बुधवार, 28 अगस्त 2019

यात्रा ….. कैलाश मानसरोवर :PART 4

यात्रा ….. कैलाश मानसरोवर :PART 4
(Reading Time : 10 Mnt)
       


                 जैसे कि मैने पिछली यात्रा में बताया था,  कैलाश पर्वत की चरण पूजा का सुअवसर प्राप्त करने के
पश्चात स्वास्थ्य खराब होने के कारण  , परिक्रमा बीच में ही छोड़ कर मै पत्नी सहित पहले पड़ाव से ही
" डार चिन" कस्बे में स्थित अपने होटल में वापस चला आया।अगले दो दिन होटल में ही रुक कर , स्वास्थ्य लाभ
करता रहा।तीसरे दिन हमारे ग्रुप के सारे यात्री,अपनी  कैलाश पर्वत की पैदल परिक्रमा सम्पूर्ण करके वापस
हमसे आ मिले।निस्संदेह सबको मुझे पूरी तरह स्वस्थ देखकर खुशी हुई।अब अगले ही दिन यहां से 40 किलो
मीटर दूर पवित्र मानसरोवर झील की पुण्य परिक्रमा बसों के द्वारा करने के लिए सारे यात्री तैयार थे। अगले दिन
प्रातः 5 बजे से पुनः हम इस जीवन में ,प्राय एक बार ही इस यात्रा के सुअवसर मिलने वाली यात्रा के लिए चल दिए।
       


  लगभग 1 घण्टे की बस यात्रा के पश्चात् हम चिर प्रतीक्षित पवित्र मानसरोवर झील के तट पर हाथ जोड़े,अपने
भाग्य को सराहते हुए खड़े थे। लगभग 100 किलो मीटर की परिधि वाली इस विशाल , शीशे की तरह अत्यंत
पारदर्शी ,मीठे पानी की झील के तट पर यात्रियों के के लिए बने 8 अस्थाई कमरों के अलावा दूर एक वर्षों पुराना बौद्ध
मठ ही था।झील के तट में जहां तक नजर जा सकती थी किसी भी प्रकार की वानस्पतिक चिन्ह तक नहीं था।चूंकि
मानसरोवर झील भी 19000 फुट की अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है , अतः पेड़ पोधों को तो छोड़िए , घास भी नहीं
उगती है । 

झील के तट से कुछ ही फुट कि दूरी पर चारों तरफ भूरे रंग के उजाड़  पर्वत खड़े थे जो कि इस जुलाई के महीने
में भी बर्फ से ढके हुए थे।लेकिन अत्यंत अद्भुत और नजरों को सम्मोहित करने वाला एक अलौकिक दृश्य पर हम सब
की नजरें रुकी हुई थी ,वो थी,झील के दूर दूसरे किनारे पर ,चारों तरफ फैली ,भूरे रंग के पर्वतों की चोटियों से भी
बहुत ऊंची ,शुभ्र बर्फ से ढकी , एक पवित्र चोटी " कैलाश पर्वत"।अब आप उस अत्यंत मनोरम ,अन्यत्र दुर्लभ दृश्य
की कितनी भी कल्पना करें ,यह साक्षात दृश्य उन सब से कहीं अधिक अलग था।ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे वे हमारे
इस पवित्र मानसरोवर झील में स्नान करने के प्रत्यक्ष गवाह बनने वाले थे,साथ ही एक मोंन दिलासा भी दे रहे थे कि
इस पवित्र यात्रा के साक्षी रूप में ,जन्मों के पाप धुलने ,प्रत्येक यात्री की आत्मा तक के आंतरिक शुद्धिकरण के गवाह
भी वे होने वाले थे।  दूर दूर तक ,विशाल नीले रंग की, हलकी लहरों से लहराती मानसरोवर झील के जल में शुभ्र
सफेद रंग की पवित्र कैलाश पर्वत की चोटी का प्रतिबिंब एक अतुलनीय दृश्य उपस्थित कर रहा था।हम सब पूर्ण
सम्मोहित हो कर अपने में मस्तिष्क में इस पल की हर घड़ी को अमिट छाप के रूप सहेज रहे थे।
        


यात्रा के विवरण को आगे बढ़ाने से पहले मै इस पवित्रतम,आश्चर्य जनक,मानसरोवर झील के बारे में कुछ अद्भुत
बातें  की जानकारीआप लोगो को बताना चाहूंगा।भौतिक रूप में यह झील,दुनिया में सबसे ऊंचे पर्वत श्रेणी हिमालय के
मध्य में ,दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित मीठे पानी की झील है।इस झील में पवित्र कैलाश पर्वत के चारों और जमे ग्लेशियर
से आने वाली जलधारा ,इस झील में पानी  का मुख्य स्रोत है।इसी पवित्र मानसरोवर झील से 5 प्रमुख नदियां निकल कर
अपना आकार ग्रहण करती हैं और चीनी,भारतीय उप महाद्वीप के अरबों नागरिकों की ,ना केवल प्यास बुझती है अपितु
कृषि में सिंचाई के काम आकर उनकी भूख भी मिटाती है।प्राचीन काल से ही हमारे वेदपुरानो में इस झील का विवरण
मिलता है।सदियों से सनातन धर्म की मान्यता है कि इस झील में भगवान श्री विष्णु जी शेषनाग पर निवास करते हैं,जिसे
पुराणों में शीर सागर भी कहते हैं। मै आपको एक रोचक जानकारी भी और देना चाहूंगा कि हमारे भारत वर्ष को संस्कृत
भाषा में जंबू द्वीप भी कहा जाता है।इस जंबू द्वीप के नाम के पीछे भी एक धारणा पुराणों में यह भी है कि इस पवित्र
कैलाश झील के मध्य में कभी कभी एक स्वर्ण वृक्ष निकलता है ,उस स्वर्ण वृक्ष से एक नारियल के समान स्वर्ण का ही फल
बनता है।जब यह स्वर्ण फल इस पवित्र मानसरोवर झील में स्वर्ण वृक्ष से अलग होकर गिरता है तो…. जम्ब ….जंब की
जोर की ध्वनि पैदा होती है।इसी ध्वनि के कारण हमारे पूरे भारत उप महाद्वीप को संस्कृत में जम्बू द्वीप कहा जाता है।
हमारे अनेकों प्राचीन धर्मग्रंथों में इस पूरी घटना का विवरण मिलता है।
             अब जो भी हो ,प्रत्येक भारतीय के मानस पटल पर पवित्र कैलाश एवम् पवित्र मानसरोवर झील का प्रभाव युगों
से अमिट रहा है और हमेशा अमिट ही रहेगा।सदियों पूर्व  जब यात्राका कोई भी,आधुनिक समय के समान, सरल साधन
उपलब्ध नहीं होता था,तब भी पूरे भारत वर्ष के प्रत्येक क्षेत्रों से यात्री अनेकों कष्टों को सहते हुए पवित्र कैलाश ओर
मानसरोवर की यात्रा पर आते रहे हैं।धन्य है उनकी भक्ति और धन्य है उनकी सहनशीलता! 
       सारे यात्री अब इस पवित्र मानसरोवर झील में स्नान करने के लिए तत्पर ही थे कि अचानक हमारे ग्रुप इंचार्ज जो कि
भारत सरकार के ज्वाइंट डायरेक्टर थे,जिनका उद्देश्य हम सब यात्रियों को इस पवित्र यात्रा का सफलतापुर्वक सम्मपन्न
कराना होता है, ने आदेश दिया कि दोपहर 1 बजे से पूर्व कोई भी यात्री इस झील में स्नान नहीं करेंगे।हम सब तो स्नान के
लिए अधीर हो रहे थे मगर उनका आदेश मानने के लिए हम मजबूर थे ।कारण पूछने पर बताया कि जिस  झील को आप
इस समय देख रहें है इसका प्रातः के समय तापमान लगभग 2 डिग्री होगा और जैसे ही आप सब इस समय अगर स्नान
करेंगे तो हाइपोथर्मिया के कारण जम जाएंगे।स्नान करने के लिए दोपहर 1 के बाद का समय ही उपर्युक्त रहेगा।लगभग
किसी भी यात्री को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ,फिर भी सब यात्रीगण उस पवित्र झील के जल को हथेलियों में
आचमन हेतु उठाने के लिए अपने कि रोक नहीं पाए और किनारे पर पहुंच कर जैसे ही उस झील के जल को उठाने
के लिए अपने हाथ जल में डाले,उन्हें विश्वास करना पड़ा।झील का जल एक दम पिघली हुई बर्फ की तरह अत्यंत शीतल
था।हाथ जल में डालते ही सेकंडों में जम सा गयाऔर विद्युत झटके सा प्रतीत हुआ।अब दोपहर तक इंतजार के अलावा
अन्य कोई उपाय नहीं था।सब जहां स्नान के लिए आतुर थे वहीं अब उस जल के अत्यंत ठंडे होने से चिंतित होने लगे थे।
हम सब को अब विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि दोपहर को भी यह अत्यंत शीतल जल  कैसे स्नान लायक गर्म हो जाएगा।
सारे यात्रीगण उस पवित्र झील के किनारे बैठ गए और हाथ जोड़े ,सम्मोहन की से अवस्था में,अपनी आंखों से ही उस पवित्र
झील में मानसिक स्नान करने लगे।कुछ भगवान की आराधना हेतु प्रार्थना करने लगे तो कुछ मेरे जैसे यात्री मन ही मन
प्रार्थना करने के साथ इस कभी भी ना भूलने वाले क्षणों को अपनी स्मृति में चिर स्थाई करने के साथ साथ,अपने कैमरे में
कैद करने लगे।दूर जहां तक दृष्टि जा सकती थी,केवल और ओर केवल गहरा आसमानी रंग वाली,मंद मंद हवाओं के
साथ ,झील में उठती लहरों के मध्य में प्रतिबिंब होते पवित्र कैलाश पर्वत ही दिखाई दे रहे थे।यह मानसरोवर था,मानस
का सरोवर! हमारे मस्तिष्क में बचपन में सुनी तमाम सारी कथाओं के साक्षात दर्शनों का क्षण था।हम सब मंत्र मुग्ध से
सब कुछ विस्मृत करके, केवल और केवल इस क्षण को हमेशा हमेशा के लिए अपनी स्मृतियों में स्थाई कर रहे थे।मुझे
क्या किसी भी अन्य यात्री को इन दृश्यों में डूबे कितना समय व्यतीत हो गया इसका अनुमान ही नहीं था।अचानक किसी
यात्री की तेज आवाज ने हम सब का ध्यान आकर्षित  किया "वो देखो मानसरोवर के आसमानी जल में तैरते हंस"!यह
अद्भुत क्षण था।उस विशाल झील में अचानक जाने किधर से एक हंसों का जोड़ा आ गया।मुझे पूरा विश्वास है कि उस
अपूर्व दृश्य को निहारते सब के मन में ,श्री तुलसी दास जी के ये शब्द ही याद आरहे थे कि "मानसरोवर के जल में हंस
केवल मोती ही चुगते है",ओर साक्षात हमारे सामने जैसे उनकी ये पंक्तियां दृश्यों में नजर आ रही थी।बिल्कुल सामने
एक हंसो का जोड़ा ,हम सब से बे खबर झील के जल में अठ खेलियां कर रहा था ।मेरा शब्द कोष ,उस दृश्य के वर्णन
में आज भी अपने को असमर्थ पता है। 
      


