मंगलवार, 14 जुलाई 2020

यात्रा……...करतार पुर साहिब (पाकिस्तान)

यात्रा……...करतार पुर साहिब  (पाकिस्तान)

                                                           
             
   गुरु नानक देव जी का निर्वाण स्थल



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         महान सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक जी के जीवन,उनकी धार्मिक यात्राएं एवम् उनके जीवन प्रवाह से तो शायद
ही कोई  अनजान हो ,परन्तु ये बात कुछ थोड़े लोग ही जानते हैं कि उनका जन्म स्थान "ननकाना साहिब और निर्वाण स्थल
करतार पुर साहिब" पाकिस्तान में स्थित है।सिख धर्म के अनुयाई के साथ साथ प्रत्येक भारतीय भी ऐसे महान धर्म गुरु के
उपरोक्त वर्णित स्थानों की यात्रा शायद जीवन में एक बार तो अवश्य करना चाहते हैं परन्तु आजादी के पश्चात् पाकिस्तान
के शत्रुता पूर्ण व्यवहार के कारण ये अत्यंत ही दुष्कर कार्य था।लेकिन भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी एवम् पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री श्री इमरान के कारण लाखों सिखों के साथ आम भारतीय की ये इच्छा इसी वर्ष  2019 अक्टूबर 25, को पूरी होने
में आ गई जब पाकिस्तान ने गुरु नानक देव जी के निर्वाण स्थल करतारपुर जो की भारत की सीमा से 5 किलोमीटर दूर
 पाकिस्तान के सोनवाल जिले में स्थित है तक पहुंचने के लिए एक विशेष मार्ग का निर्माण किया जिसे अब " करतार पुर
कोरिडोर" कहते है। मै जो बाल्यकाल से ही गुरुनानक जी के जीवन दर्शन से प्रभावित था इस सुअवसर को प्राप्त करने के
लिए ललक उठा।तमाम सारी आशंकों, चिंताओं ,एवम् लगभग सारे इष्ट मित्रो तथा परिवार के विरोध के बावजूद मैने दृढ़
निश्चय कर लिया कि मुझे गुरु नानक देव जी के निर्वाण स्थल " करतारपुर " जाना है तो जाना है । 25 अक्टूबर को जैसे ही
मीडिया से ज्ञात हुआ कि आज से करतारपुर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन आरम्भ होगा,मैने यात्रा की तैयारी हेतु कमर कसली,
फलस्वरूप 10 नवंबर को, जो की यात्रा का प्रथम दिवस था,के लिए ,आवेदन हेतु ओन लाइन की दुनिया में खो गया।
             अख़बारों में छपती खबरों के अनुसार मुझे ज्ञात हुआ कि करतार पुर जाने के लिए आपके पास ,पासपोर्ट,आधार
कार्डअवश्य होना चाहिए।करतारपुर जाने के लिए आपको 20 अमेरिकी डॉलर भी होने चाहिए जो की यात्रा के आरम्भ में
पाकिस्तान लेगा,इसके साथ ही यात्रा की तिथि से प्रातः सूर्य  से लेकर शाम सूर्य डूबने तक ही आप पाकिस्तान स्थित
करतारपुर में रह सकते हैं,उसके पश्चात आपको वापस भारत आना पड़ेगा।साथ ही एक विशेष बात और की आप
करतारपुर में केवल गुरुद्वारे में ही घूम सकते है इसके अतिरिक्त आप अन्य कंही नहीं जा सकते !
        संयोग से मै भारत पाकिस्तान के मध्य हुए करतारपुर कोरिडोर के समझौते के अनुसार पूरी योग्यता रखता था ,अर्थात,
मेरे पास जो भी प्रपत्र  इस यात्रा हेतु चाहिएं थे वे सब थे तो फिर देर किस बात की !मैने लैपटॉप खोला और करतारपुर
प्रकाश उत्सव 550 साईट को खोज कर आवेदन करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी ।सब से पहले यात्रा जो की 10 नवम्बर
को ही आरंभ होनी थी, देखा की 10  तारीख में यात्रा हेतु स्थान अभी खाली है,अर्थात दोनों देशों के समझौतों के अनुसार
एक दिन में केवल 5000 तक ही यात्री करतार पुर जा सकते हैं,इस लिए यही तारीख मैने निश्चित की।अब ये कहने की
बात नहीं है कि ऑनलाइन यात्रा के लिए फार्म भरने में ,एक एक लाइन भरने में मुझे पसीना आ गया।फोटो,पासपोर्ट की
फोटो,आधार कार्ड की फोटो,अपना सारा विवरण, पूरी जन्म कहानी भरी तब कहीं जा कार फार्म स्वीकृत हुआ।अभीचैन
की सांस ली ही थी कि हमारी श्रीमती जो कि इस यात्रा के लिए,काल्पनिक खतरों की संभावनाओं से हल्कान हुए जा रही थी,
और जब उन्होंने देखा कि मेरा यात्रा फार्म स्वीकार हो गया है तो उन्होंने भी ठान लिया कि वे भी करतार पुर मेरे साथ ही
जरूर जाएंगी ,अन्यथा मुझे भी नहीं जाने देंगी तो….अन्य कोई मार्ग ना देख कर उनका भी फार्म भर दिया।कहीं ना कहीं
