना मैं आपको बता दूं कि
अंडमान एक बहुत ही छोटी जगह है अतः हवाई अड्डा भी छोटा सा है ओर दिन भर में एक दो ही फ्लाइट
आती हैं। चैन की सांस लेते हुए टैक्सी में बैठते ही अचानक उस हम वतन पुलिस अधिकारी की याद आई।
रुको टैक्सी वाले को कहते हुए मैने जब पुलिस वाले को देखने की कोशश की तो वो जा चुके थे।हृदय से
उनकी अनुपस्थिति में उनको सैकड़ों दुआए देते हुए  हम होटल की तरफ चल दिए।
   अंडमान होटल 3 स्टार था जो हमारे बजट के बाहर का था,मगर जेट कंपनी की वजह से आज उसका भी
आनंद ले रहे थे।होटल स्टाफ ने जाते ही 2 रूम अलॉट कर दिए ,एक बेटों के लिए दूसरा हमारे लिए।शानदार
होटल,शानदार कमरे ओर शानदार आवभगत।स्टाफ ने बता दिया कि आप सबको खाना आदि सब फ्री है,
आपलोग अगर घूमने जाना चाहते है तो जा सकते है।अब पहले ही हम सारा अंडमान घूम चुके थे,इस लिए अब
तो इस बड़े होटल में रहने की फ्री की दावत का ही सुख लेने के लिए बेचैन थे।अब यह कोई लिखने कि बात
नहीं है कि पूरा दिन हम सब ने केवल खाते पीते ओर सोते ही बिताया।थोड़ी देर पहले जन्हा किस्मत को रो
रहे थे,अब उसी किस्मत का आनंद ले रहे थे।
  शाम को जेट कंपनी की तरफ से संदेश आया की सुबह 6 बजे आपको हवाई अड्डे लेे जाने के लिए बस
आएगी तैयार रहिएगा।कोई बात नहीं,फिलहाल इस समय का तो आनंद लेलें।अगले दिन सुबह बस में जब
बैठे तो उस पहली उड़ान के लिए दिल, ,उड़ने से पहले ही उड़ने लगा था।एक बात तो मै आपको बताना ही
भूल गया कि होटल में ठहरने के बाद अचानक दोपहर से बारिश शुरू हो गई।आमतौर पर अंडमान में लगभग
रोज दोपहर होते ही वर्षा होने लगती है जो कि एक आम बातहोती ही है ओर चूंकि हम आरामदायक होटल में
थे वो भी बिल्कुल फ्री अतः आराम करते हुए दिनभर बरसात का आनंद लेते रहे ।रात हो गई लेकिन बरसात
जरा भी बंद नहीं हुई थी। कोई बात नहीं हमे क्या परेशानी  थी,सुबह कंपनी की ही जिम्मेदारी थी सही समय
पहुँचाने की।सुबह हुई बस अाई ओर हमें सपरिवार लेकर हवाई अड्डे की तरफ रवाना हो गई,उस वक्त हमने
गौर किया कि बस में हम अकेले नहीं बल्कि काफी सारे यात्री भी थे यानी हम अकेले ने ही कोई तीर नहीं मारा
था ,। सुबह 7 बजे हम सब हवाई अड्डे आ गए,लेकिन बरसात थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।तेज
बारिश,साथ ही बिजली की जोरदार गरज, मगर हम निश्चिंत थे। यंहा हमने गौर किया कि जो हवाई अड्डा कल
बिल्कुल खाली था वो अब यात्रियों से पूरा भरा था।पता चला कि जेट की फ्लाइट के साथ उसके आधे घंटे बाद
इंडियन एयर लाइंस  की भी फ्लाइट थी इसीलिए ये छोटा सा हवाई अड्डा पूरा फुल था।धीरे धीरे समय बीतता
गया मगर ना बारिश रुकी ,ना ही समय रुका।इंतजार के साथ साथ हम उड़ान के लिए भी बेचैन थे।12 बजाने
के बाद भी जब फ्लाइट नहीं अाई तो फिर कुछ शंका हुई।यात्रियों की खुसुर पुसुर से पता चला कि तेज
बरसात के कारण शायद आज भी फ्लाइट नहीं आयेगी , हालाकि जहाज अंडमान के आसमान तक तो आए
मगर तेज़ बारिश के कारण उतारने मेंअसमर्थ होने से वापस चले गए हैं क्योंकि अंडमान का हवाई अड्डा बहुत
छोटा है, उस पर आधुनिक तकनीक भी नहीं है जिसके कारण जहाज़ नीचे उतर सकें।कोई बात नहीं आज हम
बिल्कुल नहीं घबराए बल्कि इस बात से थोड़े खुश थे कि शायद उस बड़े होटल में एक दिन और फ्री में रुकने
का सुख मिलेगा।रहना,खाना पीना सब फ्री तो काहे का ग़म! और वहीं हुआ जिसकी सोच रहे थे,हालांकि उड़ान
ना कर पाने की कसक भी थी।इंतजार शायद हमारी और परीक्षा लेे रहा था,लेकिन बदले में काफी कुछ मिल
भी तो रहा था।तभी कुछ लोगों की चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी । गौर किया तो पता चला कि ये उन
यात्रियों कि आवाजे है जिन्हे इंडियन एयर लाइंस की उड़ान से जाना था।कारण पता चलने पर ज्ञात हुए कि जहां
जेट कंपनी फ्लाइट ना आने पर अपने यात्रियों के फ़्री रहने खाने का इंतजाम कर रही थी, वही इंडियन एयर
लाइंस ने कहा किउनके यात्रियों को इसी  छोटे से हवाई अड्डे पर एक बड़ा हाल ओर तीन रूम्स के साथ दिन
ओर रात बितानी होगी।खाने के नाम पर पैक्ड फूड का पैकेट मिलेगा।सच कहूं हम हैरान थे ।हम तो सोचते थे
की प्राइवेट कंपनी कोई सुविधा नहीं देती होगी और सरकारी कंपनी ही सारी सुविधाएं देती होगी मगर इधर तो
सब कुछ हमारे अनुमान के विपरीत था।कारण तो वो ही जाने हमें क्या लेनादेना,ओर जेट कंपनी के जहाज में
बुकिंग कराने के अपने निर्णय पर उस समय हमें संतोष भी हुआ,साथ ही मन ही मन वादा कर लिया आगे कभी
उड़ान का मौका मिलेगा तो जेट को ही चुनेंगे।
   फिर क्या ,कल की तरह होटल में वापसी वो ही फ़्री के रूम ओर खाना पीना,हमें कोई चिंता नहीं थी।  
