शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

यात्रा……कैलाश मानसरोवर PART : 3

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              "  हर हर महादेव,बम बम भोले" के जय घोष के साथ , उमंग और उत्साह के साथ हम यात्रियों की बसें कुछ ही देर में यम द्वार नामक स्थान पर आ पहुंची।यहीं से वह परिक्रमा मार्ग उन देवों के देव महादेव के निवास स्थान ,जिसके दर्शन, जिसकी परिक्रमा ,जिसके चरणों में शीश झुकाने की अभिलाषा, सनातन काल से प्रत्येक भारतवासी के ह्रदय में विराजमान रहती है,आरम्भ होती है।पता नहीं कि पूर्व जन्मों के शुभ कर्म या पुरखों के आशीर्वाद,या स्वयं महादेव की कृपा पात्र होने के कारण हमें भी इस पुण्य  परिक्रमा का अवसर मिला। इस स्थान पर एक छोटा सा चारों दिशाओं से खुला,मूर्ति विहीन एक मंडप है जिसके चारों ओर सीढ़ियां बनी है। इसे ही यम द्वार कहते हैं।मान्यता है कि प्रथ्वी पर प्रत्येक प्राणी की आत्मा, मृत्यु के पश्चात इसी मड़प में किसी भी दिशा से प्रवेश करती है। तत पश्चात ही वह मृत्यु के देवता महादेव के निवास स्थान पवित्र कैलाश पर्वत के सामने उपस्तिथि होती है और कर्मों के हिसाब से उसका भविष्य निर्धारित होता है। हम कितने भाग्य शाली थे कि हमें जीतेजी ही इस यम द्वार में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हो रहा था।जीतेजी ही हमें महादेव के दुर्लभ दर्शनों के लिए ,उनके निवास स्थान पवित्र कैलाश की परिक्रमा करने का सुअवसर प्राप्त हो रहा था। हम अपने भाग्य को सराहते हुए यम द्वार में प्रविष्ट हुए ,उसकी भी परिक्रमा लगाई और फिर सामने शुभ्र हिम मंडित पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शनों के लिए ,उनकी परिक्रमा हेतु तैयार हो गए।


          यम द्वार के आगे एक बड़ा सा खुला मैदान था ।इसके चारों ओर भूरे रंग की ऊंची ऊंची चोटियां कैलाश पर्वत को इस तरह से घेरे हुई थी जैसे किसी महा राजा की सुरक्षा में उसके चारों ओर सशस्त्र सैनिकों का घेरा बना रहता है। यहां से कैलाश पर्वत का, हिम मंडित शिखर ही चमक रहा था।यात्रा आरम्भ करने से पूर्व पुनः सारे यात्रियों को एक साथ खड़ा किया गया,पुनः उनका मेडिकल चेक अप किया गया,फिर प्रत्येक यात्री को ,उसके सामान को उठाने,उसकी सवारी के लिए एक एक घोड़ा और दो दो मजदूर नियुक्त किए गए।यह सब इस लिए कि आगे की यात्रा में  अत्यंत ऊंचाई, प्राण वायु ऑक्सीजन की कमी,अत्यंत शीत के होने के कारण अक्सर यात्री बीमार हो जाते हैं,अतः उनकी पैदल यात्रा में कोई कठिनाई ना हो इस के लिए ही इन सबकी व्यवस्था की जाती है।अचानक ही हमारे सामने कुछ प्रेस रिपोर्टर एवम् टीवी चैनल के एंकर आ गए।उन्होंने अंग्रेजी भाषा में एक एक कर हम सब का संक्षिप्त इंटरव्यू लिया।हमारी इस यात्रा के अनुभवों की जानकारी ले कर ,शुभ कामनाओं के साथ हमें इस यात्रा के लिए विदा किया। हमारी यात्रा आरंभ हो गई ।