 ऐसे ही जाने कितना समय बीत गया था कि तभी हमारे डायरेक्टर जी ने कहा कि आप सब अब इस झील में स्नान
कर सकते हैं! सारे यात्री तो जैसे इसी समय का इंतजार कर रहे थे, शीघ्रता  से झील के किनारे आ गए,लेकिन सुबह के
अनुभव से झिझक भी रहे थे कि इस समय क्या झील का जल स्नान करने हेतु, अब ठंडा नहीं है, और जैसे तुरंत उत्तर
भी मिल गया" झील का जल इस समय दोपहर को इतना गर्म था कि विश्वास ही नहीं हुआ।बिना देरी किए सब उस झील
में प्रवेश कर गए , और… और जैसे हम सब के जन्मों कि साधना पूर्ण हो रही थी।पवित्र मानसरोवर के पवित्र जल में
शायद जन्मों में दुर्लभ स्नान! ये अदभुद क्षण था।अत्यंत मीठा,हल्का शीतल ,एक दम स्वच्छ।झील का जल इतना निर्मल था
कि उस पारदर्शी जल में,झील के नीचे का तल एक दम साफ़ दिखाई दे रहा था ।कभी कभी कुछ छोटी छोटी मछलियां
हमारी तरह इस जल में शायद आनंदित हो विचरण कर रही थी।इस झील में स्नान करते हुए मैने तो अपनी अंजुली में जल
भर कर ,पहले अपने माता,पिता,फिर समस्त पूर्वजों का स्मरण किया , और फिर अपने समस्त देवी देवताओं का आह्वान
करते हुए ,तेज चमकते सूर्य  को अर्पित कर दिया।जी भर कर झील के जल का रसपान किया और … और हमेशा हमेशा
के लिए अपनी आत्मा की प्यास को तृप्त कर लिया!
       


   जी भर कर स्नान के पश्चात सारे तीर्थ यात्री अपने अपने समूहों में ,किनारे पर बैठ ,इसी क्षण के लिए ,अपने साथ लाए
पूजा की सामग्री के साथ इस अनमोल समय में, अपने अपने देवी देवताओं को प्रदान करने के लिए ,  पूजा,अर्चना के द्वारा
श्रद्धासुमन अर्पित करने हेतु देर तक बैठे रहे।सबकी पूजा की विधि अलग अलग थी मगर ,उद्देश्य शायद सबका यही रहा
होगा कि कैलाश पति भगवान शिव, हमें अब इस संसार के, वेद पुराणों में वर्णित जीवन चक्र से मुक्ति प्रदान करें!
     


      स्नान ,पूजा आदि के पश्चात्,भोजन करते करते सांय काल का समय हो गया ।सूर्य के अस्त होते ही दोपहर की गर्मी
एक तीव्र ठंड में बदल गई ।सब अपने अपने गर्म बिस्तरों में घुस गए और अपने अपने कमरे में बनी बड़ी सी खिड़की से
बाहर गहरे अंधकार में ,तारों से दमकती,चमकती झील में उन के प्रतिबिंबित होते ,लहरों में कम्पन करते , लाखों तारों को
देखने के दृश्यों में खो गए।
         धीरे धीरे रात्रि के 11 बजे का समय भी  हो गया मगर क्या मजाल कि कोई एक यात्री भी नींद के आगोश में सोने के
लिए चला जाए, मगर क्यों …? तो आइए अब आपको इस पवित्र मानसरोवर झील का एक रहस्य और बताते हैं जिसको
जानकर आप विश्वास नहीं करेंगे ,मगर सत्य यही है और   सदियों से इस पवित्र झील में प्रतिदिन मध्य रात्रि को यह सब
घटित होता रहा है, और शायद सदियों तक होता रहेगा,जिसके आज इस रात्रि में हम सब भी साक्षी बनने वाले हैं ।रोमांच
इतना अधिक था कि प्रत्येक यात्री ,अपने कमरे की खिड़की से बाहर ,घोर अन्धकार में ,झील की तरफ दृष्टि गड़ाए बैठा
था ।एक अजीब सी शांति सारे कमरों में फैली थी।यहां मै आपको पुनः स्मरण कर दूं कि इस पवित्र मानसरोवर के लगभग
100 किलो मीटर की परिधि में ना तो कोई गांव या शहर है ना ही कोई अन्य आश्रम या मठ,ना कोई पेड़ पोधा ।दूर दूर तक
केवल झील का निर्जन क्षेत्र।था तो केवल हमारे यात्रियों के रात्रि विश्राम हेतु यही 8कमरों का एक अस्थाई आश्रम।इस में
भी रोशनी हेतु केवल ओर केवल सोलर एनर्जी से बिजली का प्रकाश किया जाता  था वो भी केवल 2 घंटो के लिएशाम
7 बजे से 9 बजे तक ताकि यात्री अपना भोजन और अन्य कार्य निपटा सकें।उसके बाद तो केवल टार्च से ही प्रकाश संभव
था।इस अवस्था में जबकि रात्रि के 11 बजे से अधिक का समय हो चुका था तो,घुप अंधेरा छाया हुआ था।थोड़ी ही देर बाद
अचानक सारे यात्री " हर हर महादेव,जय भोले नाथ,जय श्री विष्णु जी" के जय घोष से ,भाव विभोर हो ,चिल्लाने लगे और
क्यों ना चिल्लाते,बाहर अंधेरे में कुछ दृश्य ही ऐसा था।गहन अंधकार में जब हाथ को हाथ नहीं सुझाई से रहा था उस समय
पूरी तरह अंधकार में डुभी झील की सतह पर अचानक ही झिलमिलाते,एक कोने से दूसरे कोने तक आते जाते ,ऊपर से
नीचे, नीचे से ऊपर की तरफ जाते प्रकाश पुंज मानो अठ केलिया कर रहे थे! क्या था ये सब, छोटे छोटे गोले से ,लहराते ,
लाल,पीले,नीले आदी रंग बिरंगे प्रकाश पुंजों से दूर दूर तक फैली झील एक अलग ही देवीय प्रकाश से दमक रही थी।विश्वास
कीजिए,पूरी झील की सतह दूर दूर तक इन अद्भुत ,रहस्यमई प्रकाश से आलोकित थी।वातावरण एक दम निशब्द था
कोई ,किसी भी प्रकार की ध्वनि नहीं थी ।उस समय तो मानसरोवर झील  इन अद्भुत, रहस्यमई ,रंगीन चलते फिरते
प्रकाश में झिल मिला रही थी।घंटों प्रकाश का ये अद्भुत खेल चलता रहा रहा।हम सब अब निशब्द,सब कुछ भूल,इस
अलौकिक समय के साक्षी बन रहे थे।ये एक ऐसा दृश्य था जिसका वर्णन ना तो हम सब शब्दों के द्वारा ओर ना कैमरों की
फोटो के द्वारा कर सकते थे।मेरे विचार से लगभग प्रत्येक यात्री ने इस अलौकिक क्षणों की जरूर फोटो ली होगी।लेकिन
आश्चर्य की बात थी कि सुबह होने पर ,किसी भी मोबाइल और कैमरों में ,रात्रि की उस अद्भुत घटना की कोई भी फोटो
नहीं थी ,इसका भी किसी के पास कोई उत्तर नहीं था, इन अद्भुत रोशनियों को निहारते ना जाने कब 3 बजे का समय
हुआ होगा कि अचानक ,जैसे ये प्रकाश उत्सव आरम्भ हुआ था वैसे ही अचानक समाप्त भी हो गया।पवित्र झील की संपूर्ण
सतह एक बार पुनः अन्धकार में डूब गई।
       


