सोमवार, 29 जुलाई 2019

एक सफर अंडमान क्रूज का.....

अगस्त २००५ की एक साधारण सुबह, रोजमर्रा की तरह ऑफिस के कार्य निपटा रहा था कि संदेशवाहक ने
हैड आफिस का बंद लिफाफा थमा दिया।चूंकि भगवान के बाद हैड अफिस  का आदेश सर्वोपरी होता है इस
लिए तुरंत लिफाफा खोला तो यकीन नहीं हुआ कि इसमें मेरी एल टी सी की स्वीकृति का ना केवल आदेश है
बल्कि ५०००० रूपए अग्रिम लेने की भी स्वीकृती है ।जो हैड आफिस दो दिन की छुट्टी देने में भी क्लास लेता
था उसने १५ दिन की छुट्टी भी प्रदान की थी। मै जानता हूं कि कैसे मैने पत्नी को ये समाचार शाम को घर जाकर
चाय पीते हुए  बताने का ,उन्हें आश्चर्य चकित करने का भाव साक्षात देखने हेतु नहीं बताया था। शाम को घर पर
चाय की फरमाइश के साथ मैने पहलीबार मुखिया के जैसे रोबदारअंदाज में अपने तीनों बेटों को भी उपस्थित
होने का आदेश दिया तो किसी अनहोनी के अंदाज में सबकी नजरे मेरे ऊपर जैसे गड़ गई। बगैर किसी भूमिका
के मैने कहना शुरू किया कि चूंकि तुम सबको हमेशा मुझ से शिकायत रही है कि बैंक की नौकरी के आगे मैने
कभी उनकी घूमने फिरने की परवाह नहीं की है अत: आज मै उनकी पिछली सारी शिकायतों को दूर कर रहा
हूं।सबसे पहले श्रीमती का स्वर गूंजा क्या फिर से शादी कि पहली सालगिरह की तरह गोली दे रहे हो, फिर तुरंत
बड़े बेटे की तरफ से आवाज आई पापा मुझे कलकत्ता में अपने दोस्त हेमंत से जरूरी बात करनी है मै जा रहा
हूं, इससे पहले कि शेष दोनों बेटे भी सरकते मैने कहा चुपचाप मेरी बात ध्यान से सुनो मैं वास्तव में सही कह रहा
हूं और फिर मैने सारी बाते सब को सुना दी,साथ ही  बताया कि यह यात्रा हम अंडमान द्वीप समूह की करेंगे और
इस यात्रा के लिए बैंक ने भी हवाई यात्रा की मंजूरी दी है तो सब के मुख पर जैसे गोदरेज के छह लीवर का मजबूत
ताला लग गया।अभी तक तो हम सबने हवाईजहाज केवल चित्रों में या आसमान में दूर उड़ते ही देखा था।आशा के
अनुरूप सबने हथियार डाल दिए।तभी श्रीमती जी की शादी के बीस वर्षों के बाद पहली बार चाशनी में घुली शहद
की तरह मीठी कोमल आवाज आई चलो इस खुशी में आज पनीर की सब्जी और पूड़ी बनाती हूं तब तक तुम
अपनी यात्रा का प्रोग्राम बनाओ।मैने भी इस वार्तालाप का अंत करते हुऐ बेटों से कहा कि चलो कब चलना है किस
तरह चलना है इस का इंताजम करते है।में जानता था कि वे सब एकमत थे कि आना जाना हवाई जहाज से ही
होगा।मगर मैने वीटो पॉवर का प्रयोग करते हुए धमाका किया किअंडमान जाते समय हम कलकत्ता से पानी के
जहाज में जाएंगे और वापसी में हवाई जहाज से।बेटे तो चुप मगर श्रीमती की तरफ से पुनः तीर की तरह शब्द बान
आया कि इतनी बार नाव की यात्रा की है अब भी कसर रह गई जो नाव में जाओगे, मगर पहली बार बड़े बेटे ने
मेरा साथ देते हुए मां को समझाया कि यात्रा नाव से नहीं एक विशाल पानी के जहाज से होगी।श्रीमतिजी भुनभुनाती
हुई इस अंदाज में रसोई में चली गई कि तुम जानो तुम्हारा काम। तय हुआ कि कलकत्ते वाला बेटे का दोस्त  हेमंत
कलकत्ता से पानी के जहाज की सारी जानकारी देगा और जाने की टिकिट का भी इंतजाम कर देगा। और पुरानी
दिल्ली से सुबह ८ बजे की कालका मेल से अगले दिन सुबह कलकत्ता उतर कर एक दिन पूरा कलकत्ता घूम
कर पानी के जहाज से अंडमान की यात्रा शुरू करेंगे।