        सारे यात्री एक एक कर इस चिर प्रतीक्षित यात्रा के मार्ग पर मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करते हुए बढ़ने लगे।यात्रा का प्रवेश मार्ग  विशाल ऊंचे ऊंचे पर्वतों के मध्य एक संकरी सी घाटी में से था।एक तरफ पहाड़ी नदी मंथर गती से बह रही थी तो दूसरी तरफ हम यात्रियों के लिए एक पग डंडी नुमा मार्ग था।आरम्भ में तो मार्ग सीधा साधा था इस लिए मेरे जैसे अनेक यात्रियों ने घोड़े पर सवार होने के बजाय पैदल ही परिक्रमा लगाने का निश्चय किया । कुछ मिनट ही चलने के पश्चात् हमें सांस लेने में कठिनाई होने लगी,ऊपर से तीव्र सर्दी भी  हम सब की परीक्षा लेने लगी।इस प्रथम दिवस हमें लगभग 12 किलो मीटर की यात्रा करनी थी,लेकिन एक आध किलो मीटर चलने के पश्चात् ही सबको समझ में आ गया कि बिना घोड़ों की सवारी के अब आगे चलना संभव नहीं है अतः एक एक कर सारे यात्री अपने अपने निर्धारित घोड़े पर सवार होने लगे।क्रमश: यात्रा मार्ग भी समतल के स्थान पर ऊंची चढाई में बदलने लगा।जुलाई का महीना होने के बावजूद सर्दी, जनवरी महीने होने का आभास दे रही थी।फिर गौर किया कि पर्वतों के शिखरों पर बर्फ ग्लेशियरों के रूप में जमी हुई है।हालांकि हम सब ढेर सारे गर्म वस्त्र पहने हुए थे मगर वे अब इस भीषण सर्दी में सूती वस्त्र का ही अहसास प्रदान कर रहे थे।इस अवस्था में दोपहर होते होते जैसे ही हम अपने पहले पड़ाव स्थल पर पहुंचे  कि हमें अपने सम्मुख विशाल ,शुद्ध काले मगर शुभ्र बर्फ से मंडित पवित्र कैलाश पर्वत के प्रथम पूर्ण दर्शन हुए।

इस एक पल में प्रत्येक यात्री अपनी पिछले कुछ दिनों की यात्राओं के कष्ट,दुख भूल कर अध्यात्म की एक ऐसी दुनियां में पहुंच गया जिसकी प्राप्ति हेतु अधिकांश योगी ,साधु जन अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर देते हैं।इसी एक पल में हम इस जीवन के सारे रिश्तों नातों को विस्मृत कर केवल अपने सामने उपस्थित इस महा योगी शिव की रहस्यमई ,अलौकिक दुनिया में खो गए।उस वक़्त जो हम सब यात्रियों की मानसिक अवस्था रही होगी ,उसका सम्पूर्ण विवरण यहां लिखना असम्भव है। इसे यूं कहें कि जन्मों से प्रतीक्षित इसी क्षण की कल्पना के पूर्ण होने का हम सब आत्मा की पूरी गहराइयों से आनंद ले रहे थे।
         यूं तो इस अद्भुत समय के वर्णन में , मै  और बहुत अधिक लिख सकता हूं मगर भावुकता में मेरे साथ मेरी लेखनी इतनी अधिक डूबी हुई है कि मैं इस समय के वर्णन को यहीं विराम देता हूं और इसके पश्चात घटी एक रहस्यमई घटना का विवरण आपको बताता हूं।  जैसे कि आपको पूर्व में बताया था कि तीन दिवसीय यात्रा का ये हमारा पहला पड़ाव था।इसी पड़ाव से पवित्र कैलाश पर्वत के सम्पूर्ण ,भव्य दर्शन होते है। शेष परिक्रमा मार्ग में पवित्र कैलाश की केवल झलक भर ही दिखाई देती रहती है। इसी पर्वत के ठीक सामने हम यात्रियों हेतु रात्रि विश्राम के लिए 8 अस्थाई कमरे बने हुए थे।यहां से ठीक सामने 2.8 किलो मीटर की दूरी और लगभग 2000 फुट की और ऊंचाई पर कैलाश पर्वत स्थित है,लेकिन इस पड़ाव से देखने पर ऐसा लगता है कि एकदम सामने,नजदीक ही ये स्थित है।
पूजा,अर्चना एवम् दर्शनों के पश्चात् सभी यात्री पड़ाव में विश्राम हेतु चले गए। मैं भी अपने नियत स्थान पर आया तो मुझे स्मरण हुआ कि वर्षों पहले मैने एक किताब में कैलाश यात्रा के समय में चरण पूजा का विवरण पढ़ा था। अतः उस समय से ही मैने निश्चय किया हुआ था कि जब भी इस पवित्र यात्रा का मुझे सौभाग्य प्राप्त होगा तो मै चरण पूजा अवश्य करूंगा। अब जब यह सौभाग्य प्राप्त हुआ तो निश्चिंत था कि मुझे तो पवित्र कैलाश की चरण पूजा करनी ही है।चरण पूजा का अर्थ होता है 2000 फुट की और दुर्गम ऊंचाई चढ़ कर सीधे अपने आराध्य श्री कैलाश पर्वत के ठीक नीचे ,पास पहुंच कर ,उनकी पूजा करना एवम् उस पवित्र पर्वत का स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त करना। होता यह है कि पैदल यात्रा के अन्तर्गत यात्री 2000 फुट की यह चढाई अत्यंत दुर्गम होने के कारण  ना चढ़ कर ,इसी पड़ाव स्थल से ,2.8 किलो मीटर की दूरी से ही पवित्र कैलाश पर्वत के दर्श कर स्वयं को धन्य मानते हैं।