  सुबह ,जागने के पश्चात् यात्रियों में एक ही चर्चा  का विषय था," मानसरोवर झील का रात्रि का प्रकाश उत्सव,"हर कोई
अपने अपने हिसाब से विचार विमर्श कर रहा था। जहां तक मेरा स्वयं का विचार था,तो  मै भी वही विचार कर रहा था जो
आप सब इस समय इस लेख को पढ़ने के बाद कर रहे हैं !तर्क,विश्वास,अविश्वास मेरे मन मस्तिष्क को मथ रहे थे,।कभी
सोचता ,नहीं, आज के समय में यह संभव नहीं है,तो कभी मेरा विश्वास मन तर्क देता ," सब के सामने ,पूर्ण जाग्रत अवस्था
में , रात्रि को जो दृश्य" हम सब ने देखें है , वे गलत तो है ही नहीं।इसी विचार मिवर्श में ,दिन के पूर्ण उजाले में, हैं सब झील
के चारों ओर ,रात्रि के प्रकाश के स्रोत को ढूंढने का असफल प्रयास कर रहे थे।झील के चारों तरफ सब कुछ कल जैसा ही
था,वीरानी और निर्जनता! हां,लेकिन कल रात्रि और आज रात्रि में एक अंतर था ,वो यह कि कल आकाश पूरी तरह तारों से
भरा था,जबकि आज आकाश पर मेघों ने कब्जा कर रखा था,तेज वर्षा हो रही थी।ऐसा लग रहा था कि इन्द्र देवता भी रात्रि
के इन प्रकाश पूंजों का आनंद लेने हेतु पधार रहे हैं।
          दिनभर इसी बहस में , कि रात्रि को होने वाले प्रकाश का उत्सव चमत्कार है या कुछ और,  पुनः शाम, हमें रात्रि की
गोद में ले जाने के लिए उपस्थित हो गई। अधिकतर इस मानसरोवर की यात्रा में यात्रियों को एक ही रात्रि बिताने का अवसर
प्राप्त होता है,मगर हम सौभाग्य शाली थे कि हमें इस पवित्र झी के किनारे दूसरी रात्रि व्यतीत करने का अवसर प्राप्त हो रहा
था ।समस्त यात्री पुनः इस रात्रि में भी कल की तरह ही प्रकाशोत्सव के साक्षी बनने,उसका स्वर्गीय अनुभव लेने के लिए
आतुर थे।
       घुप अन्धकार और,तेज वर्षा के प्रभाव से हम सब ,कुछ ही फुट दूर झील के जल को देखने में आज असमर्थ थे,जबकि
कल हम पूरी झील को देख पा रहे थे, अतः मेरे जैसे कुछ यात्रियों के ह्रदय में कल रात्रि के अनुभव को लेकर थोड़ी सी एक
शंका ने जन्म लिया हुआ था कि कल रात्रि में ,झील के जल में जो प्रकाश का अनोखा उत्सव था कहीं वह झील की लहरों में,
ऊपर आकाश में चमकते लाखों तारों का प्रतिबिंब तो नहीं था।अब आज तारों के स्थान पर बादलों का साम्राज्य था,तेज वर्षा
हो रही थी तो शंका थी शायद आज झील के जल पर कल रात्रि जैसा प्रकाश उत्सव नहीं होगा।
           ख़ैर,रात्रि के जैसे ही 11  बजे से कुछ और समय बिता कि वह..आश्चर्य जनक,अद्भुत ,कल रात्रि के समान ही पुनः
वहीं प्रकाश पंजों की अठ खेलिया,वहीं झील  का आलोकित जल,सब खुच कल जैसा ही घट रहा था! अब कोई शंका किसी
के ह्रदय,मस्तिष्क में नहीं थी,थी तो केवल ओर केवल श्रद्धा! इस लेख के पाठक चाहें इस घटना को स्वीकारें या अस्वीकार
करें ये उनका अपना दृष्टिकोण हो सकता है मगर जो प्रत्येक रात्रि को इस पवित्र मानसरोवर के ऊपर घटित होता है वह मेरे
जैसे समस्त यात्रियों का साक्षात अनुभव है।हम सब के लिए अब तर्क का कोई स्थान नहीं है। मै अब पूर्ण विश्वास से का
सकता हूं कि जिसे अब भी विश्वास नहीं हो,वह इस पवित्र " कैलाश मानसरोवर" की यात्रा में शामिल हो कर इस चकित
करने वाले अनुभव को देख सकता है।
        अगले दिन प्रातः हम सब यात्री अपनी इस जीवन में एक बार ही मिलने वाले " पवित्र कैलाश मानसरोवर "  यात्रा के
सुअवसर को प्राप्त करने के पश्चात वापस अपने स्थानों को लौटने की तयारी में लगे थे । तभी हमारा ध्यान इस कैंप के केयर
टेकर की तरफ गया।अरे ये तो इस स्थान पर ही रहता है ,चलो ,उस से ही इस झील में घटित होने वाले प्रत्येक रात्रि के इस
चमत्कार के बारे में पूछते है कि  इस अद्भुत प्रकाश उत्सव का क्या रहस्य है।ये केयर टेकर एक प्रोढ तिब्बती ही था
वर्षों से यात्रियों के आगमन ने उसे हिंदी भाषा और हिन्दू धर्म की जानकारी अच्छी तरह हो गई थी,क्योंकि जैसे ही हमने
प्रत्येक रात्रि घटित होने वाली इस घटना के बारे में पूछा,उसने बड़ी ही सहजता से उत्तर दिया " ये तो रोज रात्रि को घटित
होता है।अरे, रोज रात्रि को देवता लोग ,कैलाश पर्वत निवासी भगवान शंकर से या मानसरोवर झील जिसे शीर सागर भी
कहते हैं,उसमे निवास करने वाले भगवान विष्णु से मिलने आए हैं तो वे प्रकाश पुंज के रूप में आते हैं।"। हम उसकी
सहजता से ,उसके विश्वास से इतने अभिभूत हो गए कि अब पूछने को कुछ शेष ही नहीं था।
              वापसी यात्रा भी वैसी ही थी जैसी हमारे आगमन की थी।लेकिन इस यात्रा के सम्पन होने के पश्चात् जैसे ही हम
,अपने महान देश भारत के सीमा द्वार नाथुला पट पहुंचे,अपने देश की सीमा रेखा पार कर प्रवेश किया,उसका रोमांच भी
किसी भी अनुपात में इस यात्रा से कमतर नहीं था। अपनों के मध्य होने का अहसास का अनुभव जो उस समय हुआ ,शायद
उसका भी पूरा  वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता है! भारत में प्रवेश करते ही ,सैनिक दस्तों ने हमारा स्वागत ,हम सब के चरण
छूने से किया! हम सब फिर एक बार चमत्कृत थे,इतना सम्मान,फिर एक बार हम सब की आंखे आसुओं से भर गई थी
।लग ही नहीं रहा था कि वे कठोर सैनिक हैं,वे तो हमें यात्रा सम्पूर्ण कर के वापस आए हमारे प्रियजन ही लग रहे थे।हम
सब को बसों मै बिठाकर वे सबसे पहले अपने भोजन के स्थान " मेस" में ले गए।यात्रा के अनभुवो को ग्रहण करने के पश्चात
एक शुद्ध भारतीय भोजन " पूरी,खीर,रायता,विभिन्न प्रकार की सब्जियां,तरह तरह की मिठाइयां"  आदि से हमें तृप्त किया।
भोजन के बाद उन सबने एक ही बात कही कि हम भारतीयों की यह प्रथा है कि जब माता पिता ,धार्मिक तीर्थ
यात्रा करने के पश्चात वापस अपने घर आते हैं तो अपने कुल परिवार के लिए भोज का आयोजन करते हैं,चूंकि वे सैनिक हैं
और उनके माता पिता दूर घर पर हैं तो आप ही हमारे माता पिता के समान हैं और आपके स्वागत हेतु ही इस भोज का
आयोजन ,हम सब अपने स्वयं के हाथों से बनाकर कर रहे हैं।हम निशब्द थे ….।
          अब अंत में मै इस लेख के अनुभव को पढ़ने वाले प्रत्येक पाठक से अनुरोध करूंगा कि एक बार अवश्य इस यात्रा
को करें।इस यात्रा का अनुभव की तुलना किसी अन्य यात्रा से नहीं की सकती है,ऐसा हम सब का पूर्ण पूर्ण विश्वास है।



जय भोले नाथ।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

यात्रा……कैलाश मानसरोवर PART : 3

  [Reading time -10 min]
              "  हर हर महादेव,बम बम भोले" के जय घोष के साथ , उमंग और उत्साह के साथ हम यात्रियों की बसें कुछ ही देर में यम द्वार नामक स्थान पर आ पहुंची।यहीं से वह परिक्रमा मार्ग उन देवों के देव महादेव के निवास स्थान ,जिसके दर्शन, जिसकी परिक्रमा ,जिसके चरणों में शीश झुकाने की अभिलाषा, सनातन काल से प्रत्येक भारतवासी के ह्रदय में विराजमान रहती है,आरम्भ होती है।पता नहीं कि पूर्व जन्मों के शुभ कर्म या पुरखों के आशीर्वाद,या स्वयं महादेव की कृपा पात्र होने के कारण हमें भी इस पुण्य  परिक्रमा का अवसर मिला। इस स्थान पर एक छोटा सा चारों दिशाओं से खुला,मूर्ति विहीन एक मंडप है जिसके चारों ओर सीढ़ियां बनी है। इसे ही यम द्वार कहते हैं।मान्यता है कि प्रथ्वी पर प्रत्येक प्राणी की आत्मा, मृत्यु के पश्चात इसी मड़प में किसी भी दिशा से प्रवेश करती है। तत पश्चात ही वह मृत्यु के देवता महादेव के निवास स्थान पवित्र कैलाश पर्वत के सामने उपस्तिथि होती है और कर्मों के हिसाब से उसका भविष्य निर्धारित होता है। हम कितने भाग्य शाली थे कि हमें जीतेजी ही इस यम द्वार में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हो रहा था।जीतेजी ही हमें महादेव के दुर्लभ दर्शनों के लिए ,उनके निवास स्थान पवित्र कैलाश की परिक्रमा करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा था। हम अपने भाग्य को सराहते हुए यम द्वार में प्रविष्ट हुए ,उसकी भी परिक्रमा लगाई और फिर सामने शुभ्र हिम मंडित पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शनों के लिए ,उनकी परिक्रमा हेतु तैयार हो गए।