प्रोग्राम के अनुसार सही सलामत कालका मेल ने कलकत्ता पहुंचा दिया और हेमंत ने रहने के इंतजाम के साथ एक
दिन में जितना हो सकता था शहर घुमा भी दिया।तीसरे दिन हमें कलकत्ता के खीदर पुर डोक यार्ड से भारत
सरकार के पानी के जहाज पर जिसका नाम हरश्वर्धन था पर ठीक २ बजे  पहुंचना था।लेकिन पहली समुद्र यात्रा की
उत्सुकता के कारण जो की पूरे तीन दिनों की थी हम बारह बजे ही डॉक यार्ड पहुंच गए।अब ये कोई बताने की बात
नहीं है कि यार्ड वालो ने हमें एक साधारण से हाल में बिठा दिया और कैसे हमने इंतजार में समय बिताया।लगभग
एक बजे के बाद कुछ और यात्री आने लगे।हम हैरान थे कि जिस यात्रा के लिए हम अपने को कोई विशेष गर्वित
समझ रहे थे वहीं सारे सहयात्री साधारण तबके के ही थे।वो तो भला हो उन ६ यात्रियों का जो विदेशी थे।बड़े बेटे
ने शीघ्र ही उनसे दोस्ती कर ली और बताया की वो इजराइली थे और हमारी तरह ही विशेष अनुभव लेने के लिए ही
पानी के जहाज से यात्रा कर रहे थे।
आखिर कार वो समय आ गया जब यात्रियों की टिकट एवं अन्य जरूरी कागजातों की चैकिंग करने के पशचात् एक
लम्बी लाईन के साथ घुमावदार रास्ते के अंत के बाद हम एक विशाल पानी के जहाज के सामने खड़े थे। आठ मंजिला
एवं लगभग ४०० मीटर लंबा लेकिन बाहरी जंग लगी  दीवारों पर हिंदी के बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था हर्षवर्धन ।हम
चमत्कृत भाव से जहाज की विशालता के आगे अपने बोने होने के भाव से खड़े थे और सोच रहे थे कि इसमें तो कोई
दरवाजा ही नहीं है तो इसमें प्रवेश कैसे करेंगे क्योंकि जहाज की पानी के ऊपर ऊंचाई लगभग ३० मीटर थी जो कि
चारों ओर से थी।तभी हमारे सामने कुछ लोग एक लोहे की पहिए वाली सीढ़ी लेकर प्रगट हुए।तब हमें ज्ञान प्राप्त हुआ
कि भाई इसमें प्रवेश केवल सीढ़ी के द्वारा ऊपर चढ़ कर होता है ।अगले ही पल हम जहाज के एक विशाल  खुले
आंगन जिसे वे लोग डेक कह रहे थे में खड़े थे।तब हमें एक छोटी सी खिड़की के सामने जाने का इशारा किया गया।
पहली बार एक पूरी सजी धजी पायलेट की सी कोट एवम् सफेद पेंट पहने ,विशेष चिन्ह से सुसजित कैप पहने एक
ऑफिसर खिड़की से हमें गुड इवनिंग कहते हुए मुस्कुराते हुए हमें दिखे।उन्होंने हमें कहा की चूंकि आपने प्रथम
श्रेणी की टिकट ली है अत: आपको जहाज की पांचवीं मंजिल पर एक केबिन दिया गया है।साथ ही कहा कि आपको
पांच लोगों के हिसाब से भोजन के लिए पर दिन ५५० रूपए के हिसाब से देने होंगे।थोड़ा सा हमें असमंजस में पड़ते
हुए देख उन्होंने कहा कि टिकट के पैसे में भोजन के पैसे शामिल नहीं है ।बगैर नानुकर करते हुए कोई अन्य विकल्प
न होने के कारण पैसे जमा कर दिए तभी ध्यान आया कि अरे हम तो शुद्ध शाकाहारी है तो उन्होंने एक पेपर पर यह
भी नोट कर लिया।तभी हमें ख्याल आया कि चूंकि हम नॉर्थ इंडियन है इसलिए भोजन में रोटी तो मिलेगी,सुनते ही
थोड़ी सी कसमसाहट के बाद उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको अलग से भुगतान करना होगा ।इनकार का कोई
अन्य विकल्प न होने और बेटों के रोटी प्रेमी होने के कारण २०० रूपए भी दे दिए ।उन अधिकारी महोदय ने हमें