            जैसे ही अन्य यात्रियों को मेरी चरण पूजा की बात का पता चला,वे सब भी मेरे साथ ही पवित्र पर्वत के स्पर्श हेतु चल दिये।दोपहर के 2  बजे का समय हो चुका था।जाने आने में कम से कम 4 घंटो का समय तो अवश्य ही लगना था क्योंकि इतनी अधिक ऊंचाई पर हर 10 कदम चलने के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम अवश्य लेना होता है अन्यथा फेफड़ों में रुकावट आने लगती है ,जिससे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है।इसके बाद भी अगर यात्रा जारी रखते हैं तो ऑक्सीजन की इतनी अधिक कमी हो जाती है कि मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं। अतः इन सब से बचाव हेतु यात्रा में समय काफी लगता है। यात्रा शुरू होते ही मेरे समेत केवल 4 यात्री ,जिनमें एक मेरठ के डाक्टर भी थे ही आगे चले,बाकी सारे यात्री कुछ गज दूर चलने के बाद  ही विश्राम स्थल पर वापस चलें गए। लगभग 300 मीटर चलने के पश्चात् ना जाने कैसे मुझे सांस लेने में रुकावट होने लगी। मैं थोड़ा सा घबराने लगा,अभी तो कैलाश पर्वत, ऊंचाई के हिसाब से काफी अधिक दूरी पर था।जब हम एक चढाई पार करते,तो लगता कि अब कैलाश पर्वत सामने आ जाएगा,लेकिन फिर तुरंत दूसरी, पहले से भी खड़ी चढ़ाई, सामने, चुनौती देती हुई प्रकट हो जाती।कैलाश पर्वत का यह मार्ग कोई मार्ग नहीं था।हम तो केवल कैलाश पर्वत की तरफ सीधे अनुमान से ही ,मार्ग में पड़े बड़े बड़े पथरों,टेढ़े मेढे किनारों पर मजबूती से प्रत्येक कदम सम्हाल सम्हाल कर रखते हुए चल रहे थे,इसमें अधिक समय लग रहा था,ऊपर से मुझे सांस लेने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। अतः मेरी ऊपर चलने की गती अत्यंत धीमी हो गई थी।अब चूंकि मेरे बाकी तीनों साथी अभी तक ठीक थे,तो वे तेज गति से ऊपर जाने को बेकरार होने लगे थे।मैने एक स्थान पर रुकते हुए उनसे निवेदन किया किआप चलिए मै आपके पीछे पीछे धीमी गती से ही आऊंगा,लेकिन आऊंगा जरूर।मेरे अनुरोध पर वे तीनों आगे चले गए और मै रुक रुक कर,अपनी सांस को नियंत्रित करते हुए आगे बढ़ने लगा।शीघ्र ही उन साथियों और मेरे मध्य दूरी का अंतर काफी अधिक होने लगा।लगभग 1 किलो मीटर की तीव्र चढाई चढ़ने के पश्चात् अचानक मेरी तकलीफ और बढ़ने लगी।हालांकि कैलाश पर्वत अब मुझे एकदम अपने नजदीक लग रहा था लेकिन चढाई और सीधी, और कठिन होती जा रही थी,साथ साथ ही मेरी सांस लेने की तकलीफ और बढ़ने लगी थी। मै अब और आगे जाने की स्थिति में नहीं लग रहा था।सहसा मुझे यात्रा आरंभ करने से पहले डाक्टरों की सलाह याद आई कि अगर चढाई चढ़ते हुए कभी ऐसी परिस्थिति आए तो चूसने वाली मीठी टॉफियां को मुख में रख कर चूसने लग जाओ।इस से गला नम बना रहेगा और सांस लेने में आसानी होने लगेगी।इस बात की याद आते ही मैने अपने कोट की जेबों में हाथ डाला तो हैरान रह गया।यात्रा की जल्दबाजी में , मै टॉफियां के साथ साथ पोर्टेबल ऑक्सीजन का सिलिंडर भी पड़ाव पर ही भूल आया था।अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं  हर हालातों में कैलाश पर्वत के चरण छूने के लिए कटिबद्ध था। मै एक पत्थर के टुकड़े के ऊपर बैठ कर अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयत्न करने लगा।