          यम द्वार के आगे एक बड़ा सा खुला मैदान था ।इसके चारों ओर भूरे रंग की ऊंची ऊंची चोटियां कैलाश पर्वत को इस तरह से घेरे हुई थी जैसे किसी महा राजा की सुरक्षा में उसके चारों ओर सशस्त्र सैनिकों का घेरा बना रहता है। यहां से कैलाश पर्वत का, हिम मंडित शिखर ही चमक रहा था।यात्रा आरम्भ करने से पूर्व पुनः सारे यात्रियों को एक साथ खड़ा किया गया,पुनः उनका मेडिकल चेक अप किया गया,फिर प्रत्येक यात्री को ,उसके सामान को उठाने,उसकी सवारी के लिए एक एक घोड़ा और दो दो मजदूर नियुक्त किए गए।यह सब इस लिए कि आगे की यात्रा में  अत्यंत ऊंचाई, प्राण वायु ऑक्सीजन की कमी,अत्यंत शीत के होने के कारण अक्सर यात्री बीमार हो जाते हैं,अतः उनकी पैदल यात्रा में कोई कठिनाई ना हो इस के लिए ही इन सबकी व्यवस्था की जाती है।अचानक ही हमारे सामने कुछ प्रेस रिपोर्टर एवम् टीवी चैनल के एंकर आ गए।उन्होंने अंग्रेजी भाषा में एक एक कर हम सब का संक्षिप्त इंटरव्यू लिया।हमारी इस यात्रा के अनुभवों की जानकारी ले कर ,शुभ कामनाओं के साथ हमें इस यात्रा के लिए विदा किया। हमारी यात्रा आरंभ हो गई ।
        सारे यात्री एक एक कर इस चिर प्रतीक्षित यात्रा के मार्ग पर मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करते हुए बढ़ने लगे।यात्रा का प्रवेश मार्ग  विशाल ऊंचे ऊंचे पर्वतों के मध्य एक संकरी सी घाटी में से था।एक तरफ पहाड़ी नदी मंथर गती से बह रही थी तो दूसरी तरफ हम यात्रियों के लिए एक पग डंडी नुमा मार्ग था।आरम्भ में तो मार्ग सीधा साधा था इस लिए मेरे जैसे अनेक यात्रियों ने घोड़े पर सवार होने के बजाय पैदल ही परिक्रमा लगाने का निश्चय किया । कुछ मिनट ही चलने के पश्चात् हमें सांस लेने में कठिनाई होने लगी,ऊपर से तीव्र सर्दी भी  हम सब की परीक्षा लेने लगी।इस प्रथम दिवस हमें लगभग 12 किलो मीटर की यात्रा करनी थी,लेकिन एक आध किलो मीटर चलने के पश्चात् ही सबको समझ में आ गया कि बिना घोड़ों की सवारी के अब आगे चलना संभव नहीं है अतः एक एक कर सारे यात्री अपने अपने निर्धारित घोड़े पर सवार होने लगे।क्रमश: यात्रा मार्ग भी समतल के स्थान पर ऊंची चढाई में बदलने लगा।जुलाई का महीना होने के बावजूद सर्दी, जनवरी महीने होने का आभास दे रही थी।फिर गौर किया कि पर्वतों के शिखरों पर बर्फ ग्लेशियरों के रूप में जमी हुई है।हालांकि हम सब ढेर सारे गर्म वस्त्र पहने हुए थे मगर वे अब इस भीषण सर्दी में सूती वस्त्र का ही अहसास प्रदान कर रहे थे।इस अवस्था में दोपहर होते होते जैसे ही हम अपने पहले पड़ाव स्थल पर पहुंचे  कि हमें अपने सम्मुख विशाल ,शुद्ध काले मगर शुभ्र बर्फ से मंडित पवित्र कैलाश पर्वत के प्रथम पूर्ण दर्शन हुए।