मै समझ रहा था कि पाकिस्तान जैसे जोखिम वाले देश में वे मुझे अकेला नहीं जाने देना चाह रही थी।
       फार्म भरने के पश्चात् एक संदेश मेरी आई डी पर आया कि आप दोनों के फार्म यात्रा हेतु स्वीकृत हो गए है परन्तु यात्रा
पर जाने से पहले आपकी पूरी इंक्वायरी पुलिस विभाग एवम् गृह विभाग ,भारत सरकार द्वारा कि जाएगी,उसमे कोईआपत्ति
ना होने पर ही आप यात्रा कर सकेंगे।यहां हम दोनों निश्चिंत थे कि जीवन में ना तो हमने कोई कानून विरूद्ध कार्य किया है
और ना ही कोई चींटी तक मारी है,हम तो बस सीधी सादी बैंक की नौकरी पूरी करके रिटायरमेंट का संतोष पूर्वक जीवन
यापन कर रहे है अतः हम निश्चिंत थे कि जितनी चाहे इंक्वारी करें,सब ठीक ही रहेगा।अब ये अलग विषय है कि ढेर सारे
पुलिस के फोन,घर आकर उनके सवाल जवाब ,साथ ही ये दिखाओ,वो दिखाओ के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे
हम किसी अत्यंत ही जोखिम पूर्ण यात्रा पर जा रहे हैं,अब इस से और तो कुछ तो होना नहीं था परन्तु हम दोनों के साथ
साथ हमारे निकट के संबंधी एवम् पुत्र गनो का विरोध मुखर हो चला था कि क्यों ऐसे जोखिम उठाने जा रहे हो,घूमने के
 लिए अमरीका,लंदन,आदी सहित अनेक देशों में आराम से जा  सकते हो तो पाकिस्तान ही क्योंआपनेचुना।अब इन सबको
केसे समझाऊं कि ये सब हम हमारे आदर्श श्री गुरुनानक को श्रृद्धांजलि देने का अवसर जो हमे मिल रहा है उसको हम
केसे त्याग दें।कुल मिला कर जब हमने जाने का निर्णय कर ही लिया तो किसी भी बात का विचार ना कर के हम इस यात्रा
हेतु अडिग रहे, और सौभाग्य से तमाम सारी इंकुवायरी के पश्चात् हमें 10 नवंबर को करतारपुर जाने की स्वीकृति प्राप्त हो
गई।
         यात्रा स्वीकृति के पश्चात् गौर किया कि भारत से करतार पुर कैसे जाना है।अध्ययन के पश्चात् ज्ञात हुआ कि करतारपुर
कोरिडोर भारत में डेरा बाबा नानक नामके सीमांत गांव से प्रारंभ हो कर उधर से 5 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान में
स्थित करतारपुर नामके स्थान तक निर्मित है।डेरा बाबा नानक को नक्शे में देखा तो उस के सब से समीप " बटाला " नामक
एक कस्बा है जो पंजाब प्रदेश में स्थित है,परन्तु बटाला तक कोई सुगम रेल मार्ग नहीं है,फिर ज्ञात हुआ कि पंजाब के
अमृतसर शहर जो कि पहले ही से सिखों का महत्वपूर्ण शहर है ,से डेरा बाबा गांव तक रेल मार्ग है जो कि 50 किलोमीटर
दूर है।बस फिर क्या था तुरंत ही निज निवास मथुरा शहर से मुंबई - अमृतसर गोल्डन टेंपल ट्रेन में 9 तारीख का रिजर्वेशन
करा लिया,जिस से 10 की प्रातः अमृतसर स्टेशन उतर कर वहीं से डेरा बाबा नानक के लिए दूसरी ट्रेन पकड़ कर आराम से
कोरिडोर पहुंच जावेंगे! अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे 10 तारीख से एक दिन पहले ही अमृतसर पहुंच जाना चाहिए था
,जिस से यात्रा की भाग दौड़ कम हो सकती ,परन्तु यहां में पुनः स्पष्ट कर दूं कि जैसे मैने पहले लिखा था जब तक पुलिस की
इंकुवायारी पूरी नहीं जाती,उनसे प्रमाण पत्र नहीं प्राप्त हो जाता हम यात्रा आरंभ कर ही नहीं सकते थेऔर विश्वास कीजिए
हमें पुलिस द्वारा 8  नवंबर की रात को ही जाने की मंजूरी दी गई थी।
          खैर,तमाम आशंकाओं,चिंताओं एवम् निकट संबंधियों, रिश्तेदारों की शुभ कामनाओं के साथ हम 10 नवंबर की
सुबह 6 बजे जब अमृतसर स्टेशन उतरे तो एक अलग सा ही रोमांच का अनुभव हो रहा था।पहाड़ों के निकटहोने के कारण
अमृतसर शहर में ठंड काफी थी।स्टेशन पर जब डेरा बाबा नानक जाने के लिए ट्रेन के बारे में जानकारी ली तो पता चला
कि प्रातः 9 बजे एक विशेष ट्रेन डेरा बाबा नानक जाएगी जो कि 2 घंटों की यात्रा के पश्चात् लगभग  11बजे डेरा बाबा नानक
स्टेशन पहुंचेगी।अर्थात अभी हमारे पास 3 घंटों का समय था ,नहा धो कर अगली यात्रा के लिए।थोड़ी जानकारी ले कर हम
नजदीक ही ठीक ठाक से होटल में कमरा ले कर देनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर ठीक समय पर अमृतसर स्टेशन आ
पहुंचे।