एक खाली फॉर्म देते हुए उसमें निर्देशानुसार भरने को दिया लेकिन कहा की आप इस को अपने कैबिन में बैठ कर
बाद में जमा कर देना।हमने राहत की सांस ली ही थी तभी एक साधारण नीली वर्दी पहने एक कर्मचारी प्रगट हुआ
और बोला कि चलो आपके केबिन तक आपको छोड़ आता हूं।उसने हमारा समान उठाया ,अब आगे वो और  पीछे
पीछे हम।हम सब किसी सम्मोहित कि तरह उसके पीछे हो लिए,ओर जब हम जहाज की सीढ़ी पर चढ़ने लगे तो
एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल की सीढ़ी पर कदम रखते ही श्रीमती ने हमें कोंचते हुए धीरे से कहा इस से कहो
लिफ्ट से लेे चले,इस से पहले कि हम कुछ कहे कर्मचारी का बंदूक की गोली कि तरह जवाब आया यहां लिफ्ट नहीं
होती।हमारी तो हिम्मत ही नहीं हुई की अपनी ८५ किलो की नाजुक सी पत्नी की ओर देखें।खेर एक के बाद एक
मंजिल सीढ़ी चढ़ते हुए आखिर कार पांचवीं मंजिल के अपने आगामी ४ दिनों के लिए कमरे रूपी किसी हॉस्टल कि
तरह दिखने वाले विश्राम घर में प्रवेश कर गए।कहते है ना कि जोर का झटका धीरे से लगता है ऐसा ही कुछ उस
प्रथम श्रेणी के कैबिन को देख कर लगा।पांच सदस्यों के लिए ५५०० रूपए प्रत्येक सदस्य हेतु भुगतान के बाद ये
मिला।केबिन में दो कोनो पर एक के उपर एक तीन खानो वाले दो पलंग रखे थे।सामने एक कोने पर एक पुराना
सा तीन सीटों वाला सोफ़ा रखा था,साथ ही दो साधारण कुर्सियां एवम् एक छोटी सी मेज थी। छत की तरफ नजर
गई तो पंखे की जगह एक रूफ एसी का इनलेट था। सामने किनारे की दीवाल में एक तीन बाई दो की शीशे की
खिड़की थी।तभी श्रीमती जी का गरजता हुआ शब्द रूपी बान एक बार फिर आया " क्या इसमें हमें चार दिन गुजारने
है,"निशब्द सा मै ने इतना ही कहा कि अरे डियर हमें तो समुद्री यात्रा का अनुभव लेना है कोई हनीमून का पैकेज
थोड़ा है, मै जानता हूं कि उस वक्त बेटों की उपस्तिथि ने मुझे राहत दी अन्यथा.....! खेर फिर वही बान.. अच्छा ऐसी
तो चला दो । मै इधर उधर देखते हुए एसी के स्विच धूंड रहा था कि बेटे का स्वर आया पापा ये रहा स्विच मगर ये
तो फुल पर है।एसी के नीचे हाथ लगाया तो अहसास हुआ कि उस में से एसी हवा आ रही है जैसे कि मरीज आदमी
की सांस।समझ आ गया कि सरकारी उपक्रमों  के रंग ढंग का ही ये महान नाम वाला "हर्षवर्धन"महान जहाज है।अब
कोई इलाज न पाकर खिड़की ही खोलदी,मगर जाने केसा समुद्र का किनारा था कि हवा चल ही नहीं रही थी।कोई
अन्य उपाय न देख कर श्रीमती जी के वानो से बचने हेतु अधिकारी द्वारा दिया गया फार्म को भरने लगा।थोड़ी देर बाद
अचानक कमरे में स्पीकर से एक तेज आवाज आई: सभी सम्मानित यात्रियों से निवेदन किया जाता है कि रात के भोजन
का समय ७ बजे से सही ७.३० तक निर्धारित है ,सभी भोजन के लिए सही समय पर डायनिंग हाल में पहुंचे ,इसके बाद
किसी को डायनिंग हाल में प्रवेश नहीं मिलएगा।: यह संदेश बंगाली एवम् अंग्रेज़ी में दोहराया गया। अभी मै कुछ
समझ पाता अचानक बड़ा बेटे ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा कि आपने यह संदेश सुना? मेरे हा कहने पर उसने
