शनिवार, 30 मई 2020

कहानी .............हाथ कटा भूत। !!

   कहानी .............हाथ कटा भूत। !!

"" प्रिय रमेश,
           अति व्यस्तता के कारण तुम्हे ये मैसेज भेज रहा हूं।याद है ना तुम्हे ,पिछली मुलाकात में तुमने कहा था कि कोई भूत प्रेत नहीं होता।लेकिन मै अब ये कहता हूं कि वास्तव में भूतों का अस्तित्व होता है ,विश्वास ना हो तुरंत ही ट्रेन पकड़ कर यहां आ जाओ, मै तुम्हे भूत दिखा दूंगा।थोड़ा व्यस्त हूं ,इस लिए जो भी पूछना हो यहां आ कर ही बात करेंगे ,
      तुम्हारा ही शशांक ।""
        मोबाइल में मै ये संदेश पढ़ कर थोड़ा मुस्कुराया।अब आपको बता दूं कि ये संदेश मेरे जीजा श्री ने भोपाल से भेजा था,वे वहां पढ़ेलिखे सर्जन हैं।स्वयं का बड़ा ट्रॉमा हॉस्पिटल है ,अब उनका ये संदेश पढ़कर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ ,एक सर्जन हो कर ,आधुनिक विज्ञान के जमाने में ऐसी भूत प्रेत की बात ।परन्तु बात चूंकि जीजाश्री की थी,साक्षात भूत दिखाने की बात थी, इस लिए विश्वास ,अविश्वास के झूले में कुछ देर झूला ,फिर फैसला किया कि चलो ,जीजाजी की बात भी देखते हैं।वैसे मुझे तो बिल्कुल भी इन बातों पर यकीन नहीं था ,परन्तु सोचा ,भूत ना सही ,इस बहाने बहन जी से एवम् भांजो भांजी से मिलना भी ही जाएगा ,काफी दिनों से उनसे मिला भी नहीं हूं ,इस लिए तुरंत भोपाल जाने का प्रोग्राम बनाया ,ट्रेन में तत्काल कोटे से सीट रिजर्व कराई , और चल दिए भोपाल जीजाजी के पास !
      स्टेशन पर जीजाजी लेने आए ,ओपचारिक बातें हुई ,परन्तु भूत का कोई जिक्र नहीं हुआ।घर पर बहन बड़े प्रेम से मिली ,बच्चे बड़े खुश हुए और इन्हीं बातों में ना जाने कब समय बीतता गया।मेरे मन में तो वहीं भूत देखने की बात थी ,इस लिए आखिरकार रात्रि के भोजन के बाद जब मै एवम् जीजाजी कुछ देर के लिए बंगले के लान में आराम कुर्सी डालकर बैठे ,तो मैने पूछ ही लिया , मै सुबह से आया हूं परन्तु एक बार भी आपने भूत का जिक्र नहीं किया,क्या ......, तुरंत ही जीजाजी ने मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा।कुछ देर बाद जब उन्होंने देखा कि मेरी बहन ,लान में नहीं है तो धीरे से बोले ,"" हां ,मैने तुम्हे वास्तव में भूत से मुलाकात करने के लिए ही बुलाया है ,परन्तु तुम्हारी बहन ने धमकाया कि मेरे भाई से भूत का कोई जिक्र नहीं करेंगे ,कहे देती हूं !"" मै चकराया ,क्या मतलब ,तो वे बोले ,भाई ,पत्नी के आदेश के आगे तो आज तक किसी की चली हैं जो मेरी चलेगी ,इस लिए मैने दिन भर भूत कि कोई बात नहीं की।अब रात होने वाली है तो तुम्हारे को इसी घर में ही भूत से मुलाकात करा दूंगा ,परन्तु जैसा में कहूं वैसा ही करना ।उनकी बातों में जो गंभीरता थी ,उस से मुझे यकीन हो गया कि आज वे मुझे भूत से मिलवा देंगे !
