रविवार, 13 मार्च 2022

यात्रा ............तुलजा भवानी ..!!

                                                    


        "" तुलजा भवानी "" इस शब्द से शायद ही हम उत्तर भारतीय परिचित होंगे ,और अगर  थोड़े परिचित भी होंगे तो केवल अजय देवगन  की बनाई फिल्म "" तानाजी "" फिल्म जिसमे वीर शिवाजी की वीर गाथा का चित्रण हुआ है ! अब आप समझ गए होंगे कि तुलजा भवानी का किस स्थान और किस वीर के साथ संबंध है।आप ठीक समझे ,तुलजा भवानी महान मराठाओं के महान वीर " शिवाजी महाराज " की कुल देवी थी ! 
                                                    

                                                        
        तानाज़ी फिल्म के बाद मेरी भी उत्सुकता शिवाजी महाराज की इन कुलदेवी के बारे में और बढ़ गई थी ,परंतु ,इन देवी के बारे में हिंदी साहित्य में बहुत ही थोड़ी सी जानकारी मुझे मिल पा रही थी । ऐसे में जब मुझे अपने छोटे बेटे के पास पूना जाने का सुअवसर मिला ,और वहां पूना में लोकल घूमते फिरते जब मेरे कानों में ,और लोगों की बातचीत में तुलजा भवानी के बारे में पता चला तो पूना आने के कुछ दिन बाद मैने बेटे से कहा कि मुझे पूना में शिवाजी महाराज के किले में स्थित उनकी कुल देवी तुलजा भवानी के मंदिर देखने की इच्छा हैं तो उसने कहा ठीक है अगले हफ्ते इतवार को चलेंगे ,तो मैने कहा इतवार की क्या आवश्यकता है ,पूना में तो ये है ही तो कल शाम ऑफिस के बाद चलना ।अब उसने जो उत्तर तो मेरे साथ साथ शायद आप भी हैरान जरूर होंगे।उसने कहा "" पापा ,तुलजा भवानी जो की वीर शिवाजी की कुल देवी हैं ,उनका स्थान अथवा मंदिर पूना से लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर से अधिक दूरी पर,पूना से हैदराबाद जाने वाले राजमार्ग पर स्थित शोलापुर शहर से भी पचास किलोमीटर की दूरी पर " तुलजा पुर " शहर में स्थित है ! क्या कहा ,पांच सौ किलो मीटर दूर ,और उनके नाम का एक शहर भी है , मैने चकित होते हुए कहा तो वो बोला , हां पापा हां ! " वैसे मेरी भी वहां जाने की इच्छा है क्यों कि कुछ पता नहीं मेरा ट्रांसफर कब किसी और शहर में हो जाए " ।बस फिर क्या था ,बड़ी ही बेसब्री से आगामी रविवार का इंतजार समाप्त हुआ और , कार द्वारा हम सब पूना से तुलजा भवानी की ओर सुबह नौ बजे के लगभग निकल पड़े , हां ,एक बात और , सब ने तय  कि घर से नाश्ता करके ही चलेंगे ,और दोपहर का भोजन हम शोला पुर जा कर ही करेंगे क्योंकि दोपहर होने तक ही हम शोला पुर पहुंच पाएंगे।अब हमे क्या एतराज था ,तो ठीक नौ बजे के लगभग हम चल पड़े महान मराठा वीर, महान शिवाजी महाराज की कुल देवी "" तुलजा भवानी " के दर्शन करने ! यहां एक बात आप सबको और बताता 
 चलूं की इन कुलदेवी के दर्शन की इच्छा धार्मिक भावों से अधिक शिवाजी महाराज से जुड़ी होने के कारण अधिक थी।एक बात और सुनें कि मराठा इतिहास में ये कहा जाता है कि जब मुगल अपनी पूरी शक्ति के साथ संपूर्ण भारत की विजय यात्रा पर निकले तो दक्षिण भारत में सबसे प्रथम उनका मुकाबला, इस विजय यात्रा में उनकी सबसे बड़ी रूकावट ,मराठा राज्य से होनी थी एवम उनका मुकाबला, उस समय के वीर शासक वीर शिवाजी महाराज से होनी निश्चित थी।अब ये तो इतिहास की बात है कि बाकी सब क्या हुआ ,परंतु मराठाओं की छोटी सी सेना महान मुगलों के आगे कहीं नहीं टिकती थी ,तो कहा जाता है कि इन वीर शिवाजी ने दुश्मनों से मुकाबला करने हेतु अपनी कुल देवी की कई दिनों तक आराधना की थी जिसके परिणाम स्वरूप कहते हैं कि उनकी कुलदेवी " तुलजा भवानी "  उनकी साधना से खुश हो,प्रगट हो कर उन्हे दो तलवारें भेंट दी थी जिसे उन्होंने नाम दिया था "" तुलजा और भवानी "" ! तो मेरे साथ चलिए महाराष्ट्र के गौरव ,महान वीर शिवाजी महाराज की उनकी प्रसिद्ध तलवार ," तुलजा एवम भवानी " जिस के बारे में बताया जाता है कि जब तक ये तलवारे शिवाजी के पास रहीं तो मृत्यु पर्यन्त उन्होंने कोई भी लड़ाई नही हारी ,साथ ही ये भी माना जाता है कि उनकी मृत्यु के पश्चात ये दोनो तलवारें भी रहस्यमय ढंग से लापता हो गई थी ,तुलजा भवानी शहर की ओर ! !
    घर से चलते चलते अभी हमने चार सौ किलो मीटर की यात्रा ही की थी कि अचानक मुख्य मार्ग पर लगा एक बोर्ड दृष्टिगत हुआ "" पंढरपुर "" पचास किलो मीटर दाईं ओर ! इन पंढरपुर की यात्रा के बारे में , मैं अपने ब्लॉग में पूर्व में अनुभवों को लिख चुका हूं ,और अगर आपने अभी तक इस यात्रा का विवरण नही पढ़ा है तो कृपया पढ़ें और उस यात्रा का आनंद लें !तो बात हो रही थी " पंढरपुर " लिखे बोर्ड की ,तो मेरी श्रीमती और पुत्र दोनो बोल उठे ,अरे ये इतना समीप है अब ,तो क्यों ना एक बार अवसर का लाभ वे भी उठा लें ,और उन्होंने कार बाईं ओर मोड़ ली ( मेरे इंकार की तो ऐसी परिस्थितियों में कोई गुंजाइश ही नहीं थी जबकि श्रीमती भी साथ हों ! )! अब चूंकि मैं ये यात्रा पूर्व में ही कर चुका हूं तो मैं इसके बारे में नहीं लिखूंगा ।