इस एक पल में प्रत्येक यात्री अपनी पिछले कुछ दिनों की यात्राओं के कष्ट,दुख भूल कर अध्यात्म की एक ऐसी दुनियां में पहुंच गया जिसकी प्राप्ति हेतु अधिकांश योगी ,साधु जन अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर देते हैं।इसी एक पल में हम इस जीवन के सारे रिश्तों नातों को विस्मृत कर केवल अपने सामने उपस्थित इस महा योगी शिव की रहस्यमई ,अलौकिक दुनिया में खो गए।उस वक़्त जो हम सब यात्रियों की मानसिक अवस्था रही होगी ,उसका सम्पूर्ण विवरण यहां लिखना असम्भव है। इसे यूं कहें कि जन्मों से प्रतीक्षित इसी क्षण की कल्पना के पूर्ण होने का हम सब आत्मा की पूरी गहराइयों से आनंद ले रहे थे।
         यूं तो इस अद्भुत समय के वर्णन में , मै  और बहुत अधिक लिख सकता हूं मगर भावुकता में मेरे साथ मेरी लेखनी इतनी अधिक डूबी हुई है कि मैं इस समय के वर्णन को यहीं विराम देता हूं और इसके पश्चात घटी एक रहस्यमई घटना का विवरण आपको बताता हूं।  जैसे कि आपको पूर्व में बताया था कि तीन दिवसीय यात्रा का ये हमारा पहला पड़ाव था।इसी पड़ाव से पवित्र कैलाश पर्वत के सम्पूर्ण ,भव्य दर्शन होते है। शेष परिक्रमा मार्ग में पवित्र कैलाश की केवल झलक भर ही दिखाई देती रहती है। इसी पर्वत के ठीक सामने हम यात्रियों हेतु रात्रि विश्राम के लिए 8 अस्थाई कमरे बने हुए थे।यहां से ठीक सामने 2.8 किलो मीटर की दूरी और लगभग 2000 फुट की और ऊंचाई पर कैलाश पर्वत स्थित है,लेकिन इस पड़ाव से देखने पर ऐसा लगता है कि एकदम सामने,नजदीक ही ये स्थित है।
पूजा,अर्चना एवम् दर्शनों के पश्चात् सभी यात्री पड़ाव में विश्राम हेतु चले गए। मैं भी अपने नियत स्थान पर आया तो मुझे स्मरण हुआ कि वर्षों पहले मैने एक किताब में कैलाश यात्रा के समय में चरण पूजा का विवरण पढ़ा था। अतः उस समय से ही मैने निश्चय किया हुआ था कि जब भी इस पवित्र यात्रा का मुझे सौभाग्य प्राप्त होगा तो मै चरण पूजा अवश्य करूंगा। अब जब यह सौभाग्य प्राप्त हुआ तो निश्चिंत था कि मुझे तो पवित्र कैलाश की चरण पूजा करनी ही है।चरण पूजा का अर्थ होता है 2000 फुट की और दुर्गम ऊंचाई चढ़ कर सीधे अपने आराध्य श्री कैलाश पर्वत के ठीक नीचे ,पास पहुंच कर ,उनकी पूजा करना एवम् उस पवित्र पर्वत का स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त करना। होता यह है कि पैदल यात्रा के अन्तर्गत यात्री 2000 फुट की यह चढाई अत्यंत दुर्गम होने के कारण  ना चढ़ कर ,इसी पड़ाव स्थल से ,2.8 किलो मीटर की दूरी से ही पवित्र कैलाश पर्वत के दर्श कर स्वयं को धन्य मानते हैं।
            जैसे ही अन्य यात्रियों को मेरी चरण पूजा की बात का पता चला,वे सब भी मेरे साथ ही पवित्र पर्वत के स्पर्श हेतु चल दिये।दोपहर के 2  बजे का समय हो चुका था।जाने आने में कम से कम 4 घंटो का समय तो अवश्य ही लगना था क्योंकि इतनी अधिक ऊंचाई पर हर 10 कदम चलने के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम अवश्य लेना होता है अन्यथा फेफड़ों में रुकावट आने लगती है ,जिससे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है।इसके बाद भी अगर यात्रा जारी रखते हैं तो ऑक्सीजन की इतनी अधिक कमी हो जाती है कि मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं। अतः इन सब से बचाव हेतु यात्रा में समय काफी लगता है। यात्रा शुरू होते ही मेरे समेत केवल 4 यात्री ,जिनमें एक मेरठ के डाक्टर भी थे ही आगे चले,बाकी सारे यात्री कुछ गज दूर चलने के बाद  ही विश्राम स्थल पर वापस चलें गए। लगभग 300 मीटर चलने के पश्चात् ना जाने कैसे मुझे सांस लेने में रुकावट होने लगी। मैं थोड़ा सा घबराने लगा,अभी तो कैलाश पर्वत, ऊंचाई के हिसाब से काफी अधिक दूरी पर था।जब हम एक चढाई पार करते,तो लगता कि अब कैलाश पर्वत सामने आ जाएगा,लेकिन फिर तुरंत दूसरी, पहले से भी खड़ी चढ़ाई, सामने, चुनौती देती हुई प्रकट हो जाती।कैलाश पर्वत का यह मार्ग कोई मार्ग नहीं था।हम तो केवल कैलाश पर्वत की तरफ सीधे अनुमान से ही ,मार्ग में पड़े बड़े बड़े पथरों,टेढ़े मेढे किनारों पर मजबूती से प्रत्येक कदम सम्हाल सम्हाल कर रखते हुए चल रहे थे,इसमें अधिक समय लग रहा था,ऊपर से मुझे सांस लेने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। अतः मेरी ऊपर चलने की गती अत्यंत धीमी हो गई थी।अब चूंकि मेरे बाकी तीनों साथी अभी तक ठीक थे,तो वे तेज गति से ऊपर जाने को बेकरार होने लगे थे।मैने एक स्थान पर रुकते हुए उनसे निवेदन किया किआप चलिए मै आपके पीछे पीछे धीमी गती से ही आऊंगा,लेकिन आऊंगा जरूर।मेरे अनुरोध पर वे तीनों आगे चले गए और मै रुक रुक कर,अपनी सांस को नियंत्रित करते हुए आगे बढ़ने लगा।शीघ्र ही उन साथियों और मेरे मध्य दूरी का अंतर काफी अधिक होने लगा।लगभग 1 किलो मीटर की तीव्र चढाई चढ़ने के पश्चात् अचानक मेरी तकलीफ और बढ़ने लगी।हालांकि कैलाश पर्वत अब मुझे एकदम अपने नजदीक लग रहा था लेकिन चढाई और सीधी, और कठिन होती जा रही थी,साथ साथ ही मेरी सांस लेने की तकलीफ और बढ़ने लगी थी। मै अब और आगे जाने की स्थिति में नहीं लग रहा था।सहसा मुझे यात्रा आरंभ करने से पहले डाक्टरों की सलाह याद आई कि अगर चढाई चढ़ते हुए कभी ऐसी परिस्थिति आए तो चूसने वाली मीठी टॉफियां को मुख में रख कर चूसने लग जाओ।इस से गला नम बना रहेगा और सांस लेने में आसानी होने लगेगी।इस बात की याद आते ही मैने अपने कोट की जेबों में हाथ डाला तो हैरान रह गया।यात्रा की जल्दबाजी में , मै टॉफियां के साथ साथ पोर्टेबल ऑक्सीजन का सिलिंडर भी पड़ाव पर ही भूल आया था।अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं  हर हालातों में कैलाश पर्वत के चरण छूने के लिए कटिबद्ध था। मै एक पत्थर के टुकड़े के ऊपर बैठ कर अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयत्न करने लगा।मेरे बिल्कुल सामने विशाल कैलाश पर्वत कुछ ही दूरी पर जैसे मुझे होंसला दे रहा था कि धीरज रखो ,सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन मेरी सांसे थी कि कंट्रोल में नहीं आ पा रही थी।अब मै निराशा के झूले में झूलने लगा था कि इतने पास आकर भी क्या मेरी यह इच्छा अधूरी ही रह जाएगी।मैने अपनी आंखे बंद की,हाथों को जोड़ा और करुणा भाव से, भोले नाथ, से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे महा देव , मै बड़ी ही उम्मीदों के साथ आपके दर्शन करने,आपके चरणों को स्पर्श करने आया हूं , मेरे जीवन की इस सब से बड़ी अभिलाषा को पूर्ण होने दो हे प्रभू।अब आपके दर्शनों के अलावा मेरी कोई अन्य इच्छा नहीं है प्रभु। वास्तव में , मै उस समय हृदय से ,कैलाश पर्वत के सामने ,बस थोड़ी सी ही दूरी पर बैठ प्रार्थना कर रहा था कि तभी अचानक किसी ने मुझे आवाज दी!,मैने चौंक कर अपनी आंखे खोली तो देखा ,मेरे सामने एक तिब्बती, वेश भूषा में ,सर पर गोल हेट पहने , प्रोढ़ उम्र का अजनबी खड़ा है।उसकी भाषा मेरी समझ में नहीं आई,मैने प्रश्न वाचक नजरों से उसे देखा ,तो उसने मुझे बांए हाथ की उंगली उठा कर ऊपर कैलाश पर्वत की ओर चलने का इशारा किया ,मगर मेरी हालत इतनी पस्त थी कि मैने ना में गर्दन हिला दी क्योंकि उस समय मै बोलने में भी असमर्थ था फिर उसने पुनः उस उंगली को अपना मुख खोल कर अंदर कुछ खाने को कहा। मै समझ गया कि वो मुझे टॉफी मुख में रख कर चूसने के लिए इशारा कर रहा है ताकि मै सांस लेने में समर्थ हो जाऊं,मगर मैने फिर इनकार में सिर हला दिया और हाथ उठाकर टॉफी नहीं होने का इशारा ही किया।तब उसने अपने पहने हुए पुराने से कोट की जेब में से एक नरम बर्फी जैसे आकर वाली,गहरे भूरे रंग वाली ,नरम सी मिठाई,जी हां मै मिठाई ही कहूंगा ,निकाली और मुझे मुख में रखने को कहा।उस समय मेरी शारीरिक दशा ऐसी थी कि बगैर सोचे समझे मैने अपनी हथेली फैला दी।उसने वह मिठाई नुमा वस्तु मेरी हथेली में रख दी।मुझे वह चीज एक दम नरम सी प्रतीत हुई,और बगैर सोचे समझे मैने  उसे अपनी जीभ पर रख दी।मुझे एक दम मीठे का स्वाद महसूस हुआ,लेकिन वास्तव में वह मिठाई जैसी वस्तु ना तो बर्फी थी,ना चॉकलेट थी और ना ही पनीर की कोई मिठाई थी।इस एक सप्ताह की यात्रा में , मै जान चुका था कि पूरे तिब्बत में मिठाई जैसी कोई भी खाने की वस्तु कहीं नहीं मिलती है।खैर ,मैने उस बर्फी जैसी नरम, मीठी वस्तु को अपनी जीभ मे-रख, मुख बंद कर लिया।तब वो तिब्बती मुझे ऊपर कैलाश पर्वत पर जाने का इशारा करते हुए आगे चला गया। मै उस समय इतना परेशान था कि मै आंखे बंद कर,अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयत्न करने में ही लगा हुआ था ।कुछ ही समय में ,मुझे अहसास होने लगा कि मेरी तबीयत अब कुछ ठीक हो रही है।समय तेजी से बीत रहा था, इस लिए मैने पूरी हिम्मत लगा कर अपने को खड़ा किया ओर एक एक कदम रखते हुए धीरे धीरे ऊपर ,कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित कैलाश पर्वत की ओर बढ़ चला।
        लगभग आधे घंटे बाद,पूरी शक्ति लगाने के पश्चात्  मै पवित्र कैलाश पर्वत के सम्मुख हाथ जोड़े खड़ा था। मेरे मुख में अभी तक उस तिब्बती द्वारा दी गई मिठाई का एक छोटा सा हिस्सा बचा हुआ था। आज मेरे जीवन की सबसे बड़ी कामना ,महादेव के निवास स्थल ,पवित्र कैलाश के दर्शन,उनकी चरण पूजा का अत्यंत दुर्लभ सौभाग्य ,जो कि ऋषियों,मुनियों को भी अत्यंत दुर्लभ होता है,और जिसके बारे में मान्यता है कि अनेकों पूर्व जन्मों के पुण्यों से ही पवित्र कैलाश पर्वत के चरणों की पूजा और उनके स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त होता है,  पूर्ण हो रही थी। मै अब सब दुनिया के सारे रिश्ते नाते,सब कुछ को भुला कर इस पवित्र गहरे काले रंग के विशाल पवित्रतम पर्वत ,जिस पर ऊपर से नीचे तक शुभ्र बर्फ ,एक विशाल सफ़ेद कम्बल की तरह बिछी हुई थी,के सम्मुख अपनी आंखो को पूरी तरह बंद किए जाने कब तक खड़ा रहा था।जितनी भी भगवान शिव की स्तुति,मंत्र ,भजन आदी जो भी मुझे पूरी तरह कंठस्थ थे ,मै उन सबको भूल कर एक अलग सी ,अजीब सी अध्यात्म की दुनिया में डूबा हुआ था।अब इस समय मेरे हृदय में ना किसी कामना की,ना किसी प्रार्थना की ओर ना किसी वरदान का कोई स्थान  था।एक तरह से मै आत्म विस्मरत की दूसरी दुनिया में पूरी तरह डूबा हुआ था। मुझे ज्ञात नहीं की मै कब तक इस स्थिति में खड़ा रहा था कि अचानक पुनः मुझे किसी की आवाज सुनाई दी।तुरंत मैने आंखे खोली तो देखा कि मेरे सामने मेरे तीनों सहयात्री खड़े थे।
           "अरे इतना अधिक समय कैसे लगा आपको यहां तक आने में" ये प्रश्न मेरे मेरठ के यात्री मित्र जो कि स्वयं एक डाक्टर थे ने पूछा। मै, जो अब नार्मल होने लगा था,अपनी तबीयत खराब होने से लेकर यहां तक कैसे पहुंचा,इसके बारे में उन्हें संक्षिप्त में बताने लगा।सहसा मुझे मार्ग में मिले प्रौढ़ तिब्बती का स्मरण हो आया।मैने उन सबसे पूछा ,वो मुझ से पहले जो तिब्बती इधर  आया था वो दिख नहीं रहा है, वो किधर गया? " कौन सा तिब्बती,इधर तो कोई तिब्बती नहीं है और ना ही कोई आया है,हम सब के अलावा यहां कोई और नहीं है ,स्वयं ही देखलो"।मैने अपनी नजर इधर उधर ,चारों ओर डाली,अच्छी तरह से सब तरफ देखा,मगर हम चारों के अतिरिक्त कोई भी नहीं था,था तो सिर्फ विशाल,पवित्र कैलाश और हम चार यात्री।" लगता है आपकी तबीयत ठीक नहीं है इस लिए आप ऐसी बात कर रहे हैं"डाक्टर साहब ने मुझ से कहा।" हां, मै पूरी तरह स्वस्थ नहीं हूं ,मगर मै सत्य कह रहा हूं,उस तिब्बती के कारण ही मै यहां तक पहुंच पाया हूं,विश्वास ना हो तो देखो और मैने अपनी जीभ निकाल कर उन सबको दिखाई,देखो उस तिब्बती द्वारा चूसने के लिए जो मीठी वस्तु मुझे दी थी,उसका एक छोटा सा शेष टुकड़ा अभी भी मेरी जीभ पर बचा हुए है"।कहने की आवश्यकता नहीं है कि उन्हें मेरी बात का विश्वास करना पड़ा और वे सब आश्चर्य में डूब गए।तभी मुझे भी समझ में आया कि मुझे मार्ग में कोन मिला होगा!बिल्कुल सत्य कहता हूं कि उस समय , भावावेश में मेरा गला रूंध गया ,मेरी आंखे आसुओं से भर गई ,अब मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि स्वयं भगवान महादेव ने मेरी करुण पुकार सुन कर ,मेरी आत्मा की पुकार सुनकर,मुझे  यहां तक पहुंचाया था।आज तक मुझे भगवान शिव की इस कृपा का अहसास है और अंतिम स्वांस तक रहेगा चाहे आप या कोई अन्य भी विश्वास करे या ना करे। मै उस क्षण उस पवित्र कैलाश के चरणों में दंडवत लेट गया और दोनों हाथ जोड़ कर उनके ध्यान में खो गया।उस समय जमा देने वाली तीव्र ठंड,बर्फ और जमा देने वाले,पवित्र कैलाश के स्वयं चरणों से बहती जलधारा का ,मेरे शरीर पर कोई प्रभाव नहीं था ,शायद मै उस समय स्वयं उस पवित्र कैलाश का ही एक अंश बन गया था!
          थोड़े ही समय बाद मेरे तीनों मित्रों ने मुझे उठाया तो जैसे में वर्तमान में लौट आया।" चलिए अब काफी समय बीत चुका है ,कुछ ही समय में रात्रि का अंधकार छा जाएगा,हमें वापस अपने पड़ाव पर भी जाना है"।अरे हां इस यात्रा में मेरे साथ मेरी धर्म पत्नी श्रीमती आशा जी भी तो आई हुई हैं, हां ,मुझे उनके लिए,अपने इन्तजार में बैठे दोनों बेटों के लिए भी  वापस भी लौटना है। मैने फिर से उस पवित्र कैलाश पर्वत के चरणों में अपना सिर झुकाया,अंतिम बार हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और वापसी के लिए मुड़ने लगा।तभी मुझे ख्याल आया कि मै इस पवित्र कैलाश पर्वत के कुछ अंश जो कि छोटे छोटे टुकड़ों में नीचे बिखरे हुए थे को उठा कर अपने साथ ले चलूं ,उन्हें विधि पूर्वक अपने पूजा के कक्ष में स्थापित करूं जिससे मुझे उनके प्रतिदिन दर्शनों का लाभ मिलता रहे।मैने उस पवित्र कैलाश के कुछ अंश हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए चुन  लिए और अपने को धन्य कर लिया।
       वापसी से कुछ क्षण पहले मैने मित्र डाक्टर से अनुरोध किया कि मेरे मोबाइल से इस यादगार ,अनमोल समय की कुछ फोटो ले लें ,क्योंकि मैअभी भी ठीक हालत में नहीं हूं ।उन्होंने मुझ पर कृपा दिखाते हुए ,उस अनमोल समय की कुछ अनमोल फोटो खींची जो अब मेरे जीवन की अमूल्य निधि हैं।आप सब के दर्शनार्थ मै इस यात्रा की कुछ फोटो भी इस यात्रा विवरण के साथ दिखा रहा हूं,ताकि आप भी मेरे साथ इस अद्भुत क्षण का आनंद ले सकें।
            अब हम चारों वापसी के लिए पड़ाव की ओर चल पड़े।अब एक दम सीधी, तीव्र ढलान थी।शाम का धुंधलका छाने लगा था,।जैसे कि आपको पहले बता चुका हूं कि दूरी तो केवल 2.8  किलो मीटर ही थी,मार्ग भी चढाई के बजाए ढलान का था ,मगर कोई पगडंडी भी ना होने से आने की तरह नीचे जाने का मार्ग भी खाइयों,बड़े बड़े उबड़ खाबड़ पथरों का ही था इस लिए वापसी में भी ऊपर आने जितना समय लगना था, और अब हम नीचे की ओर चल पड़े थे।कुछ दूर नीचे चलते ही मुझे समझ आने लगा था कि आशा के विपरित मुझे नीचे उतरने में भी तकलीफ हो रही थी,जिसके कारण मै तेज नहीं चल पा रहा था ।थोड़ी दूर धीरे धीरे नीचे चलते ही अंधेरा और घना होने लगा। मैने देखा कि मेरे कारण  मेरे तीनों मित्र भी धीरे धीरे चल रहें है।मैने मन ही मन एक निर्णय लिया और तीनों से अनुरोध किया कि आप तेजी से चल सकते हो इस लिए मुझे छोड़ कर आप तीनों शीघ्र पड़ाव पर चले जाओ,क्योंकि मेरी तबियत खराब है ,मुझे मेडिकल सहायता की तीव्र आवश्यकता है ,इस लिए जब तक मै नीचे पड़ाव तक आऊं,तब तक आप नीचे जल्दी जा कर मेडिकल का इंतजाम करलो।मेरी इस बात में दम था इस लिए अनिच्छापूर्वक ही सही वे मुझे छोड़ कर तेजी से नीचे उतरने लगे और कुछ ही क्षण में मेरी आंखों से ओझल हो गए। मै पुनः एक एक कदम सावधानी पूर्वक रख कर नीचे की ओर चलने लगा। 1 घंटा बीत गया,। 1 किलो मीटर का सफर भी पूरा हो गया,तब तक अंधेरे ने पूरे मार्ग को अपने घेरे मे ले लिया था।मुझे अपने आस पास कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।केवल दूर नीचे आधे किलो मीटर पर स्थित पड़ाव के जलते बल्बों की रोशनी ही मेरा मार्ग निर्धारण कर रही थी। मैंने पुनः भगवान महादेव की प्रार्थना करते हुए कहा कि, हे महादेव आपने मुझे अपने दर्शन,चरणों की पूजा का अवसर देकर बड़ी ही कृपा की है, प्रभु मुझ पर इतनी और कृपा करो कि मेरी प्रतीक्षा में बैठे मेरे परिवार तक मै सकुशल वापस पहुंच जाऊं। फिर एक बार महा देव की अनुपम कृपा के कारण ही ,धीरे धीरे ,कष्ट होने,घुप अंधेरा होने के बावजूद मै लगभग 9बजे रात्रि को पड़ाव तक आ ही पहुंचा।पड़ाव के आठों कमरों में तीव्र ठंड होने के करण सारे यात्री अपने अपने कमरे में बैठे थे।बाहर कोई नहीं था।मेरी तकलीफ अब  सहने कीसीमा पार कर रही थी।मुझे अब शीघ्र मेडिकल सहायता की आवश्यकता थी।वो तो संयोग से हमारे ग्रुप में 3 अनुभवी डाक्टर भी थे,दवाइयों का पैकेट , ऐसे ही वक़्त के लिए भारत सरकार ने हमारे साथ रखा था।जैसे ही मैं पड़ाव के पहले कमरे के सामने पहुंचा,मुझे नहीं पता कि मै सहायता के लिए किसे पुकारूं,इस लिए मैने अपनी पत्नी आशा का नाम लेकर ,पूरी शक्ति से चिल्लाया " आशा...मुझे जल्दी से ऑक्सीजन लगाओ,पानी पिलाओ" कह कर जो भी सामने खाली बिस्तर दिखाई दिया उसी पर लेट गया।चूँकि शायद मेरी इस हालत की जानकारी मेरे तीनों मित्रों ने पहले ही सब को दे दी थी,इस लिए सब इस परिस्थिति से निपटने को पूरी तरह तैयार थे।अगले ही पल मै अर्ध बेहोशी में डूब गया।.....बाद में ,सुबह सबने बताया कि उन्होंने मेरे उपचार में क्या क्या किया था।ठीक हो कर मैने भगवान शिव और सारे साथियों को धन्यवाद पूरे ह्यदय से दिया, और सबके अहसानों का बोझ जीवन भर के लिए एकत्रित कर लिया।चूँकि अब हम चारों वापसी के लिए पड़ाव की ओर चल पड़े।अब एक दम सीधी, तीव्र ढलान थी।शाम का धुंधलका छाने लगा था,।जैसे कि आपको पहले बता चुका हूं कि दूरी तो केवल 2.8  किलो मीटर ही थी,मार्ग भी चढाई के बजाए ढलान का था ,मगर कोई पगडंडी भी ना होने से आने की तरह नीचे जाने का मार्ग भी खाइयों,बड़े बड़े उबड़ खाबड़ पथरों का ही था इस लिए वापसी में भी ऊपर आने जितना समय लगना था, और अब हम नीचे की ओर चल पड़े थे।कुछ दूर नीचे चलते ही मुझे समझ आने लगा था कि आशा के विपरित मुझे नीचे उतरने में भी तकलीफ हो रही थी,जिसके कारण मै तेज नहीं चल पा रहा था ।थोड़ी दूर धीरे धीरे नीचे चलते ही अंधेरा और घना होने लगा। मैने देखा कि मेरे कारण  मेरे तीनों मित्र भी धीरे धीरे चल रहें है।मैने मन ही मन एक निर्णय लिया और तीनों से अनुरोध किया कि आप तेजी से चल सकते हो इस लिए मुझे छोड़ कर आप तीनों शीघ्र पड़ाव पर चले जाओ,क्योंकि मेरी तबियत खराब है ,मुझे मेडिकल सहायता की तीव्र आवश्यकता है ,इस लिए जब तक मै नीचे पड़ाव तक आऊं,तब तक आप नीचे जल्दी जा कर मेडिकल का इंतजाम करलो।मेरी इस बात में दम था इस लिए अनिच्छापूर्वक ही सही वे मुझे छोड़ कर तेजी से नीचे उतरने लगे और कुछ ही क्षण में मेरी आंखों से ओझल हो गए। मै पुनः एक एक कदम सावधानी पूर्वक रख कर नीचे की ओर चलने लगा। 1 घंटा बीत गया,। 1 किलो मीटर का सफर भी पूरा हो गया,तब तक अंधेरे ने पूरे मार्ग को अपने घेरे मे ले लिया था।मुझे अपने आस पास कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।केवल दूर नीचे आधे किलो मीटर पर स्थित पड़ाव के जलते बल्बों की रोशनी ही मेरा मार्ग निर्धारण कर रही थी। मैंने पुनः भगवान महादेव की प्रार्थना करते हुए कहा कि, हे महादेव आपने मुझे अपने दर्शन,चरणों की पूजा का अवसर देकर बड़ी ही कृपा की है, प्रभु मुझ पर इतनी और कृपा करो कि मेरी प्रतीक्षा में बैठे मेरे परिवार तक मै सकुशल वापस पहुंच जाऊं। फिर एक बार महा देव की अनुपम कृपा के कारण ही ,धीरे धीरे ,कष्ट होने,घुप अंधेरा होने के बावजूद मै लगभग 9बजे रात्रि को पड़ाव तक आ ही पहुंचा।पड़ाव के आठों कमरों में तीव्र ठंड होने के करण सारे यात्री अपने अपने कमरे में बैठे थे।बाहर कोई नहीं था।मेरी तकलीफ अब  सहने कीसीमा पार कर रही थी।मुझे अब शीघ्र मेडिकल सहायता की आवश्यकता थी।वो तो संयोग से हमारे ग्रुप में 3 अनुभवी डाक्टर भी थे,दवाइयों का पैकेट , ऐसे ही वक़्त के लिए भारत सरकार ने हमारे साथ रखा था।जैसे ही मैं पड़ाव के पहले कमरे के सामने पहुंचा,मुझे नहीं पता कि मै सहायता के लिए किसे पुकारूं,इस लिए मैने अपनी पत्नी आशा का नाम लेकर ,पूरी शक्ति से चिल्लाया " आशा...मुझे जल्दी से ऑक्सीजन लगाओ,पानी पिलाओ" कह कर जो भी सामने खाली बिस्तर दिखाई दिया उसी पर लेट गया। शायद मेरी इस हालत की जानकारी मेरे तीनों मित्रों ने पहले ही सब को दे दी थी,इस लिए सब इस परिस्थिति से निपटने को पूरी तरह तैयार थे।अगले ही पल मै अर्ध बेहोशी में डूब गया।बाद में सुबह सबने बताया कि उन्होंने मेरे उपचार में क्या क्या किया था।ठीक हो कर मैने भगवान शिव और सारे साथियों को धन्यवाद पूरे ह्यदय से दिया, और सबके अहसानों का बोझ जीवन भर के लिए एकत्रित कर लिया।

