रविवार, 16 अगस्त 2020

कहानी ................. "" ख्याल रखना ""

                                      कहानी ................. "" ख्याल रखना ""
 


     "" सर, आपसे मिलने के लिए एक बुजुर्ग से व्यक्ति काफी देर से खड़े है वे ..," " मुझे बहुत काम है, मना कर दो"।" सर, मैने ये सब कहा था ,परन्तु वे आपसे मिलने की जिद पर एडे हैं ,कहते हैं कि वे बहुत दूर चंदेरी शहर से आए हैं,साथ ही कह रहे हैं कि वे आपके अध्यापक रहे हैं "। "" क्या ,मेरे अध्यापक ,अच्छा तो अंदर भेज दो ,रुको रुको मेरे अध्यापक रहें हैं तो मै खुद ही उनके पास जाता हूं" ।
         यह कह कर एस पी पुलिस महेश उठ खड़े हुए ।तेज कदमों से जैसे ही वे मुलाकतियों के कमरे में पहुंचे तो चौंक पड़े।उनको देखते ही महेश उनके चरणों को स्पर्श करने के लिए झुक गए ।चरण छूने के कुछ ही क्षणों में जैसे वे समय के पुराने दौर में ,अपने छात्र जीवन के दौर में पहुंच गए।
     स्कूली शिक्षा के समय उसकी एक ही आकांक्षा थी पुलिस में इंस्पेक्टर बनने की।कहते हैं ना कि अगर लगन सच्ची हो तो ऊपर वाला भी किसी ना किसी रूप में मदद करता है और ये मदद उसे इन्हीं अध्यापक के रूप में मिली थी।इन्हीं अध्यापक जी ने महेश में छुपी प्रतिभा और लगन को पहचान लिया था।उन्हीं की सहायता से महेश एक एक कर के राह में पड़ने वाली तमाम बाधाओं को पार करते हुए अपने दिव्य स्वप्न की पूर्ति में 
सफल हुआ था ।
         आज महेश इन्हीं अध्यापक की सहायता से पुलिस के एस पी पद तक जा पहुंचा था।महेश ने अति आदर के साथ अपने अध्यापक जिन्हें वो आदर के साथ गुरुजी कहता था को अपने चेंबर में बिठाया ,अपने सहायकों को आदेश दिया कि अब जो भी मिलने आए उसे कल का समय दे दे,साथ ही उसने अपने विशेष सहायक को बुलवाया और उसे नाश्ते आदि के लिए कहा तो मास्टर साहब ने रोक दिया।महेश के अधिक आग्रह पर कहा कि मुझे शुगर हो गई है इस लिए खाने पीने में सावधानी रखनी पड़ती है,फिर भी महेश के बहुत कहने पर उन्होंने थोड़ी सी नमकीन और फीकी चाय ही स्वीकार की।
     दोनों बातों में इतने खो गए कि उन्हें समय का याद ही नहीं रहा।अचानक गुरुजी ने घड़ी देखी ,बोले ,अरे इतना समय कब बीत गया पता ही नहीं चला,मुझे अभी सात घंटों की यात्रा करनी है चंदेरी तक।" लेकिन गुरुजी " महेश बोला " हो सके तो आज मेरे पास ही रुकिएगा , कैसे भी आपकी गुरु दक्षिणा चुकानी है " । गुरुजी हल्के से मुस्कुराए,महेश के सिर पर हाथ फेरा ,बोले " तुम जिस पद पर बैठे हो ,उस पद के अनुसार ही लोगों की सुनते रहना ,शब्दों के जाल में नहीं आते हुए दिल की भी सुनना ,तुम्हे ढेर सारी दुआएं मिलेगी ,साथ ही मेरी गुरु दक्षिण भी  चुकती रहेगी " । महेश अवाक से अपने गुरु के चरणों में झुक गए।
      महेश ने तुरंत अपने पी ए को बुलाया और कुछ उसके कान में कुछ कहा ।थोड़ी ही देर में पुलिस की एक जीप सामने आ खड़ी हुई।अब महेश ने गुरुज से कहा कि आपको ये जीप झांसी तक छोड़ आएगी,उसके आगे ... तभी गुरुजी ने कहा " नहीं ,महेश ,नहीं, मै बस से ही आया हूं और बस से ही जाऊंगा।यहां से सीधी झांसी तक बस मिल जाएगी ,झांसी से चंदेरी तक खूब बसें चलती है ," जाने गुरुजी की बातों में क्या असर था कि महेश ने कहा कि ठीक है बस स्टैंड तक आपको ये जीप छोड़ देगी ।महेश ने पुनः एक बार अपने गुरु के पैर छुए और उन्हें तब तक देखता रहा जब तक कि जीप आंखों से ओझल नहीं हो गई।
      बस स्टैंड पर झांसी की बस तैयार खड़ी थी।गुरुजी उसमे चढ़ कर अपने लिए नियत सीट पर बैठ गए।उन्होंने इस बात पर जरा भी गौर नहीं किया कि उनके साथ जीप में सवार दो बंदूक धारी पुलिस वाले भी उनके पीछे वाली सीट पर ही बैठ गए हैं।
      कुछ ही देर में बस चल दी।बस शहर से हाई वे पर दौड़ रही थी।लगभग एक घंटे की यात्रा हो चुकी थी,तभी अचानक गुरुजी ने अपनी सीट से उठ कर कंडक्टर के पास जा कर उसके कान में कुछ कहा।उसने तुरंत सीटी बजा कर बस को रुकवा दिया ।गुरुजी नीचे उतरे और एक ओर ओट में हो गए।उनके पीछे बैठे दोनों सिपाही बेचैन हो उठे ।वे अभी कुछ सोच ही रहे थे कि गुरुजी वापस आ कर अपनी सीट पर बैठ गए। बस पुनः चल पड़ी।
          इसी तरह और एक घंटे के करीब सफर चल रहा था कि गुरुजी सीट से उठे ,कंडक्टर से कुछ कहा ,उसने बस फिर रुकवाई ,गुरुजी नीचे उतरे , और ओट में हो गए ।अब तो सिपाहियों की बेचैनी और उत्सुकता ऑर बढ़ गई। शायद उनकी पुलिसिया बुद्धि जागने लगी थी। उन्हें गुरुजी 
के साथ झांसी तक रहने को कहा गया था,साथ ही झांसी से चंदेरी तक गुरुजी की बस यात्रा के लिए भी उस जिले की पुलिस के सिपाहियों का इंतजाम करने को कहा गया था।अब ये पुलिस वाले बेचैन होने लगे थे।आखिर क्यों ये बुजुर्ग सा यात्री, हाई वे पर बार बार क्यों बस रुकवा रहा है ।वे दोनों अपनी सीट से खड़े हो गए और जैसे ही बस से नीचे उतरने ही वाले थे कि उन्हें वो बुजुर्ग वापस बस की तरफ आते दिखाई दे गए।पुलिस वाले चुपचाप वापस अपनी सीट पर जा बैठे।उनके सामने गुरुजी भी आ बैठे , और बस पुनः झांसी की ओर चल दी।
      वे दोनों पुलिस वाले पूरी तन्मयता से गुरुजी पर निगाहें टिकाए हुए थे।लगभग एक घंटे की यात्रा के पश्चात जैसे ही झांसी शहर आने ही वाला था कि गुरुजी फिर उठ खड़े हुए और कंडेक्टर के कान में कुछ बोले ,परन्तु अबकी बार कंडैक्टर ने इनकार में सिर हिलाया।गुरुजी वापस अपनी सीट पर आ बैठे।अब तो मानो पुलिस वालों का धैर्य जवाब देने लगा।उन्हें गुरुजी की हरकतों पर शक होने लगा, उनमें से एक पुलिस वाला खड़ा हो गया और गुरुजी कि ओर बढ़ा ही था कि कांडेक्टर ने जोर से बस यात्रियों को संबोधन किया "" झांसी  का सिपिया बाजार आने वाला है ,जिन यात्रियों को झांसी रेलवे स्टेशन जाना है वे यही उतर जाएं,इसके बाद बस केवल झांसी बस स्टैंड पर ही रुकेगी।ये सुनकर खड़ा पुलिस वाला अपनी सीट पर लौट आया। आगे बस रुकी ,कुछ यात्री उतरे ,बस फिर चल दी।
     थोड़ी देर बाद शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरती बस आखिरकार झांसी बस स्टैंड आ पहुंची।पुलिस वालों की नजरे जो कि पहले ही से गुरुजी पर टिकी थी ,उन्होंने देखा कि बस के रुकने से पहले ही गुरुजी अपनी सीट से उठ कर बस के गेट तक जा पहुंचे थे, और बस के पूरी तरह रुकने से पहले ही वे गेट खोल कर उतर कर तेजी से एक ओर की तरफ लगभग दौड़ से पड़े।अब तो पुलिस वालों का धैर्य समाप्त हो चुका था ।उनका शक विश्वास में बदल गया था कि इस बुजुर्ग की गतिविधि  संदिग्ध है ,वे भी लपक कर गुरुजी का पीछा करने के लिए उतरने के लिए गेट तक पहुंचने के लिए खड़े हो गए परन्तु तब तक उनसे पहले उतरने वालों कि भीड़ गेट पर जमा हो गई थी,इस लिए जब तक वे नीचे उतरे, गुरुजी उनकी आंखों से ओझल हो चुके थे।
    दोनों पुलिस वाले बेचैनी से इधर उधर गुरुजी को ढूंढ ही रहे थे कि उन्होंने देखा कि वे बुजुर्ग आदमी चंदेरी जाने वाली बस में सवार हो रहें है।अब आगे क्या करें ,वे अभी सोच ही रहे थे कि उन्हें अचानक दो अन्य पुलिस वाले नजर आए।वे भी चंदेरी की बस के बाहर खड़े थे।पहले वाले पुलिस वाले सीधे उनके पास पहुंचे और उन्हें एक कोने में ले गए।
      "" देखो , हम आगरा पुलिस के हैं, और आगरा से आए हैं।हमे हमारे कोतवाल साहब ने जल्दी में बुलवाया था और कहा था कि झांसी जाने वाली बस से एक बुजुर्ग जिनका हुलिया उन्होंने हमे बताया था ,को आगरा बस स्टैंड पर धूंडना है और वे बुजुर्ग झांसी होते हुए चंदेरी जाएंगे तो झांसी तक तुम्हे उनके साथ जाना है परन्तु उन बुजुर्ग को ये बिल्कुल आभास नहीं होना चाहिए कि तुम उनके साथ हो।अब जल्दी से आगरा बस स्टैंड जाओ और बुजुर्ग का पूरा ख्याल रखो।ये ऑर्डर सीधे एस पी साहिब के आफिस से आया है ।हमे अब कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि इन बुजुर्ग के साथ कुछ गड़बड़ है क्योंकि ये रास्ते में दो बार बस रुकवाकर नीचे उतरे थे ,फिर कुछ मिनटों के बाद आए थे।उतरते समय वे कुछ व्यग्र से लगते थे ।इस लिए हम आपसे कह रहें हैं कि इन बुजुर्ग पर अपनी नजरें जमाए रखना और उनका पूरा ख्याल रखना।इतने में चंदेरी जाने वाली बस के कंडक्टर ने बस चलाने के लिए सिटी बजा दी तो वे दोनों नए पुलिस वाले दौड़ कर उस बस में चढ़ गए।


       चंदेरी की ओर घुमावदार रास्तों से बस हिचकोले खाते चल रही थी ,शाम का धुंधला पन गहरे अंधेरे में डूबने को जैसे व्यग्र लग रहा था।अधिकांश सवारियां रास्ते के चारों ओर फैली हरियाली का  आनंद ले ही रही थी कि अचानक गुरुजी अपनी सीट से उठे और कंडक्टर के पास जा कर उसके कान में कुछ बोले कि उसने बस रुकवाने के लिए सिटी बजा दी।तुरंत गेट खोल कर गुरुजी नीचे उतरे और शाम के गहराते अंधेरे की ओट में खो गए।बस में बैठे पुलिस वालों के कानों में झांसी के पुलिस वालों की आशंका गूंजने लगी।उन्होंने तुरंत वाकी ताकी से अपने अधिकारी से संपर्क किया धीरे धीरे उन्हें अपना शक जाहिर कर दिया।बस के अंदर मौजूद पुलिस वालों की नजरे ओट में गायब बुजुर्ग के रास्ते पर लगी हुई थी , कि तभी वे बुजुर्ग बस की ओर वापस आते दिखाई दिए।बस एक बार फिर चंदेरी शहर की ओर चल दी।बस अभी कुछ ही किलोमीटर गई होगी कि बस के चालक को सामने पुलिस की चमकती रोशनी वाली तीन चार गाडियां नजर आईं।सड़क पर इन पुलिस की गाड़ियों ने अवरोध डाल कर बस को रोकने का संकेत दिया।जैसे ही बस रुकी ,पुलिस की गाड़ियों मै सवार पुलिस वालों ने तुरंत बस को चारों ओर से घेर लिया।उनके हाथों में हथियार किसी भी कार्यवाही को जैसे तैयार थे ।इधर बस के रुकते ही बस में बैठे पुलिस वालों ने तुरंत ही अपने हथियार बुजुर्ग की गर्दन पर तान दिए।चालक,कंडक्टर सहित सभी सवारियों को तो जैसे सांप सूंघ गया।शायद उन्हें,  टी वी और अखबारों में छाई आतंक वादियों की खबरें याद आने लगी।