मेरे बिल्कुल सामने विशाल कैलाश पर्वत कुछ ही दूरी पर जैसे मुझे होंसला दे रहा था कि धीरज रखो ,सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन मेरी सांसे थी कि कंट्रोल में नहीं आ पा रही थी।अब मै निराशा के झूले में झूलने लगा था कि इतने पास आकर भी क्या मेरी यह इच्छा अधूरी ही रह जाएगी।मैने अपनी आंखे बंद की,हाथों को जोड़ा और करुणा भाव से, भोले नाथ, से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे महा देव , मै बड़ी ही उम्मीदों के साथ आपके दर्शन करने,आपके चरणों को स्पर्श करने आया हूं , मेरे जीवन की इस सब से बड़ी अभिलाषा को पूर्ण होने दो हे प्रभू।अब आपके दर्शनों के अलावा मेरी कोई अन्य इच्छा नहीं है प्रभु। वास्तव में , मै उस समय हृदय से ,कैलाश पर्वत के सामने ,बस थोड़ी सी ही दूरी पर बैठ प्रार्थना कर रहा था कि तभी अचानक किसी ने मुझे आवाज दी!,मैने चौंक कर अपनी आंखे खोली तो देखा ,मेरे सामने एक तिब्बती, वेश भूषा में ,सर पर गोल हेट पहने , प्रोढ़ उम्र का अजनबी खड़ा है।उसकी भाषा मेरी समझ में नहीं आई,मैने प्रश्न वाचक नजरों से उसे देखा ,तो उसने मुझे बांए हाथ की उंगली उठा कर ऊपर कैलाश पर्वत की ओर चलने का इशारा किया ,मगर मेरी हालत इतनी पस्त थी कि मैने ना में गर्दन हिला दी क्योंकि उस समय मै बोलने में भी असमर्थ था फिर उसने पुनः उस उंगली को अपना मुख खोल कर अंदर कुछ खाने को कहा। मै समझ गया कि वो मुझे टॉफी मुख में रख कर चूसने के लिए इशारा कर रहा है ताकि मै सांस लेने में समर्थ हो जाऊं,मगर मैने फिर इनकार में सिर हला दिया और हाथ उठाकर टॉफी नहीं होने का इशारा ही किया।तब उसने अपने पहने हुए पुराने से कोट की जेब में से एक नरम बर्फी जैसे आकर वाली,गहरे भूरे रंग वाली ,नरम सी मिठाई,जी हां मै मिठाई ही कहूंगा ,निकाली और मुझे मुख में रखने को कहा।उस समय मेरी शारीरिक दशा ऐसी थी कि बगैर सोचे समझे मैने अपनी हथेली फैला दी।उसने वह मिठाई नुमा वस्तु मेरी हथेली में रख दी।मुझे वह चीज एक दम नरम सी प्रतीत हुई,और बगैर सोचे समझे मैने  उसे अपनी जीभ पर रख दी।मुझे एक दम मीठे का स्वाद महसूस हुआ,लेकिन वास्तव में वह मिठाई जैसी वस्तु ना तो बर्फी थी,ना चॉकलेट थी और ना ही पनीर की कोई मिठाई थी।इस एक सप्ताह की यात्रा में , मै जान चुका था कि पूरे तिब्बत में मिठाई जैसी कोई भी खाने की वस्तु कहीं नहीं मिलती है।खैर ,मैने उस बर्फी जैसी नरम, मीठी वस्तु को अपनी जीभ मे-रख, मुख बंद कर लिया।तब वो तिब्बती मुझे ऊपर कैलाश पर्वत पर जाने का इशारा करते हुए आगे चला गया। मै उस समय इतना परेशान था कि मै आंखे बंद कर,अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयत्न करने में ही लगा हुआ था ।कुछ ही समय में ,मुझे अहसास होने लगा कि मेरी तबीयत अब कुछ ठीक हो रही है।समय तेजी से बीत रहा था, इस लिए मैने पूरी हिम्मत लगा कर अपने को खड़ा किया ओर एक एक कदम रखते हुए धीरे धीरे ऊपर ,कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित कैलाश पर्वत की ओर बढ़ चला।