संयोग देखिए कि 3 बजे के करीब बरसात भी रुक गई,मौसम भी सुहावना हो गया।उस वक्त हमने तो यही
सोचा कि शायद पूर्व जन्मों के किसी पुण्य कर्मो की वजह से पहली ही फ्लाइट में ऐसी फ्री की सुविधा का भी
अनुभव लेे लिया।बाद में अपने  आफिस के उन्हीं अधिकारी महोदय से बात चीत में उन्होंने स्वीकार भी किया
कि वो तो पिछले 10 वर्षों से हवाई यात्रा कर रहे है लेकिन कभी ऐसा मौका नहीं मिला जो हमे मिला था ।मुझे
लगा कि उन्हें शायद हमारे इस सुख से जरूर जलन भी हुई होगी।
   लगभग ठीक ही समय पर हवाई जहाज नीचे उतरा तो थोड़ी चिंता हुई कि इतने छोटे रनवे पर अगर ब्रेक
ठीक से नहीं लगे तो यह तो सामने की दीवार से जरूर टकरा जाएगा,मगर सही समय पर ठीक स्थान पर वह
रुक गया।हम मुंह बाये देखते रहे ,उस में से काफी यात्री उतरे।जहाज के अधिकारी तब तक हमें एक लाइन में
खड़ा कर के सारे पेपर चेक करते रहे। उसके बाद उन्होंने हमें एक बड़े से शीशे के सामने से निकाल कर पैदल
ही खड़े जहाज की तरफ जाने का निर्देश दिया। और जब हम सामने खड़े जहाज के पास आए तो मंत्र मुघद थे।
दिमाग में पुष्पक विमान था,कल्पना की उड़ान थी ओर हम थे ।जहाज की एक एक सीढ़ी जैसे हमें कल्पना लोक
में लेे जा रही थी।जहाज के गेट पर जब मुस्कुराती खूबसूरत एयर होस्टेस ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की तो सच
मानिए हम जहाज के उड़ने से पहले ही उड़ने लगे थे।अंदर आगे बढ़े हमारे हर कदम, हमें जीवन की इस पहली
उड़ान का नया अनुभव करा रहा था।हम जब निर्धारित सीट पर बैठे,तो गहराई से अंदर का दृश्य देखा।लगा
जैसे किसी विशाल गोल डिब्बे में सीट फिक्स कर दी गईं है, छोटी छोटी खिड़कियां ,एक दूसरे से चिपके से,
साथ साथ बैठे यात्री किसी सिनेमा हाल की याद दिला रहे थे, मगर अंतर केवल इतना था कि सामने स्क्रीन की
जगह बंद केबिन था ओर हिरोइनों की जगह एयर होस्टेस खड़ी थी,नम्रता का भार लिए।जब सब बैठ गए तो
उन्होंने सीट बेल्ट लगने को कहा,मगर हम यहां भी नौसिखिए ही साबित हुए।पेंट की बेल्ट तो रोज बांधते है ,
मगर ये कैसी बेल्ट है जो कमर पर बांधनी है पेंट पर नहीं।भला हो उस खूबसूरत एयर होस्टेस का ,जाने कैसे
उसने दूर से ही भांप लिया की हम बेल्ट नहीं बांध पा रहे है ,वह तुरंत हमारे पास अाई और झुका कर बेल्ट
बंधवाई।सच कहें हम जहाज उड़ने से पहले ही सातवें आसमान पर उड़ने लगे थे इतने प्यार से तो ना तो हमारी
माताजी ने कभी बेल्ट बंधवाई,ना ही पिताजी ने ,बल्कि कभी कभी तो एक आध बार चांटा भी खाया था। तभी
स्पीकर से आवाज आई, मै आपके जहाज का कप्तान बोल रहा हूं।हम इस वक्त अंडमान से  नईदिल्ली की
यात्रा आरंभ कर रहे हैं।इसमें तीन घंटे बीस मिनट उड़ान के लगेगे।एक पड़ाव बीच में कलकत्ता का होगा।
दिल्ली का तापमान पैंतीस डिग्री होगा।जेट एरवेज़ आपका स्वागत करता है।ये सारे संदेश पहले अंग्रेज़ी में फिर
हिंदी में बताए गए।उसके बाद जैसे ही हमारा विमान चला,हमारा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।थोड़ी दूर तक
धीरे चलने के बाद जैसे ही विमान की गती तेज हुई,हमारी धड़कन भी वैसे ही तेज हो गई।सौभाग्य से मुझे
खिड़की वाली सीट मिली थी।विमान के गती पकड़ते ही जैसे हमने बाहर झांका,हमारा दिल जोर जोर से
धड़कने लगा कि उसके आगे विमान के इंजन की धड़क भी कम लगी कारण ? क्योंकि विमान जैसे ही हवा में
उठा सामने जो नजारा हमारी आंखो ने देखा उससे हमारी धड़कन तो जैसे रुक ही गई थी । रनवे की सड़क
खत्म होते ही विशाल खाई नजर आईं।इस से पहले हम कोई बुरी कल्पना करते की तभी हमें फिर मधुर आवाज ,
आई आप अपनी सीट बेल्ट खोल सकते हैं।।वो तो एयर होस्टेस ने शुरू में सीट बेल्ट बंद खोलना सीखा दिया
था नहीं तो शायद हम पेंट कि बेल्ट ही खोल देते।तभी फिर सामने खड़ी एयर होस्टेस ने टोका ,लीजिए आप
का नाश्ता। वाह,इतनी ऊंचाइयों पर खाने का स्वाद हम कभी जिंदगी भर नहीं भूलेंगे वाह।थोड़ी देर उड़ान
भरने के बाद, सब ठीक है ,हम जिंदा भी हैं ,इस संतोष के साथ खिड़की से नीचे देखा तो दंग रह गए ।नीला
आसमांन नीचे कैसे आ गाया ? आसमान तो ऊपर की ओर होता है।वो तो भला हो साथ बैठे बेटे का समझ
गया होगा कि मै क्या सोच रहा हूं।पापा ये नीचे समुद्र है जो नीला दिख रहा है।ओह तो ये बात है!अब हम कभी
उड़े तो थे नहीं जो यह अनुभव लेे पाते,जाने कैसे हमारे बेटे ने ये बता दिया था।हम मुग्ध से नीचे देख रहे थे तभी
हमारी नजर नीले समुद्र पर छोटे छोटे सफेद से निशानों पर पड़ी जिनके एक ओर सफेद लकीर सी खींची थी।
लेकिन अब हम भी समझदार हो गए थे कि ये सफेद निशान समुद्र पर तैरते पानी के जहाज ही थे और सफेद