     हक्के बक्के गुरुजी कुछ समझ पाते कि बस के गेट से हथियार चमकाते पुलिस वालों ने गुरुजी को घेर लिया और घसीटते से नीचे उतार लिया।वे अभी कुछ कहते की उनके हाथ हथकड़ियों से जकड़ दिए गए ,एक काला कपड़ा उनके मुंह पर डाल दिया और जीप में लाद कर ,जितनी तेजी से आए थे ,उतनी ही तेजी से चले गए।
       अगली सुबह जब गुरुजी के मुंह से कपड़ा निकाला गया तो उन्हें उजाले में आंखे खोलने में समय लगा।उन्होंने देखा कि वे एक गहरे रंग के कमरे में हैं और उनके सामने मेज कुर्सी पर एक सूट बुटेड अधिकारी सा बेठा है।कमरे के चारों ओर हथियारों से लैस पुलिस वाले तैनात खड़े है।
        गुरुजी को बहुत देर तक तो समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्यों और कैसे हो रहा है।सामने वाला उन की ओर गहरी नजर से गौर से काफी देर तक उनकी ओर देखता रहा ,परन्तु वे तो सदमे जैसी स्थिति में थे।
        आखिर कार कुछ समय बाद सामने बैठे अधिकारी ने अपनी आंखे बंद की , और एक लंबी सांस लेकर शान्ति की मुद्रा बना ली।शायद उसे समझ आ गया था कि सामने बैठा व्यक्ति इस तनाव भरे माहौल से दहशत में है।उसे अपनी ट्रेनिंग का एक पाठ याद आ गया होगा कि कभी कभी अपराधी भी ऐसे माहौल में तनाव के कारण अपने होश खो बैठता है।उसने अपने आसपास खड़े हथियारबंद पुलिस वालों को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया तो वे सब क्षण भर में कमरे से ओझल हो गए।
     इस गहरी निस्तब्धता में  थोड़ा समय और बीता।गुरुजी के पीले पड़े चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था कि बीते कितने ही घण्टे उन्होंने घोर पीड़ा में बिताए होंगे।वे लगभग निढाल से थे और कुर्सी पर नहीं बेठे होते तो गिर ही पड़ने की स्थिति में थे।
       तभी सामने बैठे अधिकारी ने उन्हें पानी से भरा गिलास दिया ,गुरुजी ने कंपकपाते हाथों से लगभग झपटते से, गिलास को होठों से लगा लिया।निसंदेह देर से प्यासे उनके शरीर को बहुत ताकत सी प्रतीत हुई।लगा जैसे उनके अन्दर कुछ ताकत सी आई।उनकी आंखे अब पूरी तरह खुल गई ,उनके सूखे होंठ कुछ नरम से हुए ,तभी बेकरारी से उनके मुंह से निकला " बाथरूम किधर है ,मुझे म
टॉयलेट करना है।देर से शांत बैठे अधिकारी ने उन्हें गौर से देखते हुए कमरे के एक कोने की ओर संकेत किया ,मगर उधर तो कोई बाथरूम था ही नहीं।अब तक पूरी तरह सदमे से उबरते गुरुजी ने जोर से कहा ,मुझे बाथरूम जाना है वो किधर है बताओ।कुछ क्षण सोचने के बाद आखिर कार उस अधिकारी ने एक दूर खड़े पुलिस वाले को बुलाया और उसे गुरुजी को बाथरूम ले जाने का आदेश दिया।हैरान सा पुलिस वाला चुपचाप गुरुजी को ले कर कमरे से बाहर चला गया।
    थोड़ी देर बाद जब गुरुजी लौट कर आए तो जैसे वे पूरी तरह चैतन्य हो चुके थे।इससे पहले कि कमरे में बैठा अधिकार उन्हें कुछ कहता ,वे चीखते हुए बोले " ये सब क्या हो रहा है ,मुझे क्यों पकड़ रखा है ।"" अधिकारी जो उनके ,चेहरे के भावों,उम्र ,वेशभूषा से किसी गहरी सोच में डूब हुआ था,उसने बड़े ही धीमे परन्तु नरम स्वर में गुरुजी से उनका परिचय पूछा ।प्रथम बार उनसे किसी पुलिस वाले ने सामान्य स्वर में बात की थी। उसके सामने बैठे गुरुजी जैसे अपने मनोभाव रोक नहीं पाए।"" क्या मै कोई चोर डाकू हूं,क्या मै एक आतंकवादी हूं ? अरे मेरा कोई तो विश्वास करो, मै चंदेरी के सरकारी इण्टर कालेज से रिटायर प्रिंसिपल हूं। मै तो अपने एक पुराने शिष्य जो कि आजकल मथुरा के एस पी हैं ,उनसे मिलने गया था "।
     सामने बैठा अधिकारी पर जैसे बिजली सी गिरी " क्या कहा तुमने वो एस पी आपका शिष्य है ," जी हां ,वे मेरे ही शिष्य रहे हैं ! अब तो अधिकारी समेत सारे पुलिस वालों को तो जैसे सांप सूंघ गया था।
     अधिकारी ने तुरंत उन पुलिस वालों को बुलवाया जिनकी सूचना पर गुरुजी को रास्ते में ही पकड़ा गया था।
   सर ,हम तो झांसी बस स्टैंड पर रोज की तरह चंदेरी जाने वाली बस पर सुरक्षा के लिए जाते थे ।हमें तो मथुरा से आनेवाली बस से उतरे दो पुलिस वालों ने कहा था कि ये जो बुजुर्ग सा चंदेरी जाने वाली बस पर सवार हो रहा है ,उस पर नजर रखना क्योंकि उन्हें कोतवाली से सी ओ साहब ने अर्जेंट बुलवाया था और कहा था कि तुम्हे मथुरा बस स्टैंड पर झांसी जाने वाली बस पर सवार होने वाले इस बुजुर्ग का विशेष  ख्याल रखना है ,ये आदेश स्वयं एस पी साहब ने दिया है ,परन्तु ये भी कहा कि इन बुजुर्ग को तुम्हारे ऊपर जरा सा भी शक नहीं होना चाहिए कि तुम उनके साथ जा रहे हो।उनके आदेश से ही वे दोनो पुलिस वाले झांसी तक उन के साथ ही आए थे ।उन्होंने ये भी बताया था कि ये बुजुर्ग प्रायः हर घण्टे ढेड घण्टे पर बस रुकवाते और नीचे उतार कर ओट में चले जाते ।जब तक वे कोई कार्यवाही करते बस झांसी पहुंच गई थी , और ये बुजुर्ग तुरंत ही चंदेरी जाने वाली बस में बैठ गए। सर ,उनके कहे अनुसार ही हमने भी इन बुजुर्ग पर नजर रखीं और रास्ते में अंधेरा होने पर जब ये दूसरी बार बस रुकवाकर नीचे उतरे तो हमे इनकी संदिग्ध गतिविधि पर पूरा शक एवम् विश्वास हो गया तो हमने उच्च अधिकारियों को सूचित कर दिया।बाकी तो आप सब जानते ही है।
      ये सब सुन कर तो जैसे अधिकारी को सारा मांजरा समझ आ गया ।फिर भी पूरी तसल्ली के लिए उन्होंने सीधे मथुरा के एस पी को फोन लगाया और उनसे जो सुना तो जैसे उसके होश ही उड़ गए।हालांकि उसने एस पी महोदय को इतना ही बताया कि जो पुलिस वाले ,मथुरा पुलिस के कहने पर उन गुरुजी का विशेष ख्याल रखने के लिए चंदेरी तक आए थे ,उसे कंफर्म करने के लिए ही ये फोन किया था। और जब एस पी ने ये कहा कि वे उसके गुरुजी रहें हैं एवम् उनके है मार्गदर्शन के कारण वे इस पद तक पहुंचे है तो जैसे उस अधिकारी की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया।उन्होंने उन्हें धन्यवाद देते हुए अंत में उनसे इतना ही कहा वे गुरुजी ठीक से घर पहुंच गए हैं !
        पूरे विभाग में मचे हड़कंप के बाद पूरे पुलिस विभाग ने, बड़ी ही मुश्किल से उन गुरुजी को खयाल रखने और विशेष ख्याल रखने के बीच हुए अंतर के लिए अनेकों बार क्षमा प्रार्थना की ,तब जाकर उन सीधे साधे गुरुजी ने गुरु होने के नाते जो गलतफहमिया
 हुईं उनके लिए उन्हें क्षमा कर दिया,साथ ही बताया कि शुगर के मरीज होने के कारण उन्हें हर घण्टे ,ढेड़ घण्टे बाद मूत्र विसर्जन हेतु जाना पड़ता था ,इसी लिए यात्रा के दौरान वे बस रुकवाते थे।
     अब उस अधिकारी ने तुरंत गुरुजी के घर तक पहुंचने के लिए अपनी कार के चालक को बुलाया और गुरुजी से आग्रह किया कि अगर उन्होंने कल से घटी सारे घटना क्रम के लिए उन्हें क्षमा कर दिया है तो वे उन्हें कार से घर पहुंचने के लिए सेवा का अवसर जरूर दे।
     गुरुजी उनके आग्रह को टाल नहीं सके तो वे इस पेशकश के लिए तैयार हो गए ।स्वयं वो अधिकार उन्हें बाहर खड़ी अपनी कार तक बेठाने  आया ।गुरुजी उसमे जैसे ही बेठे तो अधिकारी ने अपने चालक से कहा कि इन्हें इनके घर तक पहुंचाकर आए , और जैसे ही कहा कि "" इनका विशेष ख्याल रखना " गुरुजी जोर से चौंक गए परन्तु तभी अधिकारी को भी अपने कहे शब्दों का ध्यान गया,उसकी इस बात पर गुरुजी जोर से बोल उठे "बस बहुत हुआ विशेष ख्याल ,मुझे तो नॉर्मल ही जाने दो ," और मुस्कुराते हुए चालक को चलने के लिए कहा। 
   अधिकारी ही नहीं लगभग सारा पुलिस थाना उन्हें जाते हुए जब तक देखता रहा जब तक कि उनकी कार आंखो से ओझल नहीं हो गईं ।
     




मंगलवार, 14 जुलाई 2020

यात्रा…………...शबरीमला मंदिर ( केरल)