        काउंटर से जानकारी प्राप्त करने के पश्चात कि डेरा बाबा नानक के लिए ट्रेन किस प्लेटफॉर्म से  जाएगी,हम खाली
पड़े प्लेटफॉर्म पर बैठ गए।कुछ ही समय में 9 बज गए मगर प्लेटफॉर्म खाली का खाली ,धीरे धीरे 9.30 भी  बज गए मगर
ना तो कोई ट्रेन आई , और ना ही कोई उद घोषणा ! जब समय 10 का हुए तो बेचैनी होने लगी ,कहीं इस थोड़ी सी 50
किलोमीटर की ट्रेन की यात्रा के चक्कर में हमारी चिर प्रतीक्षित करतारपुर की यात्रा मध्य में ही ना रह जाए।काउंटर पर
एक ही जवाब ,स्पेशल ट्रेन ,बस आने ही वाली है,ओर आएगी जरूर।अब विकल्प के रूप में इधर उधर से डेरा बाबा जाने
के लिए बस एवम् टैक्सी के लिए जानकारी जुटाई तो ज्ञात हुआ कि सीधी बस तो कोई है ही नहीं, हां टैक्सी जा सकती है
और जब टैक्सी का किराया पूछा तो दिल बैठ सा गया " 3500" !कुल 50 किलोमीटर के !समय भी उतना ही लगेगा
जितना ट्रेन में लगता है। मन ही मन में गुना भाग लगाया, कि रेल अधिकारियों के अनुसार 11 बजे तक भी ट्रेन आ गई
तो 1 बजे तक डेरा बाबा नानक पहुंच जाएगी,फिर वहां से …. देखा जाएगा ।सुना था कि इंतजार का फल मीठा ही होता
है ,आखिर कार 11 बजे के बाद ट्रेन भी आ ही गई और फिर मंजिल कि ओर चल भी दी। कुछ समय बाद ही एहसास हो
गया कि इस 50 की यात्रा में 2  घंटों का समय क्यूं लगता है,पता नहीं ,रेल लाइन पुरानी थी,या ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण
किसी को भी मंजिल तक जाने की जल्दी नहीं थी, सिवाय हमारे ।अब थोड़ा इस ट्रेन की इस यात्रा का हाल भी सुन लीजिए,
ट्रेन की स्पीड 30 किलोमीटर से अधिक नहीं थी,पता नहीं क्यों ? हर 5 या 6 किलोमीटर के पश्चात् कोई छोटा सा स्टेशन
आ जाता ,ट्रेन रुकती तो अवश्य पर चलने में बहुत देर लगती , और जब चलती तो हिचकोले ऐसे लगते जैसे हम ट्रेन में ना
बैठ कर किसी ट्रैक्टर ट्राली में बैठे हैं ! कुछ दिन पूर्व में अपनी मित्र मंडली में जिक्र कर रहा था कि भारतीय रेल में यात्रियों
को दुनिया में सबसे अधिक सुविधा मिलती है ,ट्रेन की स्पीड 150 की. मीटर तक की हो गई है ,समय की पूरी पाबंदी होती
होती है ,मगर इस 50 की. मीटर की यात्रा ने मुझे जैसे कल्पना लोक से यथार्थ में ला पटका ! समय बिताने के लिए मैने
इधर उधर बैठे यात्रियों की ओर नजर घुमाई ,देखा कि जैसे सम्पूर्ण पंजाब का ग्रामीण परिवेश, इस यात्रा में भी अपना
प्रभाव प्रदर्शित कर रहा है।अधिकांश सिख यात्री,कुछ निहंग एवम् कुछ परिवार ।लेकिन मेरी नजरों ने भांप लिया की जिस
उत्सुक्तता से मै उन्हें देख रहा हूं वे भी मुझ जैसे ,शायद कभी कभार मिलने वाले यात्री जो भाषा एवम् वेशभूषा से एक दम
उनसे अलग है को देख कर हैरान थे।ये यात्रा ना तो कोई टूरिस्ट स्थान की थी और ना ही किसी अन्य प्रयोजन के लिए।ये
तो उनके ग्रामीण परिवेश में एक दम फिट बैठने वाली आम दिनों की तरह की ही थी,मगर हम दोनों के ,उन सब के मध्य
होने से वे हैरान थे,कोन है हम,किधर जा रहे है हम ? आखिर कर मेरे समीप बैठे एक बुजुर्ग से सरदार ने पूछ ही लिया 
कि आप इधर के तो लगते नहीं ,आप किस ग्राम में जा रहे है ? जब हमने बताया कि हम करतारपुर साहिब की उस
प्रथम दिवस की यात्रा के प्रथम यात्री है तो अचानक ही हम दोनों उन सब के आकर्षण का केंद्र हो गए ! सारा संकोच
त्याग कर वे हमारे ऊपर प्रश्नों कि बोछार करने लगे।में समझ गया कि करतारपुर उन सब के लिए कितना अधिक महत्व
रखता है।अधिकांश यात्री हमें धन्य भाग समझने लगे की हम गुरु जी के निर्वाण स्थल के दर्शनों के लिए का रहे हैं।फिर
हमें पता चला कि उनमें से अधिकांश करतारपुर जाने की तीव्र इच्छा रखते हैं, कुछ तो इस पहले दिन की यात्रा के लिए
पासपोर्ट लेकर भी हमारे साथ ही चल रहे थे कि वे भी करतारपुर जाने के लिए निकले हैं ! परन्तु मेरे द्वारा जब उन्हें पता
चला कि पासपोर्ट से काम नहीं चलेगा इस के लिए तमाम तरह के फॉर्मेलिटी करनी पड़ती हैं जो कि अत्यंत आवश्यक है
इस यात्रा के लिए क्यों कि इस के लिए विदेश यात्रा जैसे नियम बने हैं तो एक निराशा के भाव उन के मुख मंडल पर जैसे
दिखाई देने लगे।कुछ समय पश्चात वे शायद निराश हो कर पुनः मेरे को इस यात्रा के लिए चुने जाने पर धन्य भाग कहने
लगे ।