लकीर उनके चलने से पैदा हुई लहर ही थी।उस इतनी ऊंचाई से नीचे समुद्र को देखने का सही सही वर्णन
करने के  शायद मेरे पास सही शब्द नहीं है क्योंकि ये केवल अनुभव से ही समझा जा सकता है। 
   
 विमान उड़ रहा था,हम भी अपने बचपन के उड़ने के सपने के साथ उड़ रहे थे कि तभी फिर पायलट का
उद घोषणा हुई,यात्री गण कृपया ध्यान दे इस वक्त विमान कि गति 800 किलोमीटर प्रति घंटा है हम 24000
फुट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहे हैं एवम् बाहर का तापमान माइनस 24 डिग्री सेल्सियस है।हम चकित थे कि
जब ट्रेन 100  किलोमीटर की घंटे की गति पर चलती है तो खूब हिलती है वहीं विमान की इस इतनी अधिक
गति का कुछ पता ही नहीं चल रहा है ।ना कोई झटका ना कोई हिलना, बस विमान शांत गति से उड़ रहा है।
उड़ने के बाद जो थोड़ा बहुत भय था वो भी अब जाता रहा था ओर हम इस नए ओर पहले अनुभव का आंनद लेे
ही रहे थे कि तभी फिर उद्घोषणा हुई विमान कलकत्ता अड्डे पर उतरने वाला है कृपया अपनी सीट बेल्ट बांध
ले।वाह हम फिर एक बार चकित हुए कि जिस कलकत्ता से पानी के जहाज में अंडमान आने में 4  दिन लगे थे
,तमाम कष्ट भोगे थे वहीं इसने 1 घंटे 30 मिनट के लगभग समय में ये विशाल दूरी तय की थी।हम निरुत्तर थे
हैरान थे।बस ऐसे ही नई दिल्ली की यात्रा पूरे आनंद के साथ पूरी हो गई।
  बस इसके बाद तो जैसे हम नॉर्मल हो गए ओर इस पहली यात्रा के अनुभव को हमेशा के लिए अपनी यादों
में बसा कर पूर्ण संतोष के साथ नई दिल्ली उतर गए।














     

एक सफर अंडमान क्रूज का.....

अगस्त २००५ की एक साधारण सुबह, रोजमर्रा की तरह ऑफिस के कार्य निपटा रहा था कि संदेशवाहक ने
हैड आफिस का बंद लिफाफा थमा दिया।चूंकि भगवान के बाद हैड अफिस  का आदेश सर्वोपरी होता है इस
लिए तुरंत लिफाफा खोला तो यकीन नहीं हुआ कि इसमें मेरी एल टी सी की स्वीकृति का ना केवल आदेश है
बल्कि ५०००० रूपए अग्रिम लेने की भी स्वीकृती है ।जो हैड आफिस दो दिन की छुट्टी देने में भी क्लास लेता
था उसने १५ दिन की छुट्टी भी प्रदान की थी। मै जानता हूं कि कैसे मैने पत्नी को ये समाचार शाम को घर जाकर
चाय पीते हुए  बताने का ,उन्हें आश्चर्य चकित करने का भाव साक्षात देखने हेतु नहीं बताया था। शाम को घर पर
चाय की फरमाइश के साथ मैने पहलीबार मुखिया के जैसे रोबदारअंदाज में अपने तीनों बेटों को भी उपस्थित
होने का आदेश दिया तो किसी अनहोनी के अंदाज में सबकी नजरे मेरे ऊपर जैसे गड़ गई। बगैर किसी भूमिका
के मैने कहना शुरू किया कि चूंकि तुम सबको हमेशा मुझ से शिकायत रही है कि बैंक की नौकरी के आगे मैने
कभी उनकी घूमने फिरने की परवाह नहीं की है अत: आज मै उनकी पिछली सारी शिकायतों को दूर कर रहा
हूं।सबसे पहले श्रीमती का स्वर गूंजा क्या फिर से शादी कि पहली सालगिरह की तरह गोली दे रहे हो, फिर तुरंत
बड़े बेटे की तरफ से आवाज आई पापा मुझे कलकत्ता में अपने दोस्त हेमंत से जरूरी बात करनी है मै जा रहा
हूं, इससे पहले कि शेष दोनों बेटे भी सरकते मैने कहा चुपचाप मेरी बात ध्यान से सुनो मैं वास्तव में सही कह रहा
हूं और फिर मैने सारी बाते सब को सुना दी,साथ ही  बताया कि यह यात्रा हम अंडमान द्वीप समूह की करेंगे और
इस यात्रा के लिए बैंक ने भी हवाई यात्रा की मंजूरी दी है तो सब के मुख पर जैसे गोदरेज के छह लीवर का मजबूत
ताला लग गया।अभी तक तो हम सबने हवाईजहाज केवल चित्रों में या आसमान में दूर उड़ते ही देखा था।आशा के
अनुरूप सबने हथियार डाल दिए।तभी श्रीमती जी की शादी के बीस वर्षों के बाद पहली बार चाशनी में घुली शहद
की तरह मीठी कोमल आवाज आई चलो इस खुशी में आज पनीर की सब्जी और पूड़ी बनाती हूं तब तक तुम
अपनी यात्रा का प्रोग्राम बनाओ।मैने भी इस वार्तालाप का अंत करते हुऐ बेटों से कहा कि चलो कब चलना है किस
तरह चलना है इस का इंताजम करते है।में जानता था कि वे सब एकमत थे कि आना जाना हवाई जहाज से ही
होगा।मगर मैने वीटो पॉवर का प्रयोग करते हुए धमाका किया किअंडमान जाते समय हम कलकत्ता से पानी के
जहाज में जाएंगे और वापसी में हवाई जहाज से।बेटे तो चुप मगर श्रीमती की तरफ से पुनः तीर की तरह शब्द बान
आया कि इतनी बार नाव की यात्रा की है अब भी कसर रह गई जो नाव में जाओगे, मगर पहली बार बड़े बेटे ने
मेरा साथ देते हुए मां को समझाया कि यात्रा नाव से नहीं एक विशाल पानी के जहाज से होगी।श्रीमतिजी भुनभुनाती
हुई इस अंदाज में रसोई में चली गई कि तुम जानो तुम्हारा काम। तय हुआ कि कलकत्ते वाला बेटे का दोस्त  हेमंत
कलकत्ता से पानी के जहाज की सारी जानकारी देगा और जाने की टिकिट का भी इंतजाम कर देगा। और पुरानी
दिल्ली से सुबह ८ बजे की कालका मेल से अगले दिन सुबह कलकत्ता उतर कर एक दिन पूरा कलकत्ता घूम