कहा कि वह पांचवीं मंजिल के बाद खुले डेक पर घूमने गया था तो वन्हा भी यह संदेश प्रसारित हो रहा था,साथ ही
समझाया की समय की सख्त पाबंदी है और डायनिंग हाल पहली मंजिल पर है ।घड़ी देखी तो ६.३० बज रहे थे और
डायनिंग हाल को ढूंढ ने एवम् पंहुचने में समय लगेगा अत तुरंत कुछ भूख ओर कुछ समय की पाबंदी के कारण हम
सब निकल लिए।कमरे से बाहर आ कर समझ आया कि बेटा सही कह रहा था।कारण मै आपको बताता हूं कि जहाज
का फैलाव लंबाई में होता है ,हर मंजिल पर मध्य में एक गेलरी होती है और दोनों तरफ कमरे होते है।गेलारी की
शुरुआत एवम् अंत में नीचे ऊपर जाने हेतु सीढ़ियां होती हैं।ओर हर सीढ़ी के किनारे एक तरफ बाथरूम एवम्
टॉयलेट होता है।gelari की पूरी दीवारें पीले रंग से पुती थी एवम् उस पर बड़े बड़े लाल लाल अक्षरों में लिखा था
खतरा हो तो निकल भागे।साथ ही सीढ़ी की दिशा में बड़ा सा लाल रंग का ही तीर का निशान बना था।हमें घबराहट
हुई कि कैसा खतरा ? लेकिन फिलहाल भोजन के समय की पाबंदी याद आते ही तुरंत डायनिग हाल की तरफ भागे,
क्योंकि जहाज पर आते ही बेटों ने जानकारी जुटा ली थी कि यहां कोई कैंटीन या शोप नहीं है।खेर सीढ़ियों की भूल
भुलैयो में उतारने के बाद पूछताछ करते जब डाइनिंग हाल के सामने हाजिर हुए तो चैन की सांस ली और घड़ी देखी
तो ठीक ७ बजे थे,यानी पूरा आधा घंटा लगा था। डायनिंग हाल के अंदर जा कर देखा तो पहली बार अच्छा लगा कि
इस जहाज पर कोई स्टैंडर्ड की जगह तो है,पर थोड़ी देर बाद उसका कारण भी समझ गया।बात यह थी कि वांहा
यात्रियों के साथ जहाज के कप्तान साहित सारे अधिकारी भी भोजन के लिए हमसे पहले ही मौजूद थे।तभी एक वेटर
ने हमारा कमरा न पूंछ कर हमारी निर्धारित मेज की तरफ बैठने का इशारा किया ।बैठते ही वेटर ने स्टील के बर्तन
रख कर तुरंत ही भोजन परोसना शुरू कर दिया,हमसे पूछने की तो बात ही नहीं हुई।थाली में देखा तो दाल चावल ,
एक सूखी सब्जी,एक बर्फी का पीस एवम् थोड़ी सी कटी प्याज।यही उनका मीनू था यानी अच्छा लगे या नहीं अगले
तीन दिन तक यही मिलना था।आखिर हमसे नहीं रहा गया तो हमने वेटर से कह रोटी भी लाओ ,उसके असमंजस
को देखते हमने कह कि भाई हमने रोटी के लिए पहले नोट करा दिया था,ओर भुगतान भी करा था।तब जाकर वह
हाथ में गिनती कि दस रोटी लाया।रोटी के आकार प्रकार के बारे में न बूझे तो ठीक रहेगा क्योंकि इतनी देर में हमें
समझा आ गया था कि चावल भात खाने वाले प्रदेश में रोटी की जानकारी कितनी होती है ।एक बात और की कि
हमारे अलावा सभी चावल  भात मछली और मीट के साथ खा रहे थे और एक बात कि शायद तमाम यात्रियों में हमी
ही वेजिटेरियन थे।अत चुपचाप खाने में ही भलाई थी।ओर रोटी मांगने पर इनकार भी कर दिया गया ।कोई बात नहीं
तुरंत हमारे खयाल में कोलंबस ओर वास्कोडिगामा की समुद्री यात्रा की यादगार वर्णन जो की पहले किताबो में पढ़
चुके थे और जिनसे प्रेरणा ले कर हम इस यात्रा में निकले थे हमें सहारा दिया।अब यह कोई लिखने की बात नहीं है
कमरे में आ कर हवाई यात्रा की जगह पानी के जहाज की यात्रा के निर्णय पर श्रीमती एवं बेटों ने हमारी कितनी क्लास
ली होगी।