                                           शबरिमाला मंदिर केरल में स्थित है यह तो शायद हम में से अधिकांश लोग जानते होंगे परन्तु केरल में किस जिले में है और और इस मंदिर की प्रसिद्धि का क्या कारण है यह शायद अधिकांश मध्य एवम् उत्तर भारतीय नहीं जानते होंगे। मै स्वयं  भी नहीं जानता था ,परन्तु जब से इस मंदिर के प्रबंधकों और महिला संगठनों के मध्य इस मंदिर में ,महिलाओं के दर्शन करने का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा ,टी वी और समाचार पत्रों में जब मंदिर की चर्चा हुई तब मेरी इच्छा इस मंदिर के संबंध में और जानकारी लेने की हुई तो आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि केवल गूगल बाबा को छोड़ कर किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी ,।थी तो बस इतनी कि यह मंदिर केरल में है पर केरल में किधर ? इस प्रश्न के उत्तर के लिए सभी संभव सूचनाओं से कन्फ्यूज़न और बढ़ गया ,तब यह निर्णय लिया कि सीधे केरल प्रदेश कि राजधानी " त्रिवेंद्रम " ही चला जाए!
 आखिर कार एक दिन समाचार पत्र पढ़ते जब पता चला कि शबरीमाला मंदिर प्रत्येक माह  में केवल 5 दिन ही खुलता है और केवल वर्ष मे 14 नवंबर से 14 जनवरी संक्रांति तक पूरे 2 माह तक दर्शनों के लिए खुला रहता है तो मेरी उत्सुकता इस मंदिर के दर्शनों के लिए चरम पर पहुंच गई।सामने कैलेंडर देखा तो पता चला कि अरे अभी तो अक्टूबर माह चल रहा है ,तो फिर क्या था , आनन फानन में ट्रेन में सीट बुक की और चल दिया, बहू प्रतीक्षित शबरी मला मंदिर की ओर,केरल प्रदेश कि ओर , और चल दिए केरला की राजधानी " तिरुवंतपुरम" की ओर !
      अपने गृह स्थान मथुरा से लगातार 50 घंटों से भी अधिक रेल यात्रा कर रेल तिरुअनंतपुरम से थोड़ा पहले अर्नाकुलम नामक स्टेशन पहुंची तो रेलवे स्टेशन का नजारा देख चौंक पड़ा।जिधर भी दृष्टि जाती थी हर तरफ एक जैसे ही वस्त्र धारी लोगों के समूह  दृष्टि गोचर हो रहे थे, अर्थात काली लुंगी पहने ,उसके ऊपर गले तक कोई वस्त्र नहीं ,सर के ऊपर काले रंग का ही पगड़ी नुमा वस्त्र जिसके अंदर कोई पोटली सी दबी थी, एवं गले में तुलसी की माला समेत रंग बिरंगी मालाए पहने हुए लोगों के समूह ।ये दृश्य देख मुझ से जब रहा नहीं गया और निकट बैठे सह यात्री से मैने जब इस अजीब से वस्त्र पहने लोगों के बारे में पूछा तो पता चला कि ये सारे के सारे शबरी मला मंदिर के दर्शनों हेतु जा रहे है।उसी सहयात्री ने टूटी फूटी हिंदी एवं अंग्रेजी में जब यह भी बताया कि इस मंदिर के लिए इसी अर्नाकुलम स्टेशन से सीधी रेल भी सीधी चेंग नूर स्टेशन के लिए जाती है तो हम तुरंत ही इसी अर्नाकुलम स्टेशन पर उतर गए ।टिकट खिड़की पर मंदिर जाने के लिए और जानकारी लेनी चाही तो उसने रूखे से  उंगली उठा कर सूचना केंद्र की ओर जाने को इशारा कर दिया।सूचना केंद्र पर कोई था ही नहीं,ट्रेन का समय हो रहा था इस लिए भाग्य भरोसे उन अनगिनत काले वस्त्र धारण किए यात्रियों के साथ ही चेग नूर स्टेशन की ओर जाने वाली रेल में सवार हो गया।
            रेल के डिब्बे में मेरे अतिरिक्त शायद अन्य कोई यात्री हिंदी भाषी नहीं था ,इस लिए जिस से भी शबरी मला मंदिर एवम् उस तक पहुंचने के लिए जानकारी लेने की कोशिश की " हिंदी नई" अथवा " नो नॉलेज " कह कर निराश ही किया।खेर कोई अन्य चारा ना होने के कारण धीरज धर लिया कि चलो 2 घंटे पश्चात् " चेंगनुर" स्टेशन उतर कर ही जानकारी लेंगे ।इस पूरी 2 घंटों की यात्रा के दौरान बाहर रेल की खिड़की से केरल प्रदेश की हरियाली एवम् सुंदरता ने मंत्रमुग्ध कर लिया और केरल की सुंदरता को निहारते पता ही नहीं चला कि 2  घंटे की यात्रा कब समाप्त हो गई ।स्टेशन आने पर जब ये सारे काले वस्त्र वाले समूह उतरे तो संतोष हुआ कि हम सही मार्ग पर हैं,हम भी चेंग्नुर उतर गए।
          शाम के 5 बजे ,चेंग नूर स्टेशन भी काले वस्त्र पहने यात्रियों से पूरी तरह भरा हुआ था।इन्हीं के मध्य मार्ग बनाते  स्टेशन से बाहर आने पर ,मंदिर की तरफ से लगे सहायता बूथ को देख कर कुछ संतोष हुआ, और सीधे जा पहुंचे उस ओर।
          बूथ पर जा कर पहले तो अंग्रेजी में मंदिर के बारे में जानकारी लेने लगा ,तो अचानक ही एक व्यक्ति मुझे हिन्दू भाषाई जान कर जब हिंदी में बोला तो बड़ी हैरानी हुई लेकिन संतोष भी हुआ। पहली बारअब दिल खोल कर मंदिर के बारे में जान कारी ली ,तो…. सच कहता हूं ,एक बार तो होश ही उड़ गए।इतनी कठिन यात्रा ,पहले ही मै लग भग 50 घंटों की यात्रा कर के आया था , और अब जो यात्रा होनी थी ,वो तो अद्भुत ही होगी,ऐसा अब ज्ञात हुआ।अब आप भी सुनिए,इस रेलवे स्टेशन से पहले बस द्वारा पूरे 3  घंटों की बस यात्रा जो कि पूरी 100 किलोमीटर की है,करनी होगी, उसके पश्चात लगभग 5 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद ही मंदिर पहुंच सकते हैं।अब आप पूछेंगे कि इस में अद्भुत बात क्या होगी ,तो चलिए मेरे साथ और इस अद्भुत ही नहीं ,अत्यंत ही कठिन,दुर्गम ,यहां तक कि आपकी शारीरिक क्षमताओं को परखने वाली यात्रा का अनुभव करने को !!
        सहायता बूथ के सामने ही खड़ी एक बस में जाकर सीट घेर ली,घेर ली का मतलब भयंकर दर्शनार्थियों की भीड़ में सीट का मिलना भी किस्मत की ही बात थी ! बस चलने में थोड़ा समय शेष था ,अत: पास बैठे सहयात्रियों से और जानकारी लेनी चाही तो वहीं भाषा की समस्या ,कुछ देर  बाद एक सहयात्री ने हमें दुविधा में पड़े देख मेरी, टूटी फूटी अंग्रेजी,हिंदी एवं अपनी भाषा में मेरा ज्ञान वर्धन किया।उसके अनुसार शबरी मला मंदिर का रामायण में वर्णित भील महिला शबरी से कोई संबंध नहीं है।इस मंदिर में मुख्य पूजा "भगवान अयप्पा" जो की भगवान विष्णु एवं शंकर के सम्मिलित अंश हैं, की, की जाती है।कथा के अनुसार "शबरी मला मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर मंदिर के ऊपर आकाश में मध्य रात्रि को एक दिव्य ज्योति दिखाई देती है ,जिसे देखने के लिए लाखों दर्शनार्थी उस विशेष अवसर पर यहां एकत्रित होते है।इस यात्रा के लिए जो कि दक्षिण भारतीयों के लिए : मक्का मदीना " की तरह ही पवित्र है और इस यात्रा के लिए उन्हें  2 माह तक मांस मदिरा छोड़ना होता है ,जमीन पर शयन करना होता है एवम् काले रंग के वस्त्र पहन कर संयमी जीवन व्यतीत करना होता है साथ ही गले में तुलसी माला धारण करना भी आवश्यक होता है।मान्यता है कि इन नियमों का पालन करने पर ही भक्त को मकर ज्योति के पवित्र दर्श होते है ,जिस से उनकी मनोकामना पूरी होती है।इस मंदिर के दर्शनों हेतु जो भी यात्री आते हैं वे सबसे पहले केरल की सबसे बड़ी नदी पंबा या चंद्रभागा नदी में स्नान करते है ,उसके बाद ही यात्रा आरंभ करते हैं ,यात्रा समाप्त होने पर पुनः इसी नदी में स्नान करते है एवम् अपने काले वस्त्रों का यहीं पर त्याग करते है।जब ये यात्रा आरंभ होती है तो लगभग पूरे दक्षिण भारत से यात्रियों के समूह के समूह यहां दर्शन करने को आते है।इन यात्रियों के सम्मान एवम् सुविधा के लिए पूरे दक्षिण भारत में विशेष प्रबंध, कुंभ जैसे महा मेले जैसे ही किए जाते है।यह मंदिर " पेरियार राष्ट्रीय " पार्क के मध्य घने जंगलों में स्थित है, और यह राष्ट्रीय पार्क अपने भालू,शेर,हाथी आदि अनेकों जंगली प्राणियों का आवास है।इसी पार्क के किनारे दक्षिण भारत की एक सबसे बड़ी झील " वेंबनायर" है जो कि केरल का एक अत्यंत प्रसिद्ध टूरिस्ट स्थान है।
           ठीक 6 बजे शाम हमारी बस पेरियार राष्ट्रीय पार्क के मध्य स्थित शबरी मला मंदिर के लिए चल दी ।थोड़ी ही देर में तरफ गहन अंधकार और गहन जंगल में होने का आभास भी जैसे रोमांचित करने लगा।ऊंची,नीची पहाड़ी मार्ग पर बस धीरे धीरे बलखाती चल रही थी और साथ ही चल रहे थे इन पहाड़ियों ,जंगलों में स्थित विशाल,विशाल वृक्ष जिनसे इस अंधियारी रात का अंधेरा और बढ़ गया था।मार्ग के दोनों ओर पेरियार राष्ट्रीय पार्क के बोर्ड लगे हुए थे जिनमें अन्य बातों के अलावा इस जंगल में रहने वाले जीवों के बारे में लिखा था।इसी तरह 3 घंटे की यात्रा  समाप्त होने को आई तो एक अनोखा दृश्य दिखाई दिया। तेज रोशनियों और तेज आवाज में बजते दक्षिण भारतीय संगीत ने जैसे एक नई दुनिया मे ही आने का आभास करा दिया। 
               बस से उतरने पर जैसे मै किसी विशाल मेला स्थल पर आ पहुंचा था।यात्रियों के समूह के समूह ,बसों एवम् अन्य वाहनों से उतर कर एक निश्चत दिशा की ओर बढ़ते दिखाई दिए। मै भी उसी ओर चल दिया ।कुछ देर चलते ही रोशनी और तीव्र संगीत ने ध्यान आकर्षित कर दिया ।एक मध्य गति में बहती नदी ,उसमे स्नान करते हजारों लोग,चारों ओर बड़े बड़े पंडाल एक अलग ही दुनिया में आने का अहसास कराने लगा।सम्पूर्ण दृश्य,नजारे ऐसा अनुभव करा रहे थे जैसे मै सुदूर दक्षिण भारत में नहीं अपितु  उत्तर भारत में लगने वाले किसी कुंभ मेले में घूम रहा हूं। पंबा नदी पार करने के बाद मै भी मंदिर जाने वाले हजारों यात्रियों में शामिल हो गया।