कर पानी के जहाज से अंडमान की यात्रा शुरू करेंगे।


प्रोग्राम के अनुसार सही सलामत कालका मेल ने कलकत्ता पहुंचा दिया और हेमंत ने रहने के इंतजाम के साथ एक
दिन में जितना हो सकता था शहर घुमा भी दिया।तीसरे दिन हमें कलकत्ता के खीदर पुर डोक यार्ड से भारत
सरकार के पानी के जहाज पर जिसका नाम हरश्वर्धन था पर ठीक २ बजे  पहुंचना था।लेकिन पहली समुद्र यात्रा की
उत्सुकता के कारण जो की पूरे तीन दिनों की थी हम बारह बजे ही डॉक यार्ड पहुंच गए।अब ये कोई बताने की बात
नहीं है कि यार्ड वालो ने हमें एक साधारण से हाल में बिठा दिया और कैसे हमने इंतजार में समय बिताया।लगभग
एक बजे के बाद कुछ और यात्री आने लगे।हम हैरान थे कि जिस यात्रा के लिए हम अपने को कोई विशेष गर्वित
समझ रहे थे वहीं सारे सहयात्री साधारण तबके के ही थे।वो तो भला हो उन ६ यात्रियों का जो विदेशी थे।बड़े बेटे
ने शीघ्र ही उनसे दोस्ती कर ली और बताया की वो इजराइली थे और हमारी तरह ही विशेष अनुभव लेने के लिए ही
पानी के जहाज से यात्रा कर रहे थे।
आखिर कार वो समय आ गया जब यात्रियों की टिकट एवं अन्य जरूरी कागजातों की चैकिंग करने के पशचात् एक
लम्बी लाईन के साथ घुमावदार रास्ते के अंत के बाद हम एक विशाल पानी के जहाज के सामने खड़े थे। आठ मंजिला
एवं लगभग ४०० मीटर लंबा लेकिन बाहरी जंग लगी  दीवारों पर हिंदी के बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था हर्षवर्धन ।हम
चमत्कृत भाव से जहाज की विशालता के आगे अपने बोने होने के भाव से खड़े थे और सोच रहे थे कि इसमें तो कोई
दरवाजा ही नहीं है तो इसमें प्रवेश कैसे करेंगे क्योंकि जहाज की पानी के ऊपर ऊंचाई लगभग ३० मीटर थी जो कि
चारों ओर से थी।तभी हमारे सामने कुछ लोग एक लोहे की पहिए वाली सीढ़ी लेकर प्रगट हुए।तब हमें ज्ञान प्राप्त हुआ
कि भाई इसमें प्रवेश केवल सीढ़ी के द्वारा ऊपर चढ़ कर होता है ।अगले ही पल हम जहाज के एक विशाल  खुले
आंगन जिसे वे लोग डेक कह रहे थे में खड़े थे।तब हमें एक छोटी सी खिड़की के सामने जाने का इशारा किया गया।
पहली बार एक पूरी सजी धजी पायलेट की सी कोट एवम् सफेद पेंट पहने ,विशेष चिन्ह से सुसजित कैप पहने एक
ऑफिसर खिड़की से हमें गुड इवनिंग कहते हुए मुस्कुराते हुए हमें दिखे।उन्होंने हमें कहा की चूंकि आपने प्रथम
श्रेणी की टिकट ली है अत: आपको जहाज की पांचवीं मंजिल पर एक केबिन दिया गया है।साथ ही कहा कि आपको
पांच लोगों के हिसाब से भोजन के लिए पर दिन ५५० रूपए के हिसाब से देने होंगे।थोड़ा सा हमें असमंजस में पड़ते
हुए देख उन्होंने कहा कि टिकट के पैसे में भोजन के पैसे शामिल नहीं है ।बगैर नानुकर करते हुए कोई अन्य विकल्प
न होने के कारण पैसे जमा कर दिए तभी ध्यान आया कि अरे हम तो शुद्ध शाकाहारी है तो उन्होंने एक पेपर पर यह
भी नोट कर लिया।तभी हमें ख्याल आया कि चूंकि हम नॉर्थ इंडियन है इसलिए भोजन में रोटी तो मिलेगी,सुनते ही
थोड़ी सी कसमसाहट के बाद उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको अलग से भुगतान करना होगा ।इनकार का कोई
अन्य विकल्प न होने और बेटों के रोटी प्रेमी होने के कारण २०० रूपए भी दे दिए ।उन अधिकारी महोदय ने हमें
एक खाली फॉर्म देते हुए उसमें निर्देशानुसार भरने को दिया लेकिन कहा की आप इस को अपने कैबिन में बैठ कर
बाद में जमा कर देना।हमने राहत की सांस ली ही थी तभी एक साधारण नीली वर्दी पहने एक कर्मचारी प्रगट हुआ
और बोला कि चलो आपके केबिन तक आपको छोड़ आता हूं।उसने हमारा समान उठाया ,अब आगे वो और  पीछे
पीछे हम।हम सब किसी सम्मोहित कि तरह उसके पीछे हो लिए,ओर जब हम जहाज की सीढ़ी पर चढ़ने लगे तो
एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल की सीढ़ी पर कदम रखते ही श्रीमती ने हमें कोंचते हुए धीरे से कहा इस से कहो
लिफ्ट से लेे चले,इस से पहले कि हम कुछ कहे कर्मचारी का बंदूक की गोली कि तरह जवाब आया यहां लिफ्ट नहीं
होती।हमारी तो हिम्मत ही नहीं हुई की अपनी ८५ किलो की नाजुक सी पत्नी की ओर देखें।खेर एक के बाद एक
मंजिल सीढ़ी चढ़ते हुए आखिर कार पांचवीं मंजिल के अपने आगामी ४ दिनों के लिए कमरे रूपी किसी हॉस्टल कि
तरह दिखने वाले विश्राम घर में प्रवेश कर गए।कहते है ना कि जोर का झटका धीरे से लगता है ऐसा ही कुछ उस
प्रथम श्रेणी के कैबिन को देख कर लगा।पांच सदस्यों के लिए ५५०० रूपए प्रत्येक सदस्य हेतु भुगतान के बाद ये
मिला।केबिन में दो कोनो पर एक के उपर एक तीन खानो वाले दो पलंग रखे थे।सामने एक कोने पर एक पुराना
सा तीन सीटों वाला सोफ़ा रखा था,साथ ही दो साधारण कुर्सियां एवम् एक छोटी सी मेज थी। छत की तरफ नजर