चलिए अब आपको महान जहाज :हर्षवर्धन: की शाब्दिक सैर कराते हैं।जैसे कि मैने पहले बताया था कि यह पांच
मंजिला है।सीढ़ी चढ़ने के बाद जो खुली जगह जिसे डेक कहते है ,ये मंजिले उसके ऊपर बनी है।इस डेक के नीचे
भी तीन मंजिलें है अंतर केवल यह है कि जहां ऊपर की सभी मंजिलों में हर केबिन में खिड़कियां है वहीं नीचे कि
मंजिलों में कोई खिड़की नहीं होती क्योंकि ये मंजिले समुद्र की सतह से नीचे होती हैं।जब हम नीचे की मंजिल देखने
गए तो सिहर उठे,कलकत्ता की उमस वाली गर्मी में जांहा खिड़की लगी केबिनों में नहीं बैठा जा रहा था वहीं नीचे की
मंजिल गर्मी व उमस से भरी हुई थी।हालांकि वंहा भी यात्रियों के सोने के लिए वहीं तीन स्तरों के पलंग बेतरतीब लगे
थे।एसी के स्थान पर स्टैंड पर खड़े आठ दस पेदस्ट्रियाल पंखे थे। यहां पर लगभग पांच सौ से अधिक यात्री के सोने का
स्थान था।उसी मंजिल के एक तरफ साइड में लम्बी लंबी बेंच लगी थी।पूछने पर बताया गया कि इस में वे लोग सफर
करते है जो कि अंडमान के कम आमदनी वाले दुकानदार, मजदूर आदि होते है जिनकी शायद इतनी हैसियत नहीं
होती कि वे हमारी तरह ५५०० रूपए का भुगतान यात्रा के लिए कर सके। वे केवल १७०० रूपए में ही ये यात्रा करते
है एवं भोजन भी इसीमे शामिल होता है।जो बेंचे लगी थी,उन्हीं पर बैठ कर वे भंडारे की तरह ही भोजन करते है और
यही पर उनके बाथरूम बने थे।साथ ही हमें पूछने पर एक जानकारी ओर दी गई की उन्हें भी जहाज के उपरी खुला
डेक जो की पांचवीं मंजिल पर था पर ही जाने की इजाजत थी,वहीं केबिन वालों के लिए पांचवीं मंजिल के ऊपर एक
छोटा लेकिन अलग डेक था जिस पर बैठने के लिए कुछ सोफ़ा एवम् कुर्सियां रखी थी।इतनी ही देर में हमारी गर्मी व
उमस से बुरा हाल होने लगा था तो हे भगवान उनकी इस चार दिनों की यात्रा में क्या हाल होता होगा,ये सोच कर भी
दिल घबरा गया ।हम तुरंत लगभग दोड की तरह ही ऊपर के डेक पर आ गए।ऊपर के केबिनों के लिए रिजर्व डेक
पर जब हमने नीचे झांका तो हम हैरान रह गए। वहां तो लगभग पांच सौ यात्री घूम फिर रहे थे ,कुछ चादर दरी बिछा
कर ओंधे पड़े थे।तब हमें समझ आया कि क्यों हमें ज्यादा यात्री नजर नहीं आ रहे थे।व सब मजबूर लोग नीचे की गर्मी,
उमस से बचने के लिए ही ऊपर डेक पर शायद सफर करने को मजबूर थे।ऊपर के दोनों डेकों पर बड़े से टीवी लगे
थे लेकिन फिर वही अंतर नजर आया कि उनके लिए बैंचे लगी थी व केबिन वालों के लिए टीवी देखने हेतु सोफे व
कुर्सियां लगी थी।बताया गया कि हर रात्रि आठ बजे वीडियो से एक फिल्म दिखाई जाती है जिसका समय भोजन के
बाद साढ़े आठ बजे का   होता है।घड़ी देखी तो पता लगा कि आज फिल्म न दिखा कर समुद्री यात्रा के जोखिम एवम्
सुरक्षा की जानकारी हेतु डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाएगी। तभी हमने ध्यान दिया कि जहाज के इंजन चालू तो है मगर जहाज
चल नहीं रहा है मगर क्यों? जहाज चले तो वो रोमांच जिसके लिए ये यात्रा का प्लान बनाया था आनंद आए ओर इस
कलकत्ता की गर्मी से निजात मिले।फिर बेटे ने ही हमारी जानकारी बढ़ाई की उसने पता लगाया था कि जब समुद्र में
ज्वार आयेगा तभी यात्रा शुरू होगी।तब उसने ही दिखाया की हमारा जहाज समुद्र या कलकत्ता की हुगली नदी में नहीं
खड़ा है बल्कि हुगली नदी से पांच सौ मीटर की दूरी पर एक विशाल तालाब नुमा पोर्ट यार्ड पर खड़ा है ।जहाज के
आगे तालाब यानी पोर्ट के मुहाने पर लोहे के दो विशाल गेट लगे है जिनसे यार्ड का पानी रुका हुआ है।हमारा सर
चक्र गया की यह गेट पानी रोकने के लिए लगा है या जहाज रोकने के लिए।नीचे झांका तो फिर चकरा गए कि पानी