        लगभग आधे घंटे बाद,पूरी शक्ति लगाने के पश्चात्  मै पवित्र कैलाश पर्वत के सम्मुख हाथ जोड़े खड़ा था। मेरे मुख में अभी तक उस तिब्बती द्वारा दी गई मिठाई का एक छोटा सा हिस्सा बचा हुआ था। आज मेरे जीवन की सबसे बड़ी कामना ,महादेव के निवास स्थल ,पवित्र कैलाश के दर्शन,उनकी चरण पूजा का अत्यंत दुर्लभ सौभाग्य ,जो कि ऋषियों,मुनियों को भी अत्यंत दुर्लभ होता है,और जिसके बारे में मान्यता है कि अनेकों पूर्व जन्मों के पुण्यों से ही पवित्र कैलाश पर्वत के चरणों की पूजा और उनके स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त होता है,  पूर्ण हो रही थी। मै अब सब दुनिया के सारे रिश्ते नाते,सब कुछ को भुला कर इस पवित्र गहरे काले रंग के विशाल पवित्रतम पर्वत ,जिस पर ऊपर से नीचे तक शुभ्र बर्फ ,एक विशाल सफ़ेद कम्बल की तरह बिछी हुई थी,के सम्मुख अपनी आंखो को पूरी तरह बंद किए जाने कब तक खड़ा रहा था।जितनी भी भगवान शिव की स्तुति,मंत्र ,भजन आदी जो भी मुझे पूरी तरह कंठस्थ थे ,मै उन सबको भूल कर एक अलग सी ,अजीब सी अध्यात्म की दुनिया में डूबा हुआ था।अब इस समय मेरे हृदय में ना किसी कामना की,ना किसी प्रार्थना की ओर ना किसी वरदान का कोई स्थान  था।एक तरह से मै आत्म विस्मरत की दूसरी दुनिया में पूरी तरह डूबा हुआ था। मुझे ज्ञात नहीं की मै कब तक इस स्थिति में खड़ा रहा था कि अचानक पुनः मुझे किसी की आवाज सुनाई दी।तुरंत मैने आंखे खोली तो देखा कि मेरे सामने मेरे तीनों सहयात्री खड़े थे।
           "अरे इतना अधिक समय कैसे लगा आपको यहां तक आने में" ये प्रश्न मेरे मेरठ के यात्री मित्र जो कि स्वयं एक डाक्टर थे ने पूछा। मै, जो अब नार्मल होने लगा था,अपनी तबीयत खराब होने से लेकर यहां तक कैसे पहुंचा,इसके बारे में उन्हें संक्षिप्त में बताने लगा।सहसा मुझे मार्ग में मिले प्रौढ़ तिब्बती का स्मरण हो आया।मैने उन सबसे पूछा ,वो मुझ से पहले जो तिब्बती इधर  आया था वो दिख नहीं रहा है, वो किधर गया? " कौन सा तिब्बती,इधर तो कोई तिब्बती नहीं है और ना ही कोई आया है,हम सब के अलावा यहां कोई और नहीं है ,स्वयं ही देखलो"।मैने अपनी नजर इधर उधर ,चारों ओर डाली,अच्छी तरह से सब तरफ देखा,मगर हम चारों के अतिरिक्त कोई भी नहीं था,था तो सिर्फ विशाल,पवित्र कैलाश और हम चार यात्री।" लगता है आपकी तबीयत ठीक नहीं है इस लिए आप ऐसी बात कर रहे हैं"डाक्टर साहब ने मुझ से कहा।" हां, मै पूरी तरह स्वस्थ नहीं हूं ,मगर मै सत्य कह रहा हूं,उस तिब्बती के कारण ही मै यहां तक पहुंच पाया हूं,विश्वास ना हो तो देखो और मैने अपनी जीभ निकाल कर उन सबको दिखाई,देखो उस तिब्बती द्वारा चूसने के लिए जो मीठी वस्तु मुझे दी थी,उसका एक छोटा सा शेष टुकड़ा अभी भी मेरी जीभ पर बचा हुए है"।कहने की आवश्यकता नहीं है कि उन्हें मेरी बात का विश्वास करना पड़ा और वे सब आश्चर्य में डूब गए।तभी मुझे भी समझ में आया कि मुझे मार्ग में कोन मिला होगा!बिल्कुल सत्य कहता हूं कि उस समय , भावावेश में मेरा गला रूंध गया ,मेरी आंखे आसुओं से भर गई ,अब मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि स्वयं भगवान महादेव ने मेरी करुण पुकार सुन कर ,मेरी आत्मा की पुकार सुनकर,मुझे  यहां तक पहुंचाया था।आज तक मुझे भगवान शिव की इस कृपा का अहसास है और अंतिम स्वांस तक रहेगा चाहे आप या कोई अन्य भी विश्वास करे या ना करे। मै उस क्षण उस पवित्र कैलाश के चरणों में दंडवत लेट गया और दोनों हाथ जोड़ कर उनके ध्यान में खो गया।उस समय जमा देने वाली तीव्र ठंड,बर्फ और जमा देने वाले,पवित्र कैलाश के स्वयं चरणों से बहती जलधारा का ,मेरे शरीर पर कोई प्रभाव नहीं था ,शायद मै उस समय स्वयं उस पवित्र कैलाश का ही एक अंश बन गया था!