गई तो पंखे की जगह एक रूफ एसी का इनलेट था। सामने किनारे की दीवाल में एक तीन बाई दो की शीशे की
खिड़की थी।तभी श्रीमती जी का गरजता हुआ शब्द रूपी बान एक बार फिर आया " क्या इसमें हमें चार दिन गुजारने
है,"निशब्द सा मै ने इतना ही कहा कि अरे डियर हमें तो समुद्री यात्रा का अनुभव लेना है कोई हनीमून का पैकेज
थोड़ा है, मै जानता हूं कि उस वक्त बेटों की उपस्तिथि ने मुझे राहत दी अन्यथा.....! खेर फिर वही बान.. अच्छा ऐसी
तो चला दो । मै इधर उधर देखते हुए एसी के स्विच धूंड रहा था कि बेटे का स्वर आया पापा ये रहा स्विच मगर ये
तो फुल पर है।एसी के नीचे हाथ लगाया तो अहसास हुआ कि उस में से एसी हवा आ रही है जैसे कि मरीज आदमी
की सांस।समझ आ गया कि सरकारी उपक्रमों  के रंग ढंग का ही ये महान नाम वाला "हर्षवर्धन"महान जहाज है।अब
कोई इलाज न पाकर खिड़की ही खोलदी,मगर जाने केसा समुद्र का किनारा था कि हवा चल ही नहीं रही थी।कोई
अन्य उपाय न देख कर श्रीमती जी के वानो से बचने हेतु अधिकारी द्वारा दिया गया फार्म को भरने लगा।थोड़ी देर बाद
अचानक कमरे में स्पीकर से एक तेज आवाज आई: सभी सम्मानित यात्रियों से निवेदन किया जाता है कि रात के भोजन
का समय ७ बजे से सही ७.३० तक निर्धारित है ,सभी भोजन के लिए सही समय पर डायनिंग हाल में पहुंचे ,इसके बाद
किसी को डायनिंग हाल में प्रवेश नहीं मिलएगा।: यह संदेश बंगाली एवम् अंग्रेज़ी में दोहराया गया। अभी मै कुछ
समझ पाता अचानक बड़ा बेटे ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा कि आपने यह संदेश सुना? मेरे हा कहने पर उसने
कहा कि वह पांचवीं मंजिल के बाद खुले डेक पर घूमने गया था तो वन्हा भी यह संदेश प्रसारित हो रहा था,साथ ही
समझाया की समय की सख्त पाबंदी है और डायनिंग हाल पहली मंजिल पर है ।घड़ी देखी तो ६.३० बज रहे थे और
डायनिंग हाल को ढूंढ ने एवम् पंहुचने में समय लगेगा अत तुरंत कुछ भूख ओर कुछ समय की पाबंदी के कारण हम
सब निकल लिए।कमरे से बाहर आ कर समझ आया कि बेटा सही कह रहा था।कारण मै आपको बताता हूं कि जहाज
का फैलाव लंबाई में होता है ,हर मंजिल पर मध्य में एक गेलरी होती है और दोनों तरफ कमरे होते है।गेलारी की
शुरुआत एवम् अंत में नीचे ऊपर जाने हेतु सीढ़ियां होती हैं।ओर हर सीढ़ी के किनारे एक तरफ बाथरूम एवम्
टॉयलेट होता है।gelari की पूरी दीवारें पीले रंग से पुती थी एवम् उस पर बड़े बड़े लाल लाल अक्षरों में लिखा था
खतरा हो तो निकल भागे।साथ ही सीढ़ी की दिशा में बड़ा सा लाल रंग का ही तीर का निशान बना था।हमें घबराहट
हुई कि कैसा खतरा ? लेकिन फिलहाल भोजन के समय की पाबंदी याद आते ही तुरंत डायनिग हाल की तरफ भागे,
क्योंकि जहाज पर आते ही बेटों ने जानकारी जुटा ली थी कि यहां कोई कैंटीन या शोप नहीं है।खेर सीढ़ियों की भूल
भुलैयो में उतारने के बाद पूछताछ करते जब डाइनिंग हाल के सामने हाजिर हुए तो चैन की सांस ली और घड़ी देखी
तो ठीक ७ बजे थे,यानी पूरा आधा घंटा लगा था। डायनिंग हाल के अंदर जा कर देखा तो पहली बार अच्छा लगा कि
इस जहाज पर कोई स्टैंडर्ड की जगह तो है,पर थोड़ी देर बाद उसका कारण भी समझ गया।बात यह थी कि वांहा
यात्रियों के साथ जहाज के कप्तान साहित सारे अधिकारी भी भोजन के लिए हमसे पहले ही मौजूद थे।तभी एक वेटर
ने हमारा कमरा न पूंछ कर हमारी निर्धारित मेज की तरफ बैठने का इशारा किया ।बैठते ही वेटर ने स्टील के बर्तन
रख कर तुरंत ही भोजन परोसना शुरू कर दिया,हमसे पूछने की तो बात ही नहीं हुई।थाली में देखा तो दाल चावल ,
एक सूखी सब्जी,एक बर्फी का पीस एवम् थोड़ी सी कटी प्याज।यही उनका मीनू था यानी अच्छा लगे या नहीं अगले
तीन दिन तक यही मिलना था।आखिर हमसे नहीं रहा गया तो हमने वेटर से कह रोटी भी लाओ ,उसके असमंजस
को देखते हमने कह कि भाई हमने रोटी के लिए पहले नोट करा दिया था,ओर भुगतान भी करा था।तब जाकर वह
हाथ में गिनती कि दस रोटी लाया।रोटी के आकार प्रकार के बारे में न बूझे तो ठीक रहेगा क्योंकि इतनी देर में हमें
समझा आ गया था कि चावल भात खाने वाले प्रदेश में रोटी की जानकारी कितनी होती है ।एक बात और की कि
हमारे अलावा सभी चावल  भात मछली और मीट के साथ खा रहे थे और एक बात कि शायद तमाम यात्रियों में हमी
ही वेजिटेरियन थे।अत चुपचाप खाने में ही भलाई थी।ओर रोटी मांगने पर इनकार भी कर दिया गया ।कोई बात नहीं
तुरंत हमारे खयाल में कोलंबस ओर वास्कोडिगामा की समुद्री यात्रा की यादगार वर्णन जो की पहले किताबो में पढ़
चुके थे और जिनसे प्रेरणा ले कर हम इस यात्रा में निकले थे हमें सहारा दिया।अब यह कोई लिखने की बात नहीं है