की सतह जिस पर जहाज खड़ा है उसके और बंद गेट के बाद के पानी के लेवल में तो अंदाजे से तीस फुट के करीब
का अंतर है। हे भगवान इतने पानी के लिए जाने कब ज्वार आयेगा ओर लेवल एक समान करने के लिए जाने कितना
समय लगेगा।अब डेक पर गर्मी ओर उमस से व्याकुल होकर हम केबिन की तरफ चले कि कुछ तो वहां एसी की
हवा मिलेगी चाहे वह नाममात्र की ही हो।थकान हावी होने के कारण ना जाने कब नींद आगई।अचानक एक जोर के
बेसुरे से हॉर्न व झटके से जागे तो महसूस हुए की अरे जहाज तो चल रहा है,जहाज के चलने से खिड़की से हवा का
झोंका आ रहा था उसने हमें फिर से नींद के आगोश में भेज दिया। जाने हम कब तक सोते रहते की फिर केबिन में
लगे स्पीकर ने कर्कश आवाज में उठा दिया। उसने धमकी भरे स्वर से अंदाज में घोषित किया कि नाश्ते का समय
ठीक आठ बजे से साढ़े आठ बजे तक ही है उठकर जब दैनिक क्रियाओं के निपटान हेतु बाथरूम के अंदर गए तो
फिर जोर का झटका लगा ।घुप अंधेरे में दो या तीन बल्ब ही जल रहे थे । आमने सामने कतार में छोटे छोटे  चार चार,
ऊपर से खुले केबिन थे। एक तरफ के स्नान हेतु व दूसरे नित्यकर्म से निबटने हेतु।खेर नहाने के केबिन में घुसे तो फिर
वही झटका ।पूरे केबिन में एक छोटा सा आला साबुन रखने के लिए बस कोई अन्य स्टैंड नहीं, नल की टोंटी के स्थान
पर सर की ऊंचाई से एक फुट ऊंचा सीधा मुड़ा पाईप जैसे कि फव्वारे में होता है मगर फव्वारे की जगह खुला पाईप।
ये भुकत भोगी ही जान सकता है हर समय हिलते ,ऊपर नीचे उठते जहाज में स्नान का अर्थ योग स्नान होता है।अब
जाकर हमें ब्रह्म ज्ञान हुआ कि ये यात्रा सरकारी जहाज से हो रही है ना कि हमारे जेहन में बसे विशाल आधुनिक
विदेशी क्रूज़ में।खैर नाश्ता में कोई विशेषता ना होने के बावजूद और कोई विकल्प ना होने से भी आनंद लिया ओर
फिर जहाज की पहली बार दिन की समुद्री यात्रा का अनुभव लेने सीधे भुलभुलैया वाली सीढ़ी पर  दिमागी चिन्ह याद
करते हुए ऊपर के डेक पर चले आए,ओर फिर जो नजारा सामने देखा वो हमेशा के लिए हमारी यादों में बस गया।
शब्द नहीं है पर निशब्द की भी शायद कोई लिपि होती है जिसकी सहायता से में उस पहले अनुभव को बता सकूं।
जहाज की मंथर गति,जहां तक हमारी दृष्टि सीमा थी चारों ओर नीला शांत समुद्र।पहली बार आत्मा से अनुभव लिया
कि विशाल आकाश, समुद्र की विशाल  अथाह जलराशि से वृत्ताकार होकर मानो एक ऐसी परिधि बना रहा है जिसके
मध्य में कोई पार्थिव बिंदु तक ना हो। उस समय के मोंन को केवल दो चीजें ही तोड़ रही थी एक हमारे जहाज की
थरथराने की आवाज ओर दूसरे जहाज के ऊपर लगातार उड़ते सफेद रंग के पक्षी।पहले तो सर चकराया की जब
हमें दूर दूर तक कोई की किनारा नहीं दिख रहा है तो ये पक्षी कैसे इतनी दूर तक उड़ रहें है ,क्या ये थकते नहीं ओर
थकने का बाद ये कन्हा विश्राम करेंगे,शायद क्या हमारे ही जहाज पर बिना भाड़ा चुकाए यात्रा करेंगे मगर तभी हमें
एक टक ऊपर देख कर फिर बेटे ने ज्ञान दिया कि पापा ये सी गल नाम के पक्षी है जो जहाज को आगे बढ़ाने वाले ,
पानी में डूबे पंखे में से , पिछले हिस्से से जो जलधारा में लहर पैदा होती है और उस लहर से घबराकर जो कुछ
मछलियां इधर उधर भागती है उन्हें ये कुशल शिकारी पक्षी लगातार डुबकी लगाकर पकडते रहते  है एवं ये उड़ान
में इतने माहिर होते है कि बगैर उतरे महीनों लगातार उड़ते रहते है यहां तक कि ये सोते भी उड़ते उड़ाते है।तभी
हमारे मन ने भी उनके साथ उड़ाने की कल्पना की ओर शायद पहली बार सोच कर ही अनुभव लिया उपर से उड़ते
उड़ाते केसा लगता होगा ये विशाल समुद्र।
  