           हालांकि मेरी पूरी इच्छा थी कि मै अन्य साथियों के साथ शेष  2 दिनों की कैलाश पर्वत की परिक्रमा करूं ,मगर मेरी हालत को देख कर पत्नी सहित सब एकमत थे कि मुझे ये परिक्रमा नहीं करनी चाहिए,वैसे भी आपने जो चरण पूजा का अवसर प्राप्त किया है उसका महत्व इस परिक्रमा के समान ही है, अतः" जान है तो जहान है ",जीवन में फिर कोई मौका मिलेगा तो इसे फिर कर लेना" की बात मान कर मै वापस डार चिन के होटल के लिए वापस लौट गया ,शेष यात्री अपने आगे की परिक्रमा पूर्ण कर के  2 दिन बाद फिर मिलेंगे के वायदे के साथ आगे बढ़ गए।मेरे साथ मेरी पत्नी आशा भी लौट आई ,हालांकि मैने उनसे बहुत अनुरोध किया कि वे अपनी परिक्रमा पूरी कर ने के लिए यात्रियों के साथ चली जाएं,मगर उन्होंने मेरी एक ना सुनी और दृढ़ निश्चय के साथ मेरे साथ वापस डार चिन लौट आई।मुझे उन पर हमेशा गर्व रहेगा ।साथ ही मुझे भारतीय नारी के त्याग पर गर्व ओर विश्वास पूरी तरह से भी हो गया!
           ( अगली इस यात्रा के अंतिम भाग 4  में ,मेरे साथ पुनः पवित्र मानसरोवर झील  में मानसिक स्नान अवश्य करें)