          थोड़े ही समय बाद मेरे तीनों मित्रों ने मुझे उठाया तो जैसे में वर्तमान में लौट आया।" चलिए अब काफी समय बीत चुका है ,कुछ ही समय में रात्रि का अंधकार छा जाएगा,हमें वापस अपने पड़ाव पर भी जाना है"।अरे हां इस यात्रा में मेरे साथ मेरी धर्म पत्नी श्रीमती आशा जी भी तो आई हुई हैं, हां ,मुझे उनके लिए,अपने इन्तजार में बैठे दोनों बेटों के लिए भी  वापस भी लौटना है। मैने फिर से उस पवित्र कैलाश पर्वत के चरणों में अपना सिर झुकाया,अंतिम बार हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और वापसी के लिए मुड़ने लगा।तभी मुझे ख्याल आया कि मै इस पवित्र कैलाश पर्वत के कुछ अंश जो कि छोटे छोटे टुकड़ों में नीचे बिखरे हुए थे को उठा कर अपने साथ ले चलूं ,उन्हें विधि पूर्वक अपने पूजा के कक्ष में स्थापित करूं जिससे मुझे उनके प्रतिदिन दर्शनों का लाभ मिलता रहे।मैने उस पवित्र कैलाश के कुछ अंश हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए चुन  लिए और अपने को धन्य कर लिया।
       वापसी से कुछ क्षण पहले मैने मित्र डाक्टर से अनुरोध किया कि मेरे मोबाइल से इस यादगार ,अनमोल समय की कुछ फोटो ले लें ,क्योंकि मैअभी भी ठीक हालत में नहीं हूं ।उन्होंने मुझ पर कृपा दिखाते हुए ,उस अनमोल समय की कुछ अनमोल फोटो खींची जो अब मेरे जीवन की अमूल्य निधि हैं।आप सब के दर्शनार्थ मै इस यात्रा की कुछ फोटो भी इस यात्रा विवरण के साथ दिखा रहा हूं,ताकि आप भी मेरे साथ इस अद्भुत क्षण का आनंद ले सकें।
            अब हम चारों वापसी के लिए पड़ाव की ओर चल पड़े।अब एक दम सीधी, तीव्र ढलान थी।शाम का धुंधलका छाने लगा था,।जैसे कि आपको पहले बता चुका हूं कि दूरी तो केवल 2.8  किलो मीटर ही थी,मार्ग भी चढाई के बजाए ढलान का था ,मगर कोई पगडंडी भी ना होने से आने की तरह नीचे जाने का मार्ग भी खाइयों,बड़े बड़े उबड़ खाबड़ पथरों का ही था इस लिए वापसी में भी ऊपर आने जितना समय लगना था, और अब हम नीचे की ओर चल पड़े थे।कुछ दूर नीचे चलते ही मुझे समझ आने लगा था कि आशा के विपरित मुझे नीचे उतरने में भी तकलीफ हो रही थी,जिसके कारण मै तेज नहीं चल पा रहा था ।थोड़ी दूर धीरे धीरे नीचे चलते ही अंधेरा और घना होने लगा। मैने देखा कि मेरे कारण  मेरे तीनों मित्र भी धीरे धीरे चल रहें है।मैने मन ही मन एक निर्णय लिया और तीनों से अनुरोध किया कि आप तेजी से चल सकते हो इस लिए मुझे छोड़ कर आप तीनों शीघ्र पड़ाव पर चले जाओ,क्योंकि मेरी तबियत खराब है ,मुझे मेडिकल सहायता की तीव्र आवश्यकता है ,इस लिए जब तक मै नीचे पड़ाव तक आऊं,तब तक आप नीचे जल्दी जा कर मेडिकल का इंतजाम करलो।मेरी इस बात में दम था इस लिए अनिच्छापूर्वक ही सही वे मुझे छोड़ कर तेजी से नीचे उतरने लगे और कुछ ही क्षण में मेरी आंखों से ओझल हो गए। मै पुनः एक एक कदम सावधानी पूर्वक रख कर नीचे की ओर चलने लगा। 1 घंटा बीत गया,। 1 किलो मीटर का सफर भी पूरा हो गया,तब तक अंधेरे ने पूरे मार्ग को अपने घेरे मे ले लिया था।मुझे अपने आस पास कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।केवल दूर नीचे आधे किलो मीटर पर स्थित पड़ाव के जलते बल्बों की रोशनी ही मेरा मार्ग निर्धारण कर रही थी। मैंने पुनः भगवान महादेव की प्रार्थना करते हुए कहा कि, हे महादेव आपने मुझे अपने दर्शन,चरणों की पूजा का अवसर देकर बड़ी ही कृपा की है, प्रभु मुझ पर इतनी और कृपा करो कि मेरी प्रतीक्षा में बैठे मेरे परिवार तक मै सकुशल वापस पहुंच जाऊं। फिर एक बार महा देव की अनुपम कृपा के कारण ही ,धीरे धीरे ,कष्ट होने,घुप अंधेरा होने के बावजूद मै लगभग 9बजे रात्रि को पड़ाव तक आ ही पहुंचा।पड़ाव के आठों कमरों में तीव्र ठंड होने के करण सारे यात्री अपने अपने कमरे में बैठे थे।बाहर कोई नहीं था।मेरी तकलीफ अब  सहने कीसीमा पार कर रही थी।मुझे अब शीघ्र मेडिकल सहायता की आवश्यकता थी।वो तो संयोग से हमारे ग्रुप में 3 अनुभवी डाक्टर भी थे,दवाइयों का पैकेट , ऐसे ही वक़्त के लिए भारत सरकार ने हमारे साथ रखा था।जैसे ही मैं पड़ाव के पहले कमरे के सामने पहुंचा,मुझे नहीं पता कि मै सहायता के लिए किसे पुकारूं,इस लिए मैने अपनी पत्नी आशा का नाम लेकर ,पूरी शक्ति से चिल्लाया " आशा...मुझे जल्दी से ऑक्सीजन लगाओ,पानी पिलाओ" कह कर जो भी सामने खाली बिस्तर दिखाई दिया उसी पर लेट गया।चूँकि शायद मेरी इस हालत की जानकारी मेरे तीनों मित्रों ने पहले ही सब को दे दी थी,इस लिए सब इस परिस्थिति से निपटने को पूरी तरह तैयार थे।अगले ही पल मै अर्ध बेहोशी में डूब गया।.....बाद में ,सुबह सबने बताया कि उन्होंने मेरे उपचार में क्या क्या किया था।ठीक हो कर मैने भगवान शिव और सारे साथियों को धन्यवाद पूरे ह्यदय से दिया, और सबके अहसानों का बोझ जीवन भर के लिए एकत्रित कर लिया।चूँकि अब हम चारों वापसी के लिए पड़ाव की ओर चल पड़े।अब एक दम सीधी, तीव्र ढलान थी।शाम का धुंधलका छाने लगा था,।जैसे कि आपको पहले बता चुका हूं कि दूरी तो केवल 2.8  किलो मीटर ही थी,मार्ग भी चढाई के बजाए ढलान का था ,मगर कोई पगडंडी भी ना होने से आने की तरह नीचे जाने का मार्ग भी खाइयों,बड़े बड़े उबड़ खाबड़ पथरों का ही था इस लिए वापसी में भी ऊपर आने जितना समय लगना था, और अब हम नीचे की ओर चल पड़े थे।कुछ दूर नीचे चलते ही मुझे समझ आने लगा था कि आशा के विपरित मुझे नीचे उतरने में भी तकलीफ हो रही थी,जिसके कारण मै तेज नहीं चल पा रहा था ।थोड़ी दूर धीरे धीरे नीचे चलते ही अंधेरा और घना होने लगा। मैने देखा कि मेरे कारण  मेरे तीनों मित्र भी धीरे धीरे चल रहें है।मैने मन ही मन एक निर्णय लिया और तीनों से अनुरोध किया कि आप तेजी से चल सकते हो इस लिए मुझे छोड़ कर आप तीनों शीघ्र पड़ाव पर चले जाओ,क्योंकि मेरी तबियत खराब है ,मुझे मेडिकल सहायता की तीव्र आवश्यकता है ,इस लिए जब तक मै नीचे पड़ाव तक आऊं,तब तक आप नीचे जल्दी जा कर मेडिकल का इंतजाम करलो।मेरी इस बात में दम था इस लिए अनिच्छापूर्वक ही सही वे मुझे छोड़ कर तेजी से नीचे उतरने लगे और कुछ ही क्षण में मेरी आंखों से ओझल हो गए। मै पुनः एक एक कदम सावधानी पूर्वक रख कर नीचे की ओर चलने लगा। 1 घंटा बीत गया,। 1 किलो मीटर का सफर भी पूरा हो गया,तब तक अंधेरे ने पूरे मार्ग को अपने घेरे मे ले लिया था।मुझे अपने आस पास कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।केवल दूर नीचे आधे किलो मीटर पर स्थित पड़ाव के जलते बल्बों की रोशनी ही मेरा मार्ग निर्धारण कर रही थी। मैंने पुनः भगवान महादेव की प्रार्थना करते हुए कहा कि, हे महादेव आपने मुझे अपने दर्शन,चरणों की पूजा का अवसर देकर बड़ी ही कृपा की है, प्रभु मुझ पर इतनी और कृपा करो कि मेरी प्रतीक्षा में बैठे मेरे परिवार तक मै सकुशल वापस पहुंच जाऊं। फिर एक बार महा देव की अनुपम कृपा के कारण ही ,धीरे धीरे ,कष्ट होने,घुप अंधेरा होने के बावजूद मै लगभग 9बजे रात्रि को पड़ाव तक आ ही पहुंचा।पड़ाव के आठों कमरों में तीव्र ठंड होने के करण सारे यात्री अपने अपने कमरे में बैठे थे।बाहर कोई नहीं था।मेरी तकलीफ अब  सहने कीसीमा पार कर रही थी।मुझे अब शीघ्र मेडिकल सहायता की आवश्यकता थी।वो तो संयोग से हमारे ग्रुप में 3 अनुभवी डाक्टर भी थे,दवाइयों का पैकेट , ऐसे ही वक़्त के लिए भारत सरकार ने हमारे साथ रखा था।जैसे ही मैं पड़ाव के पहले कमरे के सामने पहुंचा,मुझे नहीं पता कि मै सहायता के लिए किसे पुकारूं,इस लिए मैने अपनी पत्नी आशा का नाम लेकर ,पूरी शक्ति से चिल्लाया " आशा...मुझे जल्दी से ऑक्सीजन लगाओ,पानी पिलाओ" कह कर जो भी सामने खाली बिस्तर दिखाई दिया उसी पर लेट गया। शायद मेरी इस हालत की जानकारी मेरे तीनों मित्रों ने पहले ही सब को दे दी थी,इस लिए सब इस परिस्थिति से निपटने को पूरी तरह तैयार थे।अगले ही पल मै अर्ध बेहोशी में डूब गया।बाद में सुबह सबने बताया कि उन्होंने मेरे उपचार में क्या क्या किया था।ठीक हो कर मैने भगवान शिव और सारे साथियों को धन्यवाद पूरे ह्यदय से दिया, और सबके अहसानों का बोझ जीवन भर के लिए एकत्रित कर लिया।

           हालांकि मेरी पूरी इच्छा थी कि मै अन्य साथियों के साथ शेष  2 दिनों की कैलाश पर्वत की परिक्रमा करूं ,मगर मेरी हालत को देख कर पत्नी सहित सब एकमत थे कि मुझे ये परिक्रमा नहीं करनी चाहिए,वैसे भी आपने जो चरण पूजा का अवसर प्राप्त किया है उसका महत्व इस परिक्रमा के समान ही है, अतः" जान है तो जहान है ",जीवन में फिर कोई मौका मिलेगा तो इसे फिर कर लेना" की बात मान कर मै वापस डार चिन के होटल के लिए वापस लौट गया ,शेष यात्री अपने आगे की परिक्रमा पूर्ण कर के  2 दिन बाद फिर मिलेंगे के वायदे के साथ आगे बढ़ गए।मेरे साथ मेरी पत्नी आशा भी लौट आई ,हालांकि मैने उनसे बहुत अनुरोध किया कि वे अपनी परिक्रमा पूरी कर ने के लिए यात्रियों के साथ चली जाएं,मगर उन्होंने मेरी एक ना सुनी और दृढ़ निश्चय के साथ मेरे साथ वापस डार चिन लौट आई।मुझे उन पर हमेशा गर्व रहेगा ।साथ ही मुझे भारतीय नारी के त्याग पर गर्व ओर विश्वास पूरी तरह से भी हो गया!
           ( अगली इस यात्रा के अंतिम भाग 4  में ,मेरे साथ पुनः पवित्र मानसरोवर झील  में मानसिक स्नान अवश्य करें)

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके साथ हमने भी पवित्र कैलाश पर्वत के चरण दर्शन कर लिये हैं । जय हो 🙏🙏

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  2. आपके बहुआयामी व्यक्तित्व से तो हम पहले से ही परिचित रहे हैं। परन्तु एक लेखक के रूप में आपकी प्रतिभा देखना अत्यधिक सुखद रहा। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।

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