ना जाने  हम कब तकयात्रा के प्रकृति के इस विशाल रूप के समुद्र में पूरी तरह डूबे रहते कि प्रकर्ती के एक साकार
स्वरूपा हमारी श्रीमती जी की आवाज़ ने वास्तविक जहाज के उपर लौटा दिया,क्या अब ऊपर ही देखते रहोगे या
कुछ और हमें ये जहाज दिखाओगे।एक आज्ञाकारी कि तरह फिर हम कल्पना लोक सें निकाल कर जहाज के
सफर की दुनिया में आ गए। ठीक ही कह रही हैं वे क्योंकि यह यात्रा तो आगे भी दो दिनों तक ऐसे ही चलती रहेगी,
ये सारे दृश्य में अब कोई विशेष बदलाव नहीं होंगे इसलिए हम तुरंत ही उनकी बात मान कर जहाज के निरीक्षण में
लग गए।यहां एक बात बता दूं कि प्रथम क्लास के केबिन यात्री होने के कारण हमें जहाज के इंजन ओर कंट्रोल
आफिस की छोड़ कर हर कंही जाने की आजादी थी।हमने सोच लिया कि चलो अब जहाज कि गतिविधियों के बारे
में जानकारी जुटाते हैं ।जहाज के सबसे ऊपर चारों तरफ एक चार फुट चौड़ी सी रेलिंग लगी होती है जिस के किनारे
से हम नीचे ,आगे ,पीछे सब तरफ दूर दूर तक देख सकते है।थोड़ी थोड़ी दूर पर कुछ गोल से ड्रम नुमा रखे थे पता
चला कि वे फोल्डेड नावें है जिन पर अगर दुर्घटना वश जहाज डूबने लगे या आग लग जाए तो इन नावों की सहायता
से रस्सी के सहारे नीचे खुले समुद्र में उतर सकते है। इन पर संकट में काम आने वाले कुछ उपकरण के साथ एक बार
में दस यात्री तक समा सकते है साथ ही हर नाव के बगल में एक बोर्ड लगा था जिस पर सारी विधियां लिखी थी।उस
बोर्ड को पढ़ते ही हमें टाइटेनिक जहाज की फिल्म की याद आ गई ।सच कहता हूं दिल में डर कि एक ऐसी लहर
आई कि नीचे समुद्र कि वास्तविक लहर भी छोटी लगी।हमने तुरंत ही वहा से आगे जाने में ही भलाई समझी।रेलिंग
के आगे बढ़ने पर तमाम तरह की उपकरण आदि दिखाई देते रहे ओर हम आगे बढ़ते रहे।

