मंगलवार, 6 अगस्त 2019

यात्रा…..कैलाश मानसरोवर PART :1

     यात्रा…..कैलाश मानसरोवर  PART :1
                                               
    शुभ्र बर्फ से आच्छादित, विशाल हिमालय के मध्य विराज मान आदि देव भगवान शंकर का निवास स्थल पवित्र
कैलाश की यात्रा ,आदि काल से महा निर्वाण की यात्रा मानी जाती रही है।बाल्यकाल से ही अपनी मां और दादी
के श्री मुख से त्री देवों में महादेव का इतनी बार प्रसंग सुना था कि पवित्र कैलाश की यात्रा मेरे जीवन का प्रमुख
लक्ष्य बन चुका था।
           समयांतराल के पश्चात कैलाश की यात्रा के बारे में जब और जानकारी मिली जो इतनी अद्भुत थी कि
सारे सांसारिक कार्य से विराम ले कर इस के कार्यान्वयन में अपने सारे उपलब्ध साधनों की सहायता से इस पवित्र
यात्रा का शुभारंभ कर ही दिया।
          


 कैलाश यात्रा के बारे में जिससे भी जानकारी मिली,उसे अपने मस्तिष्क में संग्रहित करता गया।सबसे
आश्चरयजनक बात से सब सहमत थे कि कैलाश यात्रा का सौभाग्य केवल पूर्व जन्मों के पुण्य कर्मो से ही मिलता
है।मगर जब मै उन यात्रियों से मिला जो इस यात्रा को संपन्न करके आए थे तो यात्रा पश्चात् उनके अनभवों में
एक आश्चर्यजनक समानता थी,वो थी उनके जीवन में आए बदलाव की।उन सबका जीवन पूर्ण रूप से आध्यात्म
की ओर बढ़ चुका था।मेरी जानकारी में यह भी आया कि कैलाश विभिन्न धर्मो,समूहों में अपने धार्मिक विश्वासों,
मान्यताओं का एक ऐसा केंद्र है जिसकी समानता किसी अन्य स्थान या वस्तु  से नहीं की जा सकती है।आज तक
कोई भी पर्वतारोही इस पर्वत के शिखर तक नहीं पहुंच पाया है,जिस कारण इस कैलाश पर्वत की रहस्य मयता
और बढ़ जाती है।
        कैलाश पर्वत प्राकर्तिक सौंदर्य से परिपूर्ण  लगभग 21000 फुट की ऊंचाई लिए मध्य हिमालय में चीन के स्वायत्त
प्रदेश तिब्बत में  इस्थित है।इसका सम्पूर्ण परिक्रमा पथ 21 किलो मीटर का है ।कैलाश पर्वत अपने आस पास के अन्य
पर्वतों में सबसे ऊंचा ,शुद्ध काले रंग के स्लेटो जैसे पत्थर से निर्मित है।एक अन्य रहस्यमई बात इसको अपने आस पास के
पर्वतों से अलग विशिष्टता प्रदान करता है वो यह की अन्य पर्वतों का रंग पीला या भूरा है।कैलाश पर्वत पर बारहों महीने बर्फ
विराजमान रहती है ,जबकि इसके पास ही स्थित अन्य पर्वत केवल सर्दियों में ही बर्फ से सजे रहते हैं।मानसरोवर  झील
कैलाश पर्वत से पश्चिम दिशा में 40 किलोमीटर की दूरी पर 100 किलोमीटर की परिधि में शुद्ध मीठे जल से परिपूर्ण है।
एक और बड़ा आश्चर्य इस मानसरोवर झील के बगल में ही स्थित एक और विशाल झील है जिसे " राक्षस ताल" कहते है
,इसका पानी एकदम समुद्र के पानी जैसा नमकीन है। मान्यता है कि इसी राक्षस झील के किनारे रावण ने भगवान शिव
के निवास स्थल कैलाश पर्वत की और मुख करके वर्षों तपस्या की थी।वास्तव में कैलाश यात्रा दो यात्राओं का मिला जुला
रूप  है ,एक कैलाश पर्वत की परिक्रमा, दूसरा पवित्र मानसरोवर झील की परिक्रमा।
         