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

यात्रा……. कैलाश मानसरोव PART: 2

  यात्रा  …………. कैलाश      मानसरोवर…... पार्ट   2
          यात्रा……. कैलाश  मानसरोव PART: 2

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  "हर हर महादेव  बम बम भोले" इन उदघोषों के साथ हम 6 दिनों की अविस्मरणीय यात्रा  के लिए एक अपरिचित लेकिन बहू प्रतीक्षित मार्ग पर बढ़ चले।सभी सह यात्री 2 बसों में आराम सेखिड़की से बाहर उच्च हिमालय के विशाल परन्तु मनोरम घाटियों को निहारते तीव्र ढलानों पर इ तरह  नीचे की तरफ बढ़ रहे थे जैसे हम बस में नहीं अपितु हवा के कोमल गद्दों पर सवार थे।दूर दूर ,चारों तरफ हरियाली की चादर फेली हुई थी। 
       करीब 3 घंटो की यात्रा के बाद हर भरे खूबसूरत पहाड़ों के मध्य एक बड़े से शहर में हमारी बसों ने प्रवेश किया। जब हमने बस के अंदर मोजूद गाइड से इस शहर का नाम पूछा तो हमें एकनई कठिनाई का सामना करना पड़ा ।गाइड से जब बात करने की कोशिश की तो पता चला कि उसका भाषा ज्ञान केवल चीनी भाषा तक ही सीमित था।बहुत जोर देने, समझाने के बाद हमें केवल इतना ही समझ आया कि इस शहर का नाम टोंबो है।यहां मै अपने पाठकों को यह बताना चाहूंगाकि आगे आने शहरों से, जहां हमारी बस, यात्रा के दौरान गुजरी थी ,उन सबके नाम चीनी भाषा में होने के कारण इतने अजीब थे कि हम भी उनको ना तो हिंदी या अंग्रेजी में बोल सकते है और ना ही लिख सकते हैं,इसलिए इस यात्रा वर्णन में ,हम उनका नाम, प्रतीक शब्दों में ही लिखेंगे।
       हमारी बसें जिस होटल के सामने रुकी,उसके मुख्य गेट के ऊपर ही एक कपड़े का बोर्ड टंगा था जिसपर चीनी भाषा में ही कुछ लिखा था।हम सब यात्रियों ने यही माना कि शायद उस पर हमारी कैलाश मानसरोवर के यात्रियों के स्वागत में ही कुछ लिखा होगा।सब यात्री बसों से उतर कर होटल के अंदर प्रवेश कर गए।होटल काफी बड़ा और आधुनिक था।अंदर एक बडा हाल था जिसमें खूबसूरत डेकोरेशन के साथ काफी अधिक संख्या में कुर्सी मेज लगी हुई थी।हाल के एक दम किनारे शीशे की बड़ी दीवार थी जिसके एकदम बगल में एक तीव्र जल धारा के साथ ऊपर पहाड़ों से उतरती नदी बह रही थी।उसके दूसरे किनारे पर हरियाली से भरपूर जंगल दिखाई दे रहा था।यह सारा दृश्य एकअद्भुत और मनभावन था।अधिकांश यात्रियों ने इस शीशे की दीवार के समीप लगी मेज कुर्सियों पर ही स्थान ग्रहण कर लिया था।उन सबकी नजर तो बगल मे बहती जल धारा पर थी मगर मेरी नजर होटल की खूबसूरत वास्तुकला पर और कर्मचारियों पर थी।सारे कर्मचारी मनमोहक वर्दी में सजे नम्रता से झुके नजर आ रहे थे,मगर यहां भी वही भाषा की कठिनाई।हमारे देश में स्थित छोटे से लेकर बड़े होटलों ,जिनमें अंग्रेजी में बोलना स्टेटस सिंबल का प्रतीक माना जाता  है,अपनी मातृ भाषा या हिंदी में बोलने को स्टैंडर्ड से नीचे समझा जाता है वहीं वे केवल चीनी भाषा ही समझ और बोल सकते थे। शीघ्र ही हमें समझ में आ गया कि ये कर्मचारी केवल अपने देश की मातृ भाषा बोलने में गौरव का अनुभव करते है,भले ही उनके व्यापार में जो चाहे हो। खेर चूंकि इशारों की भाषा पूरी दुनिया में एक सीही होती है इस लिए थोड़ी कठिनाइयों के बाद हम सारे यात्रियों और उन कर्मचारियों के मध्य एक ऐसी संवाद की भाषा का पुल बन गया जिसके बाद देशों के अंतर का कोई स्थान नहीं था। सारे यात्रियों से सरकार द्वारा निर्धारित यात्रा की फीस जो की केवल अमेरिकन डालर में थी चीनी अधिकारियों द्वारा लेने के पश्चात हमें भोजन के स्थान पर चलने का आग्रह किया गया।सारे यात्री सुबह से केवल नाश्ते पर ही थे अतः तेजी से भोजन के स्थान पर लपके। हमारे भोजन की कल्पना में तो जहां विविध प्रकार के भारतीय व्यंजन थे वहीं जब इस होटल के बफे सिस्टम के भोजन को देखा तो चक्कर खा गए।भोजन की बड़ी सी टेबल पर आठ आठ की समूह में ट्रे में भोजन था।क्या था… सुनिए " आलू के बने नूडल्स,छोटी छोटी कटी ,उबली गोभी के टुकड़े,टमाटर की फांके, कटे हुए सेब,साथ में उबले गठीले चावल के साथ चोप स्टिक।बगल में नमक की शीशी और बड़े से कप में लाल मिर्ची की चटनी। कैसे खाएं,क्या खाएं,इसी असमंजस में कुछ समय बिताने के पश्चात ,और कोई ऑप्शन ना होने के कारण जैसे तेसे खाया,साथ ही समझ में आ गया कि आगे यात्रा में भोजन केसा होगा! 




        भोजन के बाद ,फिर बस यात्रा आरंभ हो गई।बल खाती सड़कों पर ,पहाड़ों पर चड़ते उतरते,हर हर महादेव के जय घोष करते लगभग 9 घंटो की यात्रा के पश्चात् दिन डूबते डूबते एक छोटे से कस्बे के पास स्थित लेकिन आलीशान गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम के लिए रुके।यहां हम सब का ध्यान एक अजीब सी बात पर गया कि जहां हमारी बस के आगे पीछे पुलिस की गाड़ियां चल रही थी वहीं गेस् हाउस में पहुंचते ही और दो जीप आ गई जिनसे काला चश्मा पहने कुछ लोग हमारे गेस्ट हाउस के चारों तरफ फेल गए।थोड़ी घबराहट तो हुई परन्तु इस बात से निश्चिंत भी थे कि यह यात्रा भारतीय सरकार के द्वारा ,उसके सरंक्षण में हो रही थी,विश्वास था कि हमारे साथ भारत की सरकार भी थी।सारे यात्री अपने निर्धारित स्थानों पर रुक कर फ्रेश हो कर जब भोजन के नियत स्थान पर पहुंचे तो वार्ता लाप का मुख्य विषय यात्रा के अलावा काले चश्मे वाले भी थे।तब टूर गाइड ने जानकारी लेने के पश्चात बताया ये सब हमारी सुरक्षा के लिए हैं।लेकिन धीरे धीरे हमें ज्ञात हो गया कि सुरक्षा के नाम पर हमारी निगरानी हो रही है।असल में बात यह थी कि भारत तिब्बत की आजादी का समर्थक है,दलाईलमा जी को हमने शरण दी हुई है,जबकि चीन तिब्बतियों कि आजादी का विरोधी है तो चीनी अधिकारियों को शक रहता है कि कहीं भारतीय यात्री ,कोई तिब्बत समर्थन में कुछ ऐसा कार्य ना करदें,जिससतिब्बतियों और उनके समर्थकों का उत्साह वर्धन हो।इस लिए ये अधिकारी हम कैलाश यात्रियों की सुरक्षा के नाम पर निगाह रख रहे थे!अब रहीं भोजन की बात तो अब थोड़ी गनीमत थी ।पता चला कि भारत सरकार ने हम यात्रियों के साथ एक रसोइयों का दल भी भेजा था जो यात्रा के विभिन्न पड़ावों में सुबह शाम हमारे भोजन का इंतजाम करते थे। वाह,भोजन में इस पहली यात्रा के पहले पड़ाव में पूरे दिन के बाद अपने देश का भोजन सामने देख कर जो स्वाद की अनुभूति हुई,सच कहता हूं कि उसके सामने 5 स्टार के होटल का भोजन भी फीका लगता।तृप्ति के साथ भोजन करके ठंड में ठिठुरते ,पहली बार जमादेने वाली ठंड का अहसास हुआ।तब समझ में आया कि हम हिमालय के देश में लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर हैं और अगले 6 दिन तक ये ऊंचाई भी 19000 फुट तक हो जाएगी।रात और ठंड ने हम सब को गरम गरम रजाई में घुस जाने को मजबूर कर दिया ।
       सुबह के 4 बजे सारे यात्रियों को जबरदस्ती उठा दिया गया क्योंकि इतनी ऊंचाई पर ,हिमालय के आस पास शाम के 3 बजते बजते अक्सर मौसम का मिजाज बिगड़ने लगता है और बादल,बरसात की संभावना हो जाती है।फिर क्या था उठना ही पड़ा ,मुंह हाथ धोकर तैयार हुए तब  तक 5 बजते नाश्ता भी तैयार हो गया और गर्म गर्म चाय ,ब्रेड,आदी खा कर अगले दिन के सफर में पवित्र कैलाश मानसरोवर के दर्शनों की अभिलाषा लिए बस में सवार हो गए।
       हर हर महादेव के जय घोष के साथ पुनः दूसरे दिन की यात्रा आरम्भ हो गई ।जैसे जैसे हमारी बस हिमालय की ऊँचाइयों में चढ़ने लगी आस पास का नजारा भी बदलने लगा।अब हरियाली के स्थान पर छोटी छोटी सूखी हरी झाड़ियां नजर आने लगी,साथ ही हरे भरे पर्वत भी बगैर हरियाली के सूखे, भूरे उजाड़ पथरीले से होने लगे।दूर दूर तक काली चिकनी सड़क ही नजर आती थी ,किसी बस्ती का नामो निशान तक नहीं था।सहज ही समझ में आ गया कि इस अत्यंत दुर्गम,ठंडे ,ऊंचे स्थान पर मानवीय जीवन कितना संघर्ष पूर्ण होगा।सड़क पर आने जाने वाहन भी गिने चुने ही थे।घंटो के बाद ही कोई वाहन आता जाता  नजर आता था।अब सवाल ये था कि इस इतने दुर्गम स्थान होने के बाद भी आखिर चीन ने क्यों तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया था।इस प्रश्न का उत्तर भी थोड़ी देर में हमें मिल गया।लगभग हर 50 किलो मीटर के पश्चात् सड़क के दोनों ओर सीमेंट की,खनिज पदार्थों की खुदाई के लिए फ़ैक्टरी ही फ़ैक्टरी नजर आने लगी।अर्थात चीन ने इस प्राकृतिक सम्पदा को मुफ्त में पाने के लिए ही तिब्बत की कमजोर शासन व्यवस्था को हराकर अपना कब्ज़ा कर लिया था।इसके अलावा हिमालय का यह भाग ही पूरे भारत और चीन प्रायद्वीप की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल है जिनसे पूरे क्षेत्र की पानी की आवश्यकता पूरी होती है।लेकिन हमें क्या,हम तो एक धार्मिक यात्रा ही पर निकले थे।
दोपहर के भोजन के लिए हमारी यात्रा का विराम 1 बजे के करीब एक सुनसान से स्थान पर सड़क के किनारे बने एक सजे हुए से तंबुओं में हुआ।शायद हमारी यात्रा के लिए ही