फिर वही शाम ,फिर वही डाइनिंग हाल में समय की पाबंदी,रात को वीसीआर पर फिलमदेखते हुए हम ही जानते
है कि कैसे हमारी समुद्री यात्रा जो की आरंभ में एक रोमांचक यात्रा थी एक बड़ी बोरियत कि यात्रा में बदलने लगी।
अगले दो दिन ऐसे ही बोरियत के बीच बताने को सिर्फ कुछ ही बातें घटी जिनको बताए बगैर ये यात्रा अधूरी ही
रहेगी।सबसे पहले जिन इजरायली यात्रियों की हमने आपको बताया था वे अगले ही दिन हमें ऊपर के खुले डेक
पर अस्तव्यस्ट पड़े मिले ।पता चला कि वे सब उल्टी आदि से परेशान हो कर ओंधे मुंह पड़े है।पहली बार हमें
अपने हिन्दुस्तानी नस्ल के होने पर अभिमान हुआ कि वाह हम कितने मजबूत है।पर अब यह भी बताते हुए हमें
कोई शर्म नहीं है कि तीसरे दिन मुझे लगा कि मेरे पेट में भी कुछ गोल गोल सा घूम रहा है।कुछ ही घंटो में जब ये
गोल घुमाव हमें तूफान में बदलता नजर आया तो फिर से में बेटे कि शरण में गया और कहा कि इज्जत का सवाल
है कि हमारा हाल भी उन इजरायलियों जैसा ना हो जाए तो कुछ करो।वह बेचारा क्या करता हमारे हाल को देख
कर बोला कि मैं अभी जहाज के कप्तान साहब से मिलकर पूंछ कर आता  हूं।जैसे कि अब आप को समझने की
जरूरत नहीं की इस जहाजी यात्रा के इस नाजुक दौर में हमारी श्रीमती ने हमें क्या कुछ नहीं कहा होगा।थोड़ी ही
देर बाद बड़े बेटे ने आ कर दिलासा दी की अभी दो पहर का समय है , शाम चार बजे जहाज के डॉक्टर आपको
देखेंगे। वाह ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जहाज पर डॉक्टर भी होगा।खेर राम राम कर के शाम के चार
बजे,कलेजा ही नहीं पेट भी मुंह को आ रहा था कि डॉक्टर के सामने हाजिर हो गए।उन्होंने देखते ही बता दिया की
आप सी सिकनेस के शिकार हो गए है।कारण जानने पर बताया कि आपने इस यात्रा में गौर किया है कि ये जहाज,
इंजन के चलने से लगातार थरथराता रहता है वहीं लहरों के कारण ऊपर नीचे भी होता रहता है।इसमें कोई शोकर
तो है नहीं की ये सब ना महसूस हो।एक आध दवाई देने के बाद उन्होंने धमकी भरे लेकिन प्यार से कहा कि आप
दवाई के साथ साथ खाना भी खाते रहें नहीं तो आप भी उन इजरायलियों की तरह उल्टी आदि के शिकार हो जायेगे,
तब मुझे आपको भर्ती करना पड़ेगा।में हैरान परेशान की क्या जहाज में अस्पताल भी है? तो बताया की  हां दस बेड
का अस्पताल है।मैने तुरंत कहा डॉक्टर साहेब अगर आपके अस्पताल में कोई ऐसा पलंग हो जिस पर जहाज के हिलने
जुलने का कोई असर न हो यानी वह पलंग पूरी तरह स्थिर हो तो में अभी भर्ती होने के लिए तैयार हूं। सारा खर्चा मेरा
बैंक दे देगा।तो बस बेटा किसी तरह से मुझे वहा से खींचता हुआ ही वापस कैबिन में लेआया।एक ओर अद्भुत बात
मै आपको जरूर बताऊंगा कि दिन के सफर में जो कि एक विशाल समुद्रीय रेगिस्तान सा लगने लगा था । नीले
आकाश से मिलते हर तरफ पानी के सिवाय और कुछ नहीं,कभी कभी दूर कहीं कुछ मछलियां दिखती थी लेकिन
पल भर में ही पानी में गायब ही जाती थी।परन्तु रात्रि के आसमान की बात ही अद्भुत थी।पहली बार हम सब गवाह
बने उस देवीय,रोमांचकारी दृश्य के जब रात के गहन अंधकार में पूरा आसमान लाखो छोटे बड़े चमकते टिमटिमाते
तारों से भरा हुआ था ।एकदम साफ प्रदूषित रहित वातावरण में  तारों का प्रकाश धरती के मुकाबले इस खुले समुद्र में
जैसे कई गुना बढ़ गया था।पहली ही बार देखा कि तारे समुद्र के चारों ओर परिधि में फैले जल से निकाल रहे थे।ये
सारा दृश्य मुझे कलकत्ता के उस कृत्रिम तारा मंडल की याद दिला गया ,हालांकि इस प्राकृतिक तारा मंडल से उसकी
तुलना हो ही  नहीं सकती थी।पहली ही बार वो साफ विशाल आकाश गंगा की धारा देखी जो सीधे हमारी आत्मा
के अस्तित्व में या हमारी आत्मा उस आकाश गंगा में विलीन हो रही थी।जाने कब तक हम इस सम्मोहित दृश्य में खोए
रहते कि पहली बार हमारी श्रीमती जी ने खोए खोए से स्वर में हाथ पकड़ कर कहा चलो काफ़ी रात बीत चुकी है ,
थोड़ा आराम कर लो।मुझे आभास हुआ कि इस देवीय दृश्य में वो भी पूरी तरह डूबी हुईं थी।ऐसे ही तीसरा दिन भी
बीत गया। चोथे दिन सुबह छह बजे ही स्पीकर ने फिर एक बार जगाया लेकिन संदेश सुन कर मन में मिश्रित भाव
पैदा हो गए।एक तरफ तो इस यात्रा से मुक्ति की खुशी हुई वहीं यात्रा में भोगे हुए अनुभव शायद ही फिर मिलें,इसकी
बेचैनी भी हुई।लेकिन आगे बढ़ते रहना ओर नए नए अनुभव लेना ही तो जीवन का उद्देश्य है अतः जब हमारा जहाज
एक घंटे के बाद जब किनारे पर लगा और हमारा  पहला कदम जब धरती की सतह पर लगा तो ऐसा प्रतीत हुआ की
जैसे एक शिशु को पुनः मां कि गोद में आकर अपूर्व सुख एवं सुरक्षा की भावना मिलती है।उस एक क्षण में हम महान
खोजी यात्री कोलंबस ओर वास्कोडिगामा की यात्राओं से सम्मुख हो गए,ओर बगैर पीछे देखे हर्षवर्धन जहाज से ऐसे
विमुख हुए कि जैसे एक दुस्वप्न से जागने पर दुबारा सोने कि हिम्मत नहीं होती है। हमने मनही मन उन महान यात्रियों
को स्मरण किया और एक नई यात्रा हेतु  आगे बढ़ लिये।


   



18 टिप्‍पणियां:

  1. Superb chacha ji mei bhi nikobar ki trip plan karunga in future aapka blog padne k bad🙏

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  2. Very well crafted bro.... Mesmerised..... Keep it up... Carry on with this...

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  3. ऋषिजी,आप ने तो हमें भी पानी के जहाज की यात्रा कर करवा दी। बहुत खूब

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  4. वाह..बहुत बढिया..रात में तारोंं भरा नीला समुद़ कितना सुंदर लगता होगा| आपने शब्दोंं के माध्यम से ऐसा दृश्य सम्मुख रखा है कि एक बार तो देखने की चाह मन में उत्पन्न हो गयी है | बहुत अच्छा.. ऐसे ही लिखते रहिये👍💐💐

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  5. Very beautifully crafted. But u missed me in your story how u remembered me during your voyage.

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  6. Beautifully narrated felt as if I was there on the ship Keep sharing All the best

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  7. Outstanding sir. In this blog you used the Beto power word , that's great.keep up it an very very congratulation....

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  8. हमें लगा हम ही यात्रा कर लौटे हो अद्भूत

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