 कैलाश यात्रा दो मार्गों से की जाती है।एक नेपाल के रास्ते प्राइवेट टूर एजेंसियों के द्वारा,दूसरे भारत सरकार के
संरक्षण के द्वारा।भारत में कैलाश यात्रा के सरकार द्वारा निर्धारित दो मार्ग हैं एक उत्तराखंड से होते हुए 200 किलोमीटर ,
केवल पैदल और घोड़ों की सहायता से,दूसरा सिक्किम राज्य की सीमा से चीन के रास्ते 2200 किलोमीटर बसों द्वारा।
उम्र दराज यात्रियों में  सुविधाजनक,आरामदायक यह यात्रा अधिक लोक प्रिय होती जा रही है।
      चिर प्रितिक्षित इस यात्रा का शुभारंभ जून के मध्य में तमाम सारी फर्मेल्टियों एवं पूर्ण मेडिकल जांच में उत्तीर्ण होने के
बाद अपने 48 अन्य सहयात्रियों के साथ नईदिल्ली के हवाई अड्डे से ,अपने सारे रिश्तेदारों ,मित्रों की असीम शुभकामनाओं
आशंकाओं के साथआरंभ हुई।
      वायुयान ने कुछ ही घंटों में बागडोगरा हवाई अड्डे पर जब उतारा तो दोपहर के सूरज ने पूरी चमक के साथ हमारा
स्वागत किया। हवाई अड्डे पर सिक्किम टूरिज्म विभाग का एक पूरा दल यात्रियों के स्वागत के लिए तत्पर खड़ा था।साथ
में दो बसे,एक ट्रक हमारे सामान को ढोने के लिए भी खड़े थे।कुछ ही समय में यात्रियों का दल सिक्किम की राजधानी
गंगटोक के अपने पहले पड़ाव के लिए रवाना हो गया।इस पहली यात्रा में पहाड़ों से  यात्रियों का यह पहला मगर सुहाना
परिचय था।रात होते होते दल गंगटोक शहर में पहुंच गया।सबको निर्धारित होटल में रुका दिया गया।
        सुबह नाश्ते के बाद सारे यात्रियों का परिचय टूर अधिकारी के साथ किया गया।उन्होंने कैलाश की यात्रा के दौरान
आने वाली परिस्थितियों ,कठिनाइयों एवम् उनसे बचने के उपायों का संक्षिप्त वर्णन किया।फिर हर यात्री का मेडिकल
स्टाफ द्वारा पूरा चेक अप किया।शाम को पुनः दल को गंगटोक से 12 की. मी. दूर 11000 फुट की ऊंचाई पर ,ऊंचाइयों
से अनुकूलन हेतु 2 दिनों का विश्राम  के लिए रोका गया।इस दौरान केवल दो ही कार्य करने थे ,खूब खाना, खूब सोना
और कुछ किलोमीटर पैदल चलना।
        तीसरे दिन सुबह सुबह नाश्ते के तुरंत बाद सभी यात्रियों को 14000 फुट की ऊंचाई पर  नाथुला बॉर्डर पर एक दिन
के पुनः विश्राम के लिए ले जाया गया।इस रात और अगले दिन प्रातः प्रत्येक यात्री का पुनः पूरा मेडिकल चेक अप किया।
संतोष की बात थी कि प्रत्येक यात्री पूरी तरह स्वस्थ पाया गया और यात्रा के अगले पड़ाव के लिए चयनित किया गया।पूरा
दिन यात्रा संबंधी कार्यवाही को पूरा करते हुए,सारी कागजी कार्यवाही करते हुए ,सबके जरूरी कागजातों की पुनः चेकिंग
करते हुए बीत गया।
     
 अगले दिन सुबह सुबह दल को चीनी सीमा पर चीन में प्रवेश हेतु नाथुला बॉर्डर पर ले जाया गया।बॉर्डर पर  चीन में
प्रवेश करने का क्षण भावुकता से भरा था।पवित्र कैलाश के दर्शनों के लिए अगर हृदय अगर उत्तेजना से परिपूर्ण था तो
अपनी मात्र भूमि से बिछुड़ने का अहसास भी कुछ यात्रियों के आंखों से आंसू के रूप में दिख रहा था।नाथुला सीमा पर
करके जैसे ही चीन कि सीमा में प्रवेश किया एक अनजान सा भय यात्रियों के ह्रदय को मथने सा लगा।प्रत्येक यात्री को
पासपोर्ट की चेकिंग,कस्टम आदी के काउंटर से होते हुए दो बसो में बिठाकर चिर प्रतीक्षित पवित्र  कैलाश के मार्ग पर
रवाना कर दिया गया।

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