कमरे में आ कर हवाई यात्रा की जगह पानी के जहाज की यात्रा के निर्णय पर श्रीमती एवं बेटों ने हमारी कितनी क्लास
ली होगी।

चलिए अब आपको महान जहाज :हर्षवर्धन: की शाब्दिक सैर कराते हैं।जैसे कि मैने पहले बताया था कि यह पांच
मंजिला है।सीढ़ी चढ़ने के बाद जो खुली जगह जिसे डेक कहते है ,ये मंजिले उसके ऊपर बनी है।इस डेक के नीचे
भी तीन मंजिलें है अंतर केवल यह है कि जहां ऊपर की सभी मंजिलों में हर केबिन में खिड़कियां है वहीं नीचे कि
मंजिलों में कोई खिड़की नहीं होती क्योंकि ये मंजिले समुद्र की सतह से नीचे होती हैं।जब हम नीचे की मंजिल देखने
गए तो सिहर उठे,कलकत्ता की उमस वाली गर्मी में जांहा खिड़की लगी केबिनों में नहीं बैठा जा रहा था वहीं नीचे की
मंजिल गर्मी व उमस से भरी हुई थी।हालांकि वंहा भी यात्रियों के सोने के लिए वहीं तीन स्तरों के पलंग बेतरतीब लगे
थे।एसी के स्थान पर स्टैंड पर खड़े आठ दस पेदस्ट्रियाल पंखे थे। यहां पर लगभग पांच सौ से अधिक यात्री के सोने का
स्थान था।उसी मंजिल के एक तरफ साइड में लम्बी लंबी बेंच लगी थी।पूछने पर बताया गया कि इस में वे लोग सफर
करते है जो कि अंडमान के कम आमदनी वाले दुकानदार, मजदूर आदि होते है जिनकी शायद इतनी हैसियत नहीं
होती कि वे हमारी तरह ५५०० रूपए का भुगतान यात्रा के लिए कर सके। वे केवल १७०० रूपए में ही ये यात्रा करते
है एवं भोजन भी इसीमे शामिल होता है।जो बेंचे लगी थी,उन्हीं पर बैठ कर वे भंडारे की तरह ही भोजन करते है और
यही पर उनके बाथरूम बने थे।साथ ही हमें पूछने पर एक जानकारी ओर दी गई की उन्हें भी जहाज के उपरी खुला
डेक जो की पांचवीं मंजिल पर था पर ही जाने की इजाजत थी,वहीं केबिन वालों के लिए पांचवीं मंजिल के ऊपर एक
छोटा लेकिन अलग डेक था जिस पर बैठने के लिए कुछ सोफ़ा एवम् कुर्सियां रखी थी।इतनी ही देर में हमारी गर्मी व
उमस से बुरा हाल होने लगा था तो हे भगवान उनकी इस चार दिनों की यात्रा में क्या हाल होता होगा,ये सोच कर भी
दिल घबरा गया ।हम तुरंत लगभग दोड की तरह ही ऊपर के डेक पर आ गए।ऊपर के केबिनों के लिए रिजर्व डेक
पर जब हमने नीचे झांका तो हम हैरान रह गए। वहां तो लगभग पांच सौ यात्री घूम फिर रहे थे ,कुछ चादर दरी बिछा
कर ओंधे पड़े थे।तब हमें समझ आया कि क्यों हमें ज्यादा यात्री नजर नहीं आ रहे थे।व सब मजबूर लोग नीचे की गर्मी,
उमस से बचने के लिए ही ऊपर डेक पर शायद सफर करने को मजबूर थे।ऊपर के दोनों डेकों पर बड़े से टीवी लगे
थे लेकिन फिर वही अंतर नजर आया कि उनके लिए बैंचे लगी थी व केबिन वालों के लिए टीवी देखने हेतु सोफे व
कुर्सियां लगी थी।बताया गया कि हर रात्रि आठ बजे वीडियो से एक फिल्म दिखाई जाती है जिसका समय भोजन के
बाद साढ़े आठ बजे का   होता है।घड़ी देखी तो पता लगा कि आज फिल्म न दिखा कर समुद्री यात्रा के जोखिम एवम्
सुरक्षा की जानकारी हेतु डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाएगी। तभी हमने ध्यान दिया कि जहाज के इंजन चालू तो है मगर जहाज
चल नहीं रहा है मगर क्यों? जहाज चले तो वो रोमांच जिसके लिए ये यात्रा का प्लान बनाया था आनंद आए ओर इस
कलकत्ता की गर्मी से निजात मिले।फिर बेटे ने ही हमारी जानकारी बढ़ाई की उसने पता लगाया था कि जब समुद्र में
ज्वार आयेगा तभी यात्रा शुरू होगी।तब उसने ही दिखाया की हमारा जहाज समुद्र या कलकत्ता की हुगली नदी में नहीं
खड़ा है बल्कि हुगली नदी से पांच सौ मीटर की दूरी पर एक विशाल तालाब नुमा पोर्ट यार्ड पर खड़ा है ।जहाज के
आगे तालाब यानी पोर्ट के मुहाने पर लोहे के दो विशाल गेट लगे है जिनसे यार्ड का पानी रुका हुआ है।हमारा सर
चक्र गया की यह गेट पानी रोकने के लिए लगा है या जहाज रोकने के लिए।नीचे झांका तो फिर चकरा गए कि पानी
की सतह जिस पर जहाज खड़ा है उसके और बंद गेट के बाद के पानी के लेवल में तो अंदाजे से तीस फुट के करीब
का अंतर है। हे भगवान इतने पानी के लिए जाने कब ज्वार आयेगा ओर लेवल एक समान करने के लिए जाने कितना
समय लगेगा।अब डेक पर गर्मी ओर उमस से व्याकुल होकर हम केबिन की तरफ चले कि कुछ तो वहां एसी की
हवा मिलेगी चाहे वह नाममात्र की ही हो।थकान हावी होने के कारण ना जाने कब नींद आगई।अचानक एक जोर के
बेसुरे से हॉर्न व झटके से जागे तो महसूस हुए की अरे जहाज तो चल रहा है,जहाज के चलने से खिड़की से हवा का
झोंका आ रहा था उसने हमें फिर से नींद के आगोश में भेज दिया। जाने हम कब तक सोते रहते की फिर केबिन में
लगे स्पीकर ने कर्कश आवाज में उठा दिया। उसने धमकी भरे स्वर से अंदाज में घोषित किया कि नाश्ते का समय
ठीक आठ बजे से साढ़े आठ बजे तक ही है उठकर जब दैनिक क्रियाओं के निपटान हेतु बाथरूम के अंदर गए तो