     
  आखिर कार इस 2 घंटों की हिचकोले वाली यात्रा का समापन डेरा बाबा नानक स्टेशन पर हो गया।छोटा सा एक कमरे
वाला स्टेशन,चारों तरफ खेत ही खेत ,परन्तु करतारपुर बार्डर कहीं नजर नहीं आ रहा था।स्टेशन से बहा आते ही कुछ
बसें खड़ी थी ,पता चला कि ये डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे की तरफ से ,दर्शनार्थियों को गुरुद्वारे तक ले जाने के लिए खड़ी
थी।हमने जब कहा की हम तो करतारपुर जाने के लिए आएं हैं तो सहर्ष ही सब हमें इधर से 10 की . मीटर दूर स्थित
करतारपुर बॉर्डर पर पहुंचाने के लिए तैयार हो गए।






हम हृदय से उन्हें धन्यवाद देते हुए बस में बैठ गए,वो इस लिए कि इन बसों के अलावा कोई अन्य साधन,किसी


भी प्रकार का यहां उपलब्ध नहीं था।30 मिनट की इस यात्रा  में हम छोटे से डेरा बाबा नानक गांव से होते हुए ,रास्ते में, गुरु नानक जी के 550वें जन्म उत्सव जिसे यहां सब प्रकाश उत्सव के नाम से संबोधन कर रहे थे ,सिख धर्म के अनुयाई,जत्थों ,जुलूसों के रूप में ,भजन गाते,हथियार लहराते,बेंड बाजों के साथ ,तरह तरह के करतब दिखाते निकलते दिखाई दिए ,जिस कारण हमें और थोड़ा समय बॉर्डर तक जाने में ओर लगा ।





      
   एक मुख्य सड़क के चौराहे पर पुलिस की टीम  ने सारे वाहनो को रुकवा दिया।अब लगभग 2 क़. मीटर और पैदल ही
चलना था,तब दूर दिखते बॉर्डर तक हम पहुंच पाते।चलते हुए देखा कि यहां तो झुंड के झुंड बॉर्डर की तरफ बढ़े चले जा
रहें हैं।क्या बात है ,क्या ये सभी करतारपुर बॉर्डर के लिए जा रहे हैं लगता है जैसे सर पंजाब ही यहां जमा हो गया है ।दूर
विशाल भारतीय तिरंगा शान से लहराता हुए दिखाई दे रहा था , और दिखाई दे रहा था उस से भी दूर  बॉर्डर के किनारे
बने विशाल ,बड़े बड़े गोल गोल गेट ,साथ ही विशाल , आधुनिक इमारतें ।समझ आ गया कि यही कोरिडोर में जाने का
मार्ग है। चलते चलते जब विशाल इमारतों के समीप पहुंचे तो देखा कि चारों और बी एस एफ के जवानों का घेरा ,पूरी
मुस्तैदी के साथ लाखों कि संख्या में उपस्थति भीड़ के नियंत्रण में लगा था।मार्ग ऐसा जैसा की नोएडा एकस प्रेस हाई वे !
मार्ग के अंत में विशाल बंद दरवाजे ओर उन के समीप खड़े सेना के जवान ,सारी भीड़ को मार्ग के एक किनारे की तरफ
जाने के लिए कह रहे थे ,हमें भी उन्होंने उसी तरफ जाने के लिए संकेत किया,परन्तु हमें समझ में आ रहा था कि बॉर्डर का
ऑफिस तो दूसरी ओर है,उस ओर वे किसी को भी नहीं जाने दे रहे थे।आखिर कार मैने एक जवान से कहा कि हमें तो
आज करतारपुर कोरिडोर होते हुए पाकिस्तान जाना है , और हमारे पास इस हेतु पत्र भी है तो वो चोंका और बोला ,दिखाओ
, तो हमने प्रपत्र यात्रा संबंधी दिखाए।तब उसने कहा कि ठीक है आप लोग इस तरफ जो बड़ी इमारत देख रहे हैं वो
इमिग्रेशन ऑफिस है आप इस तरफ जाइए।मैने हैरानी से पूछा कि ये शेष लाखों लोग दूसरी ओर किस लिए का रहें है तो
उसने कहा कि जिन लोगों के पास कोरिडोर जाने के लिए उचित प्रपत्र नहीं है वे सारे लोग सामने ,बॉर्डर के एक दम
किनारे पर लगी दूरबीन की तरफ जा रहे हैं , जहां से वे दूरबीन के द्वारा ,दूर ही से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन कर रहें है !
आप भाग्य शाली हैं कि आप पहले ही दिन साक्षात कोरिडोर से होते हुए करतारपुर गुरुद्वारे पहुंच कर गुरु नानक जी के
निर्वाण स्थल के दर्शन करने जा रहे हैं।