      रात्रि में ,सोने से से पहले जीजाजी ,मेरे कमरे में आए ,बोले " अब तुम्हारी बहन भी सोने चली गई है तो तुम अब भूत से मिलने की तैयारी कर लो !"" मै चकराया सा दिखा तो वे पास बैठ कर बोले " बात यह कि तुम जानते ही हो ,सर्जन होने के नाते में रोज ही मरीजों का ऑपरेशन करता हूं,जिन मरीजों का में ऑपरेशन करता हूं उनके कटे हुए अंगों को आगे की पढ़ाई के लिए केमिकल में डूबों कर अपनी स्वयं की लैब में सुरक्षित रखता हूं। इसे मेरा ""पेशन"" भी कह सकते हो।अब आज से कोई बीस दिन मेरे अस्पताल में एक मरीज आया जिसके हाथ में कील घुसने के कारण टिटनेस का इंफेक्शन हो गया था।मरीज, पूरे शरीर में इंफेक्शन के कारण गंभीर हालत में था ,परन्तु डाक्टर होने कर्तव्य के कारण मैने उसके घाव वाले हाथ को काटकर उसे बचाने की पूरी कोशिश की ,परन्तु इंफेक्शन अधिक फैल जाने के कारण वह बचा नहीं और आप्रेशन के दो दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
           उसकी मौत के ग्यारह दिन पश्चात एक दिन सुबह उठ कर लेब में गया तो देखा कि वहां रात को किसी ने तोड़फोड़ की है।मैने सोचा ,रात को तो ये लेब बंद  रहती है लेब घर के एक हिस्से में बनी हुई है ,तो ये असंभव था कि कोई बाहर का आदमी तोड़फोड़ कर सके ।,पहले दिन तो मैने किसी चूहे या बिल्ली का काम जान,संतोष कर लिया ,परंतु जब अगले तीन चार दिन यही तोड़ फोड़ होती रही तो मैने एक रात स्वयं ही लेब में सोने का इंतजाम किया । 
     उस रात अचानक ही कांच की शीशी के जोर से टूटने की आवाज से मेरी नींद खुली तो मेरे होश उड़ गए।वहीं इंफेक्शन से मरने वाला मरीज ,एक एक कर मेरी कांच की बोतल उठाता,कुछ देखता ,फिर जोर से नीचे फेंक देता,। डर के मारे तो मेरी घिगी बन्ध गई। मै चुपचाप डर के मारे आंख बंद करे पड़ा रहा।थोड़ी तोड़फोड़ करने के बाद वो मरीज नहीं नहीं,मरीज का भूत गों गो करता गायब हो गया।उस रात के बात तो फिर आज तक लेब में ही नहीं गया।घर की बात कब तक घरवालों से छिपती ,एक रात तोड़फोड़ कि आवाज से तुम्हारी बहन की भी आंख खुल गई तो उसका भी चेहरा पीला पड़ गया ।लेब हटाने की जिद पर एडने के कारण बड़ी मुश्किल से कुछ दिनों की उससे मोहलत मांगी है,इसी कारण उनके सामने दिन में भी कोई बात भूत की तुमसे नहीं की।अब अगर तुम साक्षात भूत से मिलना चाहते हो तो तुम्हारे लेब में सोने का इंतजाम करूं या अगर डर लग रहा हो तो ......, नहीं ,जीजाजी,डरने की कोई बात नहीं है, मै तो भूत से मिलने ही इतनी दूर आया हूं ,वैसे मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है ।चलिए ,मेरे लेब में सोने का इंतजाम कीजिए।तो चलो साले साहब,उन्होंने कहा ,परन्तु अपनी बहन से कोई जिक्र नहीं कीजिएगा ,नहीं तो मेरी खेर नहीं। मै स्वीकृति में सिर हिलाते ,उनके साथ लेब में चल दिया, सोने को,भूत को देखने को !!
       लेब क्या थी एक बड़ा हॉल था जिसमें एक दीवार की ओर तो लकड़ी के बड़े बड़े खाने बने थे ,जिसने तमाम तरह के इंसानों के कटे अंग ,केमिकल की छोटी बड़ी कांच की पारदर्शी शीशी में रखे थे ,तो दूसरी दीवार की तरफ सीमेंट के पक्के खाने बने हुए थे ,जिन में भी तमाम तरह के अंग भरे हुए थे ,तीसरी ओर कुछ मेडिकल उपकरण रखे थे।लेब के गेट से दो मीटर की दूरी के करीब एक छोटा सोफ़ा ,दो कुर्सियां ,एक टेबल ,साथ ही एक अस्पताल का सा पलंग बिछा हुआ था ,जिस पर साफ ,सफेद चादर बिछी हुई थी।बिस्तर मुझे शानदार लगा तो , लेटते ही थकान के कारण मेरी आंख मूंद गई।