         कुछ दूर चलते ही सामने सीढ़ियां आरंभ हो गई जो की लगभग सौ के करीब थी।प्रत्येक यात्री उन सीढ़ियों पर सर झुका कर चढ़ रहा था । सीढ़ी समाप्त होते ही अचानक लगा जैसे मै किसी प्रदर्शनी स्थल पर आ पहुंचा हूं ।एक विशाल आहाता,जिसके ठीक मध्य में एक माध्यम आकर का शिव मंदिर जो कि चांदी से मंढा हुआ था ,जो भी यात्री सीढ़ी चढ़ कर आता ,सर्व प्रथम इस मंदिर के आगे शीश झुकाते हुए आगे बढ़ जाता।इस मंदिर के एक किनारे पर एक विशाल पंडाल ,जो इस रात्रि के समय थके हुए यात्रियों से भरा हुआ था ।पता नहीं ,ये सब यात्रा आरंभ करने वाले थे अथवा यात्रा समाप्ति के पश्चात आराम कर रहे थे ।मैदान के दूसरे किनारे पर पुलिस की टीम मुस्तैदी से आने जाने वाले यात्रियों पर नजर रखे हुए थी।इसी एक किनारे पर कुछ कम्प्यूटर रखे थे ,जिन पर कुछ पुलिस वाले बैठ कर लिखा पढ़ी कर रहे थे,ओर उनके सामने भी छोटी छोटी यात्रियों की लाइन लगी थी। इन पुलिस कर्मचारियों के पीछे एक बड़ा सा फ्लेक्सी बोर्ड लगा था जिस पर मलयालम भाषा में बड़े बड़े शब्दों में जाने क्या लिखा था साथ ही, शायद मंदिर संबंथी साधुओं,आदि के चित्र बने हुए थे,जो मेरी भाषा की अनभिज्ञ होने के कारण मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर था।मैने देखा कि अधिकांश यात्री पुलिस काउंटर पर ना रुक कर सीधे ही आगे बढ़े जा रहे थे,तो मै भी उनका अनुसरण करते हुए आगे बढ़ गया,हांलांकि यात्रा के अंत में मुझे काफी परेशानी इसी के कारण झेलनी पड़ी,जिसका वर्णन मै यात्रा के अगले पड़ाव में करूंगा।
         इस आहाते के समाप्त होते ही यात्रा मार्ग फिर छोटा हो गया जिस कारण यात्रियों का दवाब काफी अधिक हो गया।अभी यात्रा मार्ग एक दम समतल ही था ।इस मार्ग के आरंभ में जब मेरी दृष्टि अपनी बाईं ओर गई तो मै हैरान रह गया ।इस कें किनारे पर सैकडों पालकियां रखी हुई थी , और कुछ किनारे की दीवार पर टनगी हुई थी।इसके पास ही एक बोर्ड लगा था जिस पर अपरिचित भाषा में पालकी के रेट लिखे हुए थे,जिसे देखकर मेरे तो जैसे होश ही उड़ गए ,"20000  रुपए", मै इतना तो जान ही गया था कि आने और जाने के रेट होंगे।लेकिन इतने अधिक रेट का ओचित्य मुझे जब समझ आया जब मेरी यात्रा कुछ देर बाद वास्तविक रूप में आरंभ हुई ! थोड़ा आगे चलने पर एक बड़ा सा द्वार दिखाई दिया जिसके नीचे से यात्री निकाल रहे थे और ऊपर लिखा था " पेरियार राष्ट्रीय उद्यान में आपका स्वागत है "।
        इस बड़े से द्वार को पर करते ही जो सामने देखा तो एक बार तो कलेजा मुंह को आ गया ।एक दम सीधी,लगभग पचास डिग्री की चढ़ाई।सामने एक ओर बड़ा सा बोर्ड लगा था जिस पर स्थानीय ओर अंग्रेजी भाषा में लिखा था कि मंदिर कि दूरी 6 किलो मीटर है,अरे बस इतनी सी दूरी,इस से अधिक दूरी की पैदल यात्रा तो में वेश्नो देवी की यात्रा एवम् मथुरा में गोवर्धन पर्वत की यात्रा जो की लगभग 15 से 25 किलो मीटर की थी,कर चुका था। अरे इसे तो मै थोड़ी ही देर में पूरी कर लूंगा।बस फिर क्या था।भगवान " अय्यप्पा " के जय घोष के साथ मै उत्साह से भरपूर यात्रा के पहले कदम की ओर बढ़ चला।
         100 मीटर,जी हां 100 मीटर ही चला था,नहीं ,नहीं चला नहीं था ,बल्कि यात्रा मार्ग पर ,पवित्र शबरी मला मंदिर के प्रसिद्ध भगवान " अय्यप्पा " के दर्शनों हेतु चढ़ा ही था कि यात्रा का सारा जोश और उत्साह एक दम ऐसे ठंडा पड़ गया ,जैसे उफनते हुए दूध पर पानी के छीटें मरते ही उफान एक दम बैठ जाता है।जी हां ,मेरा विश्वास कीजिए ,इतनी तीव्र चढ़ाई कि मेरा विश्वास हिल गया।सच, आप जरा सोचिए,एक दम सीधी चढ़ाई,नवंबर का दक्षिण भारत का उमस और तेज गर्मी का मौसम, रात के लगभग दस बजे का समय ,अनजान भाषा का प्रदेश,कोई परिचित साथ नहीं तो क्या हाल मेरा हुआ होगा। मार्ग तो काफी चोड़ा था,मार्ग के ठीक मध्य में लोहे की रेलिंग लगी हुई थी ,जिसके दोनों तरफ यात्री आ जा रहे थे ।मैने गौर किया कि अधिकांश यात्री ,चाहे वे दर्शन हेतु जा रहे थे अथवा दर्शन करके वापस लौट रहे थे ,उस लोहे की गोल पाईप की रेलिंग को पकड़ पकड़ कर ही चढ़,उतर रहे थे। और गौर कीजिएगा कि जब यात्रा मार्ग की चढ़ाई और तीव्र हो जाती थी तब उस चढ़ाई को कम करने के लिए 10 या. 12 सीढ़ी भी बना दी गई थी।चलते चलते मेरी स्पीड अगर नापी जाती तो शायद यह एक घंटे में 100 मीटर ,जी हां ,किलोमीटर नहीं,100 मीटर ही कह रहा हूं ,नापी जाती।अधिकांश यात्री तो दस कदम चलते ,फिर सुस्ताते ,फिर पाईप पकड़ कर चढ़ने लगते।अब चूंकि मेरा इस यात्रा का कार्यक्रम निश्चित था,आने जाने का प्रोग्राम रेल रिजर्वेशन के सहित तय था,जिसके अनुसार मुझे कल सुबह तक यात्रा समाप्ति करके ,वापस चेंग नूर आ कर आगे बढ़ना था ,इस लिए मै भगवान " अय्यप्पा " की शरण में जाकर , किसी भी तरह उनके दर्शनों हेतु ऊपर मंदिर पहुंच कर ,सुबह तक वापस आने हेतु अपनी कमर ,कमर ही नहीं अपने दिल ,धड़कन को मजबूत करके ,धोंकनी की तरह चलती सांसों को थाम थाम कर ,अपनी पूरी ऊर्जा,पूरी ताकत लगा कर ऊपर चढ़ने लगा। मेरे साथ के सहयात्री ,जिन्हें शायद मेरी तरह वापसी कि कोई जल्दी नहीं थी, और जो थोड़ी थोड़ी दूर पर विश्राम करते हुए बैठते जा रहे थे ,को पीछे छोड़ते हुए ,पूरी ताकत लगा कर ऊपर चढ़ते जा रहा था।मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि शायद इस 6 किलोमीटर की यात्रा में ,मैने 16 बार सोचा होगा , कि ये यात्रा मेरे बस की नहीं।वो तो मेरा दृढ़ निश्चय,तेज लगन और भगवान " अय्यप्पा " की कृपा के कारण ही ये चढ़ाई करने में, मै सफल हो पाया।अब जरा इस यात्रा के मार्ग का वर्णन और करूं ,जिस से आपको इस यात्रा की दुरूहता का शायद थोड़ा सा अनुमान हो सके।इस 6 किलोमीटर की यात्रा में यात्रा मार्ग के दोनों ओर 3 के करीब कार्डियक सेंटर ,साथ ही दोनों ओर 6  की संख्या में प्राथमिक चिकित्सा संस्थान बने हुए थे।थोड़ी थोड़ी दूरी पर बोर्ड लगे हुए थे जिनमें दोनों भाषाओं में लिखा था कि अगर आपको यात्रा करते समय ,सांस लेने में परेशानी हो रही हो ,या छाती में दर्द होने लगे तो तुरंत नजदीक के चिकित्सा संस्थान में अपने को दिखाने में कोई लापरवाही ना करें,ये हार्ट अटैक का कारण भी बन सकता है।मार्ग के दोनों ओर मंदिर संस्थान की ओर से यात्रियों की ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के लिए मुफ्त में एनर्जी ड्रिंक्स दिए जा रहे थे।मुझे विश्वास है कि मेरे इस वर्णन से आप इस यात्रा की दुरुहता समझ पाएं,साथ ही मुझे अब समझ भी आ रहा था कि क्यों आम यात्री इस यात्रा में ना के बराबर की संख्या में थे।जो भी यात्री थे वे अपनी मान्यता और दर्शनों के दृढ़ निश्चय के कारण ही यात्रा कर पा रहे थे।इस संबंध में आप ये भी स्मरण रखें कि मेरे जैसे गिने चुने यात्री को छोड़ कर ,प्रत्येक यात्री अपने सर पर एक पोटली भी बांधे चढ़ रहा था।वास्तव में वे धन्य थे!
          इसी तरह अपनी पूरी शक्ति लगा कर  लगभग दो घंटे लगातार चलने एवम् चढ़ाई के पश्चात आखिर कार मै अंतिम एक किलोमीटर दूरी शेष रहने के निशान पर जब पहुंचा तो ,मेरी सारी शक्ति जैसे समाप्त हो चुकी थी।पैरों में लगातार चलने के कारण तीव्र दर्द की लहर उठने,पसीने से पूरी तरह तरबतर होने के कारण आखिर कार
 मैने निर्णय किया कि मुझे अब कुछ देर अपनी यात्रा को विश्राम देना ही चाहिए। 
           मैने जिस यात्रा के जिस पड़ाव पर रुकने का निर्णय किया ,वहीं सामने पुलिस का बेरीकेट लगा हुआ था।मैने देखा कि उस बेरीकेट से दो रास्ते जा रहे हैं।मैने विश्राम करते करते एक  पुलिस वाले से जब इन दो रास्तों का कारण पूछा तो उसने " नो हिंदी" कहा कर मना कर दिया ।फिर मेरी दृष्टि एक दरोगा पर पड़ी तो मैने उन्हे जोर से आवाज लगा कर अंग्रेजी भाषा में इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने पहले मेरा परिचय पूछा ,मुझे सुदूर उत्तर से आया जान कार उन्हे बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने बताया कि जिन यात्रियों ने पहले पड़ाव पर ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन कराया है वे इस बांए वाले रास्ते से जाते हैं और बिना रजिस्ट्रेशन वाले दांए हाथ से जा रहे हैं और उन्हें अधिक घूम कर एक किलोमीटर ज्यादा चढ़ाई करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश करना होता है।अत्यधिक थकान होने के कारण मै एक एक मीटर बड़ी ही कठिनाई से चल रहा था और उनके अनुसार अभी दो किलोमीटर और चलना होगा तो मेरी तो जैसे सांस ही रुकने लगी।मैने जब उन्हें कहा कि मुझे तो पहले पड़ाव पर कोई ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का स्थान ही नहीं दिखा तो उन्होंने बताया कि पहले पड़ाव पर जो कुछ पुलिस कर्मी कम्प्यूटर के समक्ष बैठे थे वे ही ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर रहे थे ,एवम् इस संबंध में बड़े बड़े बोर्ड पर लिखा भी था।मैने निराशा में जैसे अपना सर ही पीट लिया।पहली बार भाषा से अनभिज्ञ होने से बहुत कष्ट एवम् अफसोस हो रहा था।मैने उनसे जब अपनी स्थिति से अवगत कराकर उनसे बांए हाथ वाले अपेक्षाकृत छोटे मार्ग पर जाने का अनुरोध किया तो उन्होंने अपनी विवशता बता कर स्पष्ट इनकार कर दिया।साथ ही उन्होंने एक जानकारी और दी कि " अय्यप्पा स्वामी " का मुख्य मंदिर रात्रि की अंतिम आरती के पश्चात ठीक 11बज कर 30 पर बंद हो जाएंगे और फिर सुबह ठीक  5 बजे खुलेंगे।साथ ही मेरा ज्ञान वर्धन और किया कि सुबह के लिए यात्रियों की लंबी लंबी पंक्ति रात की आरती के पश्चात ही लगना आरंभ हो जाएगी,जिसमें कम से कम आपका दर्शन का नंबर 6 से7 घंटे बाद ही आ पाएगा क्योंकि अधिकांश दर्शनार्थी सुबह की आरती के पश्चात दर्शन करने को सही मानते हैं। मै अवाक था।घड़ी पर नजर डाली तो ठीक 11 बजे थे।मेरे पांव ही नहीं पूरा शरीर दर्द ऑर थकान से ,एक कदम भी आगे चलने को तैयार नहीं था।इस का कारण यह भी था कि जिस यात्रा में आम दर्शनार्थी 6 घंटे से अधिक समय लगाता है उसे मैने कम समय होने के कारण 2 घंटे में ही पूरा किया है , जिसके परिणाम मेरे शरीर की ये हालत हो गई थी कि अब एक कदम भी चलना मुश्किल दिख रहा था।मेरी मुख मुद्रा देख कर उन दरोगा जी ने मुझे थोड़ी दिलासा देने की कोशिश करते हुए ये भी बताया कि इस दूसरे मार्ग वाली यात्रा हालांकि एक किलोमीटर अधिक है परन्तु चढ़ाई तो केवल एक किलोमीटर की है ,उसके पश्चात ढलान वाला मार्ग है।इस सारे वार्तालाप और विश्राम में 10 मिनट और बीत चुके थे ।स्पष्ट था कि मुझे जो भी निर्णय लेना था तुरंत लेना था , और मैने ले लिया।अपनी शेष बची खुची ताकत बटोर कर ,दृढ़ निश्चय करके ,तुरंत चलने का फैसला किया।मैने भगवान " अय्यप्पा स्वामी " से मन ही मन मुझे इस अंतिम दो किलोमीटर की यात्रा इन बीस मिनट में करने के लिए शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की , और में सब कुछ भूलकर आगे चल दिया।