फिर जोर का झटका लगा ।घुप अंधेरे में दो या तीन बल्ब ही जल रहे थे । आमने सामने कतार में छोटे छोटे  चार चार,
ऊपर से खुले केबिन थे। एक तरफ के स्नान हेतु व दूसरे नित्यकर्म से निबटने हेतु।खेर नहाने के केबिन में घुसे तो फिर
वही झटका ।पूरे केबिन में एक छोटा सा आला साबुन रखने के लिए बस कोई अन्य स्टैंड नहीं, नल की टोंटी के स्थान
पर सर की ऊंचाई से एक फुट ऊंचा सीधा मुड़ा पाईप जैसे कि फव्वारे में होता है मगर फव्वारे की जगह खुला पाईप।
ये भुकत भोगी ही जान सकता है हर समय हिलते ,ऊपर नीचे उठते जहाज में स्नान का अर्थ योग स्नान होता है।अब
जाकर हमें ब्रह्म ज्ञान हुआ कि ये यात्रा सरकारी जहाज से हो रही है ना कि हमारे जेहन में बसे विशाल आधुनिक
विदेशी क्रूज़ में।खैर नाश्ता में कोई विशेषता ना होने के बावजूद और कोई विकल्प ना होने से भी आनंद लिया ओर
फिर जहाज की पहली बार दिन की समुद्री यात्रा का अनुभव लेने सीधे भुलभुलैया वाली सीढ़ी पर  दिमागी चिन्ह याद
करते हुए ऊपर के डेक पर चले आए,ओर फिर जो नजारा सामने देखा वो हमेशा के लिए हमारी यादों में बस गया।
शब्द नहीं है पर निशब्द की भी शायद कोई लिपि होती है जिसकी सहायता से में उस पहले अनुभव को बता सकूं।
जहाज की मंथर गति,जहां तक हमारी दृष्टि सीमा थी चारों ओर नीला शांत समुद्र।पहली बार आत्मा से अनुभव लिया
कि विशाल आकाश, समुद्र की विशाल  अथाह जलराशि से वृत्ताकार होकर मानो एक ऐसी परिधि बना रहा है जिसके
मध्य में कोई पार्थिव बिंदु तक ना हो। उस समय के मोंन को केवल दो चीजें ही तोड़ रही थी एक हमारे जहाज की
थरथराने की आवाज ओर दूसरे जहाज के ऊपर लगातार उड़ते सफेद रंग के पक्षी।पहले तो सर चकराया की जब
हमें दूर दूर तक कोई की किनारा नहीं दिख रहा है तो ये पक्षी कैसे इतनी दूर तक उड़ रहें है ,क्या ये थकते नहीं ओर
थकने का बाद ये कन्हा विश्राम करेंगे,शायद क्या हमारे ही जहाज पर बिना भाड़ा चुकाए यात्रा करेंगे मगर तभी हमें
एक टक ऊपर देख कर फिर बेटे ने ज्ञान दिया कि पापा ये सी गल नाम के पक्षी है जो जहाज को आगे बढ़ाने वाले ,
पानी में डूबे पंखे में से , पिछले हिस्से से जो जलधारा में लहर पैदा होती है और उस लहर से घबराकर जो कुछ
मछलियां इधर उधर भागती है उन्हें ये कुशल शिकारी पक्षी लगातार डुबकी लगाकर पकडते रहते  है एवं ये उड़ान
में इतने माहिर होते है कि बगैर उतरे महीनों लगातार उड़ते रहते है यहां तक कि ये सोते भी उड़ते उड़ाते है।तभी
हमारे मन ने भी उनके साथ उड़ाने की कल्पना की ओर शायद पहली बार सोच कर ही अनुभव लिया उपर से उड़ते
उड़ाते केसा लगता होगा ये विशाल समुद्र।
  
ना जाने  हम कब तकयात्रा के प्रकृति के इस विशाल रूप के समुद्र में पूरी तरह डूबे रहते कि प्रकर्ती के एक साकार
स्वरूपा हमारी श्रीमती जी की आवाज़ ने वास्तविक जहाज के उपर लौटा दिया,क्या अब ऊपर ही देखते रहोगे या
कुछ और हमें ये जहाज दिखाओगे।एक आज्ञाकारी कि तरह फिर हम कल्पना लोक सें निकाल कर जहाज के
सफर की दुनिया में आ गए। ठीक ही कह रही हैं वे क्योंकि यह यात्रा तो आगे भी दो दिनों तक ऐसे ही चलती रहेगी,
ये सारे दृश्य में अब कोई विशेष बदलाव नहीं होंगे इसलिए हम तुरंत ही उनकी बात मान कर जहाज के निरीक्षण में
लग गए।यहां एक बात बता दूं कि प्रथम क्लास के केबिन यात्री होने के कारण हमें जहाज के इंजन ओर कंट्रोल
आफिस की छोड़ कर हर कंही जाने की आजादी थी।हमने सोच लिया कि चलो अब जहाज कि गतिविधियों के बारे
में जानकारी जुटाते हैं ।जहाज के सबसे ऊपर चारों तरफ एक चार फुट चौड़ी सी रेलिंग लगी होती है जिस के किनारे
से हम नीचे ,आगे ,पीछे सब तरफ दूर दूर तक देख सकते है।थोड़ी थोड़ी दूर पर कुछ गोल से ड्रम नुमा रखे थे पता
चला कि वे फोल्डेड नावें है जिन पर अगर दुर्घटना वश जहाज डूबने लगे या आग लग जाए तो इन नावों की सहायता
से रस्सी के सहारे नीचे खुले समुद्र में उतर सकते है। इन पर संकट में काम आने वाले कुछ उपकरण के साथ एक बार
में दस यात्री तक समा सकते है साथ ही हर नाव के बगल में एक बोर्ड लगा था जिस पर सारी विधियां लिखी थी।उस
बोर्ड को पढ़ते ही हमें टाइटेनिक जहाज की फिल्म की याद आ गई ।सच कहता हूं दिल में डर कि एक ऐसी लहर
आई कि नीचे समुद्र कि वास्तविक लहर भी छोटी लगी।हमने तुरंत ही वहा से आगे जाने में ही भलाई समझी।रेलिंग
के आगे बढ़ने पर तमाम तरह की उपकरण आदि दिखाई देते रहे ओर हम आगे बढ़ते रहे।

फिर वही शाम ,फिर वही डाइनिंग हाल में समय की पाबंदी,रात को वीसीआर पर फिलमदेखते हुए हम ही जानते
है कि कैसे हमारी समुद्री यात्रा जो की आरंभ में एक रोमांचक यात्रा थी एक बड़ी बोरियत कि यात्रा में बदलने लगी।