       अचानक तेजी से मेरे बाल खींचने के कारण मै उठ बैठा ।सामने देखा तो ......तो एक ग्रामीण वेशभूषा का पचास पचपन उम्र का एक आदमी एक हाथ से मेरे बालों को खींच कर मुझे उठा रहा है।लेब में टिमटिमाता हल्के नीले रंग के बल्ब की रोशनी में मुझे वो स्पष्ट नहीं दिख रहा था ,मगर बालों के खिचने के कारण मेरे सर में जो तकलीफ हो रही थी उससे साफ़ था कि कोई तो है जो मेरे बाल इस आधी रात को खींच रहा है।अब ये तो कोई कहने कि बात नहीं है कि मै , देहशत एवम् डर से साक्षात कांप रहा था।मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ने लगा। डर के मारे मेरी आंख बंद ही थी।अचानक उस ..... भूत ने मेरे बाल छोड़ दिए,मेरी तकलीफ कम तो गई मगर डर इतना अधिक हो गया था कि लगा कि अभी मेरा काम तमाम होने वाला है परन्तु यह क्या ,भूत ने मुझे कुछ नहीं कहा,केवल गो गो की आवाज करता रहा।जब मुझे लगा कि भूत का मुझे कोई नुक्सान पहुंचाने का इरादा नहीं है तो डरते डरते मैने अपनी आंखे खोल ली।
      जो सामने देखा तो फिर एकबार मेरे ऊपर डर से कंपकंपी आ गई ।सामने खड़ा भूत अपने गले से गो गो की आवाज निकालते हुए अपने साबुत हाथ की उंगलियों से अपने कटे दूसरे हाथ की ओर संकेत कर रहा है मैने देखा कि उसका वह हाथ कोनी तक ही है ।इतने डर के माहौल में भी मुझे जीजाजी के इंफेक्शन के कारण मरे मरीज की बात याद आ गई ।मुझे लगा कि भूत को मुझे कोई नुक्सान पहुंचाना होता तो अभी तक पहुंचा देता ,मगर नहीं वो तो केवल अपने कटे हाथ की ओर इशारा कर रहा था। मै समझ गया कि ये उसी मरीज का भूत है जो शायद अपने कटे हाथ को ढूंढ रहा है , और हाथ नहीं पाकर क्रोधित हो कर वो कांच की कुछ शीशियों को फोड़ जाता है।मैने फिर से अपनी आंखे बंद करली।
         कहने की बात नहीं है कि शेष रात डर के साए में ही काटी ,परन्तु भूत फिर नहीं दिखा।सुबह सुबह जल्दी ही जीजाजी आ गए और मेरे चेहरे को देखते ही सारी कहानी समझ गए ,मुझे उठाते हुए इतना ही बोले "" अब तो विश्वास हो गया ना कि भूत होते हैं,उनका भी अस्तित्व होता है।""शायद मेरे मोन की भाषा से जान गए होंगे कि अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं था।
      नाश्ते के बाद जब थोड़ी फुरसत मिली तो मै रात्रि के घटनाक्रम पर सोच विचार करता रहा।भूत होते हैं,अब इसमें तो कोई संशय नहीं था ,परन्तु रात के भूत से एक अनुभव भी मिला ,भूत मनुष्यों के लिए इतने खतरनाक भी नहीं होते हैं।रात में भले ही भूत ने मेरे बाल खिंचे ,मगर उसने मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया ! अब कई सारे क्यों के जवाब मुझे धूंडने थे।उसने मेरे बाल खींच कर मुझे जगाया क्यों ,फिर अपने सही हाथ से कटे हाथ की ओर इशारा कर रहा था मगर क्यों ! पूरा दिन निकल गया इस क्यों का उत्तर ढूंढते हुए।शाम को जब जीजाजी 
दैनिक कार्यों से मुक्त हुए तो उनसे भी भूत के इस अजीब से व्यवहार के संबंध में ही बात होती रही।अभी हम किसी निष्कर्ष पर पहुंचते कि अचानक जाने कहां से एक मधुमक्खी उड़ते हुए जीजाजी के कंधे पर बैठी तो उन्होंने तुरंत दूसरे हाथ से उसे उड़ान चाहा ,मक्खी तो उड़ गई परन्तु उनके इस व्यवहार से जैसे मुझे भूत की परेशानी का हल मिल गया।
      """जीजाजी,मेरे विचार से ये भूत उसी आदमी का है जिसकी मृत्यु हाथ काटने के बाद हो गई थी।मुझे लगता है कि वो भूत आपकी लेब में केवल अपना कटा हाथ ही लेने आता है क्योंकि मैने किस्से कहानियों में सुना है कि मृत्यु के बाद ,मृतक के शव को पूरा नहीं जलाया या दफनाया जाता है तो उसकी आत्मा भटकती रहती है ।जीजाजी ,क्यों ना हम किसी अन्य मरीज के कटे हाथ को लेब में रख दें तो शायद ये भूत उस हाथ को पा कर हमेशा के लिए चला जाएगा। """जीजाजी एक पल के लिए तो खामोश हो गए ,फिर तुरंत ही बोले ,शायद तुम ठीक कहते हो , मै अभी अपने एक परिचित सर्जन मित्र से कटा हाथ मंगवाता हूं ,क्योंकि मेरे पास उस मरीज का हाथ नहीं है ।उस भूत का हाथ मेरे एक सर्जन मित्र ने प्रेक्टिकल के लिए मंगवालिया था।