       हम अब विशालकाय,आधुनिक,अद्भुत इमिग्रेशन इमारत के आगे खड़े थे।इतनी सुन्दर इमारत थी कि हम कुछ क्षणों
के लिए वहीं रुक कर उसकी सुन्दरता का आनंद ले रहे थे।हमें खड़ा देख कर कुछ जवान हमारी ओर बढ़े ,हमने उन्हें यात्रा
के प्रपत्र दिखाए तो वे बड़े ही सम्मान के साथ अंदर के गए।अंदर की दुनिया और भी खूबसूरत थी।आधुनिक मशीन,चुस्त
कर्मचारी , इन सब का ध्यान हमारी ही ओर था, और क्यों ना हो ,इतने बड़े सेंटर में हम दो हीअकेले जो थे।,मिनटों में ही
कस्टम,चेकिंग ,निरीक्षण आदि की सम्पूर्ण कार्यवाही हो गई ,अब उन्होंने हमें सामने बाहर जाने के रास्ते पर जाने को कहा।
हम बाहर निकले तो पुनः सारे स्टाफ हमें छोड़ने आया, यात्रा हेतु शुभ कामनाएं दी, तभी एक स्मार्ट से अधिकारी ने पूछा
" आप सिख तो नहीं है ,फिर आप करतारपुर गुरुद्वारे क्यों जा रहे हैं,हमने उत्तर दिया ,हम यात्री हैं,घूमने के लिए ही जा
रहें हैं ,अरे घूमना ही था तो अमेरिका आदि अनेकों देशों में जा सकते थे, हां ,जा सकते थे, परन्तु पाकिस्तान जाने का जो
रोमांच है उसका जवाब नहीं,पाकिस्तान जाने का तो आज कल कोई सोच भी नहीं सकता ,इस लिए अवसर मिला तो चल
दिए"। उसे हैरान छोड़ कर हम पाकिस्तान के लिए आगे बढ़ गए।


       
   जहां ,भारतीय सीमा समाप्त होती थी वहां दोनों और जालीदार फेंसिंग से घिरा एक बड़ा सा गेट था जो बंद था,उसके
बाद एक 30 फुट चौड़ी सड़क थी उसके बाद फिर वही बड़ा सा गेट ,जो कि फेंसिंग से घिरा था।सैनिकों की तो दोनों तरफ
जैसे भरमार थी।अंतिम बार पुनः हमारे सारे प्रपत्र देख कर ,सैनिकों ने गेट खोल दिया और हमें पाकिस्तान की तरफ बढ़ने
का संकेत किया।आगे जाने से पहले मैने सामने खड़े जवान से कहा " सर ,सूरज अस्त होने तक अगर हम वापस भारत नहीं आ
पाए तो बुलवा लेना" वो मुस्कुराया ,कहा" निश्चिंत हो कर जाइए ,जब तक आप वापस नहीं आजाएंगे ,हम यहीं खड़े मिलेंगे,
इतना सारा इंतजाम आप के ही लिए है और ,जब हम पायलट "अभिनन्दन"--- को वापस ला सकते हैं तो आप भी निश्चिंत
रहिए"।उसने अंगूठा उठा कर हमें विदा किया। अब हम उस गेट के बाद उस खुली सड़क पर खड़े थे ,जिसे सैनिकों कि
भाषा में" नो मैन्स लेंड " कहते हैं ,अर्थात वो स्थान जिस पर किसी भी देश का अधिकार नहीं होता,उस समय हम दोनों की 
जो स्थिति थी , उसे हम शब्दों में नहीं बता सकते हैं।