इसको बनाया गया था ।हमारी बसों के साथ ही हमारी सुरक्षा के लिए लगी पुलिस जीपों ओर एंबुलेंस भी रुक गई।कई यात्रियों ने उनसे संवाद की कोशिश की मगर शायद भाषा का बहाना के कर किसी ने भी हमारी किसी बात का उत्तर नहीं दिया।अब इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि चीनी भारतीयों को अविश्वास की नजरों से ही देखते हैं।शायद उन्हें भी आदेश होगा की वे यात्रियों से घुले मिले नहीं और एक बात, वे हम यात्रियों को विश्राम स्थलों से बाहर भी नहीं जाने देते थे।यानि की धार्मिक यात्रा के केदी  जैसे की हमारी स्तिथि थी!खेर हमें क्या।हम तो भोले भंडारी के दर्शनों के लिए ही उत्सुक थे। भोजन के लिए रुके तो हम यह देख कर हैरान रह गए की हमारे साथ भारत से आए रसोइयों ने सुबह हम से भी पहले ना जाने कब उठ कर भोजन बना लिया था और हॉट केस में से अब गरमागरम भारतीय भोजन हमें परोस दिया गया था।भोजन के पश्चात फिर से हमारी यात्रा आरंभ हो गई और उसी बलखाती निर्जन सड़क पर लगातार चलते चलते शाम 4 बजे तक पिछली रात की ही तरह गेस्ट हाउस में पहुंच गए।




        अब अगले 3 तक ऐसे ही अनुभवों को लेते हुए सुबह जल्दी उठते,शाम को गेस्ट हाउस में रात बिताते ,निर्जन सड़क से उजाड़ पहाड़ों को देखते ,बोरियत की सीमाओं तक पहुंचते आखिरकार 5  वे दिन को, दोपहर को अचानक हमारी बसें एक बड़ी सी झील के किनारे रुकी,ऊंघते यात्रियों को गाइड के द्वारा यह बताने पर की सामने दिख रही झील ही मानसरोवर झील है तो जैसे यात्रियों में तूफान सा आ गया।सब कुछ भूल,हर्ष से हर हर महादेव का जय घोष करते, श्रद्धा से परिपूर्ण,दोनों हाथ जोड़े पूरी तरह खुली लेकिन अश्रु भरीआंखों से ,सम्मोहित अवस्था में उस पवित्र मानसरोवर झील के दर्शन कर रहे थे जिसके दर्शन और जिसमें पवित्र स्नान की अभिलाषा प्राचीन काल से ही हर भारतीय ,चाहे वो साधु संत हो या गृहस्थ, के ह्रदय में होती है।दूर विशाल ,गोलाकार,शुद्ध नीले वर्ण की, मंद मंद उठती लहरों में दिखता नीले आकाश का प्रतिबिंब,चारों ओर से घिरी पर्वत मालाओं के प्रतिबिंब में जाने केसा आकर्षण था जो हमारे शब्दों की सीमाओं से परे था।  बता नहीं सकते कि ऐसी अद्भुत अवस्था में हम जाने कब तक डूबे खड़े रहे थे कि फिर गाइड ने हमें वापस वर्तमान अवस्था में ला खड़ा किया।हम सब ,सब, यात्राओं के सारे कष्ट,दुखों को भूल कर उस से स्नान करने को बड़ी अधीरता से आग्रह करने लगे।बड़ी मुश्किल से उसके ये समझाने पर कि अभी पहले पवित्र कैलाश के दर्शनों और परिक्रमा के लिए प्रस्थान करना है उसके बाद ही आपको मानसरोवर झील में स्नान का अवसर मिलेगा प्रत्येक यात्री दल माना।बस के पवित्र कैलाश मार्ग पर चलने तक प्रत्येक यात्री तब तक उस पवित्र मानसरोवर झील को निहारता रहा ,जब तक कि वो आंखों से पूरी तरह ओझल नहीं हो गई।


आखिर कार लगभग 2 घंटों के और सफर के पश्चात् हमारी यात्रा पवित्र कैलाश के चरणों में स्तिथ " डार चिन"नामके छोटे से कस्बे के बाहर यात्रियों के आरक्षण कार्यालय में समाप्त हुई।बस से उतरकर प्रत्येक यात्री का रजिस्ट्रेशन हुआ ओर जैसे ही हम सब कार्यालय से बाहर आए और सामने जो अभूतपूर्व दृश्य  देखा,वह हम सब के मन मस्तिष्क में हमेशा हमेशा के लिए अमिट हो गया। तुरंत ही सब जमीन पर दंडवत हाथों को प्रणाम की मुद्रा में लिए बिछ गए।सामने कुछ ही दूरी पर छोटे छोटे भूरे पर्वतों से घिरा " पवित्र कैलाश पर्वत" अपनी पूर्ण देविप्या में ,शुभ्र ,उज्जवल हिम से श्रृंगारित ,पूर्ण उच्यिता के साथ ,हमारी हजारों जन्मों की कामनाओं के पुरण हेतु भव्य रूप में हमें दर्शन दे रहा था।हमारी वाणी को जैसे विराम लग गया था।शायद हमारे मनुष्य रूपी अनेक जन्मों की कामनाओं को पूरा करने के लिए, इस संसार चक्र से मुक्ति हेतु हमें आशीष प्रदान कार रहा था ।उस समय विशेष की हम सब को जो अनुभूति हो रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस पवित्र कैलाश पर्वत में शुभ्र हिम के मध्य साक्षात भगवान शिव,देवों के देव महादेव हमें दर्शन दे रहे थे। उस समय विशेष का पूर्ण रूप से वर्णन करने में ,मेरे सारे शब्द कोष आज भी असमर्थ है।
      किसी तरह सब ने अपने आप को संयत किया और अगले दिन ,उस पवित्र कैलाश की पवित्र,निसंदेह भाग्यशाली मनुष्यों को ही ,जन्मों जन्मों के पुण्यों से ही मिलने वाली यात्रा की अधीरता लिए अपने निर्धारित विश्राम स्थल  हेतु चल पड़े। डार चिन का होटल बहुत शानदार था।सब को पूर्ण विश्राम के लिए कह दिया गया था क्योंकि अगले तीन दिनों की यात्रा पैदल ,लगभग 19000 की विशाल ऊंचाई, प्राणवायु " ऑक्सीजन"की कम उपलब्धता,बर्फ के विशाल ग्लेशियरों पर ,अत्यंत विषम परिस्थितियों में जो करनी थी।आखिर कार भगवान शिव ,अपनी स्वयं की परिक्रमा, जो कि इस संसार के आवागमन से मुक्ति प्रदान करती है,को पूर्ण करने हेतु एक बार और परीक्षा लेना चाहते थे।शाम को एक बार पुनः प्रत्येक यात्री के स्वस्थ्य की जांच डाक्टरों द्वारा की गई।सब यात्रियों को इस तीन दिवसीय यात्रा में आने वाली विषम परिस्थितियों से अवगत भी कराया गया और शुभ कामनाओं द्वारा पूर्ण विश्राम करने हेतु आग्रह किया गया ।


       प्रातः 5 बजे सब यात्रियों को उठाकर पुनः मेडिकल चेकअप किया और हलके नाश्ते के पश्चात् चिर प्रतीक्षित पवित्र कैलाश यात्रा हेतु  डार चिन से 5 किलो मीटर दूर यम द्वार , जहां से पवित्र कैलाश की पैदल तीन दिवसीय यात्रा आरम्भ होनी थी के लिए बस द्वारा रवाना कर दिया गया। सारा वातावरण हर हर महादेव के जय घोषों के साथ गुंजायमान हो गया।