       मै दर्शनों के लिए इतना लालायित था कि उस शेष दो किलोमीटर में , मै शायद जितना अधिक तेज चला था ,आज सोचता हूं कि अगर उस समय कोई मैराथन रेस होती तो मै बड़ा से बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम कर लेता।
        कहते हैं ना कि इच्छा शक्ति से भगवान भी मदद करते हैं , मै मंदिर बंद होने से ठीक 5 मिनट पहले मंदिर परिसर के विशाल दरवाजे तक आ पहुंचा था।नीचे जहां तक मेरी दृष्टि जाती थी हर तरफ जगमगाते प्रकाश की चकाचौंध के बीच लाखों ,लाखों दर्शनार्थियों की भीड़ मौजूद थी।दरवाजे के बाद दूर दूर तक स्टील की रेलिंग का जाल बिछा था ।इस रेलिंग के अंदर यात्री को शायद एक किलोमीटर की और यात्रा जितना चलना पड़ता होगा ,परन्तु इस दर्शन के आज के अंतिम अवसर पर शायद उपस्थित अधिकांश यात्री दर्शन कर चुके थे और वे सब के सब जिधर तक नजर जाती थी , आड़े ,तिरछे ,इधर उधर ,जिसको जहां भी जगह मिल गई थी वहीं थकान के कारण गहरी निद्रा में डूबे हुए थे।अब मै जान चुका था कि वे क्यों बेहोशी सी अवस्था में बेतरतीब पड़े हुए थे।
      इस अंतिम 5 मिनट की शेष अवधि में मेरे अतिरिक्त कोई और यात्री अब मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर नहीं जा रहा था।यात्रा के आरंभ में जो यात्रियों के समूह मेरे साथ चले थे या जो यात्रा के मध्य मुझे मिले थे ,उन्हे मै कब का बहुत पीछे छोड़ चुका था और जो अब भी थोड़े से यात्री मेरे साथ यहां तक आ पहुंचे थे ,उन्हे मेरी जितनी दर्शनों की जल्दी नहीं थी।वे तो शायद सुबह ,सुबह उठकर ही दर्श करने वाले थे।
         अतः जब मै मंदिर, जो कि अब मेरे सामने ही था ,उस तक जाने वाले मार्ग के गेट को एक पुलिस वाला बंद कर रहा था।जैसे ही उसने गेट बंद किया कि मेरे साथ ही एक अन्य दर्शनार्थी भी उस गेट के सामने जा पहुंचा।पुलिस वाले ने इनकार में सर हिला दिया कि अब गेट नहीं खुलेगा।अभी मै कुछ सोचूं कि तभी मेरे साथ के यात्री ने अपनी भाषा में उस पुलिस वाले से कुछ कहा और साथ ही अपने हाथ में थामे ,लोकल भाषा में टाइप किया एक पत्र जिसके आरंभ मै सरकारी " अशोक " का चिन्ह छपा था उसे दिखाया,साथ ही अपनी भाषा में उस से जोरदार आवाज में बहस की,जिसके परिणाम स्वरूप उसने उसके लिए गेट खोल दिया।अब क्या था मेरे समक्ष, अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति थी।मैने भी तुरंत निर्णय लेते हुए अपनी जेब में रखे स्टेट बैंक के आई कार्ड ,जिस पर बड़ा सा स्टेट बैंक का नीला, गोल चिन्ह अंकित था उसे दिखा दिया,साथ ही उससे हिंदी,अंग्रेजी भाषा में दर्शन के लिए मुझे भी प्रवेश करने का अनुरोध किया।साथ ही मैने जोरदार शब्दों में कहा कि भाई , मै भी एक सरकारी अधिकारी हूं,अकेला हूं ,बड़ी दूर दिल्ली से आया हूं,कृपया कैसे भी मुझे अंदर जाने दो। मै अच्छी तरह जानता हूं कि एक साधारण पुलिस कर्मी होने के कारण ना तो उसे अंग्रेजी आती होगी और ना ही हिंदी ,पर अचानक उसने मुझ से एक ही शब्द बोला " दिल्ली " और आगे की भाषा मेरे समझ के बाहर थी,उसने मुझे अंदर आने का संकेत कर दिया ।मेरे पास अब कुछ ही मिनट बचे थे दर्शन के लिए इस लिए बिना उसे धन्यवाद देते मै तुरंत मंदिर की ओर दौड़ पड़ा।
          " भगवान अय्यप्पा स्वामी " का मंदिर ,जिसके समक्ष मै पूर्ण श्रद्धा,समर्पण से ,हाथ एवम् आंख बंद किए खड़ा था ,जिसके बारे में,मैने वर्षों पहले अचानक ही टी वी पर सुना था ,जो शायद मेरे मूल स्थान से हजारों किलोमीटर दूर था ,जिसके बारे में अधिकांश उत्तर ,मध्य भारत के लोगों की जानकारी ना के समान थी, मार्ग के समस्त कष्ट को पूरी तरह विस्मृत करके ,उस पवित्रतम मंदिर के समक्ष खड़ा था।सत्य कहता हूं ,उस वक्त मै मंदिर के समक्ष नहीं अपितु एक अलौकिक दुनिया में खड़ा था।तभी परिसर में लगे बड़े स्पीकरों से गूंजती आरती ने जैसे मुझे वर्तमान दुनिया में ला खड़ा किया।आरती शुरू हो चुकी थी।मंदिर के चारों ओर खड़े दर्शनार्थियों के विशाल समूह उस आवाज के साथ ,अपनी आवाज में अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहे थे।अनजानी भाषा होने के कारण ,मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,परन्तु उस समय मैने हृदय से पहली बार अनुभव किया कि प्रार्थना की एक ही भाषा होती है और वो होती है केवल और केवल श्रद्धा और श्रद्धा। मै भी उस समय भाषा ,स्थान को भूलकर आरती की प्रत्येक अंतिम पंक्ति  का अंतिम शब्द जो " अय्यप्पा स्वामी शरणम् " की होती थी ,पूरी शक्ति से बोलता था " अय्यप्पा स्वामी शरणम् " ।
       आरती समाप्त हुई ,पवित्र दर्शन हुए ,अपने भाग्य को सराहते ,जैसे ही में आगे बढ़ा तभी जाने किधर से गेट बंद करने वाला सिपाही मेरे सामने आ खड़ा हुआ " प्रसाद ,प्रसाद " ही मुझे समझ आया और समझ आया कि वो अनजानी भाषा में मुझे संबोधित करते हुए मंदिर के एक कोने में खड़ा होने के लिए संकेत कर रहा था।आरती के पश्चात ,मंदिर के कपाट बंद करके  एक पुजारी अपने हाथ से अल्प मात्रा में जहां चरणामृत जैसी लेकिन थोड़े काले रंग की ,तीव्र गंध वाला पेय दे रहा था ,वहीं दूसरा पुजारी प्रसाद जैसी कोई अनोखी परन्तु दिव्य स्वाद वाली वस्तु दे रहा था।हजारों की भीड़ ,उन के लिए जैसे चीख चीख कर ,एक दूसरे को धकियाते ,हाथ बढ़ा रहे थे वहीं उस पुलिस वाले की सहायता से उसने मुझे जिस स्थान पर खड़ा होने के लिए कहा था , और जो पुजारियों के एक दम समक्ष था ,आसानी से मुझे ,भगवान अय्यप्पा स्वामी की कृपा रूपी ,अमृत रूपी ,चरणामृत एवम् प्रसाद ,आसानी से मिल गए थे।मैने इसे साक्षात भगवान की कृपा मानते हुए उस पुलिस वाले को हृदय से धन्यवाद देते हुए अपनी आंखे फिर एक बार बंद कर ली।
            मनोवांछित इच्छा पूर्ण होते ही जैसे मुझ पर थकान हावी हो गई , मै एक कोने में जैसे पसर सा ही गया।कुछ देर के विश्राम के पश्चात पीड़ा से जूझते मैने अपने पैरों को कुछ आराम देने हेतु अपने हेंड बेग से पैरों पर लपेटने वाली " क्रेप बैंडेज निकली , दोनों पैरों पर बांध ली।  कुछ समय विश्राम के पश्चात् मुझे स्मरण हो आया कि मुझे अभी वापस भी जाना है , मै खड़ा हो गया।जैसे चमत्कार हो गया ,मैने महसूस किया कि कुछ देर पूर्व जहां मै एक कदम भी चलने की स्थिति में नहीं था ,वहीं मै अपने को लगभग पूर्ण स्वस्थ महसूस कर रहा था।इसका अनुभव मैने अपनी पूर्व कि कई यात्राओं में भी किया है ,जिसका में एक ही उत्तर समझता हूं कि उद्देश्य पूर्ण होने पर हम यात्रा से होने वाली सम्पूर्ण थकान और कष्ट भूल जाते हैं और एक नई ऊर्जा से भरपूर तरो ताजा  हो जाते हैं।
            अब इस ऊर्जा को मै व्यर्थ में नहीं गंवाना चाहता था ,इस लिए उठ खड़ा हुआ ।वापस जाने से पहले मै इस पवित्र " शबरी मला " मंदिर की पूर्ण भव्यता को अपनी स्मृति में हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित रखने के लिए ,उसके अवलोकन हेतु सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा।अब मैने जाना कि ये स्थान तो इतना विशाल है जिसकी कल्पना हम उत्तर भाषी शायद ही कर पाएं।अनगिनत भवन ,विशाल पक्के मैदान ,बड़े बड़े मंच ,जगह जगह अनेकों काउंटर विभिन्न कार्यों के लिए बने हुए थे।कोई भी स्थान ऐसा नहीं था जहां ये काले वाटर धारी यात्री ना समाए हो।यहां एक नहीं अपितु विभिन्न देवी देवताओं के सुंदरतम स्वर्ण जड़ित मंदिर बने हुए थे जी एक अलग ही दुनिया का अहसास करा रहे थे। अनेकों यात्री अपने स्वजनों के साथ पूजा पाठ में लगे हुए थे।इस मंदिर की एक और विशेषता से मेरा परिचय हुआ कि प्रत्येक यात्री कुछ ना कुछ दान अर्पित कर रहा था।अधिकांश यात्री इन दान की सामग्री को अपने सर पर ही रख कर ,मान्यता पूर्ण होने से ,आभार प्रकट करने के लिए ,काउंटरों पर जमा कर रहे थे। मै पुनः हैरान था कि मुझसे खाली हाथ नहीं चढ़ा का रहा था ,वहीं ये श्रद्धालु उसे अपने सर पर रख कर ही लाए थे।धन्य है उनकी श्रद्धा एवम् धन्य है ये भक्त और उनकी भक्ति। मै पुनः एक बार भगवान" अय्यप्पा स्वामी की जय " के उद्घोष के साथ वापसी की अपनी यात्रा  के लिए बढ़ गया!