अगले दो दिन ऐसे ही बोरियत के बीच बताने को सिर्फ कुछ ही बातें घटी जिनको बताए बगैर ये यात्रा अधूरी ही
रहेगी।सबसे पहले जिन इजरायली यात्रियों की हमने आपको बताया था वे अगले ही दिन हमें ऊपर के खुले डेक
पर अस्तव्यस्ट पड़े मिले ।पता चला कि वे सब उल्टी आदि से परेशान हो कर ओंधे मुंह पड़े है।पहली बार हमें
अपने हिन्दुस्तानी नस्ल के होने पर अभिमान हुआ कि वाह हम कितने मजबूत है।पर अब यह भी बताते हुए हमें
कोई शर्म नहीं है कि तीसरे दिन मुझे लगा कि मेरे पेट में भी कुछ गोल गोल सा घूम रहा है।कुछ ही घंटो में जब ये
गोल घुमाव हमें तूफान में बदलता नजर आया तो फिर से में बेटे कि शरण में गया और कहा कि इज्जत का सवाल
है कि हमारा हाल भी उन इजरायलियों जैसा ना हो जाए तो कुछ करो।वह बेचारा क्या करता हमारे हाल को देख
कर बोला कि मैं अभी जहाज के कप्तान साहब से मिलकर पूंछ कर आता  हूं।जैसे कि अब आप को समझने की
जरूरत नहीं की इस जहाजी यात्रा के इस नाजुक दौर में हमारी श्रीमती ने हमें क्या कुछ नहीं कहा होगा।थोड़ी ही
देर बाद बड़े बेटे ने आ कर दिलासा दी की अभी दो पहर का समय है , शाम चार बजे जहाज के डॉक्टर आपको
देखेंगे। वाह ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जहाज पर डॉक्टर भी होगा।खेर राम राम कर के शाम के चार
बजे,कलेजा ही नहीं पेट भी मुंह को आ रहा था कि डॉक्टर के सामने हाजिर हो गए।उन्होंने देखते ही बता दिया की
आप सी सिकनेस के शिकार हो गए है।कारण जानने पर बताया कि आपने इस यात्रा में गौर किया है कि ये जहाज,
इंजन के चलने से लगातार थरथराता रहता है वहीं लहरों के कारण ऊपर नीचे भी होता रहता है।इसमें कोई शोकर
तो है नहीं की ये सब ना महसूस हो।एक आध दवाई देने के बाद उन्होंने धमकी भरे लेकिन प्यार से कहा कि आप
दवाई के साथ साथ खाना भी खाते रहें नहीं तो आप भी उन इजरायलियों की तरह उल्टी आदि के शिकार हो जायेगे,
तब मुझे आपको भर्ती करना पड़ेगा।में हैरान परेशान की क्या जहाज में अस्पताल भी है? तो बताया की  हां दस बेड
का अस्पताल है।मैने तुरंत कहा डॉक्टर साहेब अगर आपके अस्पताल में कोई ऐसा पलंग हो जिस पर जहाज के हिलने
जुलने का कोई असर न हो यानी वह पलंग पूरी तरह स्थिर हो तो में अभी भर्ती होने के लिए तैयार हूं। सारा खर्चा मेरा
बैंक दे देगा।तो बस बेटा किसी तरह से मुझे वहा से खींचता हुआ ही वापस कैबिन में लेआया।एक ओर अद्भुत बात
मै आपको जरूर बताऊंगा कि दिन के सफर में जो कि एक विशाल समुद्रीय रेगिस्तान सा लगने लगा था । नीले
आकाश से मिलते हर तरफ पानी के सिवाय और कुछ नहीं,कभी कभी दूर कहीं कुछ मछलियां दिखती थी लेकिन
पल भर में ही पानी में गायब ही जाती थी।परन्तु रात्रि के आसमान की बात ही अद्भुत थी।पहली बार हम सब गवाह
बने उस देवीय,रोमांचकारी दृश्य के जब रात के गहन अंधकार में पूरा आसमान लाखो छोटे बड़े चमकते टिमटिमाते
तारों से भरा हुआ था ।एकदम साफ प्रदूषित रहित वातावरण में  तारों का प्रकाश धरती के मुकाबले इस खुले समुद्र में
जैसे कई गुना बढ़ गया था।पहली ही बार देखा कि तारे समुद्र के चारों ओर परिधि में फैले जल से निकाल रहे थे।ये
सारा दृश्य मुझे कलकत्ता के उस कृत्रिम तारा मंडल की याद दिला गया ,हालांकि इस प्राकृतिक तारा मंडल से उसकी
तुलना हो ही  नहीं सकती थी।पहली ही बार वो साफ विशाल आकाश गंगा की धारा देखी जो सीधे हमारी आत्मा
के अस्तित्व में या हमारी आत्मा उस आकाश गंगा में विलीन हो रही थी।जाने कब तक हम इस सम्मोहित दृश्य में खोए
रहते कि पहली बार हमारी श्रीमती जी ने खोए खोए से स्वर में हाथ पकड़ कर कहा चलो काफ़ी रात बीत चुकी है ,
थोड़ा आराम कर लो।मुझे आभास हुआ कि इस देवीय दृश्य में वो भी पूरी तरह डूबी हुईं थी।ऐसे ही तीसरा दिन भी
बीत गया। चोथे दिन सुबह छह बजे ही स्पीकर ने फिर एक बार जगाया लेकिन संदेश सुन कर मन में मिश्रित भाव
पैदा हो गए।एक तरफ तो इस यात्रा से मुक्ति की खुशी हुई वहीं यात्रा में भोगे हुए अनुभव शायद ही फिर मिलें,इसकी
बेचैनी भी हुई।लेकिन आगे बढ़ते रहना ओर नए नए अनुभव लेना ही तो जीवन का उद्देश्य है अतः जब हमारा जहाज
एक घंटे के बाद जब किनारे पर लगा और हमारा  पहला कदम जब धरती की सतह पर लगा तो ऐसा प्रतीत हुआ की
जैसे एक शिशु को पुनः मां कि गोद में आकर अपूर्व सुख एवं सुरक्षा की भावना मिलती है।उस एक क्षण में हम महान
खोजी यात्री कोलंबस ओर वास्कोडिगामा की यात्राओं से सम्मुख हो गए,ओर बगैर पीछे देखे हर्षवर्धन जहाज से ऐसे
विमुख हुए कि जैसे एक दुस्वप्न से जागने पर दुबारा सोने कि हिम्मत नहीं होती है। हमने मनही मन उन महान यात्रियों
को स्मरण किया और एक नई यात्रा हेतु  आगे बढ़ लिये।