       शाम होते होते घर पर कटा हाथ आ गया।आज मै फिर लेब में सोने को तैयार था। कल रात के मुकाबले आज थोड़ा भय कम लग रहा था।
       कटे हाथ की शीशी को लेब के एक कोने में रख ,मैने अपनी आंखे बंद करली,हालांकि आज मुझे बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही थी,परन्तु भूत कि प्रतिक्रिया देखने के लिए बहुत हल्की सी आंख ओट में खोल रखी थी।
      रात गहराती गई ,ना जाने कब मेरी आंख लग गई।तभी मुझे गो गो की आवाज सुनाई दी ।समझ गया कि भूत महाशय आ गए हैं।ओट से देखता रहा।भूत रोज की तरह एक शीशी उठाता,देखता और शीशी फर्श पर पटक देता।तभी उसकी नज़र कटे हाथ वाली शीशी पर गई।उसने उसे तुरंत उठाया और पहले तो वो खुशी में झुमा ,फिर अचानक जाने क्या हुआ कि उसने शीशी फर्श पर पटक दी।वो अचानक मेरी ओर लपका ,तो मैने भय से अपनी आंख बंद करली ,तभी एक जोर का चांटा मुझे लगा।पीड़ा से मैने आंखे खोली तो भूत अत्यंत क्रोधित नजर से मुझे देख रहा था ,साथ ही गो गो की आवाज निकाल रहा था।फिर तेजी से वो गेट के पास जा कर ओझल हो गया।
        सुबह जीजाजी और मै , सर पकड़े निराश से बैठे थे।समझ नहीं आ रहा था कि हाथ देख कर पहले तो भूत खुश हुआ फिर जाने क्यों उसने हाथ वाली शीशी फेंक दी।अब  इस भूत का क्या उपाय किया जाए समझ ही नहीं आ रहा था। हम दोनों एक बार दिन के उजाले में लेब देखने गए।भूत का तो कोई निशान नहीं था परन्तु टूटी फूटी कांच की शीशियां उसकी उपस्थिति बयां कर रही थी।मैने आगे बढ़ कर उस कटे हाथ को उठाया जिसे भूत ने पहले गौर से देखा ,फिर पटक दिया था।अब मै उस कटे हाथ को पकड़े गौर से देख रहा था , और तभी मुझे भूत के नाराज होने का कारण समझ आ गया।ओह ! तो ये बात थी।"" जीजाजी मुझे भूत के,कटे  हाथ होने के बाद भी  नाराज होने का कारण समझ आ गया !"" वे हैरानी से मुझे ताकने लगे।"" जीजाजी ,मैने पहली रात में भूत को साबुत हाथ की उंगलियों से कटे हाथ की ओर इशारा करते देखा था ।जानते है आप कि कल रात को हमने जो कटा हाथ रखा था वो सीधा हाथ था ,जबकि उसका बायां हाथ आपने कटा था।"" जीजाजी तुरंत समझ गए , भई वाह , साले साहब,आप तो जीनियस निकले,ये तो मैने सोचा ही नहीं था।अब मै खुद किसी की लेब में जाकर सही हाथ लाऊंगा ""! मेरे ये कहते कि सही हाथ का मतलब उल्टा हाथ ,तो इस तनाव के बीच भी हम दोनों मुस्कुरा उठे।
      फिर से एक बार हाथ को , हां हां उल्टे कटे हाथ को, शीशी में सही स्थान पर रख , कल की तरह ही मै भूत का इंतजार करने लगा ! कल की तरह आज मुझे जरा सी भी नींद नहीं आ रही थी।केवल भूत महाशय के लिए ही मैने अपनी आंखे बंद कर ली थी !
        अधमुंदी आंखो से मैने देखा ,भूत सही समय पर आ पहुंचा।इधर उधर देखते अचानक उसकी नजर कटे हाथ पर पड़ी।उसने उसे उठाया ,गौर से देखा और फिर गो गो की आवाज निकालने लगा। मै सहमा सा चुपचाप देख रहा था।तभी मुझे लगा कि भूत की ये गो गो की आवाज क्रोध की नहीं बल्कि खुशी की है।भूत उस हाथ को उठाकर देर तक खुशी से झूमता रहा एक नजर मुझ पर डाली , और कटे हाथ को सीने से लगा, शीघ्र ही आंखों से ओझल हो गया !!
       उस रात के बाद फिर कभी जीजाजी के लेब में तोड़ फोड़ नहीं हुई,परन्तु भूत होते हैं,ये सिद्ध हो गया ! अगर आप को विश्वास ना आए तो मुझे बताइएगा ,फिर कभी जीजाजी की लेब में आपको ले चलूंगा,तभी आपको विश्वास आएगा कि ""भूतों का अस्तित्व होता है""  !!!!!

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