                                                    


                                                       
     तुलजा भवानी शहर की ओर मेरी यात्रा का विवरण अब उस स्थिति से आरंभ  होता है जब हम पंढरपुर शहर से वापस शोलापुर शहर की ओर जाने  लगे  ! अब एक बात और यहां स्पष्ट कर दूं कि दो बजे दिन का समय हो चुका था ,और बेटे की इच्छा थी कि चूंकि शोलापुर यहां से सिर्फ पचास किलोमीटर ही है ,और वो एक बहुत बड़ा शहर है पूना ही जैसा तो दो पहर का भोजन शोलापुर के किसी बड़े नामी होटल में ही करेंगे ,भले ही हम सब के पेट में चूहे पूरी ताकत से उछल कूद कर रहे थे,लेकिन इंकार का तो प्रश्न ही नहीं था  !! 
                                                    

    अब क्या बताएं कि शोलापुर आते तीन बज गए । जैसे कि मेने पहले बताया था ,शोलापुर एक बहुत बड़ा शहर है ,और हम प्रथम बार ही यहां आए थे तो किसी अच्छे होटल , जहां हम दोपहर का भोजन करते ,का हमे कुछ पता नहीं था।थोड़ी देर भटकने के बाद , जैसा की आजकल होता ही है ,हम गुगल बाबा की शरण में चले गए,और उसके दिखाए मैप के आधार पर हम शोला पुर में भटकने लगे ,तमाम सारे चौराहों को पार करते करते शाम के चार बजे का समय हो चला ! ये ऐसा समय होता है कि अधिकांश खाने के रेस्टोरेंट ,,ढाबों में भोजन खिलाने वाले ,और खाने वाले दोनो ही अनुपस्थित रहते है ,तो आप समझ सकते हैं कि हम जिस भी रेस्टोरेंट में जाते ,हमे निराशा ही मिलती ,और जैसे जैसे हम रेस्टोरेंट से निराश होते जाते उतनी ही हमारी भूख बढ़ती जाती ,बात यहां तक आ गई की भाई दाल रोटी न सही ,इडली डोसा ही सही ,परंतु यहां इस से भी इंकार ! हमें तो समझ ही नही आ रहा था कि हमारे उत्तर भारत में तो सुबह छह बजे से रात्रि बारह क्या दो ,तीन बजे तक भी भोजन मिल जाता है ! भाई ,शायद इन दक्षिण भारत के शहरो में खाने का कोई अलग एवम निश्चित ही समय होता होगा !
    आखिर कार ,एक बड़े नामी गिरामी होटल वालों को शायद हम भूख से बेहाल यात्रियों पर दया आई होगी तो ,वो एक शर्त पर तैयार हुए कि आपके लिए हम भोजन खिलाने को रेडी हैं परंतु इसकी तैयारी में आधा घंटा से अधिक समय लगेगा एवम थोड़ा विशेष चार्ज देना होगा ,असहमति का तो कोई प्रश्न ही नहीं था ,ये सोच कर ही सबर कर लिया कि इंतजार का फल मीठा होता है ! लेकिन अब आपको क्या बताएं ,इतनी शर्तें मानने के बाद जो भोजन आया तो हमसे, भयंकर भूखे होने के बाद भी खाया नही गया ,वो इस लिए कि हम भोजन में प्याज का साथ तो पसंद कर लेते हैं परंतु लहसुन " बाप re बाप " थोड़ा बहुत तो छोड़ो जैसे की भोजन का मुख्य भाग ,चाहे पनीर की सब्जी हो अथवा पीली दाल ,लहसुन ही था ,पहला ग्रास चखते ही लगा कि पनीर के स्थान पर जैसे लहसुन की पूरी एक गांठ ही मुंह में आ गई हो ! साथ ही हम उत्तर भारतीयों के लिए इन दक्षिण भारत के शहरों के भोजन में प्रयुक्त तड़का तो हमारी समझ ,स्वाद से एक दम अलग था !! बस अब यूं समझिए कि केवल आर्डर को चखने के बदले उस बड़े होटल की बड़ी फीस को चुका कर हम सीधे अपनी कार की ओर दौड़े ,और जेब में रखी इलाइचियों को मसलते, पीसते शहर से बाहर की ओर भागे ,सीधे तुलजा भवानी शहर की ओर ! ! !
                                                           

                                                                                                                                ( शेष क्रमश : अगले भाग में )
                                                        





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