यात्रा……...करतार पुर साहिब (पाकिस्तान)

यात्रा……...करतार पुर साहिब  (पाकिस्तान)

                                                           
             
   गुरु नानक देव जी का निर्वाण स्थल



A at l
         महान सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक जी के जीवन,उनकी धार्मिक यात्राएं एवम् उनके जीवन प्रवाह से तो शायद
ही कोई  अनजान हो ,परन्तु ये बात कुछ थोड़े लोग ही जानते हैं कि उनका जन्म स्थान "ननकाना साहिब और निर्वाण स्थल
करतार पुर साहिब" पाकिस्तान में स्थित है।सिख धर्म के अनुयाई के साथ साथ प्रत्येक भारतीय भी ऐसे महान धर्म गुरु के
उपरोक्त वर्णित स्थानों की यात्रा शायद जीवन में एक बार तो अवश्य करना चाहते हैं परन्तु आजादी के पश्चात् पाकिस्तान
के शत्रुता पूर्ण व्यवहार के कारण ये अत्यंत ही दुष्कर कार्य था।लेकिन भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी एवम् पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री श्री इमरान के कारण लाखों सिखों के साथ आम भारतीय की ये इच्छा इसी वर्ष  2019 अक्टूबर 25, को पूरी होने
में आ गई जब पाकिस्तान ने गुरु नानक देव जी के निर्वाण स्थल करतारपुर जो की भारत की सीमा से 5 किलोमीटर दूर
 पाकिस्तान के सोनवाल जिले में स्थित है तक पहुंचने के लिए एक विशेष मार्ग का निर्माण किया जिसे अब " करतार पुर
कोरिडोर" कहते है। मै जो बाल्यकाल से ही गुरुनानक जी के जीवन दर्शन से प्रभावित था इस सुअवसर को प्राप्त करने के
लिए ललक उठा।तमाम सारी आशंकों, चिंताओं ,एवम् लगभग सारे इष्ट मित्रो तथा परिवार के विरोध के बावजूद मैने दृढ़
निश्चय कर लिया कि मुझे गुरु नानक देव जी के निर्वाण स्थल " करतारपुर " जाना है तो जाना है । 25 अक्टूबर को जैसे ही
मीडिया से ज्ञात हुआ कि आज से करतारपुर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन आरम्भ होगा,मैने यात्रा की तैयारी हेतु कमर कसली,
फलस्वरूप 10 नवंबर को, जो की यात्रा का प्रथम दिवस था,के लिए ,आवेदन हेतु ओन लाइन की दुनिया में खो गया।
             अख़बारों में छपती खबरों के अनुसार मुझे ज्ञात हुआ कि करतार पुर जाने के लिए आपके पास ,पासपोर्ट,आधार
कार्डअवश्य होना चाहिए।करतारपुर जाने के लिए आपको 20 अमेरिकी डॉलर भी होने चाहिए जो की यात्रा के आरम्भ में
पाकिस्तान लेगा,इसके साथ ही यात्रा की तिथि से प्रातः सूर्य  से लेकर शाम सूर्य डूबने तक ही आप पाकिस्तान स्थित
करतारपुर में रह सकते हैं,उसके पश्चात आपको वापस भारत आना पड़ेगा।साथ ही एक विशेष बात और की आप
करतारपुर में केवल गुरुद्वारे में ही घूम सकते है इसके अतिरिक्त आप अन्य कंही नहीं जा सकते !
        संयोग से मै भारत पाकिस्तान के मध्य हुए करतारपुर कोरिडोर के समझौते के अनुसार पूरी योग्यता रखता था ,अर्थात,
मेरे पास जो भी प्रपत्र  इस यात्रा हेतु चाहिएं थे वे सब थे तो फिर देर किस बात की !मैने लैपटॉप खोला और करतारपुर
प्रकाश उत्सव 550 साईट को खोज कर आवेदन करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी ।सब से पहले यात्रा जो की 10 नवम्बर
को ही आरंभ होनी थी, देखा की 10  तारीख में यात्रा हेतु स्थान अभी खाली है,अर्थात दोनों देशों के समझौतों के अनुसार
एक दिन में केवल 5000 तक ही यात्री करतार पुर जा सकते हैं,इस लिए यही तारीख मैने निश्चित की।अब ये कहने की
बात नहीं है कि ऑनलाइन यात्रा के लिए फार्म भरने में ,एक एक लाइन भरने में मुझे पसीना आ गया।फोटो,पासपोर्ट की
फोटो,आधार कार्ड की फोटो,अपना सारा विवरण, पूरी जन्म कहानी भरी तब कहीं जा कार फार्म स्वीकृत हुआ।अभीचैन
की सांस ली ही थी कि हमारी श्रीमती जो कि इस यात्रा के लिए,काल्पनिक खतरों की संभावनाओं से हल्कान हुए जा रही थी,
और जब उन्होंने देखा कि मेरा यात्रा फार्म स्वीकार हो गया है तो उन्होंने भी ठान लिया कि वे भी करतार पुर मेरे साथ ही
जरूर जाएंगी ,अन्यथा मुझे भी नहीं जाने देंगी तो….अन्य कोई मार्ग ना देख कर उनका भी फार्म भर दिया।कहीं ना कहीं
मै समझ रहा था कि पाकिस्तान जैसे जोखिम वाले देश में वे मुझे अकेला नहीं जाने देना चाह रही थी।
       फार्म भरने के पश्चात् एक संदेश मेरी आई डी पर आया कि आप दोनों के फार्म यात्रा हेतु स्वीकृत हो गए है परन्तु यात्रा
पर जाने से पहले आपकी पूरी इंक्वायरी पुलिस विभाग एवम् गृह विभाग ,भारत सरकार द्वारा कि जाएगी,उसमे कोईआपत्ति
ना होने पर ही आप यात्रा कर सकेंगे।यहां हम दोनों निश्चिंत थे कि जीवन में ना तो हमने कोई कानून विरूद्ध कार्य किया है
और ना ही कोई चींटी तक मारी है,हम तो बस सीधी सादी बैंक की नौकरी पूरी करके रिटायरमेंट का संतोष पूर्वक जीवन
यापन कर रहे है अतः हम निश्चिंत थे कि जितनी चाहे इंक्वारी करें,सब ठीक ही रहेगा।अब ये अलग विषय है कि ढेर सारे
पुलिस के फोन,घर आकर उनके सवाल जवाब ,साथ ही ये दिखाओ,वो दिखाओ के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे
हम किसी अत्यंत ही जोखिम पूर्ण यात्रा पर जा रहे हैं,अब इस से और तो कुछ तो होना नहीं था परन्तु हम दोनों के साथ
साथ हमारे निकट के संबंधी एवम् पुत्र गनो का विरोध मुखर हो चला था कि क्यों ऐसे जोखिम उठाने जा रहे हो,घूमने के
 लिए अमरीका,लंदन,आदी सहित अनेक देशों में आराम से जा  सकते हो तो पाकिस्तान ही क्योंआपनेचुना।अब इन सबको
केसे समझाऊं कि ये सब हम हमारे आदर्श श्री गुरुनानक को श्रृद्धांजलि देने का अवसर जो हमे मिल रहा है उसको हम
केसे त्याग दें।कुल मिला कर जब हमने जाने का निर्णय कर ही लिया तो किसी भी बात का विचार ना कर के हम इस यात्रा
हेतु अडिग रहे, और सौभाग्य से तमाम सारी इंकुवायरी के पश्चात् हमें 10 नवंबर को करतारपुर जाने की स्वीकृति प्राप्त हो
गई।
         यात्रा स्वीकृति के पश्चात् गौर किया कि भारत से करतार पुर कैसे जाना है।अध्ययन के पश्चात् ज्ञात हुआ कि करतारपुर
कोरिडोर भारत में डेरा बाबा नानक नामके सीमांत गांव से प्रारंभ हो कर उधर से 5 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान में
स्थित करतारपुर नामके स्थान तक निर्मित है।डेरा बाबा नानक को नक्शे में देखा तो उस के सब से समीप " बटाला " नामक
एक कस्बा है जो पंजाब प्रदेश में स्थित है,परन्तु बटाला तक कोई सुगम रेल मार्ग नहीं है,फिर ज्ञात हुआ कि पंजाब के
अमृतसर शहर जो कि पहले ही से सिखों का महत्वपूर्ण शहर है ,से डेरा बाबा गांव तक रेल मार्ग है जो कि 50 किलोमीटर
दूर है।बस फिर क्या था तुरंत ही निज निवास मथुरा शहर से मुंबई - अमृतसर गोल्डन टेंपल ट्रेन में 9 तारीख का रिजर्वेशन
करा लिया,जिस से 10 की प्रातः अमृतसर स्टेशन उतर कर वहीं से डेरा बाबा नानक के लिए दूसरी ट्रेन पकड़ कर आराम से
कोरिडोर पहुंच जावेंगे! अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे 10 तारीख से एक दिन पहले ही अमृतसर पहुंच जाना चाहिए था
,जिस से यात्रा की भाग दौड़ कम हो सकती ,परन्तु यहां में पुनः स्पष्ट कर दूं कि जैसे मैने पहले लिखा था जब तक पुलिस की
इंकुवायारी पूरी नहीं जाती,उनसे प्रमाण पत्र नहीं प्राप्त हो जाता हम यात्रा आरंभ कर ही नहीं सकते थेऔर विश्वास कीजिए
हमें पुलिस द्वारा 8  नवंबर की रात को ही जाने की मंजूरी दी गई थी।
          खैर,तमाम आशंकाओं,चिंताओं एवम् निकट संबंधियों, रिश्तेदारों की शुभ कामनाओं के साथ हम 10 नवंबर की
सुबह 6 बजे जब अमृतसर स्टेशन उतरे तो एक अलग सा ही रोमांच का अनुभव हो रहा था।पहाड़ों के निकटहोने के कारण
अमृतसर शहर में ठंड काफी थी।स्टेशन पर जब डेरा बाबा नानक जाने के लिए ट्रेन के बारे में जानकारी ली तो पता चला
कि प्रातः 9 बजे एक विशेष ट्रेन डेरा बाबा नानक जाएगी जो कि 2 घंटों की यात्रा के पश्चात् लगभग  11बजे डेरा बाबा नानक
स्टेशन पहुंचेगी।अर्थात अभी हमारे पास 3 घंटों का समय था ,नहा धो कर अगली यात्रा के लिए।थोड़ी जानकारी ले कर हम
नजदीक ही ठीक ठाक से होटल में कमरा ले कर देनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर ठीक समय पर अमृतसर स्टेशन आ
पहुंचे।


        काउंटर से जानकारी प्राप्त करने के पश्चात कि डेरा बाबा नानक के लिए ट्रेन किस प्लेटफॉर्म से  जाएगी,हम खाली
पड़े प्लेटफॉर्म पर बैठ गए।कुछ ही समय में 9 बज गए मगर प्लेटफॉर्म खाली का खाली ,धीरे धीरे 9.30 भी  बज गए मगर
ना तो कोई ट्रेन आई , और ना ही कोई उद घोषणा ! जब समय 10 का हुए तो बेचैनी होने लगी ,कहीं इस थोड़ी सी 50
किलोमीटर की ट्रेन की यात्रा के चक्कर में हमारी चिर प्रतीक्षित करतारपुर की यात्रा मध्य में ही ना रह जाए।काउंटर पर
एक ही जवाब ,स्पेशल ट्रेन ,बस आने ही वाली है,ओर आएगी जरूर।अब विकल्प के रूप में इधर उधर से डेरा बाबा जाने
के लिए बस एवम् टैक्सी के लिए जानकारी जुटाई तो ज्ञात हुआ कि सीधी बस तो कोई है ही नहीं, हां टैक्सी जा सकती है
और जब टैक्सी का किराया पूछा तो दिल बैठ सा गया " 3500" !कुल 50 किलोमीटर के !समय भी उतना ही लगेगा
जितना ट्रेन में लगता है। मन ही मन में गुना भाग लगाया, कि रेल अधिकारियों के अनुसार 11 बजे तक भी ट्रेन आ गई
तो 1 बजे तक डेरा बाबा नानक पहुंच जाएगी,फिर वहां से …. देखा जाएगा ।सुना था कि इंतजार का फल मीठा ही होता
है ,आखिर कार 11 बजे के बाद ट्रेन भी आ ही गई और फिर मंजिल कि ओर चल भी दी। कुछ समय बाद ही एहसास हो
गया कि इस 50 की यात्रा में 2  घंटों का समय क्यूं लगता है,पता नहीं ,रेल लाइन पुरानी थी,या ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण
किसी को भी मंजिल तक जाने की जल्दी नहीं थी, सिवाय हमारे ।अब थोड़ा इस ट्रेन की इस यात्रा का हाल भी सुन लीजिए,
ट्रेन की स्पीड 30 किलोमीटर से अधिक नहीं थी,पता नहीं क्यों ? हर 5 या 6 किलोमीटर के पश्चात् कोई छोटा सा स्टेशन
आ जाता ,ट्रेन रुकती तो अवश्य पर चलने में बहुत देर लगती , और जब चलती तो हिचकोले ऐसे लगते जैसे हम ट्रेन में ना
बैठ कर किसी ट्रैक्टर ट्राली में बैठे हैं ! कुछ दिन पूर्व में अपनी मित्र मंडली में जिक्र कर रहा था कि भारतीय रेल में यात्रियों
को दुनिया में सबसे अधिक सुविधा मिलती है ,ट्रेन की स्पीड 150 की. मीटर तक की हो गई है ,समय की पूरी पाबंदी होती
होती है ,मगर इस 50 की. मीटर की यात्रा ने मुझे जैसे कल्पना लोक से यथार्थ में ला पटका ! समय बिताने के लिए मैने
इधर उधर बैठे यात्रियों की ओर नजर घुमाई ,देखा कि जैसे सम्पूर्ण पंजाब का ग्रामीण परिवेश, इस यात्रा में भी अपना
प्रभाव प्रदर्शित कर रहा है।अधिकांश सिख यात्री,कुछ निहंग एवम् कुछ परिवार ।लेकिन मेरी नजरों ने भांप लिया की जिस
उत्सुक्तता से मै उन्हें देख रहा हूं वे भी मुझ जैसे ,शायद कभी कभार मिलने वाले यात्री जो भाषा एवम् वेशभूषा से एक दम
उनसे अलग है को देख कर हैरान थे।ये यात्रा ना तो कोई टूरिस्ट स्थान की थी और ना ही किसी अन्य प्रयोजन के लिए।ये
तो उनके ग्रामीण परिवेश में एक दम फिट बैठने वाली आम दिनों की तरह की ही थी,मगर हम दोनों के ,उन सब के मध्य
होने से वे हैरान थे,कोन है हम,किधर जा रहे है हम ? आखिर कर मेरे समीप बैठे एक बुजुर्ग से सरदार ने पूछ ही लिया 
कि आप इधर के तो लगते नहीं ,आप किस ग्राम में जा रहे है ? जब हमने बताया कि हम करतारपुर साहिब की उस
प्रथम दिवस की यात्रा के प्रथम यात्री है तो अचानक ही हम दोनों उन सब के आकर्षण का केंद्र हो गए ! सारा संकोच
त्याग कर वे हमारे ऊपर प्रश्नों कि बोछार करने लगे।में समझ गया कि करतारपुर उन सब के लिए कितना अधिक महत्व
रखता है।अधिकांश यात्री हमें धन्य भाग समझने लगे की हम गुरु जी के निर्वाण स्थल के दर्शनों के लिए का रहे हैं।फिर
हमें पता चला कि उनमें से अधिकांश करतारपुर जाने की तीव्र इच्छा रखते हैं, कुछ तो इस पहले दिन की यात्रा के लिए
पासपोर्ट लेकर भी हमारे साथ ही चल रहे थे कि वे भी करतारपुर जाने के लिए निकले हैं ! परन्तु मेरे द्वारा जब उन्हें पता
चला कि पासपोर्ट से काम नहीं चलेगा इस के लिए तमाम तरह के फॉर्मेलिटी करनी पड़ती हैं जो कि अत्यंत आवश्यक है
इस यात्रा के लिए क्यों कि इस के लिए विदेश यात्रा जैसे नियम बने हैं तो एक निराशा के भाव उन के मुख मंडल पर जैसे
दिखाई देने लगे।कुछ समय पश्चात वे शायद निराश हो कर पुनः मेरे को इस यात्रा के लिए चुने जाने पर धन्य भाग कहने
लगे ।



     
  आखिर कार इस 2 घंटों की हिचकोले वाली यात्रा का समापन डेरा बाबा नानक स्टेशन पर हो गया।छोटा सा एक कमरे
वाला स्टेशन,चारों तरफ खेत ही खेत ,परन्तु करतारपुर बार्डर कहीं नजर नहीं आ रहा था।स्टेशन से बहा आते ही कुछ
बसें खड़ी थी ,पता चला कि ये डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे की तरफ से ,दर्शनार्थियों को गुरुद्वारे तक ले जाने के लिए खड़ी
थी।हमने जब कहा की हम तो करतारपुर जाने के लिए आएं हैं तो सहर्ष ही सब हमें इधर से 10 की . मीटर दूर स्थित
करतारपुर बॉर्डर पर पहुंचाने के लिए तैयार हो गए।






हम हृदय से उन्हें धन्यवाद देते हुए बस में बैठ गए,वो इस लिए कि इन बसों के अलावा कोई अन्य साधन,किसी


भी प्रकार का यहां उपलब्ध नहीं था।30 मिनट की इस यात्रा  में हम छोटे से डेरा बाबा नानक गांव से होते हुए ,रास्ते में, गुरु नानक जी के 550वें जन्म उत्सव जिसे यहां सब प्रकाश उत्सव के नाम से संबोधन कर रहे थे ,सिख धर्म के अनुयाई,जत्थों ,जुलूसों के रूप में ,भजन गाते,हथियार लहराते,बेंड बाजों के साथ ,तरह तरह के करतब दिखाते निकलते दिखाई दिए ,जिस कारण हमें और थोड़ा समय बॉर्डर तक जाने में ओर लगा ।





      
   एक मुख्य सड़क के चौराहे पर पुलिस की टीम  ने सारे वाहनो को रुकवा दिया।अब लगभग 2 क़. मीटर और पैदल ही
चलना था,तब दूर दिखते बॉर्डर तक हम पहुंच पाते।चलते हुए देखा कि यहां तो झुंड के झुंड बॉर्डर की तरफ बढ़े चले जा
रहें हैं।क्या बात है ,क्या ये सभी करतारपुर बॉर्डर के लिए जा रहे हैं लगता है जैसे सर पंजाब ही यहां जमा हो गया है ।दूर
विशाल भारतीय तिरंगा शान से लहराता हुए दिखाई दे रहा था , और दिखाई दे रहा था उस से भी दूर  बॉर्डर के किनारे
बने विशाल ,बड़े बड़े गोल गोल गेट ,साथ ही विशाल , आधुनिक इमारतें ।समझ आ गया कि यही कोरिडोर में जाने का
मार्ग है। चलते चलते जब विशाल इमारतों के समीप पहुंचे तो देखा कि चारों और बी एस एफ के जवानों का घेरा ,पूरी
मुस्तैदी के साथ लाखों कि संख्या में उपस्थति भीड़ के नियंत्रण में लगा था।मार्ग ऐसा जैसा की नोएडा एकस प्रेस हाई वे !
मार्ग के अंत में विशाल बंद दरवाजे ओर उन के समीप खड़े सेना के जवान ,सारी भीड़ को मार्ग के एक किनारे की तरफ
जाने के लिए कह रहे थे ,हमें भी उन्होंने उसी तरफ जाने के लिए संकेत किया,परन्तु हमें समझ में आ रहा था कि बॉर्डर का
ऑफिस तो दूसरी ओर है,उस ओर वे किसी को भी नहीं जाने दे रहे थे।आखिर कार मैने एक जवान से कहा कि हमें तो
आज करतारपुर कोरिडोर होते हुए पाकिस्तान जाना है , और हमारे पास इस हेतु पत्र भी है तो वो चोंका और बोला ,दिखाओ
, तो हमने प्रपत्र यात्रा संबंधी दिखाए।तब उसने कहा कि ठीक है आप लोग इस तरफ जो बड़ी इमारत देख रहे हैं वो
इमिग्रेशन ऑफिस है आप इस तरफ जाइए।मैने हैरानी से पूछा कि ये शेष लाखों लोग दूसरी ओर किस लिए का रहें है तो
उसने कहा कि जिन लोगों के पास कोरिडोर जाने के लिए उचित प्रपत्र नहीं है वे सारे लोग सामने ,बॉर्डर के एक दम
किनारे पर लगी दूरबीन की तरफ जा रहे हैं , जहां से वे दूरबीन के द्वारा ,दूर ही से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन कर रहें है !
आप भाग्य शाली हैं कि आप पहले ही दिन साक्षात कोरिडोर से होते हुए करतारपुर गुरुद्वारे पहुंच कर गुरु नानक जी के
निर्वाण स्थल के दर्शन करने जा रहे हैं।



       हम अब विशालकाय,आधुनिक,अद्भुत इमिग्रेशन इमारत के आगे खड़े थे।इतनी सुन्दर इमारत थी कि हम कुछ क्षणों
के लिए वहीं रुक कर उसकी सुन्दरता का आनंद ले रहे थे।हमें खड़ा देख कर कुछ जवान हमारी ओर बढ़े ,हमने उन्हें यात्रा
के प्रपत्र दिखाए तो वे बड़े ही सम्मान के साथ अंदर के गए।अंदर की दुनिया और भी खूबसूरत थी।आधुनिक मशीन,चुस्त
कर्मचारी , इन सब का ध्यान हमारी ही ओर था, और क्यों ना हो ,इतने बड़े सेंटर में हम दो हीअकेले जो थे।,मिनटों में ही
कस्टम,चेकिंग ,निरीक्षण आदि की सम्पूर्ण कार्यवाही हो गई ,अब उन्होंने हमें सामने बाहर जाने के रास्ते पर जाने को कहा।
हम बाहर निकले तो पुनः सारे स्टाफ हमें छोड़ने आया, यात्रा हेतु शुभ कामनाएं दी, तभी एक स्मार्ट से अधिकारी ने पूछा
" आप सिख तो नहीं है ,फिर आप करतारपुर गुरुद्वारे क्यों जा रहे हैं,हमने उत्तर दिया ,हम यात्री हैं,घूमने के लिए ही जा
रहें हैं ,अरे घूमना ही था तो अमेरिका आदि अनेकों देशों में जा सकते थे, हां ,जा सकते थे, परन्तु पाकिस्तान जाने का जो
रोमांच है उसका जवाब नहीं,पाकिस्तान जाने का तो आज कल कोई सोच भी नहीं सकता ,इस लिए अवसर मिला तो चल
दिए"। उसे हैरान छोड़ कर हम पाकिस्तान के लिए आगे बढ़ गए।


       
   जहां ,भारतीय सीमा समाप्त होती थी वहां दोनों और जालीदार फेंसिंग से घिरा एक बड़ा सा गेट था जो बंद था,उसके
बाद एक 30 फुट चौड़ी सड़क थी उसके बाद फिर वही बड़ा सा गेट ,जो कि फेंसिंग से घिरा था।सैनिकों की तो दोनों तरफ
जैसे भरमार थी।अंतिम बार पुनः हमारे सारे प्रपत्र देख कर ,सैनिकों ने गेट खोल दिया और हमें पाकिस्तान की तरफ बढ़ने
का संकेत किया।आगे जाने से पहले मैने सामने खड़े जवान से कहा " सर ,सूरज अस्त होने तक अगर हम वापस भारत नहीं आ
पाए तो बुलवा लेना" वो मुस्कुराया ,कहा" निश्चिंत हो कर जाइए ,जब तक आप वापस नहीं आजाएंगे ,हम यहीं खड़े मिलेंगे,
इतना सारा इंतजाम आप के ही लिए है और ,जब हम पायलट "अभिनन्दन"--- को वापस ला सकते हैं तो आप भी निश्चिंत
रहिए"।उसने अंगूठा उठा कर हमें विदा किया। अब हम उस गेट के बाद उस खुली सड़क पर खड़े थे ,जिसे सैनिकों कि
भाषा में" नो मैन्स लेंड " कहते हैं ,अर्थात वो स्थान जिस पर किसी भी देश का अधिकार नहीं होता,उस समय हम दोनों की 
जो स्थिति थी , उसे हम शब्दों में नहीं बता सकते हैं।



       हमें आता देख कर पाकिस्तान के सैनिकों ने,जो हम पर दूर से नजारे गड़ाए खड़े थे,हमें आता देख अपनी ओर का गेट
खोल दिया।हम अब पाकिस्तान में थे!
           पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करते ही,सारे यात्रा संबंधी प्रपत्रों को चेक करने के पश्चात ,सैनिकों ने हमें ई रिक्शा में
बैठने का संकेत किया।खामोशी से हम बैठ गए , और चल दिए सामने दिखाई देते पाकिस्तानी इमिग्रेशन सेंटर की ओर!
हमारे उधर पहुंचते ही पाकिस्तान के सेंटर के  सारे कर्मचारी जैसे हमारे ही इंतजार में खड़े थे , लेकिन वास्तविकता यह थी
कि पहला दिन यात्रा आरंभ होने के कारण एवम् पाकिस्तान के बारे में अच्छे विचार ना होने के कारण ,गिने चुने यात्री ही ,
इस यात्रा के लिए आए थे और इस समय तो यात्री के नाम पर हम दो !
       हमें सबसे पहले एक बड़े से काउंटर की ओर चलने को कहा गया।वहां हमसे पासपोर्ट ओर 20 डालर देने को कहा।
हमने दिए तो उन्होंने रसीद दी ,पासपोर्ट वापस कर दिया।अब और आगे बढ़े तो वहीं भारत में प्रवेश के समय की गई सारी
प्रतिक्रियाएं दोहराई गई।लेकिन एक बात हमने जरूर नोट की कि हम पर गिध दृष्टि रखी जा रही थी।व्यवहार के नाम पर
कोई उत्साह नहीं था,हमसे कोई अलग बात नहीं की गई और फिर हमें इस मस्जिद नुमा इमारत से बाहर गेट की और जाने
को कहा गया।जहां तक पाकिस्तानी इमिग्रेशन सेंटर की बात तो कहां हमारे देश का विशाल,भव्य भवन और कहां ये
मस्जिद नुमाबौना सा सेंटर।आतिथ्य जैसा व्यवहार के बदले हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वे सरकारी आदेश का ही
पालन कर रहे हैं ।एक अलग तरह का नीरस सा व्यवहार।हमें क्या, हम तो आगे बढ़े और बस में बैठ गए।अब बस का
हाल! ये तो बड़ी ही आधुनिक,सारी सुविधाओं से लैस,बस के बाहर चारों और गुरुद्वारे की प्रतिकृति चित्रित।बस के बाहर
दोनों तरफ अंग्रेजी में लिखा था " वेल कम टू दरबार साहिब करतारपुर पाकिस्तान " बस देख कर हम प्रभावित हुए थे मगर
तभी हमारी नजर बस के एक कोने में लिखे कुछ संदेश पर गई " अरे ये तो चीनी भाषा में लिखा है " पर क्या लिखा है,ये
हमारी समझ से बाहर तो था मगर पाकिस्तान जैसे देश में इतनी भव्य बस क्यों है ,ये हमें जरूर समझ आ गया,अर्थात ये बसे चीन सरकार ने ही
पाकिस्तान को चीन ने दी हैं !



      हमें लेकर बस 4 किलो मीटर की दूरी पर स्थित करतार पुर गुरुद्वारे की ओर ले चली ।बस से बाहर देखा तो देखा कि
इस कोरिडोर के दोनों तरफ विशाल जाली ओर उसके ऊपर कंटीले तारों की बाड़ या फेंसिंग की हुए थी ।हर कुछ माइटर
पर पाकिस्तानी सैनिक हथियारों के साथ ,मार्ग में बेरिकेटिंग के साथ हम पर ,हमारी बस पर नजरें गड़ाए हुए थे।क्या मजाल
कि इस कोरिडोर के अंदर कोई परिंदा भी पर मर सके ,यानी पूरी घेरा बंदी।2 किलो मीटर के पश्चात् एक विशाल नदी को
हमारी बस पार कर रही थी ,परन्तु इस नदी के पुल पर भी सैनिक मुस्तैदी से खड़े थे।बस से बाहर जिधर तक दृष्टि जा
सकती थी केवल ओर केवल खेत दिखाई दे रहे थे ,क्या मजाल कि कोई घर ,या झोंपड़ी या कोई अन्य वस्तु नजर आए !
नदी पर करते ही फिर वहीं बेरिकेटिंग,फेंसिंग और सैनिक।लगभग10 मिनट की यात्रा के पश्चात् दूर से दिखाई देने वाला
करतार पुर का पवित्र गुरुद्वारे के समक्ष हमारी बस खड़ी हो गई।हम उतर गए।हम गुरुनानक जी के निर्वाण स्थल
" करतारपुर साहिब " के समक्ष खड़े थे !



     
  बस से उतरते ही पुनः सैनिकों ने घेर लिया ,सारे प्रपत्र देखे फिर एक कंटीले तारों से घिरे गेट से हमें गुरुद्वारे के अंदर
प्रवेश करने का इशारा किया गया।अब हम लाखो सिखों,भारतीयों की चिर प्रतीक्षित  चाह ,पवित्र गुरुद्वारे के अंदर थे।
            शुक्र है कि गुरुद्वारे के अंदर केवल ओर केवल दर्शनार्थी ही थे ,कोई सैनिक नहीं था।अब हम कुछ नार्मल से हुए।
अंदर जाते ही हमें सिख सेवार्थियों ने घेर लिया , आदर से अभिवादन किया ओर अपने हाथों से हमारे जूते उतरने का प्रयत्न
करने लगे ,हमारे ठिठकने पर वे सब हाथ जोड़ कर बोले , ऐसी सेवा का अवसर हमें बरसों पश्चात् बड़े ही भाग्य से मिल
रहा है ,कृपया सेवा करने दें।हम अभिभूत थे।वैसे सिखों की गुरुद्वारे में की जाने वाली सेवा का पूरी दुनिया में कोई जोड़
नहीं होता।






    
  हमें एक सेवर्थी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि चलिए मै आपको गुरुद्वारे का भ्रमण कराता हूं ,ओर हम उसके साथ
चल दिए।
          प्रथम दृष्टि में जो हमने देखा ,हम जानते हैं कि वो दृश्य हम कभी नहीं भूलेंगे।विशाल ,विशाल सफेद संगमरमर की
चौकियों से सुसाजित परकोटा,जिसके एक दम मध्य में दो मंजिला छोटा मगर प्रभावशाली गुरुद्वारा, और उसके चारों ओर
खुले परकोटे के बाद ,चारों ओर  बरामदा जो की पहली नजर में किसी विशाल मस्जिद का सा ही आभास दे रहा था बना
हुए था।साथ चलते सेवार्थी के अनुसार ये दुनिया का सब से बड़ा गुरुद्वा है।ये गुरुद्वारा लगभग 250 वर्ष प्राचीन है।पिछले
वर्ष तक यहां सिर्फ गुरुद्वारा ही था ,इसके चारों ओर केवल ओर केवल खेत ही थे ,जिन्हें अब विशाल संगमरमर के पत्थरों
द्वारा एक विशाल मैदान के रूप में बदल दिया गया है ,साथ ही इसके चारों तरफ परकोटा भी बना दिया है जिसमें एक
संग्रहालय,एक शानदार लंगर हाउस ,आदी अनेक उपयोगी स्थल बनाए गए हैं।फिर उसने कहा कि आप अब गुरुद्वारे
साहब के अंदर दर्शन कीजिए एवं फिर लंगर जरूर छकिए।हमने उसे धन्यवाद दिया और गुरुद्वारे में प्रवेश किया।
       पहली नजर में ये गुरुद्वारा अत्यंत प्राचीन लग रहा था।ये दो मंजिला है। प्रथम मंजिल पर ,ठीक मध्य में एक छोटा सा
संगमरमर का बना चबूतरा है जिस पर शानदार गलीचा बिछा हुआ है,उसके ऊपर विभिन्न देशों के दर्शनार्थियों द्वारा अर्पित
किए गए नोट भरे हुए थे।इसके ऊपर स्वर्ण से ढका हुआ छत्र लगा था। प्रत्येक दर्शनार्थी,सिर झुका कर श्रद्धापूर्वक झुक जाते
थे,फिर उसकी परिक्रमा करते थे।दर्शनार्थियों की इसके लिए कतार लगी हुई थी ।अतः हम भी श्रद्धा सुमन अर्पित कर ,
औरों के लिए स्थान खाली करके आगे बढ़ गए।इस मध्य कमरे के चारों ओर छोटे छोटे बरामदे थे जिनके बाहरी ओर रंग
बिरंगे शीशे की खिड़कियां बनी हुई थी।नीचे अत्यंत सुंदर ,मुलायम कालीन बिछे हुए थे ।हमने भी श्रद्धापूर्वक बरामदे से भी
इस पवित्र चबूतरे की पुनः परिक्रमा की ,फिर एक कोने में बनी सीढ़ियों से उपरी मंजिल की ओर बढ़ गए।
       उपरी मंजिल के ठीक मध्य में एक बड़ा सा हाल था जिसके मध्य में विशाल स्वर्ण के सुंदरतम छत्र के नीचे गुरु ग्रंथ
साहिब विराजमान थे ।सामने बिछे गलीचे पर थोड़े थोड़े श्रद्धालु आंखे बंद किए ,हाथ जोड़े प्रार्थना में तल्लीन थे।मंद मंद
स्वर में ग्रंथ साहब के पाठ ,मुख्य ग्रंथि पढ़ रहे थे।इस कमरे के अंदर एवम् बाहर ,चारों ओर दर्शनार्थी पंक्ति बनाके खड़े
हुए थे ।ऐसा भाव भिना शन हमें जिंदगी भर स्मरण रहने वाला था।हम भी संयोग से मिले अवसर का पूरा लाभ उठा रहे थे ।
       गुरुद्वारे से नीचे बाहर आ कर हमने पूरे गुरुद्वारे की परिक्रमा आरम्भ की। एक कोने पर हम पुनः ठिठक गए।एक
बड़ा जाली से ढका कुआं दिखाई दिया,जिसके किनारे एक बोर्ड लगा था ।उस पढ़ कर ज्ञात हुअकी गुरु नानक जी इस
कुंए में लगे गोल यंत्र जिसे रहट भी कहते हैं,से पानी निकाल कर अपने आस पास के खेतों में सिंचाई करते थे।उनकी यही
तो मुख्य शिक्षा थी कि जहां तक,जब तक हो सके,अपना स्वयं का कार्य स्वयं करे भले ही आप कितने बड़े पद पर क्यों ना
हो! निस्संदेह इस कुंए को देख कर हमारी निगाहें गुरुद्वारे के चारों ओर फैले खेतों की ओर गई।कल्पना में खो गए कि क्या
मंजर रहा होगा जब स्वयं गुरु जी इन्हीं खेतों को ,जो हमे दिखाई दे रहे थे ,इसी कुंए से पानी निकाल कर सिंचाई करते होंगे।
हमने पुनः श्रद्धा से हाथ जोड़े ओर आगे बढ़ चले।




   तभी हमें इस कुंए के साथ ही एक बड़ा चबूतरा दिखाई दिया जो की कलात्मक ढंग से चित्रित एवम् संगमरमर के पथरों से ,
खूबसूरती के साथ बना हुए था। इस 2 फुट ऊंचा,15 फुट लंबा एवम् 15 ही चोड़ा था।कुछ श्रधालु,इसकी दंडवत प्रणाम
करके मीठे का प्रसाद बांट रहे थे।इस बरामदे के अंत में एक बोर्ड टंगा था जिस पर उर्दू ओर पंजाबी यानी गुर्मुखी भाषा
में कुछ लिखा था।आखिर कार हमने एक श्रद्धालु से इस बोर्ड के बारे में पूछा तो उसने बताया कि इसी चोकी के नीचे
श्री गुरु नानक जी के अंतिम संस्कार के पश्चात् उनके फूल अर्थात अस्थि , राख को रखा गया था।हमने अभिभूत से होकर,
उस चबूतरे को हाथों से स्पर्श किया,फिर झुका कर माथे को उस पर स्पर्श कर के अपने को धन्य किया।तभी हमें इस कुंए
के पास एक और बोर्ड तथा एक छोटी सी मीनार दिखाई दी। इस मीनार के ऊपर एक मोर्टार बम्ब रखा हुआ था जिसे
शीशे के पारदर्शी गुम्बंद में रखा गया था।बोर्ड को पढ़ कर उसकी विषय वास्तु स्पष्ट हो गई ,जिस के सम्बन्ध में में कोई
टिपण्णी में यहां नहीं लिखूंगा ।पाठक स्वयं समझदार हैं।इस बोर्ड को पढ़ कर पाकिस्तान के इरादे स्पष्ट हो जाते हैं।
              इस सारे क्रिया कलापों में ,भोजन की याद आई।प्रातः से हम दोनों ने कुछ नहीं खाया था।अब जब हृदय
और मस्तिष्क की भूख ,पवित्र गुरुद्वारे के साक्षात दर्शन करके मिट चुकी थी ,तब पेट की भूख की याद आई।किसी ने
बताया कि वो जो सामने बरामदा हैं उसके मध्य से एक रास्ता है जो लंगर तक ले जाएगा।हम उसी ओर चल दिए।
          




 अगर किसी को किसी भी धर्म की श्रद्धा का परिचय लेना हो तो उसेउस धर्म के भोजन वाले स्थान का जायजा लेना

चाहिए।निश्चिंत ही भोजन की सेवा को सेवा सिख धर्म में ,उनके गुरुद्वारों में उनके सेवकों द्वारा कि जाती है ,उसकी तुलना
में कोई भी धर्म नहीं टिकता है।लंगर में पहुंचते ही हमने देखा कि एक अत्यंत विशाल हाल जो की पूरी तरह से संगमरमर से
निर्मित था उसमे श्रद्धालुओं केजा।इं बैठने के लिए टाट की दरिया बिछी हुई थी। श्रद्धालु एक एक करके बैठते जाए थे तुरंत
स्वयं सेवक थाली ,कटोरी एवम् गिलास दे देते थे ,फिर तुरंत ही दाल ,चावल ,रोटी परोसने वालेस्वयं सेवक आ जाते थे।
जितना खाना है छक कर खाइए ,वे ,बड़े ही प्रेम और श्रद्धा से भोजन करते थे। और तो और ,भोजन समाप्त होते ही जूठे
बर्तन स्वयं ले कर धोने चले जाते थे। यात्रीको तो वे कुछ करने ही नहीं देते थे।भोजन का कोई समय नहीं ,आइये 
जाइए ,खाए जाइए ,ऐसा दृश्य हमने इस से पहले कहीं भी,कभी भी नहीं देखा था।भोजन से तृप्त हो कर हम फिर एक बार
गुरुद्वारे केबहर विशाल मैदान पर ,डूबते सूरज की किरणों में चमकते करतार पुर साहिब गुरुद्वारे को अपलक निहार रहे थे
।हमारे आस पास निकलते श्रद्धालु  रुक कर हमसे जरूर पूछ रहे थे कि " आप इंडिया " से आए हैं हमारे हाँ कहते ही वे
सब हमसे बात करने को बेताब हो जाते थे।




वे हमसे राजनीति से लेकर खाने पीने तक के बारे में प्रश्न दागते रहते थे ,अधिकांश तो हमारे साथ सेल्फी खिंचवाने को
उत्सुक रहते थे।काफी देर तक उनके साथ रहने ,उनके विचार से हमने एक बात सीखी कि भले ही राजनीतिक नक्शे में
भारत ओर पाकिस्तान दो बलग अलग देश बन चुके हैं परन्तु इनके निवासी आज भी ,विचारों,शक्लों आदी से एक ही जैसे
हैं।अगर पहनावे के अंतर को छोड़ दें तो अन्य कोई भी रिश्ता पहचान नहीं पाएगा की ,कौन भारतीय है कौन पाकिस्तानी
है।इन्हीं सब बातों का ,जीवन में प्राय एक बार ही मिले इस अवसर में हम खोए ही नहीं बल्कि डूबे हुए थे कि अचानक ही
लाउड स्पीकर से उद घोषणा हुई की जो यात्री ,श्रद्धालु इंडिया से आए है,उनका वापसी का समय हो रहा है ,कृपया वापस
जाने के लिए बाहर खड़ी बसों में बैठने का कष्ट करें।इस घोषणा को सुनते हम गुरु नानक जी के समय चक्र से जैसे वर्तमान
समय में लौट आए।" जो आया है वो जाएगा अवश्य " काल चक्र का यही सिद्धांत है हम सब भी इसी सिद्धांत में बंधे हुए हैं
,अतः पुनः एक बार जी भर कर गुरुद्वारे " श्री करतारपुर साहिब " को देखा ,शीश झुकाया , और वापस अपने स्वर्ग से सुंदर
अपने देश  " भारत " जाने के लिए बस में बैठ गए।


             
  जय श्री गुरु नानक देव जी