       हमें आता देख कर पाकिस्तान के सैनिकों ने,जो हम पर दूर से नजारे गड़ाए खड़े थे,हमें आता देख अपनी ओर का गेट
खोल दिया।हम अब पाकिस्तान में थे!
           पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करते ही,सारे यात्रा संबंधी प्रपत्रों को चेक करने के पश्चात ,सैनिकों ने हमें ई रिक्शा में
बैठने का संकेत किया।खामोशी से हम बैठ गए , और चल दिए सामने दिखाई देते पाकिस्तानी इमिग्रेशन सेंटर की ओर!
हमारे उधर पहुंचते ही पाकिस्तान के सेंटर के  सारे कर्मचारी जैसे हमारे ही इंतजार में खड़े थे , लेकिन वास्तविकता यह थी
कि पहला दिन यात्रा आरंभ होने के कारण एवम् पाकिस्तान के बारे में अच्छे विचार ना होने के कारण ,गिने चुने यात्री ही ,
इस यात्रा के लिए आए थे और इस समय तो यात्री के नाम पर हम दो !
       हमें सबसे पहले एक बड़े से काउंटर की ओर चलने को कहा गया।वहां हमसे पासपोर्ट ओर 20 डालर देने को कहा।
हमने दिए तो उन्होंने रसीद दी ,पासपोर्ट वापस कर दिया।अब और आगे बढ़े तो वहीं भारत में प्रवेश के समय की गई सारी
प्रतिक्रियाएं दोहराई गई।लेकिन एक बात हमने जरूर नोट की कि हम पर गिध दृष्टि रखी जा रही थी।व्यवहार के नाम पर
कोई उत्साह नहीं था,हमसे कोई अलग बात नहीं की गई और फिर हमें इस मस्जिद नुमा इमारत से बाहर गेट की और जाने
को कहा गया।जहां तक पाकिस्तानी इमिग्रेशन सेंटर की बात तो कहां हमारे देश का विशाल,भव्य भवन और कहां ये
मस्जिद नुमाबौना सा सेंटर।आतिथ्य जैसा व्यवहार के बदले हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वे सरकारी आदेश का ही
पालन कर रहे हैं ।एक अलग तरह का नीरस सा व्यवहार।हमें क्या, हम तो आगे बढ़े और बस में बैठ गए।अब बस का
हाल! ये तो बड़ी ही आधुनिक,सारी सुविधाओं से लैस,बस के बाहर चारों और गुरुद्वारे की प्रतिकृति चित्रित।बस के बाहर
दोनों तरफ अंग्रेजी में लिखा था " वेल कम टू दरबार साहिब करतारपुर पाकिस्तान " बस देख कर हम प्रभावित हुए थे मगर
तभी हमारी नजर बस के एक कोने में लिखे कुछ संदेश पर गई " अरे ये तो चीनी भाषा में लिखा है " पर क्या लिखा है,ये
हमारी समझ से बाहर तो था मगर पाकिस्तान जैसे देश में इतनी भव्य बस क्यों है ,ये हमें जरूर समझ आ गया,अर्थात ये बसे चीन सरकार ने ही
पाकिस्तान को चीन ने दी हैं !



      हमें लेकर बस 4 किलो मीटर की दूरी पर स्थित करतार पुर गुरुद्वारे की ओर ले चली ।बस से बाहर देखा तो देखा कि
इस कोरिडोर के दोनों तरफ विशाल जाली ओर उसके ऊपर कंटीले तारों की बाड़ या फेंसिंग की हुए थी ।हर कुछ माइटर
पर पाकिस्तानी सैनिक हथियारों के साथ ,मार्ग में बेरिकेटिंग के साथ हम पर ,हमारी बस पर नजरें गड़ाए हुए थे।क्या मजाल
कि इस कोरिडोर के अंदर कोई परिंदा भी पर मर सके ,यानी पूरी घेरा बंदी।2 किलो मीटर के पश्चात् एक विशाल नदी को
हमारी बस पार कर रही थी ,परन्तु इस नदी के पुल पर भी सैनिक मुस्तैदी से खड़े थे।बस से बाहर जिधर तक दृष्टि जा
सकती थी केवल ओर केवल खेत दिखाई दे रहे थे ,क्या मजाल कि कोई घर ,या झोंपड़ी या कोई अन्य वस्तु नजर आए !
नदी पर करते ही फिर वहीं बेरिकेटिंग,फेंसिंग और सैनिक।लगभग10 मिनट की यात्रा के पश्चात् दूर से दिखाई देने वाला
करतार पुर का पवित्र गुरुद्वारे के समक्ष हमारी बस खड़ी हो गई।हम उतर गए।हम गुरुनानक जी के निर्वाण स्थल
" करतारपुर साहिब " के समक्ष खड़े थे !



     
  बस से उतरते ही पुनः सैनिकों ने घेर लिया ,सारे प्रपत्र देखे फिर एक कंटीले तारों से घिरे गेट से हमें गुरुद्वारे के अंदर
प्रवेश करने का इशारा किया गया।अब हम लाखो सिखों,भारतीयों की चिर प्रतीक्षित  चाह ,पवित्र गुरुद्वारे के अंदर थे।
            शुक्र है कि गुरुद्वारे के अंदर केवल ओर केवल दर्शनार्थी ही थे ,कोई सैनिक नहीं था।अब हम कुछ नार्मल से हुए।
अंदर जाते ही हमें सिख सेवार्थियों ने घेर लिया , आदर से अभिवादन किया ओर अपने हाथों से हमारे जूते उतरने का प्रयत्न
करने लगे ,हमारे ठिठकने पर वे सब हाथ जोड़ कर बोले , ऐसी सेवा का अवसर हमें बरसों पश्चात् बड़े ही भाग्य से मिल
रहा है ,कृपया सेवा करने दें।हम अभिभूत थे।वैसे सिखों की गुरुद्वारे में की जाने वाली सेवा का पूरी दुनिया में कोई जोड़
नहीं होता।






    
  हमें एक सेवर्थी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि चलिए मै आपको गुरुद्वारे का भ्रमण कराता हूं ,ओर हम उसके साथ
चल दिए।
          प्रथम दृष्टि में जो हमने देखा ,हम जानते हैं कि वो दृश्य हम कभी नहीं भूलेंगे।विशाल ,विशाल सफेद संगमरमर की
चौकियों से सुसाजित परकोटा,जिसके एक दम मध्य में दो मंजिला छोटा मगर प्रभावशाली गुरुद्वारा, और उसके चारों ओर
खुले परकोटे के बाद ,चारों ओर  बरामदा जो की पहली नजर में किसी विशाल मस्जिद का सा ही आभास दे रहा था बना
हुए था।साथ चलते सेवार्थी के अनुसार ये दुनिया का सब से बड़ा गुरुद्वा है।ये गुरुद्वारा लगभग 250 वर्ष प्राचीन है।पिछले
वर्ष तक यहां सिर्फ गुरुद्वारा ही था ,इसके चारों ओर केवल ओर केवल खेत ही थे ,जिन्हें अब विशाल संगमरमर के पत्थरों
द्वारा एक विशाल मैदान के रूप में बदल दिया गया है ,साथ ही इसके चारों तरफ परकोटा भी बना दिया है जिसमें एक
संग्रहालय,एक शानदार लंगर हाउस ,आदी अनेक उपयोगी स्थल बनाए गए हैं।फिर उसने कहा कि आप अब गुरुद्वारे
साहब के अंदर दर्शन कीजिए एवं फिर लंगर जरूर छकिए।हमने उसे धन्यवाद दिया और गुरुद्वारे में प्रवेश किया।
       पहली नजर में ये गुरुद्वारा अत्यंत प्राचीन लग रहा था।ये दो मंजिला है। प्रथम मंजिल पर ,ठीक मध्य में एक छोटा सा
संगमरमर का बना चबूतरा है जिस पर शानदार गलीचा बिछा हुआ है,उसके ऊपर विभिन्न देशों के दर्शनार्थियों द्वारा अर्पित
किए गए नोट भरे हुए थे।इसके ऊपर स्वर्ण से ढका हुआ छत्र लगा था। प्रत्येक दर्शनार्थी,सिर झुका कर श्रद्धापूर्वक झुक जाते
थे,फिर उसकी परिक्रमा करते थे।दर्शनार्थियों की इसके लिए कतार लगी हुई थी ।अतः हम भी श्रद्धा सुमन अर्पित कर ,
औरों के लिए स्थान खाली करके आगे बढ़ गए।इस मध्य कमरे के चारों ओर छोटे छोटे बरामदे थे जिनके बाहरी ओर रंग
बिरंगे शीशे की खिड़कियां बनी हुई थी।नीचे अत्यंत सुंदर ,मुलायम कालीन बिछे हुए थे ।हमने भी श्रद्धापूर्वक बरामदे से भी
इस पवित्र चबूतरे की पुनः परिक्रमा की ,फिर एक कोने में बनी सीढ़ियों से उपरी मंजिल की ओर बढ़ गए।
       उपरी मंजिल के ठीक मध्य में एक बड़ा सा हाल था जिसके मध्य में विशाल स्वर्ण के सुंदरतम छत्र के नीचे गुरु ग्रंथ
साहिब विराजमान थे ।सामने बिछे गलीचे पर थोड़े थोड़े श्रद्धालु आंखे बंद किए ,हाथ जोड़े प्रार्थना में तल्लीन थे।मंद मंद
स्वर में ग्रंथ साहब के पाठ ,मुख्य ग्रंथि पढ़ रहे थे।इस कमरे के अंदर एवम् बाहर ,चारों ओर दर्शनार्थी पंक्ति बनाके खड़े
हुए थे ।ऐसा भाव भिना शन हमें जिंदगी भर स्मरण रहने वाला था।हम भी संयोग से मिले अवसर का पूरा लाभ उठा रहे थे ।
       गुरुद्वारे से नीचे बाहर आ कर हमने पूरे गुरुद्वारे की परिक्रमा आरम्भ की। एक कोने पर हम पुनः ठिठक गए।एक
बड़ा जाली से ढका कुआं दिखाई दिया,जिसके किनारे एक बोर्ड लगा था ।उस पढ़ कर ज्ञात हुअकी गुरु नानक जी इस
कुंए में लगे गोल यंत्र जिसे रहट भी कहते हैं,से पानी निकाल कर अपने आस पास के खेतों में सिंचाई करते थे।उनकी यही
तो मुख्य शिक्षा थी कि जहां तक,जब तक हो सके,अपना स्वयं का कार्य स्वयं करे भले ही आप कितने बड़े पद पर क्यों ना
हो! निस्संदेह इस कुंए को देख कर हमारी निगाहें गुरुद्वारे के चारों ओर फैले खेतों की ओर गई।कल्पना में खो गए कि क्या
मंजर रहा होगा जब स्वयं गुरु जी इन्हीं खेतों को ,जो हमे दिखाई दे रहे थे ,इसी कुंए से पानी निकाल कर सिंचाई करते होंगे।
हमने पुनः श्रद्धा से हाथ जोड़े ओर आगे बढ़ चले।




   तभी हमें इस कुंए के साथ ही एक बड़ा चबूतरा दिखाई दिया जो की कलात्मक ढंग से चित्रित एवम् संगमरमर के पथरों से ,
खूबसूरती के साथ बना हुए था। इस 2 फुट ऊंचा,15 फुट लंबा एवम् 15 ही चोड़ा था।कुछ श्रधालु,इसकी दंडवत प्रणाम
करके मीठे का प्रसाद बांट रहे थे।इस बरामदे के अंत में एक बोर्ड टंगा था जिस पर उर्दू ओर पंजाबी यानी गुर्मुखी भाषा
में कुछ लिखा था।आखिर कार हमने एक श्रद्धालु से इस बोर्ड के बारे में पूछा तो उसने बताया कि इसी चोकी के नीचे
श्री गुरु नानक जी के अंतिम संस्कार के पश्चात् उनके फूल अर्थात अस्थि , राख को रखा गया था।हमने अभिभूत से होकर,
उस चबूतरे को हाथों से स्पर्श किया,फिर झुका कर माथे को उस पर स्पर्श कर के अपने को धन्य किया।तभी हमें इस कुंए
के पास एक और बोर्ड तथा एक छोटी सी मीनार दिखाई दी। इस मीनार के ऊपर एक मोर्टार बम्ब रखा हुआ था जिसे
शीशे के पारदर्शी गुम्बंद में रखा गया था।बोर्ड को पढ़ कर उसकी विषय वास्तु स्पष्ट हो गई ,जिस के सम्बन्ध में में कोई
टिपण्णी में यहां नहीं लिखूंगा ।पाठक स्वयं समझदार हैं।इस बोर्ड को पढ़ कर पाकिस्तान के इरादे स्पष्ट हो जाते हैं।
              इस सारे क्रिया कलापों में ,भोजन की याद आई।प्रातः से हम दोनों ने कुछ नहीं खाया था।अब जब हृदय
और मस्तिष्क की भूख ,पवित्र गुरुद्वारे के साक्षात दर्शन करके मिट चुकी थी ,तब पेट की भूख की याद आई।किसी ने
बताया कि वो जो सामने बरामदा हैं उसके मध्य से एक रास्ता है जो लंगर तक ले जाएगा।हम उसी ओर चल दिए।
          




 अगर किसी को किसी भी धर्म की श्रद्धा का परिचय लेना हो तो उसेउस धर्म के भोजन वाले स्थान का जायजा लेना

चाहिए।निश्चिंत ही भोजन की सेवा को सेवा सिख धर्म में ,उनके गुरुद्वारों में उनके सेवकों द्वारा कि जाती है ,उसकी तुलना
में कोई भी धर्म नहीं टिकता है।लंगर में पहुंचते ही हमने देखा कि एक अत्यंत विशाल हाल जो की पूरी तरह से संगमरमर से
निर्मित था उसमे श्रद्धालुओं केजा।इं बैठने के लिए टाट की दरिया बिछी हुई थी। श्रद्धालु एक एक करके बैठते जाए थे तुरंत
स्वयं सेवक थाली ,कटोरी एवम् गिलास दे देते थे ,फिर तुरंत ही दाल ,चावल ,रोटी परोसने वालेस्वयं सेवक आ जाते थे।
जितना खाना है छक कर खाइए ,वे ,बड़े ही प्रेम और श्रद्धा से भोजन करते थे। और तो और ,भोजन समाप्त होते ही जूठे
बर्तन स्वयं ले कर धोने चले जाते थे। यात्रीको तो वे कुछ करने ही नहीं देते थे।भोजन का कोई समय नहीं ,आइये 
जाइए ,खाए जाइए ,ऐसा दृश्य हमने इस से पहले कहीं भी,कभी भी नहीं देखा था।भोजन से तृप्त हो कर हम फिर एक बार
गुरुद्वारे केबहर विशाल मैदान पर ,डूबते सूरज की किरणों में चमकते करतार पुर साहिब गुरुद्वारे को अपलक निहार रहे थे
।हमारे आस पास निकलते श्रद्धालु  रुक कर हमसे जरूर पूछ रहे थे कि " आप इंडिया " से आए हैं हमारे हाँ कहते ही वे
सब हमसे बात करने को बेताब हो जाते थे।




वे हमसे राजनीति से लेकर खाने पीने तक के बारे में प्रश्न दागते रहते थे ,अधिकांश तो हमारे साथ सेल्फी खिंचवाने को
उत्सुक रहते थे।काफी देर तक उनके साथ रहने ,उनके विचार से हमने एक बात सीखी कि भले ही राजनीतिक नक्शे में
भारत ओर पाकिस्तान दो बलग अलग देश बन चुके हैं परन्तु इनके निवासी आज भी ,विचारों,शक्लों आदी से एक ही जैसे
हैं।अगर पहनावे के अंतर को छोड़ दें तो अन्य कोई भी रिश्ता पहचान नहीं पाएगा की ,कौन भारतीय है कौन पाकिस्तानी
है।इन्हीं सब बातों का ,जीवन में प्राय एक बार ही मिले इस अवसर में हम खोए ही नहीं बल्कि डूबे हुए थे कि अचानक ही
लाउड स्पीकर से उद घोषणा हुई की जो यात्री ,श्रद्धालु इंडिया से आए है,उनका वापसी का समय हो रहा है ,कृपया वापस
जाने के लिए बाहर खड़ी बसों में बैठने का कष्ट करें।इस घोषणा को सुनते हम गुरु नानक जी के समय चक्र से जैसे वर्तमान
समय में लौट आए।" जो आया है वो जाएगा अवश्य " काल चक्र का यही सिद्धांत है हम सब भी इसी सिद्धांत में बंधे हुए हैं
,अतः पुनः एक बार जी भर कर गुरुद्वारे " श्री करतारपुर साहिब " को देखा ,शीश झुकाया , और वापस अपने स्वर्ग से सुंदर
अपने देश  " भारत " जाने के लिए बस में बैठ गए।


             
  जय श्री गुरु